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६१. भारतीय परम्परा के अनुसार जो काम सामाजिक स्तर पर होना उचित और आवश्यक माना जाता रहा है वे अब अधिकाधिक मात्रा में सरकार को करने पड रहे हैं । उदाहरण के लिये समाज में कोई भूखा न रहे, कोई अशिक्षित न रहे, कोई बेरोजगार न रहे यह देखने का दायित्व समाज का है, सरकार का नहीं । इस दृष्टि से एक ओर अन्न्सत्र, सदाव्रत या भण्डारा चलना और दूसरी ओर अधथर्जिन के अवसर देकर मुक्त में नहीं खाने की प्रेरणा देना ऐसे दोनों काम एक साथ किये जाते थे । वानप्रस्थों की जिम्मेदारी है कि समाज में कोई अशिक्षित और असंस्कारी न रहे । मन्दिरों की जिम्मेदारी है कि कोई अनाश्रित न रहे । यात्रियों के लिये धर्मशाला, प्याऊ, अन्नसत्र आदि के होते होटलों की भी आवश्यकता नहीं और सरकार पर भी बोझ नहीं । ऐसी समाज की जिम्मेदारी आज सरकार पर चली गई है । वास्तव में वानप्रस्थियों ने मिलकर इस बात का विचार करना चाहिये और शीघ्र ही उचित परिवर्तन करना चाहिये ।
 
६१. भारतीय परम्परा के अनुसार जो काम सामाजिक स्तर पर होना उचित और आवश्यक माना जाता रहा है वे अब अधिकाधिक मात्रा में सरकार को करने पड रहे हैं । उदाहरण के लिये समाज में कोई भूखा न रहे, कोई अशिक्षित न रहे, कोई बेरोजगार न रहे यह देखने का दायित्व समाज का है, सरकार का नहीं । इस दृष्टि से एक ओर अन्न्सत्र, सदाव्रत या भण्डारा चलना और दूसरी ओर अधथर्जिन के अवसर देकर मुक्त में नहीं खाने की प्रेरणा देना ऐसे दोनों काम एक साथ किये जाते थे । वानप्रस्थों की जिम्मेदारी है कि समाज में कोई अशिक्षित और असंस्कारी न रहे । मन्दिरों की जिम्मेदारी है कि कोई अनाश्रित न रहे । यात्रियों के लिये धर्मशाला, प्याऊ, अन्नसत्र आदि के होते होटलों की भी आवश्यकता नहीं और सरकार पर भी बोझ नहीं । ऐसी समाज की जिम्मेदारी आज सरकार पर चली गई है । वास्तव में वानप्रस्थियों ने मिलकर इस बात का विचार करना चाहिये और शीघ्र ही उचित परिवर्तन करना चाहिये ।
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६२. आज वृद्धों को सिनियर सिटिझन्स अर्थात्‌ वरिष्ठ नागरिक कहा जाता है। उन्हें वानप्रस्थी भी कह सकते हैं। वानप्रस्थी कहते ही उसका अर्थ बदलजाता है । वानप्रस्थी हमेशा अपने कल्याण और समाजसेवा का विचार करता है । आज वानप्रस्थियों ने छोटे छोटे समूह बनाने चाहिये । प्रारम्भ में तो स्वाध्याय करना चाहिये । चिन्तन करना चाहिये । दूसरा समाजप्रबोधन का कार्य करना चाहिये । हर परिवार को दिन में एक घण्टा अथवा सप्ताह में एक दिन अर्थात्‌ चार या पाँच घण्टे ऐसे काम में देने चाहिये जिससे कोई भी भौतिक लाभ मिलता न हो । उदाहरण के लिये शिक्षित व्यक्ति बच्चों को पढ़ाने का और संस्कार देने का काम कर सकते हैं । मातापिता अपने बच्चे को प्रतिदिन ऐसे काम में ae करे जिसमें विद्यालय की पढाई, किसी भी प्रकार की परीक्षा या अन्य कोई भौतिक लाभ न हो । वानप्रस्थी उन्हें स्वदेशी, देशभक्ति, अच्छाई आदि बातों का महत्त्व समझायें । इस प्रकार सामाजिकता के प्रति अनुकूल मानस बनाने के प्रयास करने चाहिये ।
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६२. आज वृद्धों को सिनियर सिटिझन्स अर्थात्‌ वरिष्ठ नागरिक कहा जाता है। उन्हें वानप्रस्थी भी कह सकते हैं। वानप्रस्थी कहते ही उसका अर्थ बदलजाता है । वानप्रस्थी सदा अपने कल्याण और समाजसेवा का विचार करता है । आज वानप्रस्थियों ने छोटे छोटे समूह बनाने चाहिये । प्रारम्भ में तो स्वाध्याय करना चाहिये । चिन्तन करना चाहिये । दूसरा समाजप्रबोधन का कार्य करना चाहिये । हर परिवार को दिन में एक घण्टा अथवा सप्ताह में एक दिन अर्थात्‌ चार या पाँच घण्टे ऐसे काम में देने चाहिये जिससे कोई भी भौतिक लाभ मिलता न हो । उदाहरण के लिये शिक्षित व्यक्ति बच्चों को पढ़ाने का और संस्कार देने का काम कर सकते हैं । मातापिता अपने बच्चे को प्रतिदिन ऐसे काम में ae करे जिसमें विद्यालय की पढाई, किसी भी प्रकार की परीक्षा या अन्य कोई भौतिक लाभ न हो । वानप्रस्थी उन्हें स्वदेशी, देशभक्ति, अच्छाई आदि बातों का महत्त्व समझायें । इस प्रकार सामाजिकता के प्रति अनुकूल मानस बनाने के प्रयास करने चाहिये ।
    
६३. जो मुफ्त में मिलता है वह निकृष्ट होता है ऐसा कहने का प्रचलन तो बढ़ा है परन्तु मुफ्त में वस्तु प्राप्त करने का आकर्षण भी बढ़ा है । किसी वस्तु की “सेल' लगती है तब, जब एक के ऊपर एक मुफ्त वस्तु मिलती है तब, किसी वस्तु पर रियायत मिलती है तब बिना विचार किये लोग उस पर टूट पड़ते हैं । दूसरे के पैसे से यात्रा करना अच्छा लगता है, सरकारी गाड़ी में बिना अधिकार यात्रा करना अच्छा लगता है, रेल या बस में जाँच नहीं होगी ऐसा कहा
 
६३. जो मुफ्त में मिलता है वह निकृष्ट होता है ऐसा कहने का प्रचलन तो बढ़ा है परन्तु मुफ्त में वस्तु प्राप्त करने का आकर्षण भी बढ़ा है । किसी वस्तु की “सेल' लगती है तब, जब एक के ऊपर एक मुफ्त वस्तु मिलती है तब, किसी वस्तु पर रियायत मिलती है तब बिना विचार किये लोग उस पर टूट पड़ते हैं । दूसरे के पैसे से यात्रा करना अच्छा लगता है, सरकारी गाड़ी में बिना अधिकार यात्रा करना अच्छा लगता है, रेल या बस में जाँच नहीं होगी ऐसा कहा

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