Changes

Jump to navigation Jump to search
टेम्पलेट जोड़ा
Line 60: Line 60:  
   ४.४ अपने व्यवहार में संयम, सदाचार, सादगी, सत्यनिष्ठा, स्वछता, स्वावलंबन, नम्रता, विवेक आदि होना आवश्यक है| वैसे तो यह गुण परिवार के सभी बड़े लोगों में होंगे ही यह आवश्यक नहीं है| लेकिन जब बच्चे यह देखते हैं की इन गुणों का घर के बड़े लोग सम्मान करते हैं तब वे उन गुणों को ग्रहण करते हैं|  
 
   ४.४ अपने व्यवहार में संयम, सदाचार, सादगी, सत्यनिष्ठा, स्वछता, स्वावलंबन, नम्रता, विवेक आदि होना आवश्यक है| वैसे तो यह गुण परिवार के सभी बड़े लोगों में होंगे ही यह आवश्यक नहीं है| लेकिन जब बच्चे यह देखते हैं की इन गुणों का घर के बड़े लोग सम्मान करते हैं तब वे उन गुणों को ग्रहण करते हैं|  
 
५. बच्चे की आयु ५ वर्ष से अधिक होनेपर  
 
५. बच्चे की आयु ५ वर्ष से अधिक होनेपर  
इस आयु से माता द्वितीयो और पिता प्रथमो गुरु: ऐसा भूमिकाओं में परिवर्तन होता है| पिता की जिम्मेदारी प्राथमिक और माता की भूमिका सहायक की हो जाती है| अब बच्चे के स्वभाव को उपयुक्त आकार देने के लिए ताडन की आवश्यकता भी होती है| ताडन का अर्थ मारना पीटना नहीं है| आवश्यकता के अनुसार कठोर व्यवहार से बच्चे को अच्छी आदतें लगाने से है| यह काम कोमल मन की माता, पिता जितना अच्छा नहीं कर सकती| लेकिन पिता अपने व्यवसायिक भागदौड़ में बच्चे को समय नहीं दे सकता यह ध्यान में रखकर ही गुरुकुलों की रचना की गई थी| बच्चा गुरु का मानसपुत्र ही माना गया है| किन्तु गुरुकुलों के अभाव में यह जिम्मेदारी पिता की ही होती है| संयुक्त परिवारों में घर के ज्येष्ठ पुरुष इस भूमिका का निर्वहन करते थे| अब तो स्त्रियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता (स्पेस) की आस और दुराग्रह के कारण घर में अन्य किसी का होना असहनीय हो जाता है| विवाह बढ़ी आयु में होने के कारण भी अन्यों के साथ समायोजन कठिन हो जाता है| किन्तु स्त्री की समस्याओं को सुलझाना हो तो कुछ मात्रा में अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को तिलांजलि देकर भी बच्चोंपर संस्कार करने हेतु मार्गदर्शन करने के लिये घर में ज्येष्ठ लोग होंगे ऐसे संयुक्त परिवारों में विवाह करने की प्रथा को फिर से स्थापित करना होगा|  
+
इस आयु से माता द्वितीयो और पिता प्रथमो गुरु: ऐसा भूमिकाओं में परिवर्तन होता है| पिता की जिम्मेदारी प्राथमिक और माता की भूमिका सहायक की हो जाती है| अब बच्चे के स्वभाव को उपयुक्त आकार देने के लिए ताडन की आवश्यकता भी होती है| ताडन का अर्थ मारना पीटना नहीं है| आवश्यकता के अनुसार कठोर व्यवहार से बच्चे को अच्छी आदतें लगाने से है| यह काम कोमल मन की माता, पिता जितना अच्छा नहीं कर सकती| लेकिन पिता अपने व्यवसायिक भागदौड़ में बच्चे को समय नहीं दे सकता यह ध्यान में रखकर ही गुरुकुलों की रचना की गई थी| बच्चा गुरु का मानसपुत्र ही माना गया है| किन्तु गुरुकुलों के अभाव में यह जिम्मेदारी पिता की ही होती है| संयुक्त परिवारों में घर के ज्येष्ठ पुरुष इस भूमिका का निर्वहन करते थे| अब तो स्त्रियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता (स्पेस) की आस और दुराग्रह के कारण घर में अन्य किसी का होना असहनीय हो जाता है| विवाह बढ़ी आयु में होने के कारण भी अन्यों के साथ समायोजन कठिन हो जाता है| किन्तु स्त्री की समस्याओं को सुलझाना हो तो कुछ मात्रा में अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को तिलांजलि देकर भी बच्चोंपर संस्कार करने हेतु मार्गदर्शन करने के लिये घर में ज्येष्ठ लोग होंगे ऐसे संयुक्त परिवारों में विवाह करने की प्रथा को फिर से स्थापित करना होगा|  
 
उपसंहार  
 
उपसंहार  
 
उपर्युक्त सभी बिंदु श्रेष्ठ मानव निर्माण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं| महत्त्व क्रम की दृष्टि से श्रेष्ठ मानव निर्माण की दृष्टि से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी घटकोंद्वारा प्रभावित होती है| उसी प्रकार से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी बिन्दुओं को भी प्रभावित करती है| इसलिए पहले सुधार कहाँ से शुरू हो यह समस्या खड़ी हो जाती है| पहले मुर्गी या पहले अंडा जैसी पहेली से भी अधिक पेंचिली यह पहेली बन जाती है| इस पहेली का उत्तर पहले अंडा यह है| मुर्गी को पकड़ना अति कठिन काम है| अंडे को पकड़ना सरल है| इसलिए बुद्धिमान लोग अंडे से शुरू करते हैं| स्त्रियों की दृष्टि से जो काम वे स्वत: कर सकतीं हैं वह उन्हें करना शुरू कर देना चाहिए| शासन, पुलिस, अत्याचारी, बलात्कारी आदि अन्यों की ओर उंगली बताना सरल है| योग्य भी है| किन्तु इसकी अपेक्षा तो अपना कर्तव्य निभाने के बाद ही की जा सकती है|  
 
उपर्युक्त सभी बिंदु श्रेष्ठ मानव निर्माण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं| महत्त्व क्रम की दृष्टि से श्रेष्ठ मानव निर्माण की दृष्टि से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी घटकोंद्वारा प्रभावित होती है| उसी प्रकार से माता की जिम्मेदारी अन्य सभी बिन्दुओं को भी प्रभावित करती है| इसलिए पहले सुधार कहाँ से शुरू हो यह समस्या खड़ी हो जाती है| पहले मुर्गी या पहले अंडा जैसी पहेली से भी अधिक पेंचिली यह पहेली बन जाती है| इस पहेली का उत्तर पहले अंडा यह है| मुर्गी को पकड़ना अति कठिन काम है| अंडे को पकड़ना सरल है| इसलिए बुद्धिमान लोग अंडे से शुरू करते हैं| स्त्रियों की दृष्टि से जो काम वे स्वत: कर सकतीं हैं वह उन्हें करना शुरू कर देना चाहिए| शासन, पुलिस, अत्याचारी, बलात्कारी आदि अन्यों की ओर उंगली बताना सरल है| योग्य भी है| किन्तु इसकी अपेक्षा तो अपना कर्तव्य निभाने के बाद ही की जा सकती है|  
 
विद्वानों का कहना है – उद्धरेदात्मनात्मानम्| अर्थ है मेरा उद्धार मैं ही कर सकता हूँ कोई अन्य नहीं| जो चाहता है की उसका उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए तप करना होता है| वर्त्तमान में स्त्री ही भुक्तभोगी होने के कारण स्त्री इसमें पहल करे यह उचित होगा| जो चाहता है की मेरा उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए पहल और कृति करनी होती है| इस दृष्टि से भी स्त्री को अत्याचारों से छुटकारा पाना है तो पहल और कृति स्त्री करे यह तो स्वाभाविक ही कहा जाएगा| वीरमाता जिजाबाई के देश में ‘मातृवत् परदारेषु’ यानि ‘पराई स्त्री माता के समान होती है’ इसका संस्कार अपने बच्चोंपर करना यह कठिन बात नहीं है| बस ! माताएं मन में ठान लें|
 
विद्वानों का कहना है – उद्धरेदात्मनात्मानम्| अर्थ है मेरा उद्धार मैं ही कर सकता हूँ कोई अन्य नहीं| जो चाहता है की उसका उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए तप करना होता है| वर्त्तमान में स्त्री ही भुक्तभोगी होने के कारण स्त्री इसमें पहल करे यह उचित होगा| जो चाहता है की मेरा उद्धार हो, उसे ही उद्धार के लिए पहल और कृति करनी होती है| इस दृष्टि से भी स्त्री को अत्याचारों से छुटकारा पाना है तो पहल और कृति स्त्री करे यह तो स्वाभाविक ही कहा जाएगा| वीरमाता जिजाबाई के देश में ‘मातृवत् परदारेषु’ यानि ‘पराई स्त्री माता के समान होती है’ इसका संस्कार अपने बच्चोंपर करना यह कठिन बात नहीं है| बस ! माताएं मन में ठान लें|
   −
वाचनीय साहित्य
+
==References==
 
अधिजनन शास्त्र, पुनरुत्थान ट्रस्ट प्रकाशन
 
अधिजनन शास्त्र, पुनरुत्थान ट्रस्ट प्रकाशन
 
मनुस्मृति   
 
मनुस्मृति   
 
चाणक्य सूत्र
 
चाणक्य सूत्र
 +
 +
<references />
 +
    
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
 
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
890

edits

Navigation menu