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===== ऐसे में शिक्षा कैसे होगी ? =====
 
===== ऐसे में शिक्षा कैसे होगी ? =====
विडम्बना यह भी है कि ऐसी स्थिति में भी हम
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विडम्बना यह भी है कि ऐसी स्थिति में भी हम शिक्षकों को आचार्य बनने की, गुरु बनने की, राष्ट्रनिर्माता बनने की, विद्यार्थियों का चरित्गठन करने की शिक्षा देते हैं, उनका प्रबोधन करते हैं। ऐसी स्थिति में भी हम “ज्ञान पवित्र है', “विद्या मुक्ति दिलाती है', “गुरु देवता है' आदि बातें करते हैं । विद्या की देवी सरस्वती को लक्ष्मी की दासी बनाकर अब सरस्वती की स्तुति करते हैं ।
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शिक्षकों को आचार्य बनने की, गुरु बनने की, राष्ट्रनिर्माता
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भारतीयता का तत्त्व कितना भी श्रेष्ठ हो उसका वर्तमान व्यावहारिक स्वरूप तो ऐसा ही है। यह एक अनर्थकारी व्यवस्था है। हम शिक्षा को भारतीय बनाना चाहते हैं । तब हम क्या करना चाहते हैं। हम शिक्षा स्वायत्त होनी चाहिये ऐसा कहते हैं । तब क्या चाहते हैं ?
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===== शिक्षा में भारतीय करण के उपाय =====
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वास्तव में शिक्षा का भारतीयकरण करने के लिये व्यवस्थातन्त्र का विचार तो करना ही पडेगा । हमें प्रयोग भी करने पड़ेंगे । हमे साहस दिखाना होगा ।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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एक प्रयोग ऐसा हो सकता है - कुछ शिक्षकों ने मिलकर एक विद्यालय शुरू करना । इस विद्यालय हेतु शासन की मान्यता नहीं माँगना । शासन की मान्यता नहीं होगी तो बोर्ड की परीक्षा भी नहीं होगी । प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा । नौकरी नहीं मिलेगी । इस प्रयोग के लिये नौकरी की चाह नहीं रखने वाले, प्रमाणपत्र की आकांक्षा नहीं रखने वाले साहसी मातापिताओं को इन शिक्षकों का साथ देना होगा | इस विद्यालयमें शिक्षित विद्यार्थी अच्छा अथर्जिन कर सकें ऐसी शिक्षा उन्हें देनी होगी । समझो, वे किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो उसे खरीद करने वाला ग्राहक वर्ग भी निर्माण करना होगा । यदि ऐसे विद्यालयों की संख्या बढ सके तो एक पर्याय निर्माण होने की सम्भावना बन सकती है । शिक्षा को स्वतन्त्रता की प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है ।
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बनने की, विद्यार्थियों का चरित्गठन करने की शिक्षा देते हैं,
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यह काम इतना सरल नहीं है। शिक्षक और अभिभावकों का साहस बनना ही प्रथम कठिनाई है । यह कदाचित हो भी गया तो सरकार इसे “बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं क्योंकि ये मान्यता प्राप्त विद्यालय में नहीं पढ रहे हैं ।' कहकर दण्डित कर सकती है । इसलिये सरकार के साथ बातचीत करने का काम भी करना ही पडेगा । शिक्षकों को अधिक साहस जुटाना होगा ।
 
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उनका प्रबोधन करते हैं। ऐसी स्थिति में भी हम “ज्ञान
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पवित्र है', “विद्या मुक्ति दिलाती है', “गुरु देवता है' आदि
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बातें करते हैं । विद्या की देवी सरस्वती को लक्ष्मी की दासी
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बनाकर अब सरस्वती की स्तुति करते हैं ।
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भारतीयता का तत्त्व कितना भी श्रेष्ठ हो उसका
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वर्तमान व्यावहारिक स्वरूप तो ऐसा ही है। यह एक
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अनर्थकारी व्यवस्था है। हम शिक्षा को भारतीय बनाना
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चाहते हैं । तब हम क्या करना चाहते हैं। हम शिक्षा
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स्वायत्त होनी चाहिये ऐसा कहते हैं । तब क्या चाहते हैं ?
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शिक्षा में भारतीय करण के उपाय
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वास्तव में शिक्षा का भारतीयकरण करने के लिये
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व्यवस्थातन्त्र का विचार तो करना ही पडेगा । हमें प्रयोग भी
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करने पड़ेंगे । हमे साहस दिखाना होगा ।
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एक प्रयोग ऐसा हो सकता है - कुछ शिक्षकों ने
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मिलकर एक विद्यालय शुरू करना । इस विद्यालय हेतु शासन
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बोर्ड की परीक्षा भी नहीं होगी । प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा ।
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नौकरी नहीं मिलेगी । इस प्रयोग के लिये नौकरी की चाह
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नहीं रखने वाले, प्रमाणपत्र की आकांक्षा नहीं रखने वाले
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ऐसी शिक्षा उन्हें देनी होगी । समझो, वे किसी वस्तु का
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उत्पादन करते हैं तो उसे खरीद करने वाला ग्राहक वर्ग भी
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निर्माण करना होगा । यदि ऐसे विद्यालयों की संख्या बढ सके
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तो एक पर्याय निर्माण होने की सम्भावना बन सकती है ।
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शिक्षा को स्वतन्त्रता की प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है ।
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पढ रहे हैं ।' कहकर दण्डित कर सकती है । इसलिये
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