Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 22: Line 22:     
===सांख्य दर्शन-दुःख की अवधारणा॥ Sankhya Darshana - Concept of Duhkha===
 
===सांख्य दर्शन-दुःख की अवधारणा॥ Sankhya Darshana - Concept of Duhkha===
प्राणीमात्र की प्रवृत्ति का लक्ष्य एकमात्र सुख की प्राप्ति और दुःख का परिहार है। उनमें भी जो विचारशील हैं वे तो सांसारिक वैषयिक सुख को भी दुःख मिश्रित होने से हेय ही समझते हैं। [[Samkhya Darshana (साङ्ख्यदर्शनम्)|सांख्य दर्शन]] में आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक तीन प्रकार के दुःखों की निवृत्ति का वर्णन प्राप्त होता है - <blockquote>दुःखत्रयाभिघाताजिज्ञासा तदपघातके हेतौ। दृष्टे सापार्थाचेन्नैकान्तात्यन्ततोभावात्॥(सांख्यकारिका)</blockquote>इन तीनों दुःखों को सदैव और अवश्य रोकने के लिए सांख्यशास्त्रीय तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
+
प्राणीमात्र की प्रवृत्ति का लक्ष्य एकमात्र सुख की प्राप्ति और दुःख का परिहार है। उनमें भी जो विचारशील हैं वे तो सांसारिक वैषयिक सुख को भी दुःख मिश्रित होने से हेय ही समझते हैं। [[Samkhya Darshana (साङ्ख्यदर्शनम्)|सांख्य दर्शन]] में आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक तीन प्रकार के दुःखों की निवृत्ति का वर्णन प्राप्त होता है -<ref>मार्कण्डेय नाथ तिवारी, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/68683 त्रिविध दुःख और सांख्यशास्त्र के मुख्य प्रतिपाद्य विषय], सन् २०२०, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (पृ० २९०)।</ref> <blockquote>दुःखत्रयाभिघाताजिज्ञासा तदपघातके हेतौ। दृष्टे सापार्थाचेन्नैकान्तात्यन्ततोभावात्॥ (सांख्यकारिका)</blockquote>इन तीनों दुःखों को सदैव और अवश्य रोकने के लिए सांख्यशास्त्रीय तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
    
=== योग दर्शन-दुःख की अवधारणा॥ Yoga Darshana - Concept of Duhkha===
 
=== योग दर्शन-दुःख की अवधारणा॥ Yoga Darshana - Concept of Duhkha===
Line 62: Line 62:  
*'''हानोपाय -''' इसका स्वरूप योगदर्शन सूत्र २/२६ विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपाय" में बतलाया गया है अर्थात स्थिर (दृढ) विवेकख्याति मोक्ष का उपाय है। इसके साथ ही विद्या, धर्माचरण, शुद्ध ज्ञान, शुद्ध (निष्काम) कर्म तथा शुद्ध उपासना आदि भी मोक्षप्राप्ति के उपाय हैं। हानोपाय का अर्थ मोक्षप्राप्ति का उपाय है। कहने का आशय यह है कि मोक्ष का उपाय होने के कारण विवेकख्याति के स्वरूप को अच्छे प्रकार से जान लेना चाहिए।<ref>देशराज-[https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/103624 योग, अर्थ, परिभाषा एवं वैशिष्ट्य], सन् २०२३, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २२)।</ref>
 
*'''हानोपाय -''' इसका स्वरूप योगदर्शन सूत्र २/२६ विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपाय" में बतलाया गया है अर्थात स्थिर (दृढ) विवेकख्याति मोक्ष का उपाय है। इसके साथ ही विद्या, धर्माचरण, शुद्ध ज्ञान, शुद्ध (निष्काम) कर्म तथा शुद्ध उपासना आदि भी मोक्षप्राप्ति के उपाय हैं। हानोपाय का अर्थ मोक्षप्राप्ति का उपाय है। कहने का आशय यह है कि मोक्ष का उपाय होने के कारण विवेकख्याति के स्वरूप को अच्छे प्रकार से जान लेना चाहिए।<ref>देशराज-[https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/103624 योग, अर्थ, परिभाषा एवं वैशिष्ट्य], सन् २०२३, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २२)।</ref>
   −
दुख तीन प्रकार के होते हैं (1) दैविक (2) दैहिक (3) भौतिक। दैनिक दुख वे कहे जाते हैं जो मन को होते हैं जैसे चिन्ता आशंका क्रोध, अपमान, शत्रुता, विछोह, भय, शोक आदि। दैहिक दुख वे होते हैं जो शरीर को होते हैं जैसे रोग, चोट, आघात, विष आदि के प्रभाव से होने वाले कष्ट। भौतिक दुख वे हैं जो अचानक अदृश्य प्रकार से आते हैं जैसे भूकम्प, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि, महामारी, युद्ध आदि। इन्हीं तीन प्रकार के दुखों की वेदना से मनुष्यों को तड़पता हुआ देखा जाता है। यह तीनों दुख हमारे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कर्मों के फल हैं। मानसिक पापों के परिणाम से दैविक दुख आते हैं, शारीरिक पापों के फलस्वरूप दैहिक और सामाजिक पापों के कारण भौतिक दुख उत्पन्न होते हैं।<ref>श्री राम शर्मा,[https://www.awgp.org/en/literature/akhandjyoti/1948/September/v2.7 अखण्ड ज्योति-दुःख और उनका कारण], सन १९४८-सितंबर, अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा (पृ० ७)।</ref>
+
दुख तीन प्रकार के होते हैं (1) दैविक (2) दैहिक (3) भौतिक। दैनिक दुख वे कहे जाते हैं जो मन को होते हैं जैसे चिन्ता आशंका क्रोध, अपमान, शत्रुता, विछोह, भय, शोक आदि। दैहिक दुख वे होते हैं जो शरीर को होते हैं जैसे रोग, चोट, आघात, विष आदि के प्रभाव से होने वाले कष्ट।<blockquote>आशा हि परमं दुःखं निराशा परमं सुखं। आशापाशं परित्यज्य सुखं स्वपिति पिंगला॥ (सुभाषित संग्रह)</blockquote>भौतिक दुख वे हैं जो अचानक अदृश्य प्रकार से आते हैं जैसे भूकम्प, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि, महामारी, युद्ध आदि। इन्हीं तीन प्रकार के दुखों की वेदना से मनुष्यों को तड़पता हुआ देखा जाता है। यह तीनों दुख हमारे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कर्मों के फल हैं। मानसिक पापों के परिणाम से दैविक दुख आते हैं, शारीरिक पापों के फलस्वरूप दैहिक और सामाजिक पापों के कारण भौतिक दुख उत्पन्न होते हैं।<ref>श्री राम शर्मा,[https://www.awgp.org/en/literature/akhandjyoti/1948/September/v2.7 अखण्ड ज्योति-दुःख और उनका कारण], सन १९४८-सितंबर, अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा (पृ० ७)।</ref>
    
==उद्धरण॥ References==
 
==उद्धरण॥ References==
1,242

edits

Navigation menu