Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "शुरु" to "आरम्भ"
Line 147: Line 147:  
सामाजिक व्यवहार
 
सामाजिक व्यवहार
   −
७०, सामाजिक स्तर पर सम्बन्धों की आज लगभग कोई व्यवस्था नहीं है । हमने वर्ण, जाति, सम्प्रदाय आदि का तो त्याग कर दिया परन्तु उनके स्थान पर कोई व्यवस्था नहीं बनाई । पुरानी व्यवस्थाओं को छोडने Ho afer दृष्टि से तो कोई आपत्ति नहीं होती | पर्यायी व्यवस्था के अभाव में व्यावहारिक स्तर पर कठिनाई होती है । आज वैसी ही कठिनाई हो रही है। एक ही सन्तान को जन्म देने के आग्रह के कारण पारिवारिक सम्बन्धों का दायरा छोटा हो रहा है। दो पीढ़ियाँ साथ साथ नहीं रहने के कारण भी पारिवारिक सम्बन्धों की व्यवस्था गडबडा गई है । उस स्थिति में परिवार के बाहर सामाजिक सम्बन्धों की भी कोई व्यवस्था नहीं होना अनेक प्रकार की मानसिक और व्यावहारिक परेशानियों को जन्म देता है । हमने क्लबों, वृद्धाश्रमों , महिला मण्डलों जैसी व्यवस्थायें बनाना शुरु तो किया है परन्तु एक तो वे अभी बहुत ही प्राथमिक स्वरूप की हैं और दूसरे, वे विकसित होकर भी सम्बन्ध नहीं निर्माण कर सकतीं । फिर भी हम कह सकते हैं कि किसी प्रकार की सम्बन्धों की व्यवस्थायें तो हमें करनी ही चाहिये । नहीं तो सामाजिक संगठन तो होगा नहीं उल्टे विघटन को गति मिलेगी ।
+
७०, सामाजिक स्तर पर सम्बन्धों की आज लगभग कोई व्यवस्था नहीं है । हमने वर्ण, जाति, सम्प्रदाय आदि का तो त्याग कर दिया परन्तु उनके स्थान पर कोई व्यवस्था नहीं बनाई । पुरानी व्यवस्थाओं को छोडने Ho afer दृष्टि से तो कोई आपत्ति नहीं होती | पर्यायी व्यवस्था के अभाव में व्यावहारिक स्तर पर कठिनाई होती है । आज वैसी ही कठिनाई हो रही है। एक ही सन्तान को जन्म देने के आग्रह के कारण पारिवारिक सम्बन्धों का दायरा छोटा हो रहा है। दो पीढ़ियाँ साथ साथ नहीं रहने के कारण भी पारिवारिक सम्बन्धों की व्यवस्था गडबडा गई है । उस स्थिति में परिवार के बाहर सामाजिक सम्बन्धों की भी कोई व्यवस्था नहीं होना अनेक प्रकार की मानसिक और व्यावहारिक परेशानियों को जन्म देता है । हमने क्लबों, वृद्धाश्रमों , महिला मण्डलों जैसी व्यवस्थायें बनाना आरम्भ तो किया है परन्तु एक तो वे अभी बहुत ही प्राथमिक स्वरूप की हैं और दूसरे, वे विकसित होकर भी सम्बन्ध नहीं निर्माण कर सकतीं । फिर भी हम कह सकते हैं कि किसी प्रकार की सम्बन्धों की व्यवस्थायें तो हमें करनी ही चाहिये । नहीं तो सामाजिक संगठन तो होगा नहीं उल्टे विघटन को गति मिलेगी ।
    
७१. सामाजिक सम्बन्ध निर्माण करने हेतु हम व्यवसायों का आधार ले सकते हैं क्योंकि वही एक बात ऐसी है जो हम परिवार से बाहर जाकर करते हैं । एक व्यवसाय करने वालों के यदि समूह बनते हैं और उनमें सामाजिक सम्बन्ध विकसित होते हैं तो व्यावहारिक और मानसिक दोनों प्रकार से आत्मीयता और परस्पर सहयोग की भावना बढ़ेगी । सामाजिक सम्बन्ध व्यावसायिक सम्बन्धों से थोड़े अधिक अन्तरंग होते हैं । जैसे कि आपस में मैत्री होना, एकदूसरे के घर आनाजाना, विवाह आदि पारिवारिक समारोहों में सम्मिलित होना, पारिवारिक सुखदुःखों में सहभागी होना आदि से सामाजिक सम्बन्ध बनते हैं । यह एक मनोवैज्ञानिक सुरक्षा व्यवस्था है ।
 
७१. सामाजिक सम्बन्ध निर्माण करने हेतु हम व्यवसायों का आधार ले सकते हैं क्योंकि वही एक बात ऐसी है जो हम परिवार से बाहर जाकर करते हैं । एक व्यवसाय करने वालों के यदि समूह बनते हैं और उनमें सामाजिक सम्बन्ध विकसित होते हैं तो व्यावहारिक और मानसिक दोनों प्रकार से आत्मीयता और परस्पर सहयोग की भावना बढ़ेगी । सामाजिक सम्बन्ध व्यावसायिक सम्बन्धों से थोड़े अधिक अन्तरंग होते हैं । जैसे कि आपस में मैत्री होना, एकदूसरे के घर आनाजाना, विवाह आदि पारिवारिक समारोहों में सम्मिलित होना, पारिवारिक सुखदुःखों में सहभागी होना आदि से सामाजिक सम्बन्ध बनते हैं । यह एक मनोवैज्ञानिक सुरक्षा व्यवस्था है ।

Navigation menu