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उपर्युक्त शास्त्रों में जीवन से संबंधित सभी विषय आ जाते हैं। भौतिक शास्त्र में वर्तमान की लगभग सभी विज्ञान शाखाओं का समावेश हो जाता है। मनुष्य भी एक प्राणी होनेसे प्राणिक शास्त्र सभी प्राणियों को जैसे लागू होता है वैसे ही मनुष्य को भी लागू होता है। लेकिन मनुष्य पञ्चविध है। इसमें केवल दो ही स्तर प्राणिक हैं। मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय ये स्तर मानव को प्राणिक आवेगों से ऊपर उठाते हैं। इसलिए मानवधर्मशास्त्र एक अलग विषय बनता है। इसके अंतर्गत आनेवाले सांस्कृतिक और समृद्धिशास्त्र भी केवल मानव को लागू होते हैं।  
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उपर्युक्त शास्त्रों में जीवन से संबंधित सभी विषय आ जाते हैं। भौतिक शास्त्र में वर्तमान की लगभग सभी विज्ञान शाखाओं का समावेश हो जाता है। मनुष्य भी एक प्राणी होनेसे प्राणिक शास्त्र सभी प्राणियों को जैसे लागू होता है वैसे ही मनुष्य को भी लागू होता है। लेकिन मनुष्य पञ्चविध है। इसमें केवल दो ही स्तर प्राणिक हैं। मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय ये स्तर मानव को प्राणिक आवेगों से ऊपर उठाते हैं। इसलिए मानवधर्मशास्त्र एक अलग विषय बनता है। इसके अंतर्गत आनेवाले सांस्कृतिक और समृद्धिशास्त्र भी केवल मानव को लागू होते हैं।
संस्कृतिक शास्त्रों में समाजशास्त्र, मानसशास्त्र, मानव संस्कार शास्त्र, कुटुंबशास्त्र, गृहशास्त्र, उपभोग शास्त्र आदि विभिन्न मानविकी के विषय आते हैं। संपत्ति/समृद्धि शास्त्र में कला कारीगरी समेत निर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, विपणन शास्त्र, वितरणशास्त्र आदि विषय आते हैं। उपभोग का संबंध भौतिकशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, प्राणीशास्त्र, सांस्कृतिकशास्त्र और समृद्धिशास्त्र इन सभी शास्त्रों से है। इसलिए मानव के उपभोग का विचार करते समय व्यापक धर्मशास्त्र का आधार आवश्यक है। भौतिकशास्त्र का उपयोग करते समय मानव जाति, वनस्पति जगत और प्राणी जगत को हानि न हो इस ढंग से करना होगा । ऐसा नहीं करने से समस्याओं का निर्माण और वृद्धि अवश्यंभावी है।
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सांस्कृतिक शास्त्रों में समाजशास्त्र, मानसशास्त्र, मानव संस्कार शास्त्र, कुटुंबशास्त्र, गृहशास्त्र, उपभोग शास्त्र आदि विभिन्न मानविकी के विषय आते हैं। संपत्ति/समृद्धि शास्त्र में कला कारीगरी समेत निर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, विपणन शास्त्र, वितरणशास्त्र आदि विषय आते हैं। उपभोग का संबंध भौतिकशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, प्राणीशास्त्र, सांस्कृतिकशास्त्र और समृद्धिशास्त्र इन सभी शास्त्रों से है। इसलिए मानव के उपभोग का विचार करते समय व्यापक धर्मशास्त्र का आधार आवश्यक है। भौतिकशास्त्र का उपयोग करते समय मानव जाति, वनस्पति जगत और प्राणी जगत को हानि न हो इस ढंग से करना होगा । ऐसा नहीं करने से समस्याओं का निर्माण और वृद्धि अवश्यंभावी है।
    
== उपसंहार ==
 
== उपसंहार ==
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