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| | मनःशान्ति से उसका विकास होता है । ९९, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे | | मनःशान्ति से उसका विकास होता है । ९९, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे |
| | | | |
| − | ७७. प्राणमय आत्मा प्राण है । एकाग्रता सन्तुलन और नियमन आत्मतत्व है ।
| |
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| − | उसके विकास का स्वरूप है । १००, उसका ही स्वरूप हृदय है । अनुभूति उसका विषय
| + | Ly |
| | | | |
| − | ७८. आहार, निद्रा, भय और मैथुन उसकी चार वृत्तियाँ हैं । है।
| + | DOL |
| | + | LYLSOLABES |
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| − | ७९. प्राणायाम और शुद्ध वायु उसके विकास के कारक. १०१. आत्मतत्त्त . को... आत्मतत्त्त _ की... अनुभूति
| + | १9७, |
| | | | |
| − | तत्व हैं। आत्मतत्वरूपी हृदय में होती है ।
| + | ck. |
| | + | AC |
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| − | ८०. मनोमय आत्मा मन है । विचार, भावना और इच्छा. ३१०२.शिक्षा का लक्ष्य यही अनुभूति है ।
| + | ८८. |
| | + | ८९. |
| | + | .. आत्मनिष्ठ बुद्धि और अहंकार सदुद्धि और दायित्वबोध |
| | | | |
| − | उसके स्वरूप हैं । १०३. एकात्मा की अनुभूति होने पर सर्वात्मा की अनुभूति
| + | 88. |
| | + | ९२. |
| | | | |
| − | ८१. चंचलता, उत्तेजितता, द्ंद्रात्मकता और आसक्ति उसके होती है ।
| + | ९३. |
| | + | ९४, |
| | + | ९५, |
| | + | ९६, |
| | + | ९७, |
| | + | |
| | + | |
| | + | |
| | + | ७६. आहार, निद्रा, श्रम, काम और |
| | + | मनःशान्ति से उसका विकास होता है । |
| | + | |
| | + | प्राणमय आत्मा प्राण है । एकाग्रता सन्तुलन और नियमन |
| | + | उसके विकास का स्वरूप है । |
| | + | |
| | + | .. आहार, निद्रा, भय और मैथुन उसकी चार वृत्तियाँ हैं । |
| | + | .. प्राणायाम और शुद्ध वायु उसके विकास के कारक |
| | + | |
| | + | तत्त्व हैं। |
| | + | |
| | + | . मनोमय आत्मा मन है । विचार, भावना और इच्छा |
| | + | |
| | + | उसके स्वरूप हैं । |
| | + | |
| | + | .. चंचलता, उत्तेजितता, ट्रंद्रात्मकता और आसक्ति उसके |
| | | | |
| | स्वभाव है । | | स्वभाव है । |
| | | | |
| − | १०४. एकात्मा की अनुभूति अहम ब्रह्मास्मि है, सर्वात्मा की
| + | .. एकाग्रता, शान्ति, अनासक्ति और सद्धावना उसके |
| | + | |
| | + | विकास का स्वरूप है । |
| | + | |
| | + | .. योगाभ्यास, सेवा, संयम, स्वाध्याय, जप, सत्संग, |
| | + | |
| | + | aft en मन के विकास के कारक तत्त्व = | |
| | + | विज्ञानमय आत्मा बुद्धि है । |
| | + | |
| | + | . तेजस्विता, कुशाग्रता और विशालता बुद्धि के |
| | + | |
| | + | विशेषण हैं । |
| | + | |
| | + | विवेक बुद्धि के विकास का स्वरूप है । |
| | + | |
| | + | निरीक्षण, परीक्षण, तर्क, अनुमान, विश्लेषण, संस्लेषण |
| | + | बुद्धि के साधन हैं । |
| | + | |
| | + | अहंकार बुद्धि का एक और साथीदार है । |
| | + | |
| | + | कर्तृत्व, भोक्तृत्व, ज्ञातृत्व अहंकार के लक्षण हैं । |
| | | | |
| − | ८२. एकाग्रता, शान्ति, अनासक्ति और सद्धावना उसके सर्व खल्विद्म ब्रह्म ।
| + | में परिणत होते हैं । |
| | | | |
| − | विकास का स्वरूप है । १०५, प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत सृष्टि है।
| + | आनंदमय आत्मा चित्त है । संस्कार ग्रहण करना उसका |
| | + | कार्य है । |
| | | | |
| − | थक ae सेवा, a ree ” ~~ १०६, सृष्टि के प्रति एकात्मता, कृतज्ञता, दोहन और रक्षण
| + | जन्मजान्मांतर, अनुवंश, संस्कृति और सन्निवेश के |
| | + | संस्कार होते हैं । |
| | | | |
| − | सात्तक आहार मन के नकास के कारक तत्व है । व्यक्ति के सृष्टि के साथ समायोजन के चरण हैं ।
| + | चित्तशुद्धि करना चित्त के विकास का स्वरूप है । |
| | | | |
| − | ८४. विज्ञानमय आत्मा बुद्धि है ।
| + | सर्व प्रकार के संस्कारों का क्षय करना चित्तशुद्धि है । |
| | + | आहारशुद्धि और समाधि से चित्त शुद्ध होता है । |
| | | | |
| − | हर और १०७. ये TRIN ATE |
| + | शुद्ध चित्त में आत्मतत्त्व प्रतिर्बिबित होता है । |
| | | | |
| − | ८५. दर कुशाग्रता और विशालता बुद्धि के १०८. शिक्षा समाज के लिये होती है तब वह समाज को
| + | शुद्ध चित्त में सहजता, प्रेम, सौंदर्यबोध, सृजनशीलता, |
| | + | आनंद का निवास है । |
| | | | |
| − | विशेषण हैं ।
| + | ROL OL LOK LOE OE LO LOK 6 OE LO LOK LOL LOL LON LOK |
| | | | |
| − | श्रेष्ठ बनाती है ।
| + | gv |
| | + | � |
| | + | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप |
| | + | ROLLS ROLL ON LOE LOL KOE LOLOL LOL KOC AOL © |
| | | | |
| − | ८६. विवेक बुद्धि के विकास का स्वरूप है | ९. समृद्ध और सुसंस्कृत समाज श्रेष्ठ समाज है ।
| + | ९८. चित्त की शुद्धि के अनुपात में ये गुण प्रकट होते हैं । |
| | | | |
| − | ८७. . निरीक्षण, परीक्षण, तर्क, अनुमान, विश्लेषण, संश्लेषण १०९. संस्कृति र सुसस्कृत समा मा
| + | ९९, अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनंदमय के परे |
| | + | आत्मतत्त्व है । |
| | | | |
| − | बुद्धि के साधन हैं । ११०, के बिना समृद्धि आसुरी होती है और समृद्धि
| + | १००, उसका ही स्वरूप हृदय है । अनुभूति उसका विषय |
| | + | है। |
| | | | |
| − | ८८. अहंकार बुद्धि का एक और साथीदार है । के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकती |
| + | १०१, आत्मतत्त्त को... आत्मतत्त्व की... अनुभूति |
| | + | आत्मतत्त्वरूपी हृदय में होती है । |
| | | | |
| − | ८९. कर्तृत्व, भोक्तृत्व, ज्ञातृत्व अहंकार के लक्षण हैं । १११, श्रेष्ठ समाज में व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि के गौरव,
| + | १०२.शिक्षा का लक्ष्य यही अनुभूति है । |
| | | | |
| − | ९०. आत्मनिष्ठ बुद्धि और अहंकार सदद्धि और दायित्वबोध सम्मान और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है ।
| + | १०३. एकात्मा की अनुभूति होने पर सर्वात्मा की अनुभूति |
| | + | होती है । |
| | | | |
| − | में परिणत होते हैं । ११२. शिक्षक शिक्षाक्षेत्र का अधिष्ठाता है ।
| + | १०४. एकात्मा की अनुभूति अहम ब्रह्मास्मि है, सर्वात्मा की |
| | + | aa खल्विदम ब्रह्म । |
| | | | |
| − | ९१, आनंदमय आत्मा चित्त है । संस्कार ग्रहण करना उसका... ** रे: शिक्षा पर आए सारे संकटों को दूर करने का दायित्व
| + | १०५, प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत सृष्टि है । |
| | | | |
| − | कार्य है। शिक्षक का होता है ।
| + | १०६, सृष्टि के प्रति एकात्मता, कृतज्ञता, दोहन और रक्षण |
| | + | व्यक्ति के सृष्टि के साथ समायोजन के चरण हैं । |
| | | | |
| − | ९२. जन्मजान्मांतर, अनुबंश, संस्कृति और सन्निवेश के. ११४. शिक्षक की दुर्बलता से शिक्षा पर संकट आते हैं ।
| + | ५०७. ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं । |
| | | | |
| − | संस्कार होते हैं । ११५, परराष्ट्र की जीवनदृष्टि का आक्रमण और सत्ता तथा
| + | १०८, शिक्षा समाज के लिये होती है तब वह समाज को |
| | + | श्रेष्ठ बनाती है । |
| | | | |
| − | ९३. चित्तशुद्धि करना चित्त के विकास का स्वरूप है । धन के ट्वारा शिक्षा की स्वायत्तता का हरण शिक्षा पर
| + | १०९, समृद्ध और सुसंस्कृत समाज श्रेष्ठ समाज है । |
| | | | |
| − | ९४. सर्व प्रकार के संस्कारों का क्षय करना चित्तशुद्धि है । आए संकट हैं ।
| + | ११०, संस्कृति के बिना समृद्धि आसुरी होती है और समृद्धि |
| | + | के बिना संस्कृति की रक्षा नहीं हो सकती है । |
| | | | |
| − | ९५. आहारशुद्धि और समाधि से चित्त शुद्ध होता है । १४१६, राष्ट्रनिष्ठा, ज्ञाननिष्ठा और विद्यार्थिनिष्ठा से शिक्षक इन
| + | १११, श्रेष्ठ समाज में व्यक्ति, समष्टि और सृष्टि के गौरव, |
| | + | सम्मान और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है । |
| | | | |
| − | ९६, शुद्ध चित्त में आत्मतत्व प्रति्बिबित होता है । संकटों पर विजय प्राप्त कर सकता है ।
| + | ११२, शिक्षक शिक्षाक्षेत्र का अधिष्ठाता है । |
| | | | |
| − | ९७. शुद्ध चित्त में सहजता, प्रेम, सौंदर्यबोध, सृजनशीलता, ... १९७. राष्ट्र के जीवनदर्शन को जानना, मानना और उसके
| + | ११३. शिक्षा पर आए सारे संकटों को दूर करने का दायित्व |
| | + | शिक्षक का होता है । |
| | | | |
| − | आनंद का निवास है । अनुसार व्यवहार करना राष्ट्रनिष्ठा है ।
| + | ११४, शिक्षक की दुर्बलता से शिक्षा पर संकट आते हैं । |
| | | | |
| − | gv
| + | ११५, परराष्ट्र की जीवनदृष्टि का आक्रमण और सत्ता तथा |
| | + | धन के ट्वारा शिक्षा की स्वायत्तता का हरण शिक्षा पर |
| | + | आए संकट हैं । |
| | | | |
| − | ............. page-31 .............
| + | ११६, राष्ट्रनिष्ठा, ज्ञाननिष्ठा और विद्यार्थिनिष्ठा से शिक्षक इन |
| | + | संकटों पर विजय प्राप्त कर सकता है । |
| | | | |
| | + | ११७, राष्ट्र के जीवनदर्शन को जानना, मानना और उसके |
| | + | अनुसार व्यवहार करना राष्ट्रनिष्ठा है । |
| | + | � |
| | पर्व १ : उपोद्धात | | पर्व १ : उपोद्धात |
| | + | रद ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०१६८६ ०९६८६ ०९६८६ ०१६८६ ०९६८६ ०९६ |
| | + | |
| | + | ११८,ज्ञान की पवित्रता, श्रेष्ठता और गुरुता की रक्षा करना |
| | + | ज्ञाननिष्ठा है । |
| | + | |
| | + | ११९, विद्यार्थी को जानना, उसके कल्याण हेतु प्रयास करना |
| | + | और उसे अपने से सवाया बनाना विद्यार्थीनिष्ठा है । |
| | | | |
| − | ११८, ज्ञान की पवित्रता, श्रेष्ठता और गुरुता की रक्षा करना... १३७. ज्ञान की समृद्धि की रक्षा करने हेतु
| + | १२०, आचार्यत्व शिक्षक का गुणलक्षण है । |
| | | | |
| − | ज्ञाननिष्ठा है । श्रेष्ठतम विद्यार्थी को शिक्षक ने शिक्षक बनने की प्रेरणा
| + | १२१. अपने आचरण से प्रेरित कर विद्यार्थी का जीवन |
| | + | बनाता है वह आचार्य है । |
| | | | |
| − | ११९, विद्यार्थी को जानना, उसके कल्याण हेतु प्रयास करना देनी चाहिए और उसे अपने से सवाया बनाना चाहिए |
| + | १२२. आचार्य का आचरण शाख्रनिष्ठ होता है । |
| | | | |
| − | और उसे अपने से सवाया बनाना विद्यार्थीनिष्ठा है । १३८. शिक्षक बनना उत्तम विद्यार्थी का भी लक्ष्य होना
| + | १२३.विद्यार्थी भी ज्ञाननिष्ठ, राष्ट्रनिष्ठ और आचार्यनिष्ठ होता |
| | + | है। |
| | | | |
| − | १२०, आचार्यत्व शिक्षक का गुणलक्षण है । अपेक्षित है ।
| + | १२४, आचार्य की सेवा, अनुशासन, जिज्ञासा और विनय |
| | + | विद्यार्थी के गुणलक्षण हैं । |
| | | | |
| − | १२१. अपने आचरण से प्रेरित कर विद्यार्थी का जीवन... १३९. शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर जहाँ अध्ययन करते हैं
| + | १२५, अधीति, बोध, अभ्यास, प्रयोग और प्रसार अध्ययन |
| | + | की पंचपदी है । |
| | | | |
| − | बनाता है वह आचार्य है । वह स्थान विद्यालय है ।
| + | १२६, कर्मन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों से विषय को ग्रहण करना |
| | + | अधीति है । |
| | | | |
| − | १२२. आचार्य का आचरण शाख्रनिष्ठ होता है । १४०. जब शिक्षक और विद्यार्थी स्वेच्छा, स्वतन्त्रता और
| + | १२७, मन और बुद्धि के द्वारा अधीत विषय को ग्रहण करना |
| | + | बोध है । |
| | | | |
| − | १२३. विद्यार्थी भी ज्ञाननिष्ठ, राष्ट्रनिष्ठ और आचार्यनिष्ठ होता स्वदायित्व से विद्यालय चलाते हैं तब शिक्षा स्वायत्त
| + | १२८. जिसका बोध हुआ है उसे पुन: पुन: करना अभ्यास |
| | + | है। |
| | | | |
| − | है। होती है ।
| + | १२९, अभ्यास से बोध परिपक्क होता है । |
| | | | |
| − | १२४. आचार्य की सेवा, अनुशासन, जिज्ञासा और विनय... १४१. शिक्षा की स्वायत्तता बनाये रखने का प्रमुख दायित्व
| + | ५१३०, परिपक्क बोध के अनुसार आचरण करना प्रयोग है । |
| | | | |
| − | विद्यार्थी के गुणलक्षण हैं । शिक्षक का है, विद्यार्थी उसका सहभागी है और राज्य
| + | १३१, आचरण से विषय व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बनता |
| | + | है। |
| | | | |
| − | १२५. अधीति, बोध, अभ्यास, प्रयोग और प्रसार अध्ययन तथा समाज उसके सहयोगी हैं ।
| + | १३२, स्वाध्याय और प्रवचन प्रसार के दो अंग हैं । |
| | | | |
| − | की पंचपदी है । १४२. स्वायत्त शिक्षा ही राज्य और समाज का मार्गदर्शन करने
| + | १३३. नित्य अध्ययन से विषय को परिष्कृत और समृद्ध करते |
| | + | रहना स्वाध्याय है । |
| | | | |
| − | १२६. कर्मन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों से विषय को ग्रहण करना में समर्थ होती है ।
| + | १३४, अध्यापन और समाज के लिये ज्ञान का विनियोग ऐसे |
| | + | प्रवचन के दो आयाम हैं । |
| | | | |
| − | अधीति है । १४३. जो राज्य और समाज शिक्षा को स्वायत्त नहीं रहने देते | + | ५३५, अध्यापन में विद्यार्थी भी साथ में जुड़ता है । तब विद्यार्थी |
| | + | का वह अधीति पद है । |
| | | | |
| − | १२७.मन और बुद्धि के द्वारा अधीत विषय को ग्रहण करना उस राज्य और समाज की दुर्गति होती है ।
| + | १३६, अधीति से प्रसार और प्रसार में फिर अधीति ऐसे ज्ञान |
| | + | की पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा बनती है और ज्ञानप्रवाह |
| | + | निरन्तर बहता है । |
| | | | |
| − | बोध है । १४४. जो शिक्षक स्वायत्तता का दायित्व नहीं लेता उस शिक्षक
| + | ROL OL LOL LOE OKO LOK OE LOL LOK LOL LLL ON LORS |
| | + | gu |
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| | + | |
| | | | |
| − | १२८. जिसका बोध हुआ है उसे पुन: पुन: करना अभ्यास की राज्य और समाज से भी अधिक दुर्गति होती है ।
| + | १३७. ज्ञान की समृद्धि की रक्षा करने हेतु |
| | + | श्रेष्ठतम विद्यार्थी को शिक्षक ने शिक्षक बनने की प्रेरणा |
| | + | देनी चाहिए और उसे अपने से सवाया बनाना चाहिए । |
| | | | |
| − | है। १४५. राष्ट्र और विद्यार्थी दोनों को ध्यान में रखकर जो पढ़ाया
| + | १३८. शिक्षक बनना उत्तम विद्यार्थी का भी लक्ष्य होना |
| | + | अपेक्षित है । |
| | | | |
| − | १२९, अभ्यास से बोध परिपक्क होता है । जाता है वह पाठ्यक्रम होता है ।
| + | १३९, शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर जहाँ अध्ययन करते हैं |
| | + | वह स्थान विद्यालय है । |
| | | | |
| − | १३०. परिपक्क बोध के अनुसार आचरण करना प्रयोग है । १४६, विद्यार्थी की अवस्था, रुचि, क्षमता और आवश्यकता
| + | १४०. जब शिक्षक और विद्यार्थी स्वेच्छा, स्वतन्त्रता और |
| | + | स्वदायित्व से विद्यालय चलाते हैं तब शिक्षा स्वायत्त |
| | + | होती है । |
| | | | |
| − | १३१, आचरण से विषय व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बनता के अनुसार जो भी पढ़ाना शिक्षक द्वारा निश्चित किया
| + | १४१, शिक्षा की स्वायत्तता बनाये रखने का प्रमुख दायित्व |
| | + | शिक्षक का है, विद्यार्थी उसका सहभागी है और राज्य |
| | + | तथा समाज उसके सहयोगी हैं । |
| | | | |
| − | है। जाता है वह विद्यार्थीसापेक्ष पाठ्यक्रम होता है ।
| + | १४२. स्वायत्त शिक्षा ही राज्य और समाज का मार्गदर्शन करने |
| | + | में समर्थ होती है । |
| | | | |
| − | १३२. स्वाध्याय और प्रवचन प्रसार के दो अंग हैं । १४७, राष्ट्र की स्थिति और आवश्यकता को ध्यान में रखकर
| + | १४३. जो राज्य और समाज शिक्षा को स्वायत्त नहीं रहने देते |
| | + | उस राज्य और समाज की दुर्गति होती है । |
| | | | |
| − | १३३. नित्य अध्ययन से विषय को परिष्कृत और समृद्ध करते जो पढ़ाना निश्चित होता है वह राष्ट्रसापेक्ष पाठ्यक्रम होता
| + | १४४. जो शिक्षक स्वायत्तता का दायित्व नहीं लेता उस शिक्षक |
| | + | की राज्य और समाज से भी अधिक दुर्गति होती है । |
| | | | |
| − | रहना स्वाध्याय है । है।
| + | १४५, राष्ट्र और विद्यार्थी दोनों को ध्यान में रखकर जो पढ़ाया |
| | + | जाता है वह पाठ्यक्रम होता है । |
| | | | |
| − | १३४, अध्यापन और समाज के लिये ज्ञान का विनियोग ऐसे १४८. विद्यार्थीसापेक्ष पाठ्यक्रम राष्ट्र के अविरोधी होना चाहिए
| + | १४६. विद्यार्थी की अवस्था, रुचि, क्षमता और आवश्यकता |
| | + | के अनुसार जो भी पढ़ाना शिक्षक द्वारा निश्चित किया |
| | + | जाता है वह विद्यार्थीसापेक्ष पाठ्यक्रम होता है । |
| | | | |
| − | प्रवचन के दो आयाम हैं । क्योंकि विद्यार्थी भी राष्ट्र का अंग ही है ।
| + | १४७, राष्ट्र की स्थिति और आवश्यकता को ध्यान में रखकर |
| | + | जो पढ़ाना निश्चित होता है वह राष्ट्रसापेक्ष पाठ्यक्रम होता |
| | + | है। |
| | | | |
| − | १३५, अध्यापन में विद्यार्थी भी साथ में जुड़ता है । तब विद्यार्थी १४९. सर्व प्रकार के शैक्षिक प्रयासों हेतु राष्ट्र सर्वोपरि है ।
| + | १४८, विद्यार्थीसापेक्ष पाठ्यक्रम राष्ट्र के अविरोधी होना चाहिए |
| | + | क्योंकि विद्यार्थी भी राष्ट्र का अंग ही है । |
| | | | |
| − | का वह अधीति पद है । १५०, भारत की जीवनदृष्टि विश्वात्मक है इसलिए राष्ट्रीय होकर
| + | १४९, सर्व प्रकार के शैक्षिक प्रयासों हेतु राष्ट्र सर्वोपरि है । |
| | | | |
| − | १३६. अधीति से प्रसार और प्रसार में फिर अधीति ऐसे ज्ञान शिक्षा विश्व का कल्याण साधने में समर्थ होती है ।
| + | १५०, भारत की जीवनदृष्टि विश्वात्मक है इसलिए राष्ट्रीय होकर |
| | + | शिक्षा विश्व का कल्याण साधने में समर्थ होती है । |
| | | | |
| − | की पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा बनती है और ज्ञानप्रवाह १५१, सर्वकल्याणकारी शिक्षा राष्ट्र को चिरंजीवी बनाती है ।
| + | १५१, सर्वकल्याणकारी शिक्षा राष्ट्र को चिरंजीवी बनाती है । |
| | + | भारत ऐसा ही राष्ट्र है । |
| | | | |
| − | निरन्तर बहता है । भारत ऐसा ही राष्ट्र है ।
| + | CO iLO SEO 60 iC OE SO LOE LO iO KO 6 OR LOE KO C0 |
| | + | � |
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