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यह काम इतना सरल नहीं है। शिक्षक और अभिभावकों का साहस बनना ही प्रथम कठिनाई है । यह कदाचित हो भी गया तो सरकार इसे “बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं क्योंकि ये मान्यता प्राप्त विद्यालय में नहीं पढ रहे हैं ।' कहकर दण्डित कर सकती है । इसलिये सरकार के साथ बातचीत करने का काम भी करना ही पडेगा । शिक्षकों को अधिक साहस जुटाना होगा ।
 
यह काम इतना सरल नहीं है। शिक्षक और अभिभावकों का साहस बनना ही प्रथम कठिनाई है । यह कदाचित हो भी गया तो सरकार इसे “बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं क्योंकि ये मान्यता प्राप्त विद्यालय में नहीं पढ रहे हैं ।' कहकर दण्डित कर सकती है । इसलिये सरकार के साथ बातचीत करने का काम भी करना ही पडेगा । शिक्षकों को अधिक साहस जुटाना होगा ।
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इसके साथ ही नया पाठ्यक्रम, नई पाठनसामग्री आदि भी तैयार करने होंगे। यदि ऐसा पर्याय निर्माण हो सकता है तो करना चाहिये ।
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दूसरा पर्याय कुछ समझौता करने का है।
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पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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देश में जो शैक्षिक संगठन हैं उन्होंने सरकार के साथ आग्रहपूर्वक बात करनी चाहिये और कहना चाहिये कि शिक्षामन्त्री, सचिव आदि सारे पद शिक्षकों के ही होने चाहिये । जो शिक्षक नहीं वह शिक्षा क्षेत्र की जिम्मेदारी नहीं ले सकता । यह काम यदि होता है तो गाडी सही दिशा में कुछ मात्रा में तो जा सकती है । यह भी साहसी काम है -
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तीसरा प्रयोग है - निजी विद्यालय चलाने के लिये जो संस्थायें स्थापित होती हैं उनके सारे पदाधिकारी शिक्षक ही होने चाहिये । वे कभी शिक्षक रहे हैं ऐसे नहीं, प्रत्यक्ष पढाने वाले शिक्षक होने चाहिये । जो शिक्षक नहीं वह संस्था का सदस्य या पदाधिकारी नहीं हो सकता, संस्था के पदों की शब्दावली भी शिक्षाक्षेत्र के अनुकूल होनी चाहिये। अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष, कार्यकारिणी, साधारणसभा आदि नहीं अपितु कुलपति, आचार्य, आचार्य परिषद जैसी नामावलि होनी चाहिये। ऐसी रचना होगी तो शिक्षा की गाडी आधे रास्ते पर आ सकती है।
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ऐसा प्रयोग भी हो सकता है - शिक्षकों द्वारा शुरू किया गया प्रयोग निःशुल्क चलाना । इस विद्यालय को चलाने के लिये समाज का सहयोग प्राप्त करने हेतु शिक्षकों और अभिभावकों और विद्यार्थी आदि बड़े हैं तो विद्यार्थी शिक्षकों का सहयोग करें ऐसी व्यवस्था हो सकती है।
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ऐसे और भी अनेक मौलिक प्रयोग हो सकते हैं । इस दिशा में विचार शुरू किया तो भारत के लोगों को अनेक नई नई बातें सुझ सकती हैं क्योंकि भारत के अन्तर्मन में शिक्षा और शिक्षक को उन्नत स्थान पर बिठाकर उनका सम्मान करने की चाह होती ही है।
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अभी तो अविचार की स्थिति है। हमें वास्तविकता  का खास ज्ञान और भान ही नहीं है । यदि भान आये तो  मार्ग भी निकल सकता है।
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धर्म की तरह शिक्षा भी उसका सम्मान करने से ही हमें सम्मान दिला सकती है।
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===== विद्यालय की यांत्रिकता को कैसे दूर करे =====
 
इसके साथ ही नया पाठ्यक्रम, नई पाठनसामग्री ... परिषद जैसी नामावलि होनी चाहिये ।
 
इसके साथ ही नया पाठ्यक्रम, नई पाठनसामग्री ... परिषद जैसी नामावलि होनी चाहिये ।
  
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