भारत में समाज चिंतन की प्रदीर्घ परम्परा है| चिरंतन या शाश्वत तत्त्वों के आधारपर युगानुकूल और देशानुकूल जीवन का विचार यह हर काल में हम करते आए हैं| लगभग १४००-१५०० वर्ष की हमारे समाज के अस्तित्व की लड़ाई के कारण यह चिंतन खंडित हो गया था| वर्तमान के सन्दर्भ में पुन: ऐसे समाज चिंतन की आवश्यकता निर्माण हुई हैं| | भारत में समाज चिंतन की प्रदीर्घ परम्परा है| चिरंतन या शाश्वत तत्त्वों के आधारपर युगानुकूल और देशानुकूल जीवन का विचार यह हर काल में हम करते आए हैं| लगभग १४००-१५०० वर्ष की हमारे समाज के अस्तित्व की लड़ाई के कारण यह चिंतन खंडित हो गया था| वर्तमान के सन्दर्भ में पुन: ऐसे समाज चिंतन की आवश्यकता निर्माण हुई हैं| |