विद्यालय के बगीचे में देसी फूल, सुगंधित फूल योजना से लगाएँ। क्रोटन जैसे, जिनकी विशेष देखभाल नहीं करनी पड़ती अतः उनको ही लगाना यह विचार बहुत ही गलत संस्कार करता है। उल्टा किसी की देखभाल करने से हमारा भी मन कोमल और प्रसन्न बनता है । फलों के वृक्ष से उनकी सुरक्षा करना, उन्हें स्वयं क्षति नहीं पहुँचाना इस वृत्ति का पोषण होता है । आज बडे बडे शहरो में विद्यालय की भव्य इमारत तो दिखती है परंतु वहाँ हरियाली नहीं, पौधे नहीं, फलों से भरे । वृक्ष नहीं दिखते हैं तो केवल चारों और सिमेंट की निर्जीवता । ऐसे रुक्ष एवं यांत्रिक निर्जीव वातावरण में शिक्षा भी निरस होती है। संवेदना, भावना जागृत नहीं होती। विद्यालय का भवन बनाते समय यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है। ज्ञान जड नही चेतन है इसकी अनुभूति बगीचे के माध्यम से निश्चित होगी। | विद्यालय के बगीचे में देसी फूल, सुगंधित फूल योजना से लगाएँ। क्रोटन जैसे, जिनकी विशेष देखभाल नहीं करनी पड़ती अतः उनको ही लगाना यह विचार बहुत ही गलत संस्कार करता है। उल्टा किसी की देखभाल करने से हमारा भी मन कोमल और प्रसन्न बनता है । फलों के वृक्ष से उनकी सुरक्षा करना, उन्हें स्वयं क्षति नहीं पहुँचाना इस वृत्ति का पोषण होता है । आज बडे बडे शहरो में विद्यालय की भव्य इमारत तो दिखती है परंतु वहाँ हरियाली नहीं, पौधे नहीं, फलों से भरे । वृक्ष नहीं दिखते हैं तो केवल चारों और सिमेंट की निर्जीवता । ऐसे रुक्ष एवं यांत्रिक निर्जीव वातावरण में शिक्षा भी निरस होती है। संवेदना, भावना जागृत नहीं होती। विद्यालय का भवन बनाते समय यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है। ज्ञान जड नही चेतन है इसकी अनुभूति बगीचे के माध्यम से निश्चित होगी। |