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| नास्तिक: चार्वाक, बौद्ध, जैन | | नास्तिक: चार्वाक, बौद्ध, जैन |
− | |आस्तिक और नास्तिक दर्शन यह भेद अंग्रेजों का निर्माण किया हुआ है । | + | |आस्तिक और नास्तिक दर्शन यह भेद अंग्रेजों का निर्माण किया हुआ है । |
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− | वास्तव में चार्वाक छोड़कर शेष सभी दर्शन वैदिक दर्शन ही हैं । | + | वास्तव में चार्वाक छोड़कर शेष सभी दर्शन वैदिक दर्शन ही हैं। |
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| |स्मृतियाँ | | |स्मृतियाँ |
− | |मनु, बृहस्पति, दक्ष, गौतम, यम, अंगीरा, अत्रि, विष्णू, याज्ञवल्क्य, उशनस, आपस्तम्ब, व्यास, शंख-लिखित, वशिष्ठ, योगीश्वर, प्रचेता, शातातप, पाराशर, हारित, देवल, आदि दर्जनों और भी हैं | + | |मनु, बृहस्पति, दक्ष, गौतम, यम, अंगीरा, अत्रि, विष्णू, याज्ञवल्क्य, उशनस, आपस्तम्ब, व्यास, शंख-लिखित, वशिष्ठ, योगीश्वर, प्रचेता, शातातप, पाराशर, हारित, देवल, आदि दर्जनों और भी हैं। |
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| + | == संक्षेप में जानकारी == |
− | संक्षेप में जानकारी | + | |
− | वेद : वेद का अर्थ परम ज्ञान है । आगम, आम्नाय, श्रुति ये वेद शब्द के पर्यायवाची हैं । भारत के सभी शास्त्रों का और आस्तिक दर्शनों का स्रोत वेद हैं । इसीलिये वेदों को आम्नाय या आगम भी कहा जाता है । वेद ज्ञान तो पहले से ही था । समाधी अवस्था में उसका दर्शन करनेवाले द्रष्टा ऋषियोंने इस ज्ञान की बुद्धि के स्तरपर समझनेवाले लोगों के लिए जो वाचिक प्रस्तुति की वही श्रुति है । वेदों को गुरू शिष्य परम्परा से कंठस्थीकरण के माध्यम से प्रक्षेपों और विकृतीकरण से सुरक्षित रखा गया है । | + | === [[Vedas (वेदाः)|वेद]] === |
− | वेद भारत के ही नहीं तो विश्व के सबसे प्राचीन केवल आध्यात्मिक ही नहीं तो लौकिक विषयों के ज्ञान के भी मूल ग्रन्थ हैं । हर वेद के ऋषि, देवता और छंद होते हैं । वेद से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं । - उपवेद - वेदांग - ब्राह्मण - आरण्यक – उपनिषद - प्रातिशाख्य – ब्रुहद्देवता - अनुक्रमणी । | + | वेद का अर्थ परम ज्ञान है। आगम, आम्नाय, श्रुति ये वेद शब्द के पर्यायवाची हैं । भारत के सभी शास्त्रों का और आस्तिक दर्शनों का स्रोत वेद हैं । इसीलिये वेदों को आम्नाय या आगम भी कहा जाता है । वेद ज्ञान तो पहले से ही था । समाधि अवस्था में उसका दर्शन करनेवाले द्रष्टा ऋषियों ने इस ज्ञान की बुद्धि के स्तर पर समझनेवाले लोगों के लिए जो वाचिक प्रस्तुति की वही श्रुति है । वेदों को गुरू शिष्य परम्परा से कंठस्थीकरण के माध्यम से प्रक्षेपों और विकृतीकरण से सुरक्षित रखा गया है । |
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| + | वेद भारत के ही नहीं, विश्व के सबसे प्राचीन मूल ग्रन्थ हैं। वेद केवल आध्यात्मिक ही नहीं, अपितु लौकिक विषयों के ज्ञान के भी मूल ग्रन्थ हैं । हर वेद के ऋषि, देवता और छंद होते हैं । वेद से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं: |
| + | * उपवेद |
| + | * वेदांग |
| + | * ब्राह्मण |
| + | * आरण्यक |
| + | * उपनिषद |
| + | * प्रातिशाख्य |
| + | * ब्रुहद्देवता |
| + | * अनुक्रमणी |
| वेद के मोटे मोटे ३ हिस्से हैं । ज्ञान काण्ड, उपासना काण्ड और कर्मकांड । | | वेद के मोटे मोटे ३ हिस्से हैं । ज्ञान काण्ड, उपासना काण्ड और कर्मकांड । |
− | उपवेद : समाज जीवन के लिए व्यावहारिक दृष्टी से अत्यंत आवश्यक विषयोंके शास्त्रों को उपवेद में सम्मिलित किया है । जैसे शरीर और प्राण स्वस्थ बनें रहें और अस्वस्थ हुए हों तो स्वस्थ हो जाएँ इस हेतु से आयुर्वेद बनाया गया है । दुष्टों को दंड देने और सज्जनों की रक्षा करने के लिए शस्त्र सम्पादन और संचालन की क्षमता के विकास के लिए तथा युद्ध कौशल के लिए है धनुर्वेद । नृत्य, संगीतौर नाट्य तथा इनसे सम्बंधित सभी विषयों के लिए गांधर्ववेद । अन्न, वस्त्र, भवन और जीवन की अन्य सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र । | + | |
| + | === उपवेद === |
| + | : समाज जीवन के लिए व्यावहारिक दृष्टी से अत्यंत आवश्यक विषयोंके शास्त्रों को उपवेद में सम्मिलित किया है । जैसे शरीर और प्राण स्वस्थ बनें रहें और अस्वस्थ हुए हों तो स्वस्थ हो जाएँ इस हेतु से आयुर्वेद बनाया गया है । दुष्टों को दंड देने और सज्जनों की रक्षा करने के लिए शस्त्र सम्पादन और संचालन की क्षमता के विकास के लिए तथा युद्ध कौशल के लिए है धनुर्वेद । नृत्य, संगीतौर नाट्य तथा इनसे सम्बंधित सभी विषयों के लिए गांधर्ववेद । अन्न, वस्त्र, भवन और जीवन की अन्य सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए शिल्पशास्त्र/अर्थशास्त्र । |
| वेदांग : वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए शीक्षा, यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु कल्प, शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु व्याकरण, शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए निरुक्त, पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए छंद और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लये ज्योतिष ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है । जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्त्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है । | | वेदांग : वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए शीक्षा, यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु कल्प, शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु व्याकरण, शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए निरुक्त, पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए छंद और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लये ज्योतिष ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है । जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्त्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है । |
| शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ । या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: । । | | शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ । या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: । । |