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२२. उत्तेजना, तनाव, उद्रेग आदि मानसिक विकारों का प्रभाव सार्वजनिक वातावरण पर पड़ता है । इससे यह वातावरण अशान्त बन जाता है । बात बात में झगड़े, मारामारी और अन्य स्वरूपों की हिंसा के लिये यह वातावरण ही कारणरूप है । सार्वजनिक वातावरण को शान्ति और सौहार्द॑ की तरंगों से भरने हेतु जप, सत्संग, नामस्मरण, सामूहिक योगाभ्यास आदि का प्रचलन बढ़ाना चाहिये । इसके प्रभाव से हिंसा भी कम होगी ।
 
२२. उत्तेजना, तनाव, उद्रेग आदि मानसिक विकारों का प्रभाव सार्वजनिक वातावरण पर पड़ता है । इससे यह वातावरण अशान्त बन जाता है । बात बात में झगड़े, मारामारी और अन्य स्वरूपों की हिंसा के लिये यह वातावरण ही कारणरूप है । सार्वजनिक वातावरण को शान्ति और सौहार्द॑ की तरंगों से भरने हेतु जप, सत्संग, नामस्मरण, सामूहिक योगाभ्यास आदि का प्रचलन बढ़ाना चाहिये । इसके प्रभाव से हिंसा भी कम होगी ।
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२३. सार्वजनिक व्यायामशालाओं और खेलों के मैदानों की संख्या बहुत कम हो गई है । बाल, किशोर, युवान, न व्यायाम करते हैं, न खेलते हैं । वॉट्सएप, वीडियो गेम्स, फेसबुक, चैटिंग आदि के व्यसनी हो गये हैं । स्वास्थ्य और संस्कारों पर इसका विपरीत प्रभाव पड रहा है । गलियों में क्रिकेट खेलना केवल शुरू है । हमारी भावी पीढ़ी बर्बाद हो रही है । यह समाज की चिन्ता का विषय बनना चाहिये । समाजहितैषी व्यक्तियों, संस्थाओं, संगठनों ने इसकी चिन्ता करनी चाहिये ।
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२३. सार्वजनिक व्यायामशालाओं और खेलों के मैदानों की संख्या बहुत कम हो गई है । बाल, किशोर, युवान, न व्यायाम करते हैं, न खेलते हैं । वॉट्सएप, वीडियो गेम्स, फेसबुक, चैटिंग आदि के व्यसनी हो गये हैं । स्वास्थ्य और संस्कारों पर इसका विपरीत प्रभाव पड रहा है । गलियों में क्रिकेट खेलना केवल आरम्भ है । हमारी भावी पीढ़ी बर्बाद हो रही है । यह समाज की चिन्ता का विषय बनना चाहिये । समाजहितैषी व्यक्तियों, संस्थाओं, संगठनों ने इसकी चिन्ता करनी चाहिये ।
    
२४. आज विश्व में भारत की गणना युवा देश के रूप में हो रही है । युवा देश की सम्पदा है । परन्तु इस सम्पदा को अकर्मण्यता, अज्ञान और असंस्कारिता का ग्रहण लग गया है । इससे बचने हेतु उपाय करने की आवश्यकता है ।
 
२४. आज विश्व में भारत की गणना युवा देश के रूप में हो रही है । युवा देश की सम्पदा है । परन्तु इस सम्पदा को अकर्मण्यता, अज्ञान और असंस्कारिता का ग्रहण लग गया है । इससे बचने हेतु उपाय करने की आवश्यकता है ।
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४०. हम मानते हैं कि मोबाईल, यातायात के साधन आदि के कारण अब सम्पर्क सरल हो गया है परन्तु वास्तव में हम देखते हैं कि हमारी गैरजिम्मेदारी ही बढ़ी है । किसी कार्यक्रम की सूचना पहले केवल मौखिक अथवा केवल पोस्टकार्ड से देने पर भी मिल जाती थी और उसका पालन भी होता था । आज मोबाइल और इण्टरनेट होने पर भी बार बार सूचना देनी पढ़ती है और फिर भी उसका पालन नहीं होता । सुविधा ने हमारा कृतित्व शिथिल बना दिया है ।
 
४०. हम मानते हैं कि मोबाईल, यातायात के साधन आदि के कारण अब सम्पर्क सरल हो गया है परन्तु वास्तव में हम देखते हैं कि हमारी गैरजिम्मेदारी ही बढ़ी है । किसी कार्यक्रम की सूचना पहले केवल मौखिक अथवा केवल पोस्टकार्ड से देने पर भी मिल जाती थी और उसका पालन भी होता था । आज मोबाइल और इण्टरनेट होने पर भी बार बार सूचना देनी पढ़ती है और फिर भी उसका पालन नहीं होता । सुविधा ने हमारा कृतित्व शिथिल बना दिया है ।
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४१. विवाह समारोहों में भोजन की व्यवस्था के सम्बन्ध में पुनर्विचार करने की बहुत आवश्यकता है । भोजन पदार्थों की संख्या और विविधता इतनी अधिक होती है कि एक व्यक्ति इन सबका एक एक कौर भी नहीं खा सकता । संस्कार , स्वास्थ्य और पैसा, तीनों के लिये यह हानिकारक है । परन्तु एक ने किया तो उसकी आलोचना होने के स्थान पर दूसरों ने करना शुरू किया । यह तो सामाजिक शिक्षा का बहुत बड़ा विषय है । लोकशिक्षा का दायित्व जिनका है उन्होंने यह सिखाना चाहिये...
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४१. विवाह समारोहों में भोजन की व्यवस्था के सम्बन्ध में पुनर्विचार करने की बहुत आवश्यकता है । भोजन पदार्थों की संख्या और विविधता इतनी अधिक होती है कि एक व्यक्ति इन सबका एक एक कौर भी नहीं खा सकता । संस्कार , स्वास्थ्य और पैसा, तीनों के लिये यह हानिकारक है । परन्तु एक ने किया तो उसकी आलोचना होने के स्थान पर दूसरों ने करना आरम्भ किया । यह तो सामाजिक शिक्षा का बहुत बड़ा विषय है । लोकशिक्षा का दायित्व जिनका है उन्होंने यह सिखाना चाहिये...
    
४२. ट्रैफिक सिम्लल की परवाह नहीं करना, रेल या बस में या कहीं पर भी पंक्ति तोड़ना, रेल या बस में वृद्धों और महिलाओं की बैठक पर बैठ जाना, उल्टी दिशा में वाहन चलाना, रास्ते चलने वालों की चिन्ता किये बिना तेज गति से वाहन चलाना आदि बातों में सामाजिक सदूभाव का अभाव ही दिखाई देता है । दूसरों का विचार नहीं करना, यही असंस्कृति है । यही संस्कृति का हास है । यह धर्मशिक्षा का विषय है । सामाजिक संस्थाओं ने अपने कार्यकर्ताओं की शिक्षा से इसका प्रारम्भ करना चाहिये ।
 
४२. ट्रैफिक सिम्लल की परवाह नहीं करना, रेल या बस में या कहीं पर भी पंक्ति तोड़ना, रेल या बस में वृद्धों और महिलाओं की बैठक पर बैठ जाना, उल्टी दिशा में वाहन चलाना, रास्ते चलने वालों की चिन्ता किये बिना तेज गति से वाहन चलाना आदि बातों में सामाजिक सदूभाव का अभाव ही दिखाई देता है । दूसरों का विचार नहीं करना, यही असंस्कृति है । यही संस्कृति का हास है । यह धर्मशिक्षा का विषय है । सामाजिक संस्थाओं ने अपने कार्यकर्ताओं की शिक्षा से इसका प्रारम्भ करना चाहिये ।
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५३. वही कार्यालय अच्छा है जो कम से कम जगह में अधिक से अधिक व्यवस्थायें बनाता है, दिन में अधिकतम समय कार्यरत रहता है, कम से कम बिजली का व्यय करता है । वह कार्यालय अच्छा है जहाँ कर्मचारी कम से कम समय में अधिक से अधिक काम करते हैं अच्छे से अच्छा काम करते हैं और खुश रहते हैं । कार्यालयों में ऐसा मानस निर्माण करने हेतु संस्कारों की शिक्षा देना अधिक उपयोगी है, *कार्यसंस्कृति' (वर्क कल्चर) की नहीं ।
 
५३. वही कार्यालय अच्छा है जो कम से कम जगह में अधिक से अधिक व्यवस्थायें बनाता है, दिन में अधिकतम समय कार्यरत रहता है, कम से कम बिजली का व्यय करता है । वह कार्यालय अच्छा है जहाँ कर्मचारी कम से कम समय में अधिक से अधिक काम करते हैं अच्छे से अच्छा काम करते हैं और खुश रहते हैं । कार्यालयों में ऐसा मानस निर्माण करने हेतु संस्कारों की शिक्षा देना अधिक उपयोगी है, *कार्यसंस्कृति' (वर्क कल्चर) की नहीं ।
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५४. भारतीय नव वर्ष और इसाई नव वर्ष अलग अलग होते हैं । शिक्षित लोगों में, फिल्‍मी दुनिया के लोगों में, कोर्पोरेट सेंक्टर में, क्रिकेट के खिलाडियों में और विशेष रूप से युवाओं में इसाई नववर्ष मनाने का प्रचलन बढ रहा है । घरों में तो भारतीय नव वर्ष मनाया जाता है । इसाई नव वर्ष मनाने हेतु घर से बाहर ही जाना होता है । उसमें नाचगान और मदिरा की ही महिमा होती है । भारतीय नव वर्ष हर प्रान्त में अलग अलग दिन पर पडता है, परन्तु हमें मालूम ही नहीं है कि भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुरू होता है, भारतीय संवत्‌ शकसंवत्‌ है । इसे भारत की संसद ने एकमत से पारित कर स्वीकार
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५४. भारतीय नव वर्ष और इसाई नव वर्ष अलग अलग होते हैं । शिक्षित लोगों में, फिल्‍मी दुनिया के लोगों में, कोर्पोरेट सेंक्टर में, क्रिकेट के खिलाडियों में और विशेष रूप से युवाओं में इसाई नववर्ष मनाने का प्रचलन बढ रहा है । घरों में तो भारतीय नव वर्ष मनाया जाता है । इसाई नव वर्ष मनाने हेतु घर से बाहर ही जाना होता है । उसमें नाचगान और मदिरा की ही महिमा होती है । भारतीय नव वर्ष हर प्रान्त में अलग अलग दिन पर पडता है, परन्तु हमें मालूम ही नहीं है कि भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आरम्भ होता है, भारतीय संवत्‌ शकसंवत्‌ है । इसे भारत की संसद ने एकमत से पारित कर स्वीकार
    
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