स्वभाव तो मनुष्य जन्म से ही लेकर आता है । इसलिए इस वर्ण अनुशासन का एक हिस्सा गर्भधारणा से लेकर तो मनुष्य की घडन जबतक चलती है ऐसी यौवनावस्था तक होगा । कुटुंब की जिम्मेदारी तथा यौवनावस्था तक की शिक्षा में इन जन्मजात स्वभावों की पहचान कर, वर्गीकरण कर उस बच्चे के स्वभाव विशेष की उस के स्वभाव के दृढ़ीकरण और विकास की व्यवस्था निर्माण करनी होती है । यौवन काल से आगे वर्ण अनुशासन का दूसरा हिस्सा शुरू होता है । इसमें जन्मजात और शुद्धि और वृद्धिकृत स्वभाव के अनुसार हे सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान देना होता है । | स्वभाव तो मनुष्य जन्म से ही लेकर आता है । इसलिए इस वर्ण अनुशासन का एक हिस्सा गर्भधारणा से लेकर तो मनुष्य की घडन जबतक चलती है ऐसी यौवनावस्था तक होगा । कुटुंब की जिम्मेदारी तथा यौवनावस्था तक की शिक्षा में इन जन्मजात स्वभावों की पहचान कर, वर्गीकरण कर उस बच्चे के स्वभाव विशेष की उस के स्वभाव के दृढ़ीकरण और विकास की व्यवस्था निर्माण करनी होती है । यौवन काल से आगे वर्ण अनुशासन का दूसरा हिस्सा शुरू होता है । इसमें जन्मजात और शुद्धि और वृद्धिकृत स्वभाव के अनुसार हे सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान देना होता है । |