Niti Shastra (नीति शास्त्र)

From Dharmawiki
Revision as of 20:54, 1 September 2024 by AnuragV (talk | contribs) (सुधार जारी)
Jump to navigation Jump to search
ToBeEdited.png
This article needs editing.

Add and improvise the content from reliable sources.

भारतीय ज्ञान परंपरा में नीतिशास्त्र भारतीय दार्शनिक और सामाजिक विचारधारा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो नैतिकता, राजनीति, समाज, और व्यक्तिगत आचरण के सिद्धांतों का अध्ययन और प्रस्तुति करता है। यह शास्त्र सदियों से भारतीय समाज में नैतिकता और सामाजिक न्याय के आदर्शों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। नीति शास्त्र वह शास्त्र है जिसमें मनुष्य के कर्तव्य और अकर्तव्य का विचार किया जाना, नैतिकता के माप-दण्ड का निर्धारण करने के साथ ही नीतिशास्त्र को नैतिक दर्शन भी कहा जाता है। नीति का अर्थ सही मार्ग की ओर ले जाना है, नीति का सही रूप में पालन करने से व्यक्ति एवं समाज दोनों का कल्याण होता है। प्राचीन नीतिशास्त्र के प्रमुख ग्रंथों में विदुर नीति, चाणक्य नीति, पंचतंत्र और हितोपदेश शामिल हैं। इन ग्रंथों ने समाज को नैतिकता, धर्म, और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर सही आचरण और निर्णय लेने का मार्ग दिखाया है।

परिचय

नीति शास्त्र दो शब्दों से बना है - एक नीति और दूसरा शास्त्र। शास्त्र शब्द शासु अनुशिष्टौ धातु से बना है जिसका अर्थ है सिखाना, बतलाना, नियन्त्रण करना, दण्ड देना और सलाह देना। शास्त्र वह ग्रन्थ या ज्ञान है जिससे हमको किसी विषय के सम्बन्ध में ऐसी शिक्षा मिले जिसके द्वारा हम जीवन और जगत की वस्तुओं का नियन्त्रण और नियमन कर सकें।

नीतिशास्त्र और नैतिकता इन दोनों के लिए अंग्रेजी में एथिक्स (Ethics) शब्द का प्रयोग किया जाता है। एथिक्स (Ethics) एक ग्रीक शब्द एथिकोस (Ethikos) से बना है।[1]

  • पाश्चात्य दर्शन में नीतिशास्त्र के इतिहास को पाँचवीं शताब्दी में सुकरात को आविर्भाव से माना जा सकता है।
  • व्यावहारिक नीति शास्त्र में चिकित्सा नीतिशास्त्र, पर्यावरण नैतिकता, राजनीतिक नीतिशास्त्र आदि को सम्मिलित किया गया है।

सामान्यतः दर्शनशास्त्र के तीन प्रमुख अंग माने जाते हैं -[2]

  • ज्ञानमीमांसा (Epistemology) - इसके अन्तर्गत वास्तविक ज्ञान, उसके प्रकार, उसकी प्रामाणिकता, ज्ञान की सीमा आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • तत्त्वमीमांसा (Metaphysics) - इसके अन्तर्गत जगत के मूलतत्त्वों, उनकी प्रकृति, उनकी संख्या आदि के विषय में अध्ययन किया जाता है।
  • नीतिशास्त्र (Ethics) - नीतिशास्त्र को दर्शनशास्त्र की ही एक शाखा के रूप में मान्यता प्राप्त है।

नीति के भण्डार ग्रन्थों के अतिरिक्त परामर्श, शिक्षा, मंत्रणा और व्यावहारिक ज्ञान आदि के अनेक ग्रन्थ हैं जो नीति परक उपदेश की कोटी में आते हैं। नीति के उपदेश और काव्यों के बीच में विभाजक रेखा अत्यन्त छोटी है, फिर भी यह निर्धारित होता है कि नीति उपदेशात्मक काव्यों की रचना निम्न शैलियों में की गई होगी -

  • दाम्पत्य जीवन के संवाद में
  • युगल पशुओं के आलाप में
  • वक्रोक्ति-अन्योक्ति और प्रहेलिका आदि के रूप में

प्रभु सम्मित वाक्य के द्वारा तथा कहीं पर कान्ता सम्मित उपदेश वाक्य के द्वारा तदरूप मार्गों पर चलने का निर्देश दिया गया है। इन्हीं नीति वचनों के अनुपालन से मनुष्य पुरुषार्थों की प्राप्ति में सिद्ध और सफल हो जाता है। भगवद्गीतामें श्रीकृष्ण जी कहते हैं -

नीतिरस्मि जिगीषताम् ॥ (भगवद्गीता 10-38)[3]

विजयकी इच्छा रखनेवालों के लिये मैं नीतिस्वरूप हूँ।

परिभाषा

नीतिका तात्पर्य है- जिसके द्वारा जाना जाय अर्थ समझा जाय वह नीति है - [4]

नीयन्ते उन्नीयन्ते अर्थाः अनया इति नीतिः।

शुक्रनीति ग्रन्थमें नीतिकी परिभाषा करते हुए लिखा है -

सर्वोपजीवको लोकस्थितिकृन्नीतिशास्त्रकम्। धर्मार्थकाममूलो हि स्मृतो मोक्षप्रदो यतः॥

नीतिशास्त्र सभीकी जीविकाका साधन है तथा वह लोककी स्थिति सुरक्षित करनेवाला और धर्म अर्थ तथा कामका मूल एवं मोक्ष प्रदान करनेवाला है।

नीतिशास्त्र एवं अन्य विद्याएं

नीति-शास्त्र के अध्ययन के लिये अन्य विद्याओं का ज्ञान होना आवश्यक है। कुछ विद्याएं नीति-शास्त्र का आधार हैं, और कुछ नीति शास्त्र के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। जिन विद्याओं का सम्बन्ध नीति से बडा घनिष्ठ है, वे निम्नलिखित हैं - [5]

  • तत्त्व-विज्ञान
  • मनोविज्ञान
  • तर्कशास्त्र
  • सौन्दर्य शास्त्र
  • प्राणि शास्त्र

इनके अतिरिक्त नीति-शास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध राजनीति शास्त्र और, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र से भी है।

नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान

नीति-शास्त्र और तत्त्वविज्ञान

नीति-शास्त्र और तर्क-शास्त्र

नीतिशास्त्र और सौन्दर्य शास्त्र

नीतिशास्त्र और राजनीति का संबंध

संस्कृत साहित्य में वैदिक युग से ही नीति परक उपदेशों की परम्परा चली आ रही है, जिसमें विभिन्न मनुष्य ने अपने अनुसार नीति कथाओं एवं वचनों के वर्णन किये गये हैं। वस्तुतः नीति के उद्भावक भगवान् ब्रह्मा और प्रतिष्ठापक विष्णु हैं। आदि काल से लेकर आधुनिक काल तक नीतियों का अत्यधिक प्रचार हुआ है। जिनमें नीतिशास्त्र से संबंधित कुछ प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं -

  • नीति
  • विदुर नीति
  • शुक्र नीति
  • कामन्दकीय नीतिसार
  • चाणक्यनीति
  • नीति कल्पतरू
  • कृत्य नीति वाक्यामृत
  • पञ्चतन्त्र
  • हितोपदेश
  • नीति शतक

नीतिशास्त्र का महत्व

संसार की अपनी मर्यादामें स्थिति राज्यशासनके अधीन है, वह शासन नियमोंके अनुसार होता है उसको राजनीति कहते हैं, उस नीतिके अनुसार व्यवहार करनेसे राजाको इस लोकमें यश और परलोकमें आनन्द प्राप्त होता है। राजनैतिक क्षेत्रमें स्थित लोग नीतिशास्त्र के अध्ययन से - [6]

  • धर्म पूर्वक प्रजापालन
  • कोषवृद्धि
  • सदाचरण और धर्मप्रचार

राजकुमारों के कृत्य, राजाप्रजा का सम्बंध आदि अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

निष्कर्ष

नीतिशास्त्र भारतीय दार्शनिक और सामाजिक विचारधारा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो नैतिकता, राजनीति, समाज, और व्यक्तिगत आचरण के सिद्धांतों का अध्ययन और प्रस्तुति करता है। यह शास्त्र सदियों से भारतीय समाज में नैतिकता और सामाजिक न्याय के आदर्शों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। प्राचीन नीतिशास्त्र के प्रमुख ग्रंथों में विदुर नीति, चाणक्य नीति, पंचतंत्र और हितोपदेश शामिल हैं। इन ग्रंथों ने समाज को नैतिकता, धर्म, और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर सही आचरण और निर्णय लेने का मार्ग दिखाया है।

उद्धरण

  1. अनुवादक-डॉ० सागरमल जैन, लेखक-हेनरी सिजविक, नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा, सन् 2017, मोतीलाल बनारसीदास, नई दिल्ली (पृ० 22)।
  2. डॉ० भीखनलाल आत्रेय, भारतीय नीति-शास्त्र का इतिहास, सन् 1964, हिन्दी समिति-सूचना विभाग, लखनऊ (पृ० 23)।
  3. श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय-10, श्लोक-38।
  4. कल्याण पत्रिका, नीतिसार अंक-धर्म और नीति, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० 126)।
  5. श्री लालजीराम शुक्ल, नीतिशास्त्र, सन् 1949, श्रीमोक्षा यंत्रालय, वाराणसी (पृ० 19)।
  6. पं० ज्वालाप्रसाद मिश्र जी, कामन्दकीयनीतिसारः, अध्याय-भूमिका, श्रीवेंकटेश्वर प्रेस-मुम्बई (पृ० 2)।