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संस्कार वैयक्तिक और जातीय होते हैं। इन्हीं जातीय संस्कारों की समाप्ति का नाम ही संस्कृति है। संस्कृति जीवन जीने की एक शैली है, जो किसी देश, प्रान्त और परिच्छेद का विशेष परिचायक है।
 
संस्कार वैयक्तिक और जातीय होते हैं। इन्हीं जातीय संस्कारों की समाप्ति का नाम ही संस्कृति है। संस्कृति जीवन जीने की एक शैली है, जो किसी देश, प्रान्त और परिच्छेद का विशेष परिचायक है।
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'''पञ्चतन्त्र में पुरुषार्थ -'''  
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'''पञ्चतन्त्र में पुरुषार्थ -''' भारतीय संस्कृति का पोषक पुरुषार्थ चतुष्टय की जो परिकल्पना हमारे ऋषि-महर्षियों ने की है, इसी परंपरा का पालन आचार्य विष्णु ने अपने ग्रन्थ, पञ्चतंत्र में करते हुए कहते हैं - परोपकार करना ही पुण्य है और दूसरों को दुख देना ही पाप है। अतः दूसरों को कष्ट न देते हुए सदैव परोपकार में ही संलग्न रहना चाहिए। जो कार्य अपने लिए अहितकर प्रतीत हो उन्हें दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए। पञ्चतन्त्र में वर्णित तथ्यों से यह विदित होता है कि आचार्य विष्णु शर्मा, पञ्चतन्त्र की कथाओं में सम्बन्धित पात्रों द्वारा पुरुषार्थ चतुष्टय का सम्यक निर्वाह कराया है। 
    
'''संगीत -''' पञ्चतंत्रकार प्राचीन संगीत शास्त्र की सम्पूर्ण विद्याओं से परिचित थे। पंचतंत्र के काल के समय में लोगों की संगीत के प्रति विशेष अभिरुचि थी। संगीत शास्त्र का निदर्शन प्रथम तन्त्र से आरम्भ होकर पंचम तन्त्र तक दृष्टिगत होता है।
 
'''संगीत -''' पञ्चतंत्रकार प्राचीन संगीत शास्त्र की सम्पूर्ण विद्याओं से परिचित थे। पंचतंत्र के काल के समय में लोगों की संगीत के प्रति विशेष अभिरुचि थी। संगीत शास्त्र का निदर्शन प्रथम तन्त्र से आरम्भ होकर पंचम तन्त्र तक दृष्टिगत होता है।
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