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स्वभाव तो मनुष्य जन्म से ही लेकर आता है । इसलिए इस वर्ण अनुशासन का एक हिस्सा गर्भधारणा से लेकर तो मनुष्य की घडन जबतक चलती है ऐसी यौवनावस्था तक होगा । कुटुंब की जिम्मेदारी तथा यौवनावस्था तक की शिक्षा में इन जन्मजात स्वभावों की पहचान कर, वर्गीकरण कर उस बच्चे के स्वभाव विशेष की उस के स्वभाव के दृढ़ीकरण और विकास की व्यवस्था निर्माण करनी होती है । यौवन काल से आगे वर्ण अनुशासन का दूसरा हिस्सा शुरू होता है । इसमें जन्मजात और शुद्धि और वृद्धिकृत स्वभाव के अनुसार हे सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान देना होता है ।
 
स्वभाव तो मनुष्य जन्म से ही लेकर आता है । इसलिए इस वर्ण अनुशासन का एक हिस्सा गर्भधारणा से लेकर तो मनुष्य की घडन जबतक चलती है ऐसी यौवनावस्था तक होगा । कुटुंब की जिम्मेदारी तथा यौवनावस्था तक की शिक्षा में इन जन्मजात स्वभावों की पहचान कर, वर्गीकरण कर उस बच्चे के स्वभाव विशेष की उस के स्वभाव के दृढ़ीकरण और विकास की व्यवस्था निर्माण करनी होती है । यौवन काल से आगे वर्ण अनुशासन का दूसरा हिस्सा शुरू होता है । इसमें जन्मजात और शुद्धि और वृद्धिकृत स्वभाव के अनुसार हे सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान देना होता है ।
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वर्ण और त्रिगुणों के प्रमाण का संबन्ध निम्न कोष्टक से समझा जा सकता है:<blockquote>ब्राह्मण वर्ण : सत्व गुण प्रधान।</blockquote><blockquote>क्षत्रिय वर्ण : रजोगुण प्रधान सत्वगुण की ओर झुकाव वाला ।</blockquote><blockquote>वैश्य वर्ण : रजोगुण प्रधान तमोगुण की ओर झुकनेवाला।</blockquote><blockquote>शूद्र वर्ण : तमोगुण प्रधान ।</blockquote>वर्ण प्रणाली के इस हिस्से के कारण समाज में सहजता और स्वतंत्रता आती है । संस्कृति का विकास इससे ही होता है ।
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वर्ण और त्रिगुणों के प्रमाण का संबन्ध निम्न से समझा जा सकता है:
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!वर्ण
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!गुण
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!
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|ब्राह्मण वर्ण
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|सत्व गुण प्रधान
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|सत्वगुण की ओर झुकाव वाला ।
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|क्षत्रिय वर्ण
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|रजोगुण प्रधान
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|रजोगुण की ओर झुकनेवाला।
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|-
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|वैश्य वर्ण
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|तमोगुण
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|तमोगुण की ओर झुकनेवाला।
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|शूद्र वर्ण
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|तमोगुण प्रधान
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|}
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वर्ण प्रणाली के इस हिस्से के कारण समाज में सहजता और स्वतंत्रता आती है । संस्कृति का विकास इससे ही होता है ।
    
=== वर्ण प्रणाली २ : कौशल समायोजन ===
 
=== वर्ण प्रणाली २ : कौशल समायोजन ===
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