अर्थ है मेरा उद्धार मैं ही कर सकता हूँ कोई अन्य नहीं। जो चाहता है कि उसका उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए तप करना होता है। वर्तमान में स्त्री ही भुक्तभोगी होने के कारण स्त्री इसमें पहल करे यह उचित होगा। जो चाहता है कि मेरा उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए पहल और कृति करनी होती है। इस दृष्टि से भी स्त्री को अत्याचारों से छुटकारा पाना है तो पहल और कृति स्त्री करे यह तो स्वाभाविक ही कहा जाएगा। वीरमाता जीजाबाई के देश में ‘मातृवत् परदारेषु’ यानि ‘पराई स्त्री माता के समान होती है’ इसका संस्कार अपने बच्चों पर करना यह कठिन बात नहीं है। बस ! माताएं मन में ठान लें। | अर्थ है मेरा उद्धार मैं ही कर सकता हूँ कोई अन्य नहीं। जो चाहता है कि उसका उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए तप करना होता है। वर्तमान में स्त्री ही भुक्तभोगी होने के कारण स्त्री इसमें पहल करे यह उचित होगा। जो चाहता है कि मेरा उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए पहल और कृति करनी होती है। इस दृष्टि से भी स्त्री को अत्याचारों से छुटकारा पाना है तो पहल और कृति स्त्री करे यह तो स्वाभाविक ही कहा जाएगा। वीरमाता जीजाबाई के देश में ‘मातृवत् परदारेषु’ यानि ‘पराई स्त्री माता के समान होती है’ इसका संस्कार अपने बच्चों पर करना यह कठिन बात नहीं है। बस ! माताएं मन में ठान लें। |