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==पंचतंत्र का संक्षिप्त कथासार==
 
==पंचतंत्र का संक्षिप्त कथासार==
पंचतंत्र के पाँच तंत्र प्राप्त होते हैं। तंत्र शब्द इस ग्रंथ के पांच भागों में विभाजित होने के द्योतक हैं। इसमें नीतियुक्त शासन विधि के पांच विधि (गुण) बताए गए हैं। ग्रंथ के आरंभ में मंगलाचरण के उपरांत मनु, वाचस्पति, शुक्र, पाराशर, व्यास, चाणक्य की स्तुति की गई है।[4] पञ्चतंत्र के लेखक के विषय में भी विद्वान मतैक्य नहीं हैं। पंचतंत्र के लेखक विष्णु शर्मा हैं। पञ्चतंत्र के कथामुख में लेखक ने स्वयं इस बात का उल्लेख किया है, कि – [5] <blockquote>सकलार्थशास्त्रसारं जगति समालोक्य विष्णुशर्मेदम्। तंत्रैः पञ्चभिरेतच्चकार सुमनोहरं शास्त्रम्॥ (पंचतंत्र कथामुख-3) </blockquote>अर्थात मै विष्णु शर्मा, संसार में उपलब्ध सभी अर्थशास्त्रों (नीतिशास्त्रों) के तत्वों को भली प्रकार समीक्षा करके पांच तंत्रों से युक्त इस मनोहारी (लोकव्यवहारोपकारी) शास्त्र की रचना कर रहा हूं।
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पंचतंत्र के पाँच तंत्र प्राप्त होते हैं। तंत्र शब्द इस ग्रंथ के पांच भागों में विभाजित होने के द्योतक हैं। इसमें नीतियुक्त शासन विधि के पांच विधि (गुण) बताए गए हैं। ग्रंथ के आरंभ में मंगलाचरण के उपरांत मनु, वाचस्पति, शुक्र, पाराशर, व्यास, चाणक्य की स्तुति की गई है।[4] पञ्चतंत्र के लेखक के विषय में भी विद्वान मतैक्य नहीं हैं। पंचतंत्र के लेखक विष्णु शर्मा हैं। पञ्चतंत्र के कथामुख में लेखक ने स्वयं इस बात का उल्लेख किया है, कि – [5] <blockquote>सकलार्थशास्त्रसारं जगति समालोक्य विष्णुशर्मेदम्। तंत्रैः पञ्चभिरेतच्चकार सुमनोहरं शास्त्रम्॥ (पंचतंत्र कथामुख-3) </blockquote>अर्थात मै विष्णु शर्मा, संसार में उपलब्ध सभी अर्थशास्त्रों (नीतिशास्त्रों) के तत्वों को भली प्रकार समीक्षा करके पांच तंत्रों से युक्त इस मनोहारी (लोकव्यवहारोपकारी) शास्त्र की रचना कर रहा हूं। प्रथम तंत्र की अंगी कथा के पूर्व राजा अमरशक्ति के पुत्रों का आख्यान है। वह उन्हें विष्णुशर्मा को उनकी प्रतिज्ञा पर सौंप देते हैं कि वह उन्हें छः माह में राजनीति का ज्ञान करा देंगे। तदनंतर – <blockquote>अधीते य इदं नित्यं नीतिशास्त्रं शृणोति च। न पराभवमाप्नोति शक्रादपि कदाचन॥(पंचतंत्र, मित्रभेद, 1/1)</blockquote>जो इस नीतिशास्त्र का नित्य अध्ययन करता है अथवा श्रवण करता है वह देवराज इन्द्र से भी कभी पराजित नहीं हो सकता है। इस वाक्य के द्वारा कथामुख समाप्त होता है तत्पश्चात मित्रभेद नामक तंत्र प्रारंभ होता है जो अतिसंक्षेप में प्रस्तुत है।  
 
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प्रथम तंत्र की अंगी कथा के पूर्व राजा अमरशक्ति के पुत्रों का आख्यान है। वह उन्हें विष्णुशर्मा को उनकी प्रतिज्ञा पर सौंप देते हैं कि वह उन्हें छः माह में राजनीति का ज्ञान करा देंगे। तदनंतर – <blockquote>अधीते य इदं नित्यं नीतिशास्त्रं शृणोति च। न पराभवमाप्नोति शक्रादपि कदाचन॥(पंचतंत्र, मित्रभेद, 1/1)</blockquote>जो इस नीतिशास्त्र का नित्य अध्ययन करता है अथवा श्रवण करता है वह देवराज इन्द्र से भी कभी पराजित नहीं हो सकता है। इस वाक्य के द्वारा कथामुख समाप्त होता है तत्पश्चात मित्रभेद नामक तंत्र प्रारंभ होता है जो अतिसंक्षेप में प्रस्तुत है।  
      
===मित्रभेद '''   '''===
 
===मित्रभेद '''   '''===
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किसी भी देश समाज की राजनीति वहाँ के लोगों के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करती है। यथा राजा तथा प्रजा जैसी अनेक उक्तियाँ प्रख्यात है। प्रजा को राजा का अनुगमन करना पडता है। अतीत का सम्पूर्ण इतिहास तथा प्रत्येक व्यक्ति का जीवन क्रम में इस बात को प्रमाणित करता है कि जिस प्रकार के विचार धर्म, नीति से सम्बद्ध शासक होता है। प्रजा को उसके अनुकूल ढलना ही पडता है। उसके विपरीत आचरण करने वालों को उसके शासन में संकुचित होकर रहना पडता है। पञ्चतन्त्र का काल पूर्णरूप से राजतन्त्र का काल था। अतः पञ्चतन्त्र में राजा के महत्व पर विशेष बल दिया गया है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि बिना शासक के प्रजा की स्थिति बिना नाविक के सागर में फँसी नाव की तरह होती है -<ref>शोधगंगा-विनोद कुमार सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/431831/8/08_chapter4.pdf पञ्चतन्त्र में निहित सांस्कृतिक एवं आयुर्वेदीय तत्वों का अध्ययन], सन् २०२१, शोधकेन्द्र-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० १५५)।</ref> <blockquote>यदि न स्यान्नरपतिः सम्यङ्नेता ततः प्रजा। अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥ (पञ्चतन्त्र, काकोलूकीय, १/७२)</blockquote>इस प्रकार पञ्चतन्त्र के सर्वांगीण समीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि इसमें राजनीतिक तत्त्वों का समावेश पूर्णरूपेण हुआ है, जो एक सुव्यवस्थित राज्य, कुशल प्रशासक तथा योग्य प्रजा के लिए अत्यन्त उपयुक्त है।<ref>शोध गंगा-विनोद कुमार सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/431831 पञ्चतन्त्र में निहित सांस्कृतिक एवं आयुर्वेदीय तत्वो का अध्ययन], सन् २०२१, शोध केन्द्र - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, (पृ० १३६)।</ref>  
 
किसी भी देश समाज की राजनीति वहाँ के लोगों के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करती है। यथा राजा तथा प्रजा जैसी अनेक उक्तियाँ प्रख्यात है। प्रजा को राजा का अनुगमन करना पडता है। अतीत का सम्पूर्ण इतिहास तथा प्रत्येक व्यक्ति का जीवन क्रम में इस बात को प्रमाणित करता है कि जिस प्रकार के विचार धर्म, नीति से सम्बद्ध शासक होता है। प्रजा को उसके अनुकूल ढलना ही पडता है। उसके विपरीत आचरण करने वालों को उसके शासन में संकुचित होकर रहना पडता है। पञ्चतन्त्र का काल पूर्णरूप से राजतन्त्र का काल था। अतः पञ्चतन्त्र में राजा के महत्व पर विशेष बल दिया गया है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि बिना शासक के प्रजा की स्थिति बिना नाविक के सागर में फँसी नाव की तरह होती है -<ref>शोधगंगा-विनोद कुमार सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/431831/8/08_chapter4.pdf पञ्चतन्त्र में निहित सांस्कृतिक एवं आयुर्वेदीय तत्वों का अध्ययन], सन् २०२१, शोधकेन्द्र-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० १५५)।</ref> <blockquote>यदि न स्यान्नरपतिः सम्यङ्नेता ततः प्रजा। अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥ (पञ्चतन्त्र, काकोलूकीय, १/७२)</blockquote>इस प्रकार पञ्चतन्त्र के सर्वांगीण समीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि इसमें राजनीतिक तत्त्वों का समावेश पूर्णरूपेण हुआ है, जो एक सुव्यवस्थित राज्य, कुशल प्रशासक तथा योग्य प्रजा के लिए अत्यन्त उपयुक्त है।<ref>शोध गंगा-विनोद कुमार सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/431831 पञ्चतन्त्र में निहित सांस्कृतिक एवं आयुर्वेदीय तत्वो का अध्ययन], सन् २०२१, शोध केन्द्र - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, (पृ० १३६)।</ref>  
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*'''राजधर्म -''' राजा-प्रजा , कूटनीति या उपाय का महत्व
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*'''राजधर्म -''' राजा-प्रजा ,  
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*'''कूटनीति या उपाय का महत्व -'''
 
*'''राष्ट्रीय और अनतर्राष्ट्रीय शक्ति के विकास के लिए राजा के पास तीन माध्यम होना आवश्यक है -'''
 
*'''राष्ट्रीय और अनतर्राष्ट्रीय शक्ति के विकास के लिए राजा के पास तीन माध्यम होना आवश्यक है -'''
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#उपाय या नीति
 
#उपाय या नीति
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*'''राज्य संरक्षण के उपाय -''' साम नीति, दाम नीति, भेद नीति, दण्ड नीति।
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*'''राज्य संरक्षण के उपाय -''' साम नीति, दाम नीति, भेद नीति, दण्ड नीति
*'''षाड्गुण्य -''' संधि, विग्रह, आसन, यान, संश्रय, द्वैधी भाव।
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*'''षाड्गुण्य -''' संधि, विग्रह, आसन, यान, संश्रय, द्वैधी भाव इस प्रकार षाड्गुण्य के ये छः अंग बताये गये हैं। राजनीतिक स्थिति में षाड्गुण्य की नीति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। दूसरे देश या दूसरे राज्यों के बीच आपसी सम्बन्धों को बनाये रखने के लिए षाड्गुण नीति अपनानी चाहिए।
*'''अमात्य -'''
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*'''अमात्य -''' पञ्चतन्त्र में राज्य हेतु योग्य अमात्यों को अत्यन्त आवश्यक बताया गया है। अमात्य वर्ग को अत्यन्त उच्च स्थान प्राप्त था एवं अमात्य को राज्य रूपी रथ की धुरी माना है।
*'''गुप्तचर -''' स्थायी गुप्तचर एवं भ्रमणशील गुप्तचर।
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*'''गुप्तचर -''' पञ्चतन्त्र में गुप्तचर एवं दूत में कोई भेद नहीं है। दूत भी गुप्तचर का कार्य करते थे। गुप्तचरों को अधिक महत्ता दी गयी है। इन्हें राजा का चक्षु कहा गया है। गुप्तचर के विषय में कहा गया है कि गाय आदि पशु गन्ध के द्वारा वस्तुओं का पता लगा लेते हैं। उसी प्रकार राजा गुप्तचरों से दूसरे राष्ट्र की गुप्त बात जान लेते हैं।
*'''दुर्ग'''
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*'''दुर्ग -''' प्राचीन काल में युद्ध के साधन आजकल के साधनों से सर्वथा भिन्न थे। उस समय की सेना के मुख्य अस्त्र-शस्त्रों में धनुष, बाण, तलवार आदि ही होते थे। यही कारण है कि उस समय दुर्ग आदि का महत्व बहुत ही अधिक रहता था। राजधानी पर शत्रु के अधिकार से गम्भीर भय उत्पन्न हो जाता है, क्योंकि वहीं भोज्य पदार्थ एकत्र रहता है। वहीं प्रमुख तत्त्व एवं सैन्य बल का आयोजन रहता है। राजधानी ही शासन यन्त्र की धुरी है, राजधानी देश की सम्पत्ति का दर्पण है और यदि वह ऊँची दीवारों से सुदृढ रहती है तो सुरक्षा का कार्य भी करती है। अतः पञ्चतन्त्र में दुर्ग को आवश्यक सामग्रियों से युक्त होना बतलाया गया है।
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इस प्रकार पञ्चतन्त्र के सर्वांगीण समीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि इसमें राजनीतिक तत्वों का समावेश पूर्णरूपेण हुआ है, जो एक सुव्यवस्थित राज्य, कुशल प्रशासक तथा योग्य प्रजा के लिए अत्यन्त उपयुक्त है।
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==पंचतंत्र में निहित सांस्कृतिक तत्व==
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==पंचतंत्र में निहित सांस्कृतिक तत्व ==
    
==पञ्चतंत्रकार-आचार्य विष्णुशर्मा==
 
==पञ्चतंत्रकार-आचार्य विष्णुशर्मा==
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==उद्धरण==
 
==उद्धरण==
[1] <nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/327791</nowiki>
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[2] <nowiki>https://ia801405.us.archive.org/21/itemsin.ernet.dli.2015.327677/2015.327677.Sanskrit-Sahitya.pdf</nowiki>
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[3] <nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/447119/5/05_chapter1.pdf</nowiki>
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[4] <nowiki>https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/90483/1/Block-3.pdf</nowiki>                                                                                                            
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[5] <nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/431831</nowiki>
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[6] <nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/431831/5/05_chapter1.pdf</nowiki>
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[7] <nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/431831/5/05_chapter1.pdf</nowiki>
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<nowiki>https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/447119</nowiki>
   
[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
<references />
 
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