Difference between revisions of "Introduction to Hindu Sahitya (हिन्दू /राष्ट्रीय साहित्य परिचय)"

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नास्तिक: चार्वाक, बौद्ध, जैन  
 
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वास्तव में चार्वाक छोड़कर शेष सभी दर्शन वैदिक दर्शन ही हैं|
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संक्षेप में जानकारी  
 
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वेद : वेद का अर्थ परम ज्ञान है| आगम, आम्नाय, श्रुति ये वेद शब्द के पर्यायवाची हैं| भारत के सभी शास्त्रों का और आस्तिक दर्शनों का स्रोत वेद हैं| इसीलिये वेदों को आम्नाय या आगम भी कहा जाता है| वेद ज्ञान तो पहले से ही था| समाधी अवस्था में उसका दर्शन करनेवाले द्रष्टा ऋषियोंने इस ज्ञान की बुद्धि के स्तरपर समझनेवाले लोगों के लिए जो वाचिक प्रस्तुति की वही श्रुति है| वेदों को गुरू शिष्य परम्परा से कंठस्थीकरण के माध्यम से प्रक्षेपों और विकृतीकरण से सुरक्षित रखा गया है|
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वेद : वेद का अर्थ परम ज्ञान है आगम, आम्नाय, श्रुति ये वेद शब्द के पर्यायवाची हैं भारत के सभी शास्त्रों का और आस्तिक दर्शनों का स्रोत वेद हैं इसीलिये वेदों को आम्नाय या आगम भी कहा जाता है वेद ज्ञान तो पहले से ही था समाधी अवस्था में उसका दर्शन करनेवाले द्रष्टा ऋषियोंने इस ज्ञान की बुद्धि के स्तरपर समझनेवाले लोगों के लिए जो वाचिक प्रस्तुति की वही श्रुति है वेदों को गुरू शिष्य परम्परा से कंठस्थीकरण के माध्यम से प्रक्षेपों और विकृतीकरण से सुरक्षित रखा गया है
वेद भारत के ही नहीं तो विश्व के सबसे प्राचीन केवल आध्यात्मिक ही नहीं तो लौकिक विषयों के ज्ञान के भी मूल ग्रन्थ हैं| हर वेद के ऋषि, देवता और छंद होते हैं| वेद से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं|         - उपवेद - वेदांग - ब्राह्मण - आरण्यक – उपनिषद  - प्रातिशाख्य – ब्रुहद्देवता - अनुक्रमणी|
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वेद भारत के ही नहीं तो विश्व के सबसे प्राचीन केवल आध्यात्मिक ही नहीं तो लौकिक विषयों के ज्ञान के भी मूल ग्रन्थ हैं हर वेद के ऋषि, देवता और छंद होते हैं वेद से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं         - उपवेद - वेदांग - ब्राह्मण - आरण्यक – उपनिषद  - प्रातिशाख्य – ब्रुहद्देवता - अनुक्रमणी
वेद के मोटे मोटे ३ हिस्से हैं| ज्ञान काण्ड, उपासना काण्ड और कर्मकांड|
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वेद के मोटे मोटे ३ हिस्से हैं ज्ञान काण्ड, उपासना काण्ड और कर्मकांड
उपवेद : समाज जीवन के लिए व्यावहारिक दृष्टी से अत्यंत आवश्यक विषयोंके शास्त्रों को उपवेद में सम्मिलित किया है| जैसे शरीर और प्राण स्वस्थ बनें रहें और अस्वस्थ हुए हों तो स्वस्थ हो जाएँ इस हेतु से आयुर्वेद बनाया गया है| दुष्टों को दंड देने और सज्जनों की रक्षा करने के लिए शस्त्र सम्पादन और संचालन की क्षमता के विकास के लिए तथा युद्ध कौशल के लिए है धनुर्वेद| नृत्य, संगीतौर नाट्य तथा इनसे सम्बंधित सभी विषयों के लिए गांधर्ववेद| अन्न, वस्त्र, भवन और जीवन की अन्य सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र|
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उपवेद : समाज जीवन के लिए व्यावहारिक दृष्टी से अत्यंत आवश्यक विषयोंके शास्त्रों को उपवेद में सम्मिलित किया है जैसे शरीर और प्राण स्वस्थ बनें रहें और अस्वस्थ हुए हों तो स्वस्थ हो जाएँ इस हेतु से आयुर्वेद बनाया गया है दुष्टों को दंड देने और सज्जनों की रक्षा करने के लिए शस्त्र सम्पादन और संचालन की क्षमता के विकास के लिए तथा युद्ध कौशल के लिए है धनुर्वेद नृत्य, संगीतौर नाट्य तथा इनसे सम्बंधित सभी विषयों के लिए गांधर्ववेद अन्न, वस्त्र, भवन और जीवन की अन्य सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र
वेदांग :  वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए शीक्षा, यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु कल्प, शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु व्याकरण, शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए निरुक्त, पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए छंद और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लये ज्योतिष ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है| जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्त्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है|
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वेदांग :  वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए शीक्षा, यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु कल्प, शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु व्याकरण, शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए निरुक्त, पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए छंद और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लये ज्योतिष ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्त्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है
शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ | या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: ||
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शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ   । या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: । ।
अर्थ : मुख व्याकरणशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, निरुक्त कर्ण, कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छंद पैर हैं|
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अर्थ : मुख व्याकरणशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, निरुक्त कर्ण, कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छंद पैर हैं
वेद के ज्ञान को समझने के लिए वेदांग का अध्ययन आवश्यक है| इन का ठीक से ज्ञान नहीं होने से केवल वर्त्तमान संस्कृत सीखकर वेदों का अर्थ लगानेवाले लोगों ने वेदों के विषय में कई भ्रांतियां निर्माण कीं हैं| इस दृष्टी से एक भी अभारतीय का वेद संबंधी भाष्य अध्ययन योग्य नहीं है|  
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वेद के ज्ञान को समझने के लिए वेदांग का अध्ययन आवश्यक है इन का ठीक से ज्ञान नहीं होने से केवल वर्त्तमान संस्कृत सीखकर वेदों का अर्थ लगानेवाले लोगों ने वेदों के विषय में कई भ्रांतियां निर्माण कीं हैं इस दृष्टी से एक भी अभारतीय का वेद संबंधी भाष्य अध्ययन योग्य नहीं है  
ब्राह्मण ग्रन्थ : वेदों के अर्थ विस्तार से बताने के लिए दैनंदिन व्यवहार की शास्त्रीय चर्चा कटाने के लिए ब्राह्मण ग्रंथों का निर्माण हुआ है| ब्राह्मण ग्रन्थ गद्यात्मक हैं| धर्म, इतिहास, तत्वज्ञान और भाषाशास्त्रीय अध्ययन के लिए ब्राह्मण ग्रन्थ हैं|
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ब्राह्मण ग्रन्थ : वेदों के अर्थ विस्तार से बताने के लिए दैनंदिन व्यवहार की शास्त्रीय चर्चा कटाने के लिए ब्राह्मण ग्रंथों का निर्माण हुआ है ब्राह्मण ग्रन्थ गद्यात्मक हैं धर्म, इतिहास, तत्वज्ञान और भाषाशास्त्रीय अध्ययन के लिए ब्राह्मण ग्रन्थ हैं
आरण्यक : कोलाहल से दूर अरण्यों में एकांत में ज्ञानविज्ञान के गहन अध्ययन के ग्रन्थ हैं आरण्यक| ये यज्ञों के गूढ़ अर्थों को स्पष्ट करते हैं| कर्मकांड का दार्शनिक पक्ष उजागर करते हैं| आरण्यक वेदों के साररूप हैं|
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आरण्यक : कोलाहल से दूर अरण्यों में एकांत में ज्ञानविज्ञान के गहन अध्ययन के ग्रन्थ हैं आरण्यक ये यज्ञों के गूढ़ अर्थों को स्पष्ट करते हैं कर्मकांड का दार्शनिक पक्ष उजागर करते हैं आरण्यक वेदों के साररूप हैं
उपनिषद् : उप+नि+सद से उपनिषद शब्द बना है| इसका अर्थ है गुरू के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करना| ज्ञान के मर्म या रहस्य पात्र को ही बताए जाते हैं| चिल्लाकर नहीं कहे जाते| रहस्य जानने के लिए निकट बैठना आवश्यक है|
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उपनिषद् : उप+नि+सद से उपनिषद शब्द बना है इसका अर्थ है गुरू के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करना ज्ञान के मर्म या रहस्य पात्र को ही बताए जाते हैं चिल्लाकर नहीं कहे जाते रहस्य जानने के लिए निकट बैठना आवश्यक है
वेदों का ज्ञानात्मक या सैद्धांतिक पक्ष उपनिषदों में बताया गया है| उपनिषद प्रस्थानत्रयी का एक भाग है|
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वेदों का ज्ञानात्मक या सैद्धांतिक पक्ष उपनिषदों में बताया गया है उपनिषद प्रस्थानत्रयी का एक भाग है
पुराण : इन की गिनती वैदिक साहित्य में नहीं की जाती| लेकिन इनके महत्त्व को समझकर इन्हें पंचमवेद कहा जाता है| पुराणम् पंचमो वेद: | पुराण भारत का सांस्कृतिक इतिहास हैं| १८ मुख्य और १८ ही उप पुराण हैं| सर्ग(सृष्टी का सर्जन), प्रतिसर्ग(सृष्टी का विलय), वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित का वर्णन मिलाकर ही उसे पुराण कहते हैं|
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पुराण : इन की गिनती वैदिक साहित्य में नहीं की जाती लेकिन इनके महत्त्व को समझकर इन्हें पंचमवेद कहा जाता है पुराणम् पंचमो वेद: पुराण भारत का सांस्कृतिक इतिहास हैं १८ मुख्य और १८ ही उप पुराण हैं सर्ग(सृष्टी का सर्जन), प्रतिसर्ग(सृष्टी का विलय), वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित का वर्णन मिलाकर ही उसे पुराण कहते हैं
स्मृति : वेदों के अर्थों का औवाद करनेवाले ऋषियों के अनुभव और स्मृति के आधारपर रचे गए ग्रन्थ स्मृति कहलाते हैं| वेदज्ञान के आधारपर मानव धर्मशास्त्र की युगानुकूल और कालानुकूल प्रस्तुति ही स्मृति है|
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स्मृति : वेदों के अर्थों का औवाद करनेवाले ऋषियों के अनुभव और स्मृति के आधारपर रचे गए ग्रन्थ स्मृति कहलाते हैं वेदज्ञान के आधारपर मानव धर्मशास्त्र की युगानुकूल और कालानुकूल प्रस्तुति ही स्मृति है
श्रीमद्भगवद्गीता : बोलचाल की भाषा में इसे गीता कहते हैं| यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है| विश्व के भिन्न भिन्न विचारों के विद्वानों ने गीता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं| लेखन और प्रवचन किये हैं| यह भारतीय ज्ञानधारा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है| प्रत्येक भारतीय को इसे पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना चाहिए| अभी हम इसका प्राथमिक परिचय ही देखेंगे|
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श्रीमद्भगवद्गीता : बोलचाल की भाषा में इसे गीता कहते हैं यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है विश्व के भिन्न भिन्न विचारों के विद्वानों ने गीता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं लेखन और प्रवचन किये हैं यह भारतीय ज्ञानधारा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है प्रत्येक भारतीय को इसे पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना चाहिए अभी हम इसका प्राथमिक परिचय ही देखेंगे
१. श्रीमद्भगवद्गीता का अर्थ है यह प्रत्यक्ष भगवान द्वारा कही गई गयी है| यह अर्जुन को पास बिठाकर अनेक रहस्यों को समझानेवाली है| इसलिए यह उपनिषद् है| गीतोपनिषद| गीता स्त्रीलिंगी शब्द है|
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१. श्रीमद्भगवद्गीता का अर्थ है यह प्रत्यक्ष भगवान द्वारा कही गई गयी है यह अर्जुन को पास बिठाकर अनेक रहस्यों को समझानेवाली है इसलिए यह उपनिषद् है गीतोपनिषद गीता स्त्रीलिंगी शब्द है
२. यद्यपि यह महाभारत का एक छोटा हिस्सा है फिर भी इस का महत्त्व और इस की ख्याति स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी ही है| महाभारत के भीष्मपर्व के २५ से ४२ तक के १८ अध्यायों में यह कही गयी है|
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२. यद्यपि यह महाभारत का एक छोटा हिस्सा है फिर भी इस का महत्त्व और इस की ख्याति स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी ही है महाभारत के भीष्मपर्व के २५ से ४२ तक के १८ अध्यायों में यह कही गयी है
३. एक अक्षौहिणी याने २१८७० रथ, २१८७० हाथी, ६५६१० घोड़े, १०९३५० पदाति ऐसे कुल २,६२,४४० सैनिक मिलकर एक अक्षौहिणी संख्या बनती है| कुरूक्षेत्र (वर्त्तमान में हरियाणा में है) की रणभूमि में ११ अक्षौहिणी सेना कौरवों की ओर से तथा ७ अक्षौहिणी सेना पांडवों की ओर से लड़ी थी| आज भी यह रणक्षेत्र देखने को मिलता है|
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३. एक अक्षौहिणी याने २१८७० रथ, २१८७० हाथी, ६५६१० घोड़े, १०९३५० पदाति ऐसे कुल २,६२,४४० सैनिक मिलकर एक अक्षौहिणी संख्या बनती है कुरूक्षेत्र (वर्त्तमान में हरियाणा में है) की रणभूमि में ११ अक्षौहिणी सेना कौरवों की ओर से तथा ७ अक्षौहिणी सेना पांडवों की ओर से लड़ी थी आज भी यह रणक्षेत्र देखने को मिलता है
४. गीता महाभारत युद्ध के प्रारम्भ में कही गई है|
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४. गीता महाभारत युद्ध के प्रारम्भ में कही गई है
५. सम्पूर्ण गीता प्रश्नोत्तर याने संवाद रूप में है| मुख्यत: अर्जुन प्रश्न पूछते हैं और भगवान उत्तर देते हैं|
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५. सम्पूर्ण गीता प्रश्नोत्तर याने संवाद रूप में है मुख्यत: अर्जुन प्रश्न पूछते हैं और भगवान उत्तर देते हैं
६. कुरुक्षेत्र की रणभूमी में हुए कृष्ण और अर्जुन के संवाद का वृत्त संजय धृतराष्ट्र को बताते haiहैं| अंतिम श्लोक भी संजय द्वारा ध्रुतराष्ट्र को किया गया विश्लेषण है| गीता में धृतराष्ट्र के नाम से १ श्लोक, संजय के नाम से ४० श्लोक हैं| शेष ६५९ श्लोक भगवान और अर्जुन के बीच संवाद के हैं|
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६. कुरुक्षेत्र की रणभूमी में हुए कृष्ण और अर्जुन के संवाद का वृत्त संजय धृतराष्ट्र को बताते haiहैं अंतिम श्लोक भी संजय द्वारा ध्रुतराष्ट्र को किया गया विश्लेषण है गीता में धृतराष्ट्र के नाम से १ श्लोक, संजय के नाम से ४० श्लोक हैं शेष ६५९ श्लोक भगवान और अर्जुन के बीच संवाद के हैं
७. गीता में अठारह अध्यायों में ७०० श्लोक हैं|
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७. गीता में अठारह अध्यायों में ७०० श्लोक हैं
८. गीता के अठारह अध्याय हैं| हर अध्याय को योग कहा है| अध्यायों के नाम और श्लोकसंख्या निम्न है|
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८. गीता के अठारह अध्याय हैं हर अध्याय को योग कहा है अध्यायों के नाम और श्लोकसंख्या निम्न है
 
    १. अर्जुन विषाद – ४७  २. सांख्य – ७२ ३. कर्म – ४३ ४. ज्ञानकर्मसंन्यास – ४२    ५. कर्मसंन्यास – २९ ६. आत्मसंयम – ४७ ७. ज्ञानविज्ञान ३० ८. अक्षर ब्रह्म – २८ ९. राजविद्याराजगृह्य -३८  १०. विभूति - ४२ ११. विश्वरूपदर्शन – ५५ १२. भक्तियोग २० १३. क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग -३८ १४. गुणत्रयविभाग - २७  १५. पुरूषोत्तम – २० १६. दैवासुरसम्पदविभाग –२८ १७. श्रद्धात्रयविभाग – २८ १८. मोक्षसंन्यास – ७८  
 
    १. अर्जुन विषाद – ४७  २. सांख्य – ७२ ३. कर्म – ४३ ४. ज्ञानकर्मसंन्यास – ४२    ५. कर्मसंन्यास – २९ ६. आत्मसंयम – ४७ ७. ज्ञानविज्ञान ३० ८. अक्षर ब्रह्म – २८ ९. राजविद्याराजगृह्य -३८  १०. विभूति - ४२ ११. विश्वरूपदर्शन – ५५ १२. भक्तियोग २० १३. क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग -३८ १४. गुणत्रयविभाग - २७  १५. पुरूषोत्तम – २० १६. दैवासुरसम्पदविभाग –२८ १७. श्रद्धात्रयविभाग – २८ १८. मोक्षसंन्यास – ७८  
९. वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं| ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड| उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं| वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं| १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं| इन सभी उपनिषदों का सार गीता है| कहा गया है – सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन: | पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ||   उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं| गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है| अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है|
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९. वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं इन सभी उपनिषदों का सार गीता है कहा गया है – सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन: पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् । ।   उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है
१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है| ब्रह्म को जानने की विद्या| ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टी निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है| इस सृष्टी के मूल तत्व को तथा सृष्टी के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है|
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१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है ब्रह्म को जानने की विद्या ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टी निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है इस सृष्टी के मूल तत्व को तथा सृष्टी के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है
११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है| प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान| प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ| ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता| भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है| सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है|
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११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है
१२. गीता योगशास्त्र है| योग जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी है| गीता भी दैनंदिन जीवन के लिए, सार्वजनिक जीवन के लिए जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विषय के लिए मार्गदर्शक ग्रन्थ है|
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१२. गीता योगशास्त्र है योग जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी है गीता भी दैनंदिन जीवन के लिए, सार्वजनिक जीवन के लिए जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विषय के लिए मार्गदर्शक ग्रन्थ है
 
१३. गीता में योग की व्याख्या इस प्रकार है –  
 
१३. गीता में योग की व्याख्या इस प्रकार है –  
समत्वं योगमुच्यते  : योग का अर्थ है समत्व|
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समत्वं योगमुच्यते  : योग का अर्थ है समत्व
योग: कर्मसु कौशलम्  : (विहित) कर्म में कुशलता(निष्काम भाव) ही योग है|
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योग: कर्मसु कौशलम्  : (विहित) कर्म में कुशलता(निष्काम भाव) ही योग है
१४. गीता व्यवहार शास्त्र है| सिद्धांत और व्यवहार दोनों का निरूपण करती है|
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१४. गीता व्यवहार शास्त्र है सिद्धांत और व्यवहार दोनों का निरूपण करती है
१५. गीता के उपदेश का उद्देश्य अर्जुन को अहंकार त्यागकर अपने कर्तव्य याने क्षत्रिय कर्म के लिए प्रवृत्त करने का है| इससे भी और गहराई से देखें तो गीता का केन्द्रवर्ती विषय निष्काम कर्म है|
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१५. गीता के उपदेश का उद्देश्य अर्जुन को अहंकार त्यागकर अपने कर्तव्य याने क्षत्रिय कर्म के लिए प्रवृत्त करने का है इससे भी और गहराई से देखें तो गीता का केन्द्रवर्ती विषय निष्काम कर्म है
१६. परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्.... के माध्यम से भगवान मनुष्य को आश्वस्त करते हैं कि दुष्टों का नाश होनेवाला है|
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१६. परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्.... के माध्यम से भगवान मनुष्य को आश्वस्त करते हैं कि दुष्टों का नाश होनेवाला है
१७. भक्तिमार्गी हो चाहे ज्ञानमार्गी हो, गीता सभी को अपने ‘स्व’धर्म के अनुसार आचरण करने को कहती है|
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१७. भक्तिमार्गी हो चाहे ज्ञानमार्गी हो, गीता सभी को अपने ‘स्व’धर्म के अनुसार आचरण करने को कहती है
१८. गीता कहते समय कृष्ण योगारूढ़ अवस्था में हैं| इसलिए वे परमात्मा के स्तर से बात करते हैं| कृष्ण के स्तर से नहीं|
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१८. गीता कहते समय कृष्ण योगारूढ़ अवस्था में हैं इसलिए वे परमात्मा के स्तर से बात करते हैं कृष्ण के स्तर से नहीं
१९. गीता का अध्ययन सभी वर्ण, जाति, पंथ, सम्प्रदाय के लोगों के लिए है| लेकिन उनमें से तप न करनेवालों के लिए, वेदशास्त्र और परमात्मा में श्रद्धा न रखनेवालों के लिए, भक्तिहीन व्यक्ति के लिए और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है ऐसे लोगों के लिए नहीं है|
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१९. गीता का अध्ययन सभी वर्ण, जाति, पंथ, सम्प्रदाय के लोगों के लिए है लेकिन उनमें से तप न करनेवालों के लिए, वेदशास्त्र और परमात्मा में श्रद्धा न रखनेवालों के लिए, भक्तिहीन व्यक्ति के लिए और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है ऐसे लोगों के लिए नहीं है
२०. गीता सांख्ययोग, भक्तियोग और कर्मयोग तीनों का मार्गदर्शन करनेवाला ग्रन्थ है|
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२०. गीता सांख्ययोग, भक्तियोग और कर्मयोग तीनों का मार्गदर्शन करनेवाला ग्रन्थ है
२१. ऐसा कहते हैं कि गीता का प्रतिदिन पाठ किया जाये तो ढाई घंटे में एकबार पढी जा सकती है| स्पष्ट एवं शुद्ध वाचन करनेवाले को धीरे धीरे अपने आप समझमें आने लग जाती है| एकाग्रता के साथ प्रतिदिन इसका पाठ करते हैं तो गीता स्वयं ही अपना अर्थ पाठक के समक्ष प्रकट करती है| गीता का सूत्र है – श्रद्धावाँलभते ज्ञानम् याने श्रद्धावान को ज्ञान प्राप्त होता है|
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२१. ऐसा कहते हैं कि गीता का प्रतिदिन पाठ किया जाये तो ढाई घंटे में एकबार पढी जा सकती है स्पष्ट एवं शुद्ध वाचन करनेवाले को धीरे धीरे अपने आप समझमें आने लग जाती है एकाग्रता के साथ प्रतिदिन इसका पाठ करते हैं तो गीता स्वयं ही अपना अर्थ पाठक के समक्ष प्रकट करती है गीता का सूत्र है – श्रद्धावाँलभते ज्ञानम् याने श्रद्धावान को ज्ञान प्राप्त होता है
२२. विश्व को भारत की यह अनुपम भेंट है|
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२२. विश्व को भारत की यह अनुपम भेंट है
  
 
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
 
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Revision as of 19:51, 25 August 2018

A comprehensive treatment of this topic can be seen here.

हिन्दु/राष्ट्रीय साहित्य परिचय:

S. No. Sahitya (साहित्य) Elements of Sahitya Remarks
वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद,अथर्ववेद अपौरुषेय / समाधि अवस्था में प्रकट हुए ।
उपवेद ऋग्वेद: आयुर्वेद; यजुर्वेद: धनुर्वेद;

सामवेद: गांधर्ववेद; अथर्ववेद: शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र

वेदांग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष

शिक्षा: पाणिनीय शिक्षा, नारदीय शिक्षा, याज्ञवल्क्य शिक्षा, व्यास शिक्षा

कल्पसूत्र: श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र, शूल्बसूत्र

ब्राह्मण ऋग्वेद:शांखायन, कौषीतकी, ऐतरेय

यजुर्वेद: कृष्ण यजुर्वेद – तैत्तिरीय ब्राह्मण; शुक्ल यजुर्वेद – शतपथ ब्राह्मण

आरण्यक बृहदारण्यक, तैत्तिरीय, ऐतरेय, कौषीतकी
उपनिषद

(मुख्य १०)

ऋग्वेद: ऐतरेय

यजुर्वेद: शुक्ल यजुर्वेद – ईशावास्य, बृहदारण्यक; कृष्ण यजुर्वेद – कठ, तैत्तिरीय

सामवेद: केन, छान्दोग्य

अथर्ववेद: प्रश्न, मुण्डक, माण्डुक्य

पुराण विष्णुपुराण, नारदपुराण, भागवतपुराण, गरुडपुराण, वराहपुराण, पद्मपुराण, मत्स्यपुराण, कूर्मपुराण, लिंगपुराण, शिवपुराण,

स्कन्दपुराण, अग्निपुराण, ब्रह्मपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, मार्कंडेयपुराण, भविष्यपुराण, वामनपुराण

धर्मसूत्र ऋग्वेद: आश्वलायन, सांख्यायन,

यजुर्वेद: (शुक्ल) - कात्यायन, (कृष्ण) – मानवधर्मसूत्र, बौधायन, भारद्वाज, आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी/सत्याशाढ

सामवेद: मटक, लाटयायन, द्राह्यायण

अथर्ववेद: कौशिक, वैतान

गृह्यसूत्र

(कुल १६)

बौधायन, आपस्तम्ब, सत्याशाढ, द्राह्यायण, शांडिल्य, आश्वलायन, शाम्भव, कात्यायन, वैखानस, शौनाकीय, भारद्वाज, अग्निवेश्य,

जैमिनीय, माध्यन्दिन, कौडिण्य, कौषीतकी

१० शुल्ब सूत्र बौधायन
११ दर्शन आस्तिक(वेदप्रामाण्य): (षड दर्शन)

सांख्य, वैशेषिक, न्याय, मीमांसा, योग, उत्तर मीमांसा/ वेदान्त

नास्तिक: चार्वाक, बौद्ध, जैन

आस्तिक और नास्तिक दर्शन यह भेद अंग्रेजों का निर्माण किया हुआ है ।

वास्तव में चार्वाक छोड़कर शेष सभी दर्शन वैदिक दर्शन ही हैं ।

१२ दर्शनों से सम्बंधित सूत्र ब्रह्मसूत्र\वेदान्तसूत्र

सान्ख्यसूत्र

योगसूत्र

१३ निरुक्त के प्रकार वर्णागम, वर्णविपर्यय, वर्णविकास, वर्णनाश, धात्वर्थयोग
१४ निरुक्त (व्युत्पत्ति शास्त्र) के भाग नैघंटुक, नैगम, दैवत
१५ प्रस्थानत्रयी ब्रह्मसूत्र, उपनिषद् , श्रीमद्भगवद्गीता
१६ स्मृतियाँ मनु, बृहस्पति, दक्ष, गौतम, यम, अंगीरा, अत्रि, विष्णू, याज्ञवल्क्य, उशनस, आपस्तम्ब, व्यास, शंख-लिखित, वशिष्ठ, योगीश्वर, प्रचेता, शातातप, पाराशर, हारित, देवल, आदि दर्जनों और भी हैं

- । संक्षेप में जानकारी वेद : वेद का अर्थ परम ज्ञान है । आगम, आम्नाय, श्रुति ये वेद शब्द के पर्यायवाची हैं । भारत के सभी शास्त्रों का और आस्तिक दर्शनों का स्रोत वेद हैं । इसीलिये वेदों को आम्नाय या आगम भी कहा जाता है । वेद ज्ञान तो पहले से ही था । समाधी अवस्था में उसका दर्शन करनेवाले द्रष्टा ऋषियोंने इस ज्ञान की बुद्धि के स्तरपर समझनेवाले लोगों के लिए जो वाचिक प्रस्तुति की वही श्रुति है । वेदों को गुरू शिष्य परम्परा से कंठस्थीकरण के माध्यम से प्रक्षेपों और विकृतीकरण से सुरक्षित रखा गया है । वेद भारत के ही नहीं तो विश्व के सबसे प्राचीन केवल आध्यात्मिक ही नहीं तो लौकिक विषयों के ज्ञान के भी मूल ग्रन्थ हैं । हर वेद के ऋषि, देवता और छंद होते हैं । वेद से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं । - उपवेद - वेदांग - ब्राह्मण - आरण्यक – उपनिषद - प्रातिशाख्य – ब्रुहद्देवता - अनुक्रमणी । वेद के मोटे मोटे ३ हिस्से हैं । ज्ञान काण्ड, उपासना काण्ड और कर्मकांड । उपवेद : समाज जीवन के लिए व्यावहारिक दृष्टी से अत्यंत आवश्यक विषयोंके शास्त्रों को उपवेद में सम्मिलित किया है । जैसे शरीर और प्राण स्वस्थ बनें रहें और अस्वस्थ हुए हों तो स्वस्थ हो जाएँ इस हेतु से आयुर्वेद बनाया गया है । दुष्टों को दंड देने और सज्जनों की रक्षा करने के लिए शस्त्र सम्पादन और संचालन की क्षमता के विकास के लिए तथा युद्ध कौशल के लिए है धनुर्वेद । नृत्य, संगीतौर नाट्य तथा इनसे सम्बंधित सभी विषयों के लिए गांधर्ववेद । अन्न, वस्त्र, भवन और जीवन की अन्य सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र । वेदांग : वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए शीक्षा, यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु कल्प, शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु व्याकरण, शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए निरुक्त, पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए छंद और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लये ज्योतिष ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है । जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्त्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है । शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ । या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: । । अर्थ : मुख व्याकरणशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, निरुक्त कर्ण, कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छंद पैर हैं । वेद के ज्ञान को समझने के लिए वेदांग का अध्ययन आवश्यक है । इन का ठीक से ज्ञान नहीं होने से केवल वर्त्तमान संस्कृत सीखकर वेदों का अर्थ लगानेवाले लोगों ने वेदों के विषय में कई भ्रांतियां निर्माण कीं हैं । इस दृष्टी से एक भी अभारतीय का वेद संबंधी भाष्य अध्ययन योग्य नहीं है । ब्राह्मण ग्रन्थ : वेदों के अर्थ विस्तार से बताने के लिए दैनंदिन व्यवहार की शास्त्रीय चर्चा कटाने के लिए ब्राह्मण ग्रंथों का निर्माण हुआ है । ब्राह्मण ग्रन्थ गद्यात्मक हैं । धर्म, इतिहास, तत्वज्ञान और भाषाशास्त्रीय अध्ययन के लिए ब्राह्मण ग्रन्थ हैं । आरण्यक : कोलाहल से दूर अरण्यों में एकांत में ज्ञानविज्ञान के गहन अध्ययन के ग्रन्थ हैं आरण्यक । ये यज्ञों के गूढ़ अर्थों को स्पष्ट करते हैं । कर्मकांड का दार्शनिक पक्ष उजागर करते हैं । आरण्यक वेदों के साररूप हैं । उपनिषद् : उप+नि+सद से उपनिषद शब्द बना है । इसका अर्थ है गुरू के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करना । ज्ञान के मर्म या रहस्य पात्र को ही बताए जाते हैं । चिल्लाकर नहीं कहे जाते । रहस्य जानने के लिए निकट बैठना आवश्यक है । वेदों का ज्ञानात्मक या सैद्धांतिक पक्ष उपनिषदों में बताया गया है । उपनिषद प्रस्थानत्रयी का एक भाग है । पुराण : इन की गिनती वैदिक साहित्य में नहीं की जाती । लेकिन इनके महत्त्व को समझकर इन्हें पंचमवेद कहा जाता है । पुराणम् पंचमो वेद: । पुराण भारत का सांस्कृतिक इतिहास हैं । १८ मुख्य और १८ ही उप पुराण हैं । सर्ग(सृष्टी का सर्जन), प्रतिसर्ग(सृष्टी का विलय), वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित का वर्णन मिलाकर ही उसे पुराण कहते हैं । स्मृति : वेदों के अर्थों का औवाद करनेवाले ऋषियों के अनुभव और स्मृति के आधारपर रचे गए ग्रन्थ स्मृति कहलाते हैं । वेदज्ञान के आधारपर मानव धर्मशास्त्र की युगानुकूल और कालानुकूल प्रस्तुति ही स्मृति है । श्रीमद्भगवद्गीता : बोलचाल की भाषा में इसे गीता कहते हैं । यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है । विश्व के भिन्न भिन्न विचारों के विद्वानों ने गीता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं । लेखन और प्रवचन किये हैं । यह भारतीय ज्ञानधारा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । प्रत्येक भारतीय को इसे पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना चाहिए । अभी हम इसका प्राथमिक परिचय ही देखेंगे । १. श्रीमद्भगवद्गीता का अर्थ है यह प्रत्यक्ष भगवान द्वारा कही गई गयी है । यह अर्जुन को पास बिठाकर अनेक रहस्यों को समझानेवाली है । इसलिए यह उपनिषद् है । गीतोपनिषद । गीता स्त्रीलिंगी शब्द है । २. यद्यपि यह महाभारत का एक छोटा हिस्सा है फिर भी इस का महत्त्व और इस की ख्याति स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी ही है । महाभारत के भीष्मपर्व के २५ से ४२ तक के १८ अध्यायों में यह कही गयी है । ३. एक अक्षौहिणी याने २१८७० रथ, २१८७० हाथी, ६५६१० घोड़े, १०९३५० पदाति ऐसे कुल २,६२,४४० सैनिक मिलकर एक अक्षौहिणी संख्या बनती है । कुरूक्षेत्र (वर्त्तमान में हरियाणा में है) की रणभूमि में ११ अक्षौहिणी सेना कौरवों की ओर से तथा ७ अक्षौहिणी सेना पांडवों की ओर से लड़ी थी । आज भी यह रणक्षेत्र देखने को मिलता है । ४. गीता महाभारत युद्ध के प्रारम्भ में कही गई है । ५. सम्पूर्ण गीता प्रश्नोत्तर याने संवाद रूप में है । मुख्यत: अर्जुन प्रश्न पूछते हैं और भगवान उत्तर देते हैं । ६. कुरुक्षेत्र की रणभूमी में हुए कृष्ण और अर्जुन के संवाद का वृत्त संजय धृतराष्ट्र को बताते haiहैं । अंतिम श्लोक भी संजय द्वारा ध्रुतराष्ट्र को किया गया विश्लेषण है । गीता में धृतराष्ट्र के नाम से १ श्लोक, संजय के नाम से ४० श्लोक हैं । शेष ६५९ श्लोक भगवान और अर्जुन के बीच संवाद के हैं । ७. गीता में अठारह अध्यायों में ७०० श्लोक हैं । ८. गीता के अठारह अध्याय हैं । हर अध्याय को योग कहा है । अध्यायों के नाम और श्लोकसंख्या निम्न है । १. अर्जुन विषाद – ४७ २. सांख्य – ७२ ३. कर्म – ४३ ४. ज्ञानकर्मसंन्यास – ४२ ५. कर्मसंन्यास – २९ ६. आत्मसंयम – ४७ ७. ज्ञानविज्ञान ३० ८. अक्षर ब्रह्म – २८ ९. राजविद्याराजगृह्य -३८ १०. विभूति - ४२ ११. विश्वरूपदर्शन – ५५ १२. भक्तियोग २० १३. क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग -३८ १४. गुणत्रयविभाग - २७ १५. पुरूषोत्तम – २० १६. दैवासुरसम्पदविभाग –२८ १७. श्रद्धात्रयविभाग – २८ १८. मोक्षसंन्यास – ७८ ९. वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं । ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड । उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं । वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं । १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं । इन सभी उपनिषदों का सार गीता है । कहा गया है – सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन: । पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् । । उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं । गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है । अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है । १०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है । ब्रह्म को जानने की विद्या । ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टी निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है । इस सृष्टी के मूल तत्व को तथा सृष्टी के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है । ११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है । प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान । प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ । ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता । भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है । सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है । १२. गीता योगशास्त्र है । योग जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी है । गीता भी दैनंदिन जीवन के लिए, सार्वजनिक जीवन के लिए जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विषय के लिए मार्गदर्शक ग्रन्थ है । १३. गीता में योग की व्याख्या इस प्रकार है – समत्वं योगमुच्यते : योग का अर्थ है समत्व । योग: कर्मसु कौशलम् : (विहित) कर्म में कुशलता(निष्काम भाव) ही योग है । १४. गीता व्यवहार शास्त्र है । सिद्धांत और व्यवहार दोनों का निरूपण करती है । १५. गीता के उपदेश का उद्देश्य अर्जुन को अहंकार त्यागकर अपने कर्तव्य याने क्षत्रिय कर्म के लिए प्रवृत्त करने का है । इससे भी और गहराई से देखें तो गीता का केन्द्रवर्ती विषय निष्काम कर्म है । १६. परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्.... के माध्यम से भगवान मनुष्य को आश्वस्त करते हैं कि दुष्टों का नाश होनेवाला है । १७. भक्तिमार्गी हो चाहे ज्ञानमार्गी हो, गीता सभी को अपने ‘स्व’धर्म के अनुसार आचरण करने को कहती है । १८. गीता कहते समय कृष्ण योगारूढ़ अवस्था में हैं । इसलिए वे परमात्मा के स्तर से बात करते हैं । कृष्ण के स्तर से नहीं । १९. गीता का अध्ययन सभी वर्ण, जाति, पंथ, सम्प्रदाय के लोगों के लिए है । लेकिन उनमें से तप न करनेवालों के लिए, वेदशास्त्र और परमात्मा में श्रद्धा न रखनेवालों के लिए, भक्तिहीन व्यक्ति के लिए और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है ऐसे लोगों के लिए नहीं है । २०. गीता सांख्ययोग, भक्तियोग और कर्मयोग तीनों का मार्गदर्शन करनेवाला ग्रन्थ है । २१. ऐसा कहते हैं कि गीता का प्रतिदिन पाठ किया जाये तो ढाई घंटे में एकबार पढी जा सकती है । स्पष्ट एवं शुद्ध वाचन करनेवाले को धीरे धीरे अपने आप समझमें आने लग जाती है । एकाग्रता के साथ प्रतिदिन इसका पाठ करते हैं तो गीता स्वयं ही अपना अर्थ पाठक के समक्ष प्रकट करती है । गीता का सूत्र है – श्रद्धावाँलभते ज्ञानम् याने श्रद्धावान को ज्ञान प्राप्त होता है । २२. विश्व को भारत की यह अनुपम भेंट है ।