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=== ज्ञान और विज्ञान की भाषा ===
 
=== ज्ञान और विज्ञान की भाषा ===
संस्कृत भाषा यह प्राचीनतम काल से ज्ञान और विज्ञान की भाषा रही है । इस की वर्तमान विज्ञान की विधा में भी नये शब्द निर्माण की क्षमता विश्व की अन्य किसी भी भाषा से विलक्षण है । संस्कृत में बने शब्द अर्थवाही भी होते है। जैसे संगणक के साथ पेन ड्राईव्ह नाम का एक उपकरण होता है। इस उपकरण का कार्य जानकारी का संकलन और आवश्यकतानुसार उपलब्धता करना है। इस कार्य का न तो पेन(लेखनी) से सम्बन्ध है और ना ही ड्राईव्ह याने ‘चलाना’ से। इसे संस्कृत में स्मृति शलाका कहते हैं। अर्थ है - जिसमें स्मृति सुरक्षित की है ऐसी छोटी सी डंडी।  
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संस्कृत भाषा यह प्राचीनतम काल से ज्ञान और विज्ञान की भाषा रही है। इस की वर्तमान विज्ञान की विधा में भी नये शब्द निर्माण की क्षमता विश्व की अन्य किसी भी भाषा से विलक्षण है। संस्कृत में बने शब्द अर्थवाही भी होते है। जैसे संगणक के साथ पेन ड्राईव्ह नाम का एक उपकरण होता है। इस उपकरण का कार्य जानकारी का संकलन और आवश्यकतानुसार उपलब्धता करना है। इस कार्य का न तो पेन (लेखनी) से सम्बन्ध है और ना ही ड्राईव्ह याने ‘चलाना’ से। इसे संस्कृत में स्मृति शलाका कहते हैं। अर्थ है - जिसमें स्मृति सुरक्षित की है ऐसी छोटी सी डंडी।  
    
=== सामाजिकता बढानेवाली - रिश्ते नातों की भाषा ===
 
=== सामाजिकता बढानेवाली - रिश्ते नातों की भाषा ===
भारतीय कुटुम्ब यह सामाजिकता के पाठ पढने का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है । इस में जन्म के समय केवल अपने लिये विचार करनेवाला बच्चा बडा होकर अपनों के लिये जीने लग जाता है । बच्चे का अपनत्व का दायरा भारतीय कुटुम्ब में अन्य किसी भी समाज से बडा होता है । वसुधैव कुटुम्बकम् का वस्तुपाठ बच्चा इस विशाल कुटुम्ब से ही लेना प्रारंभ करता है । भारतीय भाषाएं सामाजिकता के विकास की दृष्टि से भी अत्यंत विकसित है । हमारी भाषाओं में भिन्न भिन्न प्रकार के जितने रिश्तों के नाम हैं विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं हैं। जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, दादा-दादी, नाना-नानी, मौसा-मौसी, फूफा-फूफी, ताऊ-ताई, ननद-ननदोई, बहन-बहनोई, साला-साली, भतिजा-भतीजी, भांजा-भांजी, देवर-भाभी, जेठ-जेठानी, चाचा-चाची, मानी हुई बहन या भाई / मानस-कन्या या मानसपुत्र आदि । अंग्रेजी में यह रिश्ते बस मदर-फादर, ब्रदर-सिस्टर, सन-डॉटर, अंकल-ऑंटी तक ही सीमित है ।
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भारतीय कुटुम्ब सामाजिकता के पाठ पढने का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है। इस में जन्म के समय केवल अपने लिये विचार करनेवाला बच्चा बडा होकर अपनों के लिये जीने लग जाता है। बच्चे का अपनत्व का दायरा भारतीय कुटुम्ब में अन्य किसी भी समाज से बडा होता है। वसुधैव कुटुम्बकम् का वस्तुपाठ बच्चा इस विशाल कुटुम्ब से ही लेना प्रारंभ करता है। भारतीय भाषाएं सामाजिकता के विकास की दृष्टि से भी अत्यंत विकसित है । हमारी भाषाओं में भिन्न भिन्न प्रकार के जितने रिश्तों के नाम हैं विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं हैं। जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी, दादा-दादी, नाना-नानी, मौसा-मौसी, फूफा-फूफी, ताऊ-ताई, ननद-ननदोई, बहन-बहनोई, साला-साली, भतिजा-भतीजी, भांजा-भांजी, देवर-भाभी, जेठ-जेठानी, चाचा-चाची, मानी हुई बहन या भाई / मानस-कन्या या मानसपुत्र आदि। अंग्रेजी में यह रिश्ते बस मदर-फादर, ब्रदर-सिस्टर, सन-डॉटर, अंकल-ऑंटी तक ही सीमित है।
    
=== अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम न बनाकर भारतीय भाषाओं को माध्यम बनाने  की आवश्यकता ===
 
=== अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम न बनाकर भारतीय भाषाओं को माध्यम बनाने  की आवश्यकता ===
८.१ अपनी भाषा का प्रयोग सामान्य व्यवहार के लिये करना यह हर समाज के लिये स्वत्व और स्वाभिमान की बात होती है। पराभूत और परावलंबी मानसिकता रखनेवाले समाज ही विदेशी समाजों की भाषा अपनाते हैं। जर्मनी में जर्मन, जापान में जापानी, पुर्तगाल में पुर्तगाली, फ्रांस में फ्रेंच भाषाओं का ही ये देश सामान्य व्यवहार के लिये उपयोग करते हैं।  
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# अपनी भाषा का प्रयोग सामान्य व्यवहार के लिये करना यह हर समाज के लिये स्वत्व और स्वाभिमान की बात होती है। पराभूत और परावलंबी मानसिकता रखनेवाले समाज ही विदेशी समाजों की भाषा अपनाते हैं। जर्मनी में जर्मन, जापान में जापानी, पुर्तगाल में पुर्तगाली, फ्रांस में फ्रेंच भाषाओं का ही ये देश सामान्य व्यवहार के लिये उपयोग करते हैं।  
८.२ अभारतीय भाषाएं उन समाजों की मान्यताओं, सोच को अभिव्यक्त करती है । और अभारतीय समाजों में एकात्मता का विचार नहीं है। इसलिये इन भाषाओं में अध्ययन कर बच्चे हीन संस्कृति अपनाते जाते है। बच्चों को हीन संस्कृति से बचाकर ' एकात्मता ' पर आधारित श्रेष्ठ संस्कृति मे संस्कारित करना भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने से ही संभव होता है ।
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# अभारतीय भाषाएं उन समाजों की मान्यताओं, सोच को अभिव्यक्त करती है।और अभारतीय समाजों में एकात्मता का विचार नहीं है। इसलिये इन भाषाओं में अध्ययन कर बच्चे हीन संस्कृति अपनाते जाते है। बच्चों को हीन संस्कृति से बचाकर 'एकात्मता' पर आधारित श्रेष्ठ संस्कृति मे संस्कारित करना भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने से ही संभव होता है।
८.३ बच्चों की प्रतिभा का पूरा उपयोग अध्ययन के लिये होता है । भारतीय भाषाएं सीखने के लिये सरल, व्याकरणशुद्ध और तर्कशुद्ध होने के कारण भाषा सीखने में प्रतिभा का न्यूनतम और बहुत छोटा हिस्सा ही व्यय होता है । बचा हुआ पूरा हिस्सा नये विषयों के अध्ययन के लिये उपयोग में लाया जा सकता है ।
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# बच्चों की प्रतिभा का पूरा उपयोग अध्ययन के लिये होता है। भारतीय भाषाएं सीखने के लिये सरल, व्याकरणशुद्ध और तर्कशुद्ध होने के कारण भाषा सीखने में प्रतिभा का न्यूनतम और बहुत छोटा हिस्सा ही व्यय होता है। बचा हुआ पूरा हिस्सा नये विषयों के अध्ययन के लिये उपयोग में लाया जा सकता है ।  
८.४ संस्कृत भाषा जिसे आती है, उसे विश्व की अन्य कोई भी भाषा सीखना बहुत सरल होता है । अन्य भारतीय भाषाओं के लिये भी यह कम-अधिक मात्रा में लागू होता है ।
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# संस्कृत भाषा जिसे आती है, उसे विश्व की अन्य कोई भी भाषा सीखना बहुत सरल होता है। अन्य भारतीय भाषाओं के लिये भी यह कम-अधिक मात्रा में लागू होता है।
८.५ ग्रीक और लॅटिन यह संस्कृत के बाद दूसरे क्रमांक की प्राचीन भाषाएं हैं। किंतु संस्कृत में आज भी उपलब्ध विविध विषयोंपर लिखे ग्रंथों की पांडुलिपियाँ ग्रीक और लॅटिन दोनों भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है । वर्तमान शिक्षा के कारण इन पांडुलिपियों से प्राप्त होनेवाला ज्ञान अस्तंगत होता जा रहा है । भारतीय और विशेषत: संस्कृत सीखने से इन ग्रंथों में सुरक्षित और छुपा ज्ञान मानवमात्र को उपलब्ध हो सकेगा ।
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# ग्रीक और लॅटिन यह संस्कृत के बाद दूसरे क्रमांक की प्राचीन भाषाएं हैं। किंतु संस्कृत में आज भी उपलब्ध विविध विषयों पर लिखे ग्रंथों की पांडुलिपियाँ ग्रीक और लॅटिन दोनों भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों की संख्या से सैंकड़ों गुना अधिक है। वर्तमान शिक्षा के कारण इन पांडुलिपियों से प्राप्त होनेवाला ज्ञान असंगत  होता जा रहा है। भारतीय और विशेषत: संस्कृत सीखने से इन ग्रंथों में सुरक्षित और छुपा ज्ञान मानवमात्र को उपलब्ध हो सकेगा।
    
=== अंग्रेजी भाषा को हटाकर भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने की उपाय योजना ===
 
=== अंग्रेजी भाषा को हटाकर भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने की उपाय योजना ===
भारतीय भाषाएं वर्तमान में अपने अस्तित्व की लडाई लड रही है । और अस्तित्व का यह संकट अग्रेजी भाषा को शिक्षा के माध्यम के स्वरूप में अपनाने की सामान्य लोगों की मानसिकता के कारण है। इस लडाई को लडाई के धर्म के अनुसार लडना होगा । भारतीय संस्कृति धर्मपर आधारित होने से यह धर्मयुध्द होगा । अर्थात् अंग्रेजी भाषा से हमारी कोई लडाई नहीं है । हमारी लडाई है अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने के विरोध में ।
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भारतीय भाषाएं वर्तमान में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। और अस्तित्व का यह संकट अग्रेजी भाषा को शिक्षा के माध्यम के स्वरूप में अपनाने की सामान्य लोगों की मानसिकता के कारण है। इस लड़ाई को लड़ाई के धर्म के अनुसार लड़ना होगा । भारतीय संस्कृति धर्मपर आधारित होने से यह धर्मयुद्ध होगा। अर्थात् अंग्रेजी भाषा से हमारी कोई लड़ाई नहीं है । हमारी लड़ाई है अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने के विरोध में।
अंग्रेजी भाषा का एक प्रबल बलस्थान निम्न है । विश्व के बहुत बडे हिस्से में, दर्जनों देशों में अंग्रेजों के उपनिवेश रहे हैं। हर उपनिवेश में अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को स्थानिक समाजपर थोपने के सफल प्रयास किये। इसी का परिणाम है की कई देशों ने जैसे अमरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की संस्कृति और सामान्य व्यवहार की भाषा अंग्रेजी बन गई । भारतीय संस्कृति मे उपनिवेषवाद को कोई स्थान नहीं है । इसलिये यह अंग्रेजी का ऐसा बलस्थान है जिसे हम उसी ढंग से उत्तर नहीं दे सकते। अर्थात् इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बनाकर नहीं दे सकते। इस बलस्थान को हमें भारतीय भाषाओं के अन्य बलस्थानों के बलपर ही परास्त करना होगा । 
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९.१ अंग्रेजी भाषा के और अपनी भाषा के बलस्थानों और दुर्बल स्थानों को समझना और अंग्रेजी के दुर्बल स्थानों का  और अपनी भाषाओं के बलस्थानों का लाभ लेकर अंग्रेजी माध्यम को शिक्षा के माध्यम के रूप मे निर्बल करना ।
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९.२ भारतीय समाज में स्वत्व और स्वाभिमान की भावना जगाना। इस हेतु से विद्यालय पहल करें। अपने स्वाभिमान और स्वभाषा के विषय में अपनेपन का भाव जगाएं । अभिभावकों को अपने बच्चों को भारतीय (स्थानिक) भाषा के माध्यमवाले विद्यालय में ही डालने का महत्व बताकर आग्रह करें । हर विद्यालय अपनी बस्ती में इस विषय का आंदोलन / अभियान चलाए ।
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९.३ भारतीय / प्रांतीय भाषाओं को सरकारी व्यवहार की और न्यायालयों की भाषा बनाना । इस हेतु सभी राजनीतिक दलोंपर दबाव बनाना होगा । दो भिन्नभाषी प्रांतों का परस्पर व्यवहार भी अंग्रेजी की जगह हिंदी में चलाना होगा । हमारे देश की सभी भाषाएं ' राष्ट्रभाषाएं ' है । अन्य देश छोटे होने से, छोटे देशों की ' राष्ट्रभाषा ' एक होना स्वाभाविक है । हमारा देश बडा है । इसलिये हमारी १८ राष्ट्रभाषाएं है । हिंदी और तमिल या तेलगू या मराठी या पंजाबी सभी भाषाएं समान है । सर्वसहमती से किसी भी एक राष्ट्रीय भाषा को राष्ट्र की सम्पर्क भाषा बनाने के प्रयास करने  चाहिये । प्राचीन काल में संस्कृत संपर्क भाषा थी। हम निश्चय करें तो वर्तमान में भी संस्कृत में संपर्क भाषा बनने की सामर्थ्य है।
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९.४ विश्वभर की सभी भाषाओं में उपलब्ध भद्र ज्ञान के ग्रंथों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने हेतु राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तरतक एक विभाग का निर्माण जिसका उद्देश्य ही ‘भारतीय भाषाओं को वैविध्य की दृष्टिसे भी समृध्द बनाना’ यह होगा । इस विभाग का काम युध्दस्तरपर चलाना होगा। विश्व का लिखित अलिखित भद्र ज्ञान भारतीय भाषाओं मे उपलब्ध कराना होगा ।
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९.५ प्रगत पाठयक्रमों का अध्ययन-अध्यापन भारतीय भाषाओं में, विशेषत: शुरू में हिंदी में और फिर अन्य भाषाओं में प्रारंभ करना होगा । इस हेतु प्रगत पाठयक्रमों के लिये उपयुक्त तकनीकी शब्द निर्माण का काम हमारी राजभाषा प्रसार समिती कर रही थी । उसे फिर गति और शक्ति देनी होगी । अंग्रेजी मे सिखाया जानेवाला ५ वर्ष का अभियांत्रिकी का पाठयक्रम अपनी भाषा में सीखने के लिये बच्चों को २/२.५ वर्ष पर्याप्त होते है । अपनी भाषा में प्रगत पाठयक्रम लाने से बच्चों के यौवन के २/२.५ वर्ष वर्ष व्यर्थ जाने से बच जाएंगे । देश के स्तरपर हमारे करोडों युवकवर्षों का आज होनेवाला अपव्यय हम टाल सकेंगे । इस हेतु प्रगत पाठयक्रम अपनी भाषा मे लाने का काम अविलम्ब करना होगा । 
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९.६ तत्वज्ञान, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, राज्यशास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, गृहनिर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, जल-प्रबंधन शास्त्र, कण-भौतिकी, रसायन, अणू-विज्ञान आदि भिन्न भिन्न विषयों के संबंध में भारतीय दृष्टिकोणपर आधारित साहित्य भारतीय भाषाओं में विश्व के सम्मुख शक्ति, व्याप्ति और गति के साथ प्रस्तुत करना ।
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९.७ संस्कृत मे उपलब्ध ग्रंथों में प्रतिपादित विषयों की वर्तमान काल के सापेक्ष पुनर्प्रस्तुति करना। इससे विश्वकल्याण की दृष्टि हमें प्राप्त होगी। चराचर के साथ एकात्मता की भावना के आधारपर विकसित भिन्न भिन्न विषयों के ज्ञान का अगाध सागर हम विश्व के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे ।
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९.८ मातृभाषा (राज्य की) ही शिक्षा का माध्यम बने इस हेतु आंदोलन चलाना/जनजागरण करना।
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९.९ आंतराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में औपचारिक स्तर पर अपनी भाषाओं का ही उपयोग करते रहना। भिन्न भिन्न देशों में ' संस्कृत/हिंदी विश्व संम्मेलन ' का आयोजन कर, भारतीय भाषाओं की महत्ता विश्वविख्यात करना ।
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९.१० अंग्रेजी का वर्तमान में उपजीविका पाने के लिये महत्व समझकर ' अंग्रेजी भाषा ' अध्यापन के लिये श्रेष्ठ पद्दति का उपयोग करना । सुनना, बोलना, पढना और अंत में लिखना यह किसी भी  भाषा को सीखने के स्वाभाविक चरण होते है । बच्चा इसी क्रम से अपनी भाषा सीखता है । संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत संभाषण के लिये विकसित ' संस्कृत संभाषण वर्ग ' की पद्दति से विद्यालय यदि अंग्रेजी पढाएंगे तो बच्चे अच्छी तरह अंग्रेजी बोल सकेंगे । इस से अभिभावकों को अंग्रेजी माध्यम में बच्चों को पढाने का मोह नहीं होगा ।
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९.११. एक तात्कालिक उपाय के रूप में, जबतक अंग्रेजी चलेगी तबतक रोमन लिपि के स्थानपर देवनागरी लिपि के उपयोग से अंग्रेजी भाषा के उच्चारण और लेखन की आधी समस्या हल हो सकेगी।
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=== अपनी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों को लेने से भाषा समृध्दि या प्रदूषण ===
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अंग्रेजी भाषा का एक प्रबल बलस्थान निम्न है। विश्व के बहुत बडे हिस्से में, दर्जनों देशों में अंग्रेजों के उपनिवेश रहे हैं। हर उपनिवेश में अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को स्थानिक समाज पर थोपने के सफल प्रयास किये। इसी का परिणाम है कि कई देशों ने जैसे अमरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की संस्कृति और सामान्य व्यवहार की भाषा अंग्रेजी बन गई। भारतीय संस्कृति मे उपनिवेषवाद को कोई स्थान नहीं है । इसलिये यह अंग्रेजी का ऐसा बलस्थान है जिसे हम उसी ढंग से उत्तर नहीं दे सकते। अर्थात् इंग्लैण्ड को अपना उपनिवेश बनाकर नहीं दे सकते। इस बल स्थान को हमें भारतीय भाषाओं के अन्य बल स्थानों के बल पर ही परास्त करना होगा ।
अपनी भाषा में बात करते समय अंग्रेजी शब्दों का उस में जहाँतहाँ उपयोग करना यह सामान्य लोगों की आदत बन गई है । उस के समर्थन मे कहा जाता है की ‘ऐसा करने से हमारी भाषा समृध्द बनती है’। अंग्रेजी भाषा का उदाहरण दिया जाता है। अंग्रेजी भाषा भिन्न भिन्न भाषाओं से ऐसे शब्द लेती रहती है। अंग्रेजी शब्दकोष के हर नये प्रकाशन में ऐसे अन्य भाषाओं से लिये शब्द मिलते है । अंग्रेजी जैसी अवैज्ञानिक (आर्बिट्रेरी) भाषा के लिये यह ठीक हो सकता है । हमारी भाषाओं के लिये नहीं। हमारी भाषाओं के शब्दों का निर्माण शास्त्रीय पद्दति से होता है। अंग्रेजी शब्दों का उपयोग और समावेश हमारी भाषाओं में करने से हमारी भाषाएं प्रदूषित होती हैं। इसलिये अपनी भाषा में बोलते/लिखते समय हम यह विशेष रूप से देखें की अंग्रेजी या उर्दू भाषा के शब्दों का उपयोग कर हम अपनी भाषा को प्रदूषित तो नहीं कर रहे ? ऐसा करते हों तो इसे अविलंब रोकने का प्रयास करना आवश्यक है ।
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# अंग्रेजी भाषा के और अपनी भाषा के बलस्थानों और दुर्बल स्थानों को समझना और अंग्रेजी के दुर्बल स्थानों का और अपनी भाषाओं के बलस्थानों का लाभ लेकर अंग्रेजी माध्यम को शिक्षा के माध्यम के रूप मे निर्बल करना।
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# भारतीय समाज में स्वत्व और स्वाभिमान की भावना जगाना। इस हेतु से विद्यालय पहल करें। अपने स्वाभिमान और स्वभाषा के विषय में अपनेपन का भाव जगाएं । अभिभावकों को अपने बच्चों को भारतीय (स्थानिक) भाषा के माध्यम वाले विद्यालय में ही डालने का महत्व बताकर आग्रह करें। हर विद्यालय अपनी बस्ती में इस विषय का आंदोलन / अभियान चलाए।
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# भारतीय / प्रांतीय भाषाओं को सरकारी व्यवहार की और न्यायालयों की भाषा बनाना । इस हेतु सभी राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना होगा। दो भिन्नभाषी प्रांतों का परस्पर व्यवहार भी अंग्रेजी की जगह हिंदी में चलाना होगा। हमारे देश की सभी भाषाएं 'राष्ट्रभाषाएं' है। अन्य देश छोटे होने से, छोटे देशों की 'राष्ट्रभाषा' एक होना स्वाभाविक है। हमारा देश बडा है। इसलिये हमारी १८ राष्ट्रभाषाएं है। हिंदी और तमिल या तेलुगु या मराठी या पंजाबी सभी भाषाएं समान है । सर्वसहमती से किसी भी एक राष्ट्रीय भाषा को राष्ट्र की सम्पर्क भाषा बनाने के प्रयास करने चाहिये। प्राचीन काल में संस्कृत संपर्क भाषा थी। हम निश्चय करें तो वर्तमान में भी संस्कृत में संपर्क भाषा बनने की सामर्थ्य है।
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# विश्वभर की सभी भाषाओं में उपलब्ध भद्र ज्ञान के ग्रंथों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने हेतु राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक एक विभाग का निर्माण जिसका उद्देश्य ही ‘भारतीय भाषाओं को वैविध्य की दृष्टिसे भी समृद्ध बनाना’ होगा। इस विभाग का काम युद्धस्तर पर चलाना होगा। विश्व का लिखित अलिखित भद्र ज्ञान भारतीय भाषाओं मे उपलब्ध कराना होगा।
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# प्रगत पाठयक्रमों का अध्ययन-अध्यापन भारतीय भाषाओं में, विशेषत: शुरू में हिंदी में और फिर अन्य भाषाओं में प्रारंभ करना होगा। इस हेतु प्रगत पाठयक्रमों के लिये उपयुक्त तकनीकी शब्द निर्माण का काम हमारी राजभाषा प्रसार समिती कर रही थी। उसे फिर गति और शक्ति देनी होगी। अंग्रेजी मे सिखाया जानेवाला ५ वर्ष का अभियांत्रिकी का पाठयक्रम अपनी भाषा में सीखने के लिये बच्चों को २/२.५ वर्ष पर्याप्त होते है। अपनी भाषा में प्रगत पाठयक्रम लाने से बच्चों के यौवन के २/२.५ वर्ष वर्ष व्यर्थ जाने से बच जाएंगे। देश के स्तर पर हमारे करोडों युवक वर्षों का आज होनेवाला अपव्यय हम टाल सकेंगे। इस हेतु प्रगत पाठयक्रम अपनी भाषा मे लाने का काम अविलम्ब करना होगा।
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# तत्वज्ञान, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, राज्यशास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, गृहनिर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, जल-प्रबंधन शास्त्र, कण-भौतिकी, रसायन, अणू-विज्ञान आदि भिन्न भिन्न विषयों के संबंध में भारतीय दृष्टिकोणपर आधारित साहित्य भारतीय भाषाओं में विश्व के सम्मुख शक्ति, व्याप्ति और गति के साथ प्रस्तुत करना।
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# संस्कृत मे उपलब्ध ग्रंथों में प्रतिपादित विषयों की वर्तमान काल के सापेक्ष पुनर्प्रस्तुति करना। इससे विश्वकल्याण की दृष्टि हमें प्राप्त होगी। चराचर के साथ एकात्मता की भावना के आधारपर विकसित भिन्न भिन्न विषयों के ज्ञान का अगाध सागर हम विश्व के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे।
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# मातृभाषा (राज्य की) ही शिक्षा का माध्यम बने इस हेतु आंदोलन चलाना/जनजागरण करना।
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# आंतराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में औपचारिक स्तर पर अपनी भाषाओं का ही उपयोग करते रहना। भिन्न भिन्न देशों में 'संस्कृत/हिंदी विश्व संम्मेलन' का आयोजन कर, भारतीय भाषाओं की महत्ता विश्वविख्यात करना।
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# अंग्रेजी का वर्तमान में उपजीविका पाने के लिये महत्व समझकर 'अंग्रेजी भाषा' अध्यापन के लिये श्रेष्ठ पद्दति का उपयोग करना। सुनना, बोलना, पढ़ना और अंत में लिखना यह किसी भी भाषा को सीखने के स्वाभाविक चरण होते है । बच्चा इसी क्रम से अपनी भाषा सीखता है । संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत संभाषण के लिये विकसित 'संस्कृत संभाषण वर्ग' की पद्दति से विद्यालय यदि अंग्रेजी पढाएंगे तो बच्चे अच्छी तरह अंग्रेजी बोल सकेंगे । इस से अभिभावकों को अंग्रेजी माध्यम में बच्चों को पढाने का मोह नहीं होगा।
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# एक तात्कालिक उपाय के रूप में, जब तक अंग्रेजी चलेगी तब तक रोमन लिपि के स्थानपर देवनागरी लिपि के उपयोग से अंग्रेजी भाषा के उच्चारण और लेखन की आधी समस्या हल हो सकेगी।
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=== अपनी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों को लेने से भाषा समृद्धि या प्रदूषण ===
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अपनी भाषा में बात करते समय अंग्रेजी शब्दों का उस में जहाँ तहाँ उपयोग करना यह सामान्य लोगों की आदत बन गई है । उस के समर्थन मे कहा जाता है की ‘ऐसा करने से हमारी भाषा समृद्ध बनती है’। अंग्रेजी भाषा का उदाहरण दिया जाता है। अंग्रेजी भाषा भिन्न भिन्न भाषाओं से ऐसे शब्द लेती रहती है। अंग्रेजी शब्दकोष के हर नये प्रकाशन में ऐसे अन्य भाषाओं से लिये शब्द मिलते है । अंग्रेजी जैसी अवैज्ञानिक (आर्बिट्रेरी) भाषा के लिये यह ठीक हो सकता है । हमारी भाषाओं के लिये नहीं। हमारी भाषाओं के शब्दों का निर्माण शास्त्रीय पद्दति से होता है। अंग्रेजी शब्दों का उपयोग और समावेश हमारी भाषाओं में करने से हमारी भाषाएं प्रदूषित होती हैं। इसलिये अपनी भाषा में बोलते/लिखते समय हम यह विशेष रूप से देखें की अंग्रेजी या उर्दू भाषा के शब्दों का उपयोग कर हम अपनी भाषा को प्रदूषित तो नहीं कर रहे? ऐसा करते हों तो इसे अविलंब रोकने का प्रयास करना आवश्यक है ।
    
=== पहली कक्षा से अंग्रेजी सीखने का आग्रह और बलप्रयोग सामाजिक अपराध है ===
 
=== पहली कक्षा से अंग्रेजी सीखने का आग्रह और बलप्रयोग सामाजिक अपराध है ===
११.१ अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चों की संख्या लक्षणीय   है । इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है।
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# अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चों की संख्या लक्षणीय है। इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है।
११.२ अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यतावाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगों का ही शायद इन अंग्रेजीभाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगों को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है।
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# अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यता वाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगों का ही शायद इन अंग्रेजी भाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगों को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है।
    
== संपर्क भाषा की समस्या ==
 
== संपर्क भाषा की समस्या ==
वर्तमान जीवन के प्रतिमान के कारण भारत में संपर्क भाषा की समस्या निर्माण हुई है। हजारों की संख्या में बोलीभाषाएं और प्रादेशिक भाषाओं का अस्तित्व तो २०० वर्षों से पहले भी था ही। लेकिन संपर्क भाषा की कोई समस्या नहीं थी। लोग उस समय भी कन्याकुमारी से लेकर बद्रीनाथ तक घूमते थे। उस समय संपर्क भाषा की समस्या नहीं थी। आज इस समस्या के निर्माण होने का कारण ही वर्तमान का जीवन का प्रतिमान है।  
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वर्तमान जीवन के प्रतिमान के कारण भारत में संपर्क भाषा की समस्या निर्माण हुई है। हजारों की संख्या में बोली, भाषाएं और प्रादेशिक भाषाओं का अस्तित्व तो २०० वर्षों से पहले भी था ही। लेकिन संपर्क भाषा की कोई समस्या नहीं थी। लोग उस समय भी कन्याकुमारी से लेकर बद्रीनाथ तक घूमते थे। उस समय संपर्क भाषा की समस्या नहीं थी। आज इस समस्या के निर्माण होने का कारण ही वर्तमान का जीवन का प्रतिमान है।  
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वर्तमान में मानव पगढीला हो गया है। आवागमन के साधन, स्वभाव से भिन्न प्रकार का काम करना, अतिरिक्त धन की उपलब्धता, पर्यटन के लिए विज्ञापनबाजी और आजीविका के लिए नौकरी ये बातें मनुष्य को एक स्थानपर टिकने नहीं देते। यह पगढ़ीलापन वर्तमान के अभारतीय जीवन के प्रतिमान की ही देन है। प्रतिमान को भारतीय बनाना ही उसका उत्तर है।  
 
वर्तमान में मानव पगढीला हो गया है। आवागमन के साधन, स्वभाव से भिन्न प्रकार का काम करना, अतिरिक्त धन की उपलब्धता, पर्यटन के लिए विज्ञापनबाजी और आजीविका के लिए नौकरी ये बातें मनुष्य को एक स्थानपर टिकने नहीं देते। यह पगढ़ीलापन वर्तमान के अभारतीय जीवन के प्रतिमान की ही देन है। प्रतिमान को भारतीय बनाना ही उसका उत्तर है।  
  
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