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| 3 ओमकार। ( श्री ओम्कारेश्वर )।( ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि) | | 3 ओमकार। ( श्री ओम्कारेश्वर )।( ओम्कारेश्वर मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि) |
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− | विश्वेश्वर खण्ड के प्रधान लिंग श्री काशी विश्वनाथ (ज्योतिर्लिंग) के दर्शन एवं स्पर्श मात्र से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट ऐसे नष्ट हो जाते है जैसे सूर्योदय के बाद अंधकार। ये पूरे विश्व के नाथ है , और इनका गढ़ काशी है , इसीलिए (त्रिशूल पर टिकी )काशी का कभी विनाश नही होता । | + | विश्वेश्वर खण्ड के प्रधान लिंग श्री काशी विश्वनाथ (ज्योतिर्लिंग) के दर्शन एवं स्पर्श मात्र से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट ऐसे नष्ट हो जाते है जैसे सूर्योदय के बाद अंधकार। ये पूरे विश्व के नाथ है , और इनका गढ़ काशी है , इसीलिए (त्रिशूल पर टिकी )काशी का कभी विनाश नही होता ।<blockquote>येन काशी दृढी ध्याता येन काशीः सेविता | तेनाहं हृदि संध्यातस्तेनाहं सेवितः सदा || |
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| + | काशी यः सेवते जन्तु निर्विकल्पेन चेतसा | तमहं हृदये नित्यं धारयामि प्रयत्नतः ||(#काशी_खण्ड् )</blockquote>विश्वनाथ जी कहते हैं की जो मनुष्य हृदय में काशी का ध्यान करता है साथ ही जो मनुष्य निर्विकल्प चित से काशी का स्मरण करता है , समझना चाहिए कि उसने मेरा हृदय में ध्यान कर लिया , उससे मैं सदा सेवित रहता हूं तथा मैं नित्य उसे प्रयत्न पूर्वक अपने हृदय में धारण करता हूं ।<blockquote>नित्यं विश्वेश विश्वेश विश्वनाथेति यो जपेत् | त्रिसन्ध्यं तंसुकृतिनं जपाम्य्ह्म पिध्रुवं || (#पद्म_पुराण)</blockquote>जो नित्य विश्वेश्वर विश्वेश्वर , हे विश्वनाथ विश्वनाथ ऐसा जपता है , विश्वनाथ जी कहते है कि तीनों संध्यायो में मैं भी उसे जपता हु अर्थात मै उनको इस संसार से तार देता हूं । |
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| + | गच्क्षता तिष्ठता वापि स्वपता जग्रताथवा | काशीत्येष महामन्त्रो येन जप्तः स निर्गम || |
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| + | जो प्राणी चलते , स्थिर रहते , सोते और जागते हुवे हर समय ' ' काशी ' इस दो अक्षरों के महामंत्र को जपते रहते है , वे इस कराल संसार मे निर्भय रहते है (अर्थात इस भयानक संसार से मुक्त हो जाते है) ।<blockquote> योजनानां शतस्थोपी विमुक्तम संस्मरेद्यदि | बहुपातक पुर्णोःपि पदं गच्छत्यनामयम ||</blockquote>काशी विश्वनाथ से एक सौ योजन (1200 किलोमीटर दूर) पर स्थित रहने पर भी जो काशी नगरी का स्मरण करता है । वह पापी होते हुवे भी सभी पापो से मुक्त हो जाता है । |
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| == श्रीशिवअंगयात्रा == | | == श्रीशिवअंगयात्रा == |
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| == श्रीविश्वेश्वरस्वरूपात्मकअङ्गयात्रा == | | == श्रीविश्वेश्वरस्वरूपात्मकअङ्गयात्रा == |
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| शिव अंग यात्रा को स्कन्दपुराण के काशी खण्ड से प्राप्त किया गया है। शिव अंगात्मक लिंग सिर्फ काशी में ही पूर्ण रूप से विद्यमान है, इसीलिए प्रयत्न पूर्वक काशी में आकर रहकर यहां की यात्राएं अवश्य करनी चाहिए यह भाग्य प्रद और मोक्षप्रद होती है। | | शिव अंग यात्रा को स्कन्दपुराण के काशी खण्ड से प्राप्त किया गया है। शिव अंगात्मक लिंग सिर्फ काशी में ही पूर्ण रूप से विद्यमान है, इसीलिए प्रयत्न पूर्वक काशी में आकर रहकर यहां की यात्राएं अवश्य करनी चाहिए यह भाग्य प्रद और मोक्षप्रद होती है। |
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| + | == काशीखण्डोक्त अनुक्रमयात्रा == |
| + | <blockquote>विश्वेशं माधवं ढूंढिम , दंडपाणि च भैरवं । वंदे काशीं गुहां गङ्गा, भवानी मणिकर्णिकां ।।</blockquote>1. #विश्वेशं = श्री काशी विश्वनाथ |
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| + | 2. #माधवं = बिंदु माधव पंचगंगा घाट |
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| + | 3. #ढूंढी = ढूंढी राज विनायक , गेट नंबर 4 से अन्नपूर्णा मंदिर |
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| + | के पहले । |
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| + | 4. #दंडपाणि = विश्व्नाथ मंदिर ज्ञानवापी लेन , कॉरिडोर के कारण अब दर्शन बंद होगया है |
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| + | 5. #भैरव = काल भैरव मंदिर |
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| + | 6. #वंदे_काशी = काशी देवी मंदिर , करनघन्टा . |
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| + | 7. #गुहां = जैगीषव्य ऋषि का गुफा पाताल पूरीमठ । ईश्वरगंगी। |
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| + | 8. #गंगा = गंगा दर्शन गंगा स्नान और (आदि गंगा , ईश्वर गंगी पोखरा ) |
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| + | 9. #भवानी =भवानी गौरी , अन्नपूर्णा मंदिर में राम दरबार के आंगन में(प्राचीन समय मे यहां भवानी कुंड भी था जो अब लुप्त होगया है । वर्तमान समय मे माता अन्नपूर्णा को भवानी नाम से जाना जाता है और भवानी गौरी को ही आदि अन्नपूर्णा कहा जाता है (दोनों एक ही मानी गयी है) |
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| + | 10. #मणिकर्णिकां = मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर मणिकर्णिका देवी दर्शन सिंधिया घाट के ऊपर आत्मविरेश्वर मंदिर के सामने |
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| + | जो व्यक्ति काशी में अनेक प्रकार की यात्राएं करने में असक्षम है , वह इस अनुक्रम यात्रा को अवश्य करे । |
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| + | == काशी_खण्डोक्त शारदीयनवरात्रयात्रा == |
| + | <blockquote>प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। |
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| + | पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।। |
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| + | नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।</blockquote>1. शैलपुत्री -A40 / 11 मरहिया घाट , वाराणसी सिटी स्टेशन अलईपुरा के पास से रास्ता गया है , शैलपुत्री देवी के लिए |
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| + | 2.ब्रह्मचारिणी- K 22/ 72 दुर्गा घाट (ब्रह्मा घाट) चौखम्बा सब्जी सट्टी के आगे से काल भैरव मार्ग पर) |
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| + | 3.चंद्रघंटा- ck 23/34 चित्रघंटा गली , चौक रोड . |
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| + | 4.कुष्मांडा- दुर्गाकुंड प्रसिद्ध |
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| + | 5.स्कन्द माता - j 6/33 जैतपुरा पुलिस स्टेशन के पास । |
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| + | 6 .कात्यायनी - सिंधिया घाट , आत्मविरेश्वर मंदिर में । |
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| + | 7.कालरात्रि - D 8/17 कालिका गली , विश्वनाथ गली । |
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| + | 8.अन्नपूर्णा - अन्नपूर्णा मंदिर विश्वनाथ मंदिर |
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| + | 9.सिद्धिदात्री - सिद्धेश्वरी गली , गढ़वासी टोला , चौक ( संकटा माता मंदिर मार्ग ) |
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| + | एक मत यह कहता है कि ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में हैं। |
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| + | (1) प्रथम शैलपुत्री (हरड़) : कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है। |
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| + | (2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) : ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है। |
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| + | (3) चन्द्रघण्टा (चन्दुसूर) : यह एक ऐसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। |
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| + | (4) कूष्माण्डा (पेठा) : इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है। |
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| + | (5) स्कन्दमाता (अलसी) : देवी स्कन्दमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है। |
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| + | (6) कात्यायनी (मोइया) : देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है। |
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| + | (7) कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है। |
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| + | (8) महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है। |
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| + | (9) सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवाँ रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है। |
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| + | == काशी खण्डोक्त छप्पनविनायकयात्रा == |
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| + | ==== प्रथम दिवस-प्रथम आवरण के अष्ट विनायकों का दर्शन ==== |
| + | १-श्री अर्क विनायक-तुलसी घाट |
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| + | २-दुर्ग विनायक -दुर्गा कुण्ड |
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| + | ३-भीमचण्ड-भीमचण्डी |
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| + | ४-देहली विनायक-भाऊपुर |
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| + | ५-उद्दण्ड विनायक-रामेश्वर |
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| + | ६-पाशपाणि विनायक-सदर बाजार |
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| + | ७-खर्व विनायक-आदि- केशव घाट |
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| + | ८-सिद्धिविनायक-मणिकर्णिका घाट |
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| + | ==== द्वितीय दिवस -द्वितीय आवरण के अष्ट विनायकों का दर्शन ==== |
| + | १-श्री लम्बोदर विनायक-केदार घाट गली |
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| + | २-कूटदन्त विनायक-कीनाराम स्थल |
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| + | ३-शालटंक विनायक-मडुआडीह पोखरा |
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| + | ४-कूष्माण्ड विनायक-फुलवरियां |
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| + | ५-मुण्ड विनायक-सदर बाजार |
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| + | ६-विकटदन्त विनायक-धूपचण्डी |
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| + | ७-राजपुत्र विनायक-बसन्ता कालेज |
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| + | ८-प्रणव विनायक -आदि महादेव त्रिलोचन घाट |
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| + | ==== तृतीय दिवस-तृतीय आवरण के अष्ट विनायकों का दर्शन ==== |
| + | १-वक्रतुण्ड विनायक-चौसट्टी घाट |
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| + | २-एकदन्त विनायक-पातालेश्वर गली |
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| + | ३-त्रिमुख विनायक- सिगरा टीला |
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| + | ४-पंचमुख विनायक-पिशाच मोचन |
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| + | ५-ह्येरम्ब विनायक- बाल्मीकी टीला |
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| + | ६-विघ्नराज विनियक-धूपचण्डी |
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| + | ७-वरद विनायक- प्रह्लाद घाट |
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| + | ८- मोदकप्रिय विनायक जी-त्रिलोचन घाट |
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| + | ==== चतुर्थ दिवस-चतुर्थावरण के अष्ट विनायकों का दर्शन ==== |
| + | १-श्रीअभयप्रद विनायक-प्रयाग घाट |
| + | |
| + | २-श्रीसिंहतुण्ड विनायक-खालिसपुरा |
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| + | ३-श्रीकुणिताक्ष विनायक-लक्ष्मी कुण्ड |
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| + | ४-श्रीक्षिप्रप्रसाद विनायक-पितरकुण्डा |
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| + | ५-श्रीचिन्तामणि विनायक-ईश्वरगंगी कुण्ड |
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| + | ६-श्रीदन्तहस्त विनायक-लोहटिया |
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| + | ७-श्रीपिचण्डिल विनायक-गाय घाट |
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| + | ८-श्रीउद्दण्डमुण्ड विनायक जी-त्रिलोचन मन्दिर मछोदरी |
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| + | ==== पंचम दिवस-पंचमावरण के अष्ट विनायकों का दर्शन ==== |
| + | १-श्री स्थूलदन्त विनायक-मान मन्दिर घाट |
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| + | २-कलिप्रिय विनायक-विश्वनाथ गली |
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| + | ३-चतुर्दन्त विनायक-सनातन धर्म इण्टर काॅलेज नई सड़क |
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| + | ४-द्विमुख विनायक-सूरज (सूर्य) कुण्ड |
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| + | ५-ज्येष्ठ विनायक-वन्देकाशी देवी मन्दिर के पीछे भूत भैरव गली मे सप्तसागर |
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| + | ६-गज विनायक-भारभूतेश्वर मन्दिर मे राजा दरवाजा |
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| + | ७-काल विनायक- राम घाट की सीढ़ियों के बगल मे पेड़ के नीचे |
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| + | ८-नागेश विनायक- भोसले घाट के ऊपर नागेश्वर मन्दिर मे। |
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| + | ==== षष्ठ दिवस- षष्ठावरण के विनायकों का दर्शन ==== |
| + | १-श्रीमणिकर्णिका विनायक-मणिकर्णिका घाट |
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| + | २- श्री आशा विनायक - मीर घाट निकट विशालाक्षी मन्दिर |
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| + | ३-श्री सृष्टि विनायक- कालिका गली निकट शुक्रेश्वर मन्दिर |
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| + | ४-श्री यक्ष विनायक-ढुण्ढिराज गली |
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| + | ५-श्री गजकर्ण विनायक- शापुरी माल बांसफाटक ईशानेश्वर मन्दिर मे |
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| + | ६-चित्रघंट विनायक-चौक से कचौड़ी गली ना जा कर सीधे |
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| + | ७-श्री मंगल विनायक- मंगला गौरी मंन्दिर मे |
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| + | ८-श्री मित्र विनायक- सिन्धिया घाट- वीरेश्वर मन्दिर मे मंगलेश्वर के निकट |
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| + | आज बाबा विश्वनाथ सहित अन्नपूर्णा के दिव्य दर्शन सहित |
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| + | ==== सप्तम दिवस -समस्तावरण विनायकों का दर्शन ==== |
| + | १-श्री मोद विनायक- भीमाशंकर मन्दिर नेपाली खपड़ा |
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| + | २- श्री प्रमोद विनायक- कारीडोर मे-बंधक |
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| + | ३-श्री सुमुख विनायक-कारीडोर मे- बंधक |
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| + | ४-श्री दुर्मुख विनायक- |
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| + | ५-श्री गणनाथ विनायक |
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| + | ६-श्री ज्ञान विनायक-लांगलीश्वर मन्दिर मे खोवा बाजार |
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| + | ७-श्री द्वार विनायक-ढुण्ढिराज के पीछे नकुलेश्वर मन्दिर मे |
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| + | ८-श्री अविमुक्त विनायक ढुण्ढिराज गली मे थे अब मुक्त किये जा चुके है। |
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| + | सभी विनायकों के मध्य विराजित श्री ढुण्ढिराज विनायक तथा निकट साक्षी विनायक जी के दर्शन मात्र से यात्रा मे कोई त्रुटि हो वह पूर्ण हो जाती है और साक्षी विनायक यात्रा के साक्षी हो जाते है। |