गत कुछ वर्षों में स्त्रियोंपर अत्याचार की वारदातों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। आए दिन दूरदर्शन पर दी जानेवाली १०० खबरों में ५-७ तो स्त्रियों पर हुए अत्याचारों की होतीं ही हैं। यह तो जो घटनाएँ प्रकाश में आती हैं उनकी संख्या है। जो लज्जा के कारण, अन्यों के दबाव के कारण प्रकाश में नहीं आ पायीं उनकी संख्या अलग है। समाज की ५०% जनता इस प्रकार अत्याचार के साये में अपना जीवन बिताए, यह किसी भी समाज के लिए शोभादायक नहीं है।
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गत कुछ वर्षों में स्त्रियों पर अत्याचार की वारदातों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। आए दिन दूरदर्शन पर दी जानेवाली १०० खबरों में ५-७ तो स्त्रियों पर हुए अत्याचारों की होतीं ही हैं। यह तो जो घटनाएँ प्रकाश में आती हैं उनकी संख्या है। जो लज्जा के कारण, अन्यों के दबाव के कारण प्रकाश में नहीं आ पायीं उनकी संख्या अलग है। समाज की ५०% जनता इस प्रकार अत्याचार के साये में अपना जीवन बिताए, यह किसी भी समाज के लिए शोभादायक नहीं है।
भारतीय समाज में तो स्त्री का स्थान अन्य समाजों जैसा पुरुष से नीचे कभी नहीं माना गया।
भारतीय समाज में तो स्त्री का स्थान अन्य समाजों जैसा पुरुष से नीचे कभी नहीं माना गया।