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| अरूण शौरी की पुस्तक 'एमिनंट हिस्टॉरियन्स् - देयर टेक्नॉलॉजी, देयर लाईन ऍंड देयर फ्रॉड्स्' में सबूतों के साथ इरफान हबीब, रोमिला थापर, जगदीशचन्द्र आदि ४०-५० तथाकथित इतिहासज्ञों के कारनामों की जानकारी मिलती है। इन तथाकथित इतिहासकारों ने सरकारी तिजोरी को लाखों रुपयों का चूना कैसे लगाया इस के ऑंकडे भी इस पुस्तक में दिये है। इस तरह स्वाधीनता से पहले अंग्रेजी और स्वाधीनता के उपरांत कम्युनिस्ट ऐसी पाश्चात्य भूमिकाओं से ही हमारे इतिहास की प्रस्तुति हुई है। | | अरूण शौरी की पुस्तक 'एमिनंट हिस्टॉरियन्स् - देयर टेक्नॉलॉजी, देयर लाईन ऍंड देयर फ्रॉड्स्' में सबूतों के साथ इरफान हबीब, रोमिला थापर, जगदीशचन्द्र आदि ४०-५० तथाकथित इतिहासज्ञों के कारनामों की जानकारी मिलती है। इन तथाकथित इतिहासकारों ने सरकारी तिजोरी को लाखों रुपयों का चूना कैसे लगाया इस के ऑंकडे भी इस पुस्तक में दिये है। इस तरह स्वाधीनता से पहले अंग्रेजी और स्वाधीनता के उपरांत कम्युनिस्ट ऐसी पाश्चात्य भूमिकाओं से ही हमारे इतिहास की प्रस्तुति हुई है। |
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− | हम अपने बच्चों को कैसा बनाना चाहते है यह हमें सोचना होगा । और इस सोच के अनुसार इतिहास का पुनर्लेखन हमें करना होगा । इस का अर्थ यह नहीं की हम झूठा इतिहास लिखें। इतिहास के विषय में भारतीय मान्यता है, 'ना मूलम् लिख्यते किंचित्'। इसलिये जो वास्तव में घटित हुआ है उस की भारतीय दृष्टिकोण से मीमांसा करते हुए हमें अपना इतिहास फिर से लिखना होगा। ऐसे इतिहास को पढकर ही हमारे बच्चे वास्तविक अर्थों में आर्य बनेंगे और विश्व को आर्यत्व की सीख देंगे। वसुधैव कुटुंबकम् के अर्थ समझाएंगे। | + | हम अपने बच्चों को कैसा बनाना चाहते है यह हमें सोचना होगा । और इस सोच के अनुसार इतिहास का पुनर्लेखन हमें करना होगा । इस का अर्थ यह नहीं की हम झूठा इतिहास लिखें। इतिहास के विषय में भारतीय मान्यता है, 'ना मूलम् लिख्यते किंचित्'। इसलिये जो वास्तव में घटित हुआ है उस की भारतीय दृष्टिकोण से मीमांसा करते हुए हमें अपना इतिहास फिर से लिखना होगा। |
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− | == इतिहास दृष्टि और जीवनदृष्टि == | + | == इतिहास दृष्टि और जीवन दृष्टि == |
− | किसी भी समाज का जीने का एक तरीका होता है । इस तरीके को उस समाज की जीवनशैली कहा जाता है । यह जीवनशैली उस समाज की विविध मान्यताओं के आधारपर बनती है । इन मान्यताओं को उस समाज की जीवनदृष्टि कहा जाता है । इस जीवनदृष्टि के आधारपर ही वह समाज अपनी भाषा, कला, साहित्य, न्यायशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विविध सामाजिक शास्त्रों की और भौतिक, रसायन, वनस्पति आदि भौतिक शास्त्रों का और राज्यव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, आदि विभिन्न व्यवस्थाओं का निर्माण करता है । इस दृष्टि से साहित्य भी निर्माण करता है। किसी भी समाज का इतिहास उस समाज के साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है । हम भारतीय हैं। हमारी जीवनदृष्टि अंग्रेजों से भिन्न है और श्रेष्ठ भी है। यह हमने पूर्व अध्यायों में देखा है। इसीलिये अपनी भूमिका से हमारे इतिहास के पुनर्लेखन का काम कुशलता से और प्रचंड गति से करने की आवश्यकता है। | + | किसी भी समाज का जीने का एक तरीका होता है। इस तरीके को उस समाज की जीवनशैली कहा जाता है। यह जीवनशैली उस समाज की विविध मान्यताओं के आधार पर बनती है। इन मान्यताओं को उस समाज की जीवन दृष्टि कहा जाता है। इस जीवनदृष्टि के आधार पर ही वह समाज अपनी भाषा, कला, साहित्य, न्यायशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विविध सामाजिक शास्त्रों की और भौतिक, रसायन, वनस्पति आदि भौतिक शास्त्रों का और राज्यव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, आदि विभिन्न व्यवस्थाओं का निर्माण करता है। इस दृष्टि से साहित्य भी निर्माण करता है। किसी भी समाज का इतिहास उस समाज के साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। हम भारतीय हैं। हमारी जीवनदृष्टि अंग्रेजों से भिन्न है और श्रेष्ठ भी है। इसीलिये अपनी भूमिका से हमारे इतिहास के पुनर्लेखन का काम कुशलता से और प्रचंड गति से करने की आवश्यकता है। |
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| == भारतीय इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य == | | == भारतीय इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य == |
− | भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है । शिक्षा का उद्देष्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये ' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है । इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है । किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान को जन्म देना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना ही वास्तविक मानव जीवन का भारतीय आदर्श है। | + | भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये 'सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है । इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है । किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान को जन्म देना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना ही वास्तविक मानव जीवन का भारतीय आदर्श है। |
− | शिक्षा के उद्देष्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देष्य भिन्न नहीं हो सकता । इसलिये इतिहास की भारतीय व्याख्या कही गई -
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− | धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् ।
| + | शिक्षा के उद्देश्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य भिन्न नहीं हो सकता। |
− | पुरावृत्तं कथारूपं इतिहासं प्रचक्षते ॥ | + | |
− | भावार्थ : अर्थ और काम को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने के लिये जो प्रत्यक्ष में हो गये है ऐसे प्रसंगों के आधारपर रोचक रंजक अर्थात् कथा के रूप में की गई प्रस्तुति ही इतिहास है । इस का अर्थ है की इतिहास की प्रस्तुति समाज को चराचर के साथ एकात्मता की भावना और व्यवहार की दृष्टि से अग्रेसर करने के लिये ही करनी होगी । जिस इतिहास की प्रस्तुति से समाज के घटक के साथ एकात्मता की भावना को हानी होती हो, चराचर के साथ आत्मीयता को ठेस पहुंचती हो ऐसे इतिहास की प्रस्तुति वर्जित होगी । यह है अत्यंत संक्षेप में भारतीय इतिहास दृष्टि । | + | इसलिये इतिहास की भारतीय व्याख्या कही गई<blockquote>धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् ।</blockquote><blockquote>पुरावृत्तं कथारूपं इतिहासं प्रचक्षते ॥</blockquote><blockquote>भावार्थ : अर्थ और काम को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने के लिये जो प्रत्यक्ष में हो गये है ऐसे प्रसंगों के आधारपर रोचक रंजक अर्थात् कथा के रूप में की गई प्रस्तुति ही इतिहास है।</blockquote>इस का अर्थ है कि इतिहास की प्रस्तुति समाज को चराचर के साथ एकात्मता की भावना और व्यवहार की दृष्टि से अग्रेसर करने के लिये ही करनी होगी। जिस इतिहास की प्रस्तुति से समाज के घटक के साथ एकात्मता की भावना को हानि होती हो, चराचर के साथ आत्मीयता को ठेस पहुंचती हो ऐसे इतिहास की प्रस्तुति वर्जित होगी। यह है अत्यंत संक्षेप में भारतीय इतिहास दृष्टि । |
− | भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देष्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है। इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है। किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान की इच्छा करना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, चतुराई से लोगों के मन नहीं जीतना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना। | + | |
| + | भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है। इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है। किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान की इच्छा करना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, चतुराई से लोगों के मन नहीं जीतना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना। |
| इस दृष्टिपर आधारित इतिहास के चिंतन, मनन, विश्लेषण को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अब प्रस्तुत करने का हम प्रयास करेंगे। निम्न बिन्दुओं का विचार भी लाभदायी होगा। | | इस दृष्टिपर आधारित इतिहास के चिंतन, मनन, विश्लेषण को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अब प्रस्तुत करने का हम प्रयास करेंगे। निम्न बिन्दुओं का विचार भी लाभदायी होगा। |
| - भारतीय समाज अत्यंत प्राचीन समाज है। इसलिए इसके इतिहास का कालखंड भी बहुत दीर्घ है। | | - भारतीय समाज अत्यंत प्राचीन समाज है। इसलिए इसके इतिहास का कालखंड भी बहुत दीर्घ है। |