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| == परिभाषा == | | == परिभाषा == |
− | ज्योतिष शास्त्र के जिस स्कन्ध में ग्रहचारवश ग्रह- नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण से पशु-पक्षी-कीटादियों का भूसापेक्ष सामूहिक विवेचन, आकाशीय घटनाओं का ज्ञान किया जाता हो, उसे संहिता शास्त्र कहते हैं। | + | ज्योतिष शास्त्र के जिस स्कन्ध में ग्रहचारवश ग्रह- नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण से पशु-पक्षी-कीटादियों का भूसापेक्ष सामूहिक विवेचन, आकाशीय घटनाओं का ज्ञान किया जाता हो, उसे संहिता शास्त्र कहते हैं।<blockquote>सम्यक् हितं प्रतिपाद्यं यस्याः सा संहिता।</blockquote>ज्योतिषशास्त्र के जिस स्कन्ध में सभी का सम्यक् प्रकार से हित प्रतिपादित किया गया हो वह संहिता है। सभी में केवल मनुष्यों का समावेश नहीं है अपितु क्षेत्र, प्रदेश, राष्ट्र, पशु पक्षी प्राणिमात्र सहित सम्पूर्ण विश्व से संबंधित विषयों का समावेश है। जैसे- पर्यावरण विज्ञान, रसायन विज्ञान, मौसम विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वृष्टि विज्ञान, दकार्गल, प्राकृतिक आपदा, वनस्पति विज्ञान, ग्रहचार, ग्रह-नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण, पशु- पक्षी-कीटादियों से संबंधित विषय, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, विचित्र आकाशीय व भौमिक घटनाओं का ज्ञान व उनके प्रभाव का अध्ययन इत्यादि अनेकानेक विषयों का अध्ययन जिसमें किया जाता हो, उसे संहिता कहते हैं। बृहत्संहिता में वराहमिहिर का कथन है- तत्कार्त्स्न्योपनयस्य नाममुनिभिः संकीर्त्यते संहिता। |
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− | सम्यक् हितं प्रतिपाद्यं यस्याः सा संहिता। | |
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− | ज्योतिषशास्त्र के जिस स्कन्ध में सभी का सम्यक् प्रकार से हित प्रतिपादित किया गया हो वह संहिता है। सभी में केवल मनुष्यों का समावेश नहीं है अपितु क्षेत्र, प्रदेश, राष्ट्र, पशु पक्षी प्राणिमात्र सहित सम्पूर्ण विश्व से संबंधित विषयों का समावेश है। जैसे- पर्यावरण विज्ञान, रसायन विज्ञान, मौसम विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वृष्टि विज्ञान, दकार्गल, प्राकृतिक आपदा, वनस्पति विज्ञान, ग्रहचार, ग्रह-नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण, पशु- पक्षी-कीटादियों से संबंधित विषय, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, विचित्र आकाशीय व भौमिक घटनाओं का ज्ञान व उनके प्रभाव का अध्ययन इत्यादि अनेकानेक विषयों का अध्ययन जिसमें किया जाता हो, उसे संहिता कहते हैं। बृहत्संहिता में वराहमिहिर का कथन है- तत्कार्त्स्न्योपनयस्य नाममुनिभिः संकीर्त्यते संहिता। | |
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| == संहिता स्कन्ध का महत्व == | | == संहिता स्कन्ध का महत्व == |
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| अद्भुत सागर ग्रन्थ में भी बृहत्संहिता के समान ही विषयों का वर्णन है, परन्तु उसमें अनेक नवीन विषयों का भी विवेचन किया गया जिनकी चर्चा बृहत्संहिता में भी चर्चा नहीं है। उसमें दिव्याश्रय, अन्तरिक्षाश्रय और भौमाश्रय संज्ञक तीन भागों में विविध उत्पातों का सोपपत्तिक वर्णन किया है व उनकी शान्ति के उपाय भी वर्णित किये हैं। | | अद्भुत सागर ग्रन्थ में भी बृहत्संहिता के समान ही विषयों का वर्णन है, परन्तु उसमें अनेक नवीन विषयों का भी विवेचन किया गया जिनकी चर्चा बृहत्संहिता में भी चर्चा नहीं है। उसमें दिव्याश्रय, अन्तरिक्षाश्रय और भौमाश्रय संज्ञक तीन भागों में विविध उत्पातों का सोपपत्तिक वर्णन किया है व उनकी शान्ति के उपाय भी वर्णित किये हैं। |
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− | भौमाश्रय में भूकम्प, जलाशय अग्नि, दीप, देव प्रतिमा, शक्रध्वज, व्र्क्ष, गृह, वातज उपस्कर, वस्त्र, उपाहन, आसन, शस्त्र,दिव्य स्त्रीपुरुष दर्शन, मानुष, पिटक, स्वप्न, कायरिष्ट, दन्त जन्म, प्रसव, सर्वशाकुन, नाना मृग, विहग, गज, अश्व, वृष, महिष, बिडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोधिका, पिपीलिका, पतंग, मशक, मक्षिक, लूता, भ्रमर, भेक, खञ्जरीट दर्शन, पोतकी, कृष्णपेचिका, वायसाद्भुतावर्त, मिश्रकाद्भुतावर्त्त, अद्भुतशान्त्यद्भुतावर्त्त, सद्योवर्षनिमित्ताद्भुतावर्त्त, अविरुद्धाद्भुतावर्त्त और पाकसमयाद्भुतावर्त का निरूपण किया है जिनमें से अनेक विषयों की चर्चा बृहत्संहिता में नहीं प्राप्त होती। | + | भौमाश्रय में भूकम्प, जलाशय अग्नि, दीप, देव प्रतिमा, शक्रध्वज, वृक्ष, गृह, वातज उपस्कर, वस्त्र, उपाहन, आसन, शस्त्र,दिव्य स्त्रीपुरुष दर्शन, मानुष, पिटक, स्वप्न, कायरिष्ट, दन्त जन्म, प्रसव, सर्वशाकुन, नाना मृग, विहग, गज, अश्व, वृष, महिष, बिडाल, शकुन, शृगाल, गृहगोधिका, पिपीलिका, पतंग, मशक, मक्षिक, लूता, भ्रमर, भेक, खञ्जरीट दर्शन, पोतकी, कृष्णपेचिका, वायसाद्भुतावर्त, मिश्रकाद्भुतावर्त्त, अद्भुतशान्त्यद्भुतावर्त्त, सद्योवर्षनिमित्ताद्भुतावर्त्त, अविरुद्धाद्भुतावर्त्त और पाकसमयाद्भुतावर्त का निरूपण किया है जिनमें से अनेक विषयों की चर्चा बृहत्संहिता में नहीं प्राप्त होती। |
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| == संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध == | | == संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध == |
| संहिता स्कन्ध अपने आप मेम एक अत्यन्त विशाल कल्पवृक्ष के समान है, जिसमें प्रकृति एवं खगोलीय तादात्म्य के आधार पर विविध देशों, प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाले भेद और फल का बडे ही उदात्त भाव से वर्णन किया गया है। प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टि एवं ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, जलविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगर्भविज्ञान भूगोल और मनोविज्ञान के साथ-साथ सामुद्रिकशास्त्र, रत्नविज्ञान, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड का विज्ञानिक पक्ष, स्वरोदयशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र के सभी विषयों का अंतर्भाव सरलता से इस स्कंध में होता है।<ref name=":0">श्याम देव मिश्र, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80812 ज्योतिष शास्त्र के अंग], प्रमुख स्कन्ध-संहिता, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २०६)।</ref> यदि इन सभी विषयों को स्थूलरूप से वर्गीकृत करें तो संहिता के कुछ उपस्कंध समझ में आते हैं जिन पर भारतीय ज्योतिष के इतिहास में ग्रन्थ मिलते हैं- | | संहिता स्कन्ध अपने आप मेम एक अत्यन्त विशाल कल्पवृक्ष के समान है, जिसमें प्रकृति एवं खगोलीय तादात्म्य के आधार पर विविध देशों, प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाले भेद और फल का बडे ही उदात्त भाव से वर्णन किया गया है। प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टि एवं ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, जलविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगर्भविज्ञान भूगोल और मनोविज्ञान के साथ-साथ सामुद्रिकशास्त्र, रत्नविज्ञान, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड का विज्ञानिक पक्ष, स्वरोदयशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र के सभी विषयों का अंतर्भाव सरलता से इस स्कंध में होता है।<ref name=":0">श्याम देव मिश्र, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80812 ज्योतिष शास्त्र के अंग], प्रमुख स्कन्ध-संहिता, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २०६)।</ref> यदि इन सभी विषयों को स्थूलरूप से वर्गीकृत करें तो संहिता के कुछ उपस्कंध समझ में आते हैं जिन पर भारतीय ज्योतिष के इतिहास में ग्रन्थ मिलते हैं- |
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| समुद्र मुनि द्वारा प्रतिपादित यह सामुद्रिक शास्त्र बडे ही महत्व का है। इस शास्त्र में स्त्री-पुरुषों की आकृति, वर्ण, हस्तरेखा एवं विविध अंगों की बनावट के आधार पर न केवल उसकी प्रकृति का अपितु भविष्य में घटित होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का भी फलादेश किया जाता है। महर्षि समुद्र के अनुसार ललाट में ७ रेखाएं ऊपरसे क्रमशः १-शनिस्वामिनी, २-गुरुस्वामिनी, ३-मंगलस्वामिनी, ४-सूर्यस्वमिनी, ५-भृगुस्वामिनी, ६-बुधस्वामिनी तथा ७-चन्द्रस्वामिनी होती हैं। जिनके आकार, लम्बाई, स्थिति आदि के अनुसार फलादेश किया जाता है। इसी प्रकार हस्त और चरण की रेखाएँ भी पृथक् - पृथक् फल प्रदान करती हैं तथा नेत्रों के आकार, रंग, कर्ण, ओष्ठ, नासिका एवं दन्तादि अंगों की आकृतियाँ भी अलग-अलग फल प्रदान करती हैं, जिन्हैं ज्ञान और अभ्यास के द्वारा जाना जा सकता है। | | समुद्र मुनि द्वारा प्रतिपादित यह सामुद्रिक शास्त्र बडे ही महत्व का है। इस शास्त्र में स्त्री-पुरुषों की आकृति, वर्ण, हस्तरेखा एवं विविध अंगों की बनावट के आधार पर न केवल उसकी प्रकृति का अपितु भविष्य में घटित होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का भी फलादेश किया जाता है। महर्षि समुद्र के अनुसार ललाट में ७ रेखाएं ऊपरसे क्रमशः १-शनिस्वामिनी, २-गुरुस्वामिनी, ३-मंगलस्वामिनी, ४-सूर्यस्वमिनी, ५-भृगुस्वामिनी, ६-बुधस्वामिनी तथा ७-चन्द्रस्वामिनी होती हैं। जिनके आकार, लम्बाई, स्थिति आदि के अनुसार फलादेश किया जाता है। इसी प्रकार हस्त और चरण की रेखाएँ भी पृथक् - पृथक् फल प्रदान करती हैं तथा नेत्रों के आकार, रंग, कर्ण, ओष्ठ, नासिका एवं दन्तादि अंगों की आकृतियाँ भी अलग-अलग फल प्रदान करती हैं, जिन्हैं ज्ञान और अभ्यास के द्वारा जाना जा सकता है। |
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− | इसी प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों में स्थित चिह्नों और तिलों के स्वरूप और स्थितियाँ भी तत्सम्बद्ध मानव के जीवन के सन्दर्भ में बहुत कुछ फलों की संसूचना देते हैं। यहाँ तक कि चिह्नों के द्वारा जातक की राशि, लग्न और नक्षत्र का ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है और मनुष्य के सन्तानसंख्या, दाम्पत्यसुख, भ्राता, भगिनी, स्त्री, सम्पत्ति और चरित्र का ज्ञान भी ज्योतिषी को हो जाता है। | + | इसी प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों में स्थित चिह्नों और तिलों के स्वरूप और स्थितियाँ भी तत्सम्बद्ध मानव के जीवन के सन्दर्भ में बहुत कुछ फलों की संसूचना देते हैं। यहाँ तक कि चिह्नों के द्वारा जातक की राशि, लग्न और नक्षत्र का ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है और मनुष्य के सन्तानसंख्या, दाम्पत्यसुख, भ्राता, भगिनी, स्त्री, सम्पत्ति और चरित्र का ज्ञान भी ज्योतिषी को हो जाता है।<ref name=":0" /> |
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| ==== वास्तु ==== | | ==== वास्तु ==== |
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| विश्वकर्मवास्तु, विश्वकर्मप्रकाश, मयमत, अपराजितपृच्छा, मानसार, समरांगणसूत्रधार इत्यादि अनेकों स्वतंत्र ग्रन्थ तथा वास्तुरत्नावली, वास्तुसौख्य, बृहद्वास्तुमाला आदि संकलन-ग्रन्थ भी मिलते हैं। | | विश्वकर्मवास्तु, विश्वकर्मप्रकाश, मयमत, अपराजितपृच्छा, मानसार, समरांगणसूत्रधार इत्यादि अनेकों स्वतंत्र ग्रन्थ तथा वास्तुरत्नावली, वास्तुसौख्य, बृहद्वास्तुमाला आदि संकलन-ग्रन्थ भी मिलते हैं। |
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− | इस शाखा पर आज भी सर्वाधिक कार्य हो रहे हैं किन्तु प्राच्य-सिद्धान्तों का अध्ययन और शोध की अभी भी महती आवश्यकता है, विशेषकर प्रासाद-वास्तु एवं मंदिर-वास्तु के क्षेत्र में। इस कर्म में यदि नव्य-यंत्रों की सहायता ली जाए तो न केवल प्राच्य-वास्तु-सिद्धान्तों को समझा जा सकता है अपितु प्राच्य-वास्तु-कला को पुनः जीवित करके इस क्षेत्र में भारत की प्रतिष्ठा को पुनःस्थापित किया जा सकता है। | + | इस शाखा पर आज भी सर्वाधिक कार्य हो रहे हैं किन्तु प्राच्य-सिद्धान्तों का अध्ययन और शोध की अभी भी महती आवश्यकता है, विशेषकर प्रासाद-वास्तु एवं मंदिर-वास्तु के क्षेत्र में। इस कर्म में यदि नव्य-यंत्रों की सहायता ली जाए तो न केवल प्राच्य-वास्तु-सिद्धान्तों को समझा जा सकता है अपितु प्राच्य-वास्तु-कला को पुनः जीवित करके इस क्षेत्र में भारत की प्रतिष्ठा को पुनःस्थापित किया जा सकता है।<ref name=":0" /> |
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| ==== मुहूर्त ==== | | ==== मुहूर्त ==== |
− | यद्यपि वैदिक एवं पौराणिक-सहित्य में मुहूर्त के पर्याप्त बीज मिलते हैं, जिनका विकास उस दृष्टि से नहीं हुआ जिस प्रकार होना चाहिये था तथापि स्मृति-ग्रन्थों और गृह्यसूत्रों के प्रभाव के कारण इस शाखा का पर्याप्त विकास १०वीं से १७वीं शताब्दी के मध्य हुआ और अनेकों मुहूर्त ग्रन्थों यथा- रत्नकोष, रत्नमाला, मुहूर्तगणपति, मुहूर्तमार्तण्ड, मुहूर्तपदवी, मुहूर्तदिवाकर, मुहूर्तचिन्तामणि, विवाहवृन्दावन, ज्योतिर्विदाभरण, बृहद्दैवज्ञरंजन आदि का निर्माण हुआ। | + | यद्यपि वैदिक एवं पौराणिक-सहित्य में मुहूर्त के पर्याप्त बीज मिलते हैं, जिनका विकास उस दृष्टि से नहीं हुआ जिस प्रकार होना चाहिये था तथापि स्मृति-ग्रन्थों और गृह्यसूत्रों के प्रभाव के कारण इस शाखा का पर्याप्त विकास १०वीं से १७वीं शताब्दी के मध्य हुआ और अनेकों मुहूर्त ग्रन्थों यथा- रत्नकोष, रत्नमाला, मुहूर्तगणपति, मुहूर्तमार्तण्ड, मुहूर्तपदवी, मुहूर्तदिवाकर, मुहूर्तचिन्तामणि, विवाहवृन्दावन, ज्योतिर्विदाभरण, बृहद्दैवज्ञरंजन आदि का निर्माण हुआ।<ref name=":0" /> |
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| ==== अर्घ ==== | | ==== अर्घ ==== |
− | वस्तुओं के मूल्य-निर्धारण का विचार अर्घ नाम से प्रसिद्ध है। मूल्य-वृद्धि को महर्घ एवं सामान्य को समर्घ कहते हैं। नक्षत्रों में ग्रहों के संचरण, ग्रहों की शर-क्रान्ति-युति, संक्रान्ति, सर्वतोभद्र-चक्र आदि के द्वारा वस्तुओं के अर्घ का विचार संहितास्कन्ध में मिलता है, जिस पर शोध एवं अध्ययन वर्तमान समय की मांग है। शेयर-मार्केट में वस्तुओं के मूल्य का आंकलन जैसे वाणिज्य-शास्त्र के जानकार करते हैं वैसे ही यदि ज्योतिषी भी इसका अध्ययन करके पूर्व अनुमान करे तो ये आश्चर्यजनक परिणाम निकल सकते हैं। | + | वस्तुओं के मूल्य-निर्धारण का विचार अर्घ नाम से प्रसिद्ध है। मूल्य-वृद्धि को महर्घ एवं सामान्य को समर्घ कहते हैं। नक्षत्रों में ग्रहों के संचरण, ग्रहों की शर-क्रान्ति-युति, संक्रान्ति, सर्वतोभद्र-चक्र आदि के द्वारा वस्तुओं के अर्घ का विचार संहितास्कन्ध में मिलता है, जिस पर शोध एवं अध्ययन वर्तमान समय की मांग है। शेयर-मार्केट में वस्तुओं के मूल्य का आंकलन जैसे वाणिज्य-शास्त्र के जानकार करते हैं वैसे ही यदि ज्योतिषी भी इसका अध्ययन करके पूर्व अनुमान करे तो ये आश्चर्यजनक परिणाम निकल सकते हैं।<ref name=":0" /> |
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| ==== वृष्टि ==== | | ==== वृष्टि ==== |
− | वर्षा के विचार से संहिता-ग्रन्थ भरे पडे हैं। वर्षा के पूर्वानुमान का अत्यधिक विचार इस स्कन्ध में है। बृहत्संहिता में इससे संबंधित ८अध्याय हैं, जिनमे मेघों के गर्भ और प्रसव-काल से लेकर विविध योगों का विचार किया गया है। कृषिपाराशर एवं शार्गधरसंहिता में वर्षा के अनेकों योग वर्णित हैं। संहिता स्कन्ध में वर्णित वृष्टि-विचार की एक मुख्य विशेषता यह है कि वो वृष्टि का अनुमान वर्षा-काल के ३ से ६ महीने पूर्व मेघों को देखकर लगाते हैं, जिसे मेघ का गर्भधारण कहते हैं। | + | वर्षा के विचार से संहिता-ग्रन्थ भरे पडे हैं। वर्षा के पूर्वानुमान का अत्यधिक विचार इस स्कन्ध में है। बृहत्संहिता में इससे संबंधित ८अध्याय हैं, जिनमे मेघों के गर्भ और प्रसव-काल से लेकर विविध योगों का विचार किया गया है। कृषिपाराशर एवं शार्गधरसंहिता में वर्षा के अनेकों योग वर्णित हैं। संहिता स्कन्ध में वर्णित वृष्टि-विचार की एक मुख्य विशेषता यह है कि वो वृष्टि का अनुमान वर्षा-काल के ३ से ६ महीने पूर्व मेघों को देखकर लगाते हैं, जिसे मेघ का गर्भधारण कहते हैं। यह गर्भधारण जिस नक्षत्र और संक्रान्ति में हुआ है उस समय ग्रहों की स्थिति का विचार करके भविष्यमाण वर्षा के काल और मात्रा का अनुमान संहिता-स्कंध में किया जाता है। यदि मौसम-वैज्ञानिक और संहिता-स्कंध के विद्वान् मिलकर इस दिशा में शोध करें तो समाज का अत्यन्त कल्याण हो सकता है। |
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| + | इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" /> |
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| == रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश == | | == रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश == |