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| ==पंचतंत्र में निहित सांस्कृतिक तत्व== | | ==पंचतंत्र में निहित सांस्कृतिक तत्व== |
| + | संस्कार वैयक्तिक और जातीय होते हैं। इन्हीं जातीय संस्कारों की समाप्ति का नाम ही संस्कृति है। संस्कृति जीवन जीने की एक शैली है, जो किसी देश, प्रान्त और परिच्छेद का विशेष परिचायक है। |
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| + | '''पञ्चतन्त्र में पुरुषार्थ -''' |
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| + | '''संगीत -''' पञ्चतंत्रकार प्राचीन संगीत शास्त्र की सम्पूर्ण विद्याओं से परिचित थे। पंचतंत्र के काल के समय में लोगों की संगीत के प्रति विशेष अभिरुचि थी। संगीत शास्त्र का निदर्शन प्रथम तन्त्र से आरम्भ होकर पंचम तन्त्र तक दृष्टिगत होता है। |
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| + | '''खान-पान -''' वैदिक काल से ही पाकशास्त्र प्रसिद्ध है। भोजन निर्माणमें जो प्रक्रिया विधिपूर्वक अपनायी जाती है, उसे ही पाकशास्त्र के नाम से जाना जाता है। पञ्चतंत्र में खान-पान के अनेक विवरण प्राप्त होते हैं - मन्दविसर्पिणी मत्कुल कथा में राजा अनेक प्रकार के सुन्दर व्यंजनों का उपभोग करते थे। आचार्य विष्णुशर्मा षड्रस-युक्त होने की परिचर्या में लिखते हैं कि तत्कालीन व्यक्ति के भोजन में षड्रस विद्यमान था। |
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| + | '''अतिथि-सत्कार -''' अतिथि-सत्कार समाज का अभिन्न अंग है। वैदिक काल से ही यह परम्परा निर्बाध रूप से प्रवाहमान है। भारतीय संस्कृति में अतिथि सत्कार का बहुत महत्त्व है। अतिथि धर्म का सम्यक् रूप से विवेचन पञ्चतन्त्र में मिलता है - मित्रभेद के 'उष्ट्र-काक-सिंह-द्वीपि-शृगालकथा' में क्रथनक नामक उष्ट्र, मदोत्कट नामक सिंह के पास आता है, यद्यपि क्रथनक उसका भोजन भी है, लेकिन मदोत्कट ने कहा तुम मेरे अतिथि हो और मेरे घर आये अतिथि को मैं मारता नहीं हूँ। क्योंकि घर आये अतिथि स्वरूप शत्रु को भी मारना नहीं चाहिए। यदि गृह आये हुए अतिथि पर किसी प्रकार का विपत्ति हो तो उसकी रक्षा प्राण देकर भी करना चाहिए। |
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| + | '''वृक्षपूजन -''' भारतीय संस्कृति में वृक्ष भी पूजनीय माने गये हैं। वृक्षों का पूजन अनादिकाल से चला आ रहा है। आचार्य विष्णुशर्मा कहते हैं कि वृक्ष हमें आश्रय देते हैं। धूप से निवृत्ति के लिए हम वृक्षों का आश्रय लेते हैं। वृक्ष के पत्ते तथा उनके फूलों का भी धार्मिक प्रयोग होता है। मित्रसम्प्राप्ति में व्याध वर्षा और शीत से बचने के लिए वृक्ष का ही आश्रय ग्रहण करता है। |
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| + | '''वस्त्राभूषण -''' पञ्चतन्त्र में विभिन्न वस्त्रों के उपयोग का वर्णन प्राप्त होता है। यदि कथा में गरीब पात्र है तो जीर्ण वस्त्रों का चित्रण किया गया है। कथा के प्रसंगों में अनुकूल वस्त्र भी दृष्टिगोचर होते हैं। |
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| + | इस प्रकार पञ्चतंत्र तत्कालीन भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था का भली-भाँति विवेचन करता है। इन वर्णनों के माध्यम से कहा जा सकता है कि उस समय समाज एवं संस्कृति में गीत-संगीत, खान-पान, अतिथि-सत्कार, वृक्षपूजन, वस्त्राभूषण आदि का व्यवहार अपनी उन्नतदशा में था। पञ्चतंत्र की धार्मिक सहिष्णुता तो आज के समाज के लिए सर्वथा अनुकरणीय है। |
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| ==पञ्चतंत्रकार-आचार्य विष्णुशर्मा== | | ==पञ्चतंत्रकार-आचार्य विष्णुशर्मा== |