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यह निरन्तर प्रतिपादन हो रहा है कि शिक्षा धर्म सिखाती है <ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ४: अध्याय १५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। तो प्रश्न यह होगा कि धर्माचार्य ही धर्म क्यों नहीं सिखाते ? धर्म सिखाने के लिये शिक्षक क्यों चाहिये ?
 
यह निरन्तर प्रतिपादन हो रहा है कि शिक्षा धर्म सिखाती है <ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ४: अध्याय १५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। तो प्रश्न यह होगा कि धर्माचार्य ही धर्म क्यों नहीं सिखाते ? धर्म सिखाने के लिये शिक्षक क्यों चाहिये ?
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धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध साध्य और साधन जैसा है। धर्म के बारे में हमने अनेक बार चर्चा की ही है वह
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धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध साध्य और साधन जैसा है। धर्म के बारे में हमने अनेक बार चर्चा की ही है वह एक विश्वनियम है जिससे व्यक्ति से लेकर सृष्टि तक सबकी धारणा होती है । इन नियमों के अनुसार जब समष्टिजीवन का व्यवहार चलता है, तब धर्म संस्कृति का रूप धारण करता है । इस व्यवहार और संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढी तक पहुँचाने की जो व्यवस्था है वह शिक्षा है । तात्पर्य यही है कि धर्म, धर्म का व्यवहार और धर्म का हस्तान्तरण एक दूसरे के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से जुडे हैं। धर्माचार्य धर्म को जानता है, उसे व्यवहार्य बनाता है, देशकाल परिस्थिति के अनुसार उसमें परिष्कार करता है, समष्टिनियमों का सृष्टिनियमों के साथ समायोजन करता है । धर्माचार्य धर्म कहता है । धर्माचार्य जो कहता है, उसे लोगोंं तक पहुँचाने का कार्य शिक्षा का है ।
एक विश्वनियम है जिससे व्यक्ति से लेकर सृष्टि तक सबकी धारणा होती है । इन नियमों के अनुसार जब सम्टिजीवन का व्यवहार चलता है तब धर्म संस्कृति का रूप धारण करता है । इस व्यवहार और संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढी तक पहुँचाने की जो व्यवस्था है वह शिक्षा है । तात्पर्य यही है कि धर्म, धर्म का व्यवहार और धर्म का हस्तान्तरण एकदूसरे के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से जुडे हैं। धर्माचार्य धर्म को जानता है, उसे व्यवहार्य बनाता है, देशकाल परिस्थिति के अनुसार उसमें परिष्कार करता है, समष्टिनियमों का सृष्टिनियमों के साथ समायोजन करता है । धर्माचार्य धर्म कहता है । धर्माचार्य जो कहता है उसे लोगोंं तक पहुँचाने का कार्य शिक्षा का है ।
      
यदि धार्मिक समाज धर्मनिष्ठ है और वह अर्थनिष्ठ बन गया है तो उसे पुनः धर्मनिष्ठ बनाने में धर्माचार्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । उसके बिना धर्म की प्रतिष्ठा नहीं होगी और भारत भारत नहीं होगा ।
 
यदि धार्मिक समाज धर्मनिष्ठ है और वह अर्थनिष्ठ बन गया है तो उसे पुनः धर्मनिष्ठ बनाने में धर्माचार्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । उसके बिना धर्म की प्रतिष्ठा नहीं होगी और भारत भारत नहीं होगा ।
    
==== धर्माचार्य किसे कहेंगे ? ====
 
==== धर्माचार्य किसे कहेंगे ? ====
धर्माचार्य कौन है ? जो विशिष्ट प्रकार के तिलक, माला, केश, वेश धारण करता है वह धर्माचार्य नहीं है । जो किसी एक सम्प्रदाय का प्रवर्तक या गादीपति है वही धर्माचार्य नहीं है । जिसने संन्यास की दीक्षा ली है वही धर्माचार्य नहीं है । जटा, शिखा आदि रखता है वही धर्माचार्य नहीं है । ये सबके सब सम्प्रदाय के चिक्नविशेष हैं । सम्प्रदाय धर्म का एक अंग अवश्य हैं परन्तु समग्रता में धर्म नहीं हैं ।
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धर्माचार्य कौन है ? जो विशिष्ट प्रकार के तिलक, माला, केश, वेश धारण करता है वह धर्माचार्य नहीं है। जो किसी एक सम्प्रदाय का प्रवर्तक या गादीपति है वही धर्माचार्य नहीं है। जिसने संन्यास की दीक्षा ली है वही धर्माचार्य नहीं है। जटा, शिखा आदि रखता है वही धर्माचार्य नहीं है । ये सबके सब सम्प्रदाय के चिह्नविशेष हैं। सम्प्रदाय धर्म का एक अंग अवश्य हैं, परन्तु समग्रता में धर्म नहीं हैं ।
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धर्माचार्य पूर्व में कहे अनुसार वह है जो धर्म को जानता है, धर्मशास्त्र की रचना करता है और उसे बताता है। हम कह सकते हैं कि धर्माचार्य धर्म के शासन में शासक है । शिक्षाचार्य उसके अमात्य हैं । शिक्षा धर्म का अनुसरण करती है । अतः धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे के पूरक हैं ।
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धर्माचार्य पूर्व में कहे अनुसार वह है जो धर्म को जानता है, धर्मशास्त्र की रचना करता है और उसे बताता है। हम कह सकते हैं कि धर्माचार्य धर्म के शासन में शासक है। शिक्षाचार्य उसके अमात्य हैं । शिक्षा धर्म का अनुसरण करती है । अतः धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे के पूरक हैं ।
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धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे का स्थान ले सकते है। हम यह भी कह सकते हैं कि शिक्षाक्षेत्र का सर्वोच्च
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धर्माचार्य और शिक्षक एकदूसरे का स्थान ले सकते है। हम यह भी कह सकते हैं कि शिक्षाक्षेत्र का सर्वोच्च पद धर्माचार्य का ही होगा हम धर्म और शिक्षा को अलग कर ही नहीं सकते ।
पद धर्माचार्य का ही होगा हम धर्म और शिक्षा को अलग कर ही नहीं सकते ।
      
आज हम क्या करें ?
 
आज हम क्या करें ?

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