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माता प्रथमो गुरु: पिता द्वितीयो :  
 
माता प्रथमो गुरु: पिता द्वितीयो :  
 
प्रस्तावना    
 
प्रस्तावना    
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९. स्वामी विवेकानंद कहते थे की उनकी माता और पिता ने अच्छे बच्चे की प्राप्ति के लिए बहुत तप किया था| उनके काल में कई घरों में माता पिता श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए ऐसा तप करते थे| अब हालत यह है की सामान्यत: बच्चे अपघात से पैदा हो रहे हैं| माता पिता का परिवार नियोजन चल रहा होता है| बच्चे की कोई चाहत होती नहीं है| लेकिन प्रकृति काम करती रहती है| किसी असावधानी के क्षण के कारण गर्भ ठहर जाता है| किसी उजड्ड शायर ने आजकल पैदा होनेवाले बच्चों की भावना के विषय में ठीक ही कहा है की ‘मैं अपने माता पिता के खेल का नतीजा हूँ’| ऐसे माता पिताओं से और उनके द्वारा अपघात से पैदा हुए बच्चों से संस्कारों की अपेक्षा करना व्यर्थ है|  
 
९. स्वामी विवेकानंद कहते थे की उनकी माता और पिता ने अच्छे बच्चे की प्राप्ति के लिए बहुत तप किया था| उनके काल में कई घरों में माता पिता श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए ऐसा तप करते थे| अब हालत यह है की सामान्यत: बच्चे अपघात से पैदा हो रहे हैं| माता पिता का परिवार नियोजन चल रहा होता है| बच्चे की कोई चाहत होती नहीं है| लेकिन प्रकृति काम करती रहती है| किसी असावधानी के क्षण के कारण गर्भ ठहर जाता है| किसी उजड्ड शायर ने आजकल पैदा होनेवाले बच्चों की भावना के विषय में ठीक ही कहा है की ‘मैं अपने माता पिता के खेल का नतीजा हूँ’| ऐसे माता पिताओं से और उनके द्वारा अपघात से पैदा हुए बच्चों से संस्कारों की अपेक्षा करना व्यर्थ है|  
 
१०. सामाजिक दृष्टि से सम्मान की बात आती है तब भी माता का क्रम सबसे पहले आता है| तैत्तिरीय उपनिषद् में जो समावर्तन संस्कार के समय दिया जानेवाला उपदेश और आदेश है उसमें कहा गया है – मातृदेवो भव| पितृदेवो भव| आचार्यदेवो भव| माता का स्थान पिता से और गुरु से भी ऊपर का माना गया है|   
 
१०. सामाजिक दृष्टि से सम्मान की बात आती है तब भी माता का क्रम सबसे पहले आता है| तैत्तिरीय उपनिषद् में जो समावर्तन संस्कार के समय दिया जानेवाला उपदेश और आदेश है उसमें कहा गया है – मातृदेवो भव| पितृदेवो भव| आचार्यदेवो भव| माता का स्थान पिता से और गुरु से भी ऊपर का माना गया है|   
११. प्राचीन भारतीय आख्यायिका के अनुसार मूलत: विवाह का चलन ही स्त्री की सुरक्षा के लिए शुरू हुआ था| एक तेजस्वी बालक था| नाम था श्वेतकेतु| उस की माता का विरोध होते हुए भी कुछ बलवान पुरुष उसकी माता का विनयभंग करने लगे| पुत्र से यह देखा नहीं गया| लेकिन वह छोटा था| दुर्बल था| इस स्थिति को बदलने का     ३/८  
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११. प्राचीन भारतीय आख्यायिका के अनुसार मूलत: विवाह का चलन ही स्त्री की सुरक्षा के लिए शुरू हुआ था| एक तेजस्वी बालक था| नाम था श्वेतकेतु| उस की माता का विरोध होते हुए भी कुछ बलवान पुरुष उसकी माता का विनयभंग करने लगे| पुत्र से यह देखा नहीं गया| लेकिन वह छोटा था| दुर्बल था| इस स्थिति को बदलने का     ३/८
 
   उसने प्रण किया| उसने सार्वत्रिक जाग्रती कर विवाह की प्रथा को जन्म दिया| स्त्रियों को यानि समाज के ५० % घटकों को इससे सुरक्षा प्राप्त होने के कारण, सुविधा होने के कारण विवाह संस्था सर्वमान्य हो गई| अभीतक इससे श्रेष्ठ अन्य व्यवस्था कोई निर्माण नहीं कर पाया है|  
 
   उसने प्रण किया| उसने सार्वत्रिक जाग्रती कर विवाह की प्रथा को जन्म दिया| स्त्रियों को यानि समाज के ५० % घटकों को इससे सुरक्षा प्राप्त होने के कारण, सुविधा होने के कारण विवाह संस्था सर्वमान्य हो गई| अभीतक इससे श्रेष्ठ अन्य व्यवस्था कोई निर्माण नहीं कर पाया है|  
 
१२. समाज में धर्म का अनुपालन करनेवाले लोगों की संख्या ९०-९५ % तक लाने का काम शिक्षा का है| बचे हुए  ५-१० % लोगों के लिए ही शासन व्यवस्था होती है| जबतक शिक्षा अक्षम होती है अर्थात् शिक्षा समाज में धर्म का पालन करने वाले लोगों की संख्या को ९०-९५ % तक नहीं ले जाती, शासन ठीक से काम नहीं कर सकता|   
 
१२. समाज में धर्म का अनुपालन करनेवाले लोगों की संख्या ९०-९५ % तक लाने का काम शिक्षा का है| बचे हुए  ५-१० % लोगों के लिए ही शासन व्यवस्था होती है| जबतक शिक्षा अक्षम होती है अर्थात् शिक्षा समाज में धर्म का पालन करने वाले लोगों की संख्या को ९०-९५ % तक नहीं ले जाती, शासन ठीक से काम नहीं कर सकता|   
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