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| | ===विभाजन काल<ref>शोधकर्ता- रवि दत्त, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/134116 वेदों और धर्मशास्त्रों के विशेष सन्दर्भ में दायभाग एक समीक्षात्मक अध्ययन], सन १९९९, शोध केन्द्र- पंजाब यूनिवर्सिटी (पृ० २१)।</ref>=== | | ===विभाजन काल<ref>शोधकर्ता- रवि दत्त, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/134116 वेदों और धर्मशास्त्रों के विशेष सन्दर्भ में दायभाग एक समीक्षात्मक अध्ययन], सन १९९९, शोध केन्द्र- पंजाब यूनिवर्सिटी (पृ० २१)।</ref>=== |
| − | शंख स्मृति का एक उद्धरण व्यवहार प्रकाश में आया है, जिसके अनुसार पिता के जीवित रहते यदि वह आचरणहीन एवं असाध्य रूप से रूग्ण है तो सम्पत्ति का विभाजन हो सकता है। इस तरह सम्पत्ति के विभाजन की चार स्थितियाँ दिखाई देती हैं :- | + | शंख स्मृति का एक उद्धरण व्यवहार प्रकाश में आया है, जिसके अनुसार पिता के जीवित रहते यदि वह आचरणहीन एवं असाध्य रूप से रूग्ण है तो सम्पत्ति का विभाजन हो सकता है। इस तरह सम्पत्ति के विभाजन की चार स्थितियाँ दिखाई देती हैं - |
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| | # पिता के जीवनकाल में उसकी इच्छा से विभाजन। | | # पिता के जीवनकाल में उसकी इच्छा से विभाजन। |
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| | मिताक्षरा टीका के अनुसार संयुक्त सम्पत्ति के दायादों का क्रम इस प्रकार है- पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र- पत्नी-पुत्री-दौहित्र-माता-पिता-भाई-भतीजे-भतीजे का पुत्र-गोत्रज-समानोदक-बन्धु-गुरु-शिष्य-सहपाठी एवं राजा। | | मिताक्षरा टीका के अनुसार संयुक्त सम्पत्ति के दायादों का क्रम इस प्रकार है- पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र- पत्नी-पुत्री-दौहित्र-माता-पिता-भाई-भतीजे-भतीजे का पुत्र-गोत्रज-समानोदक-बन्धु-गुरु-शिष्य-सहपाठी एवं राजा। |
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| − | '''उत्तराधिकारी क्रम''' | + | '''उत्तराधिकार क्रम''' |
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| − | मिताक्षरा और दायभाग के अनुसार जिस क्रम से उत्तराधिकारी होते हैं, वह इस प्रकार हैं - | + | मिताक्षरा विधि के अनुसार, शाखा की चारों उपशाखाओं ने उत्तराधिकार के सिद्धांत पर एकमत रखते हुए भी उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में कुछ मतभेद प्रस्तुत किए हैं। पिता के मृत्यु के पश्चात सम्पत्ति का उत्तराधिकार निम्नलिखित क्रम में चलता है - |
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| − | पत्नी दुहितरश्यौव पितरौ भ्रातरस्तथा। तत्सुता गोत्रजा बंधुः शिष्यः सब्रह्मचारिणः॥ (याज्ञवल्क्य स्मृति)
| + | '''1. सपिण्ड''' |
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| − | मिताक्षरा टीका में माता का स्वत्व पहले और दायभाग ग्रन्थ में पिता का स्वत्व पहले स्वीकार किया गया है। | + | * सर्वप्रथम गोत्रज (6 पीढ़ी तक के पूर्वज, वंशज और पूर्वजों के वंशज) |
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| | + | * उसके पश्चात समानोदक (14 पीढ़ी तक) |
| | + | * उसके बाद बन्धु |
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| | + | '''2. गुरु''' |
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| | + | '''3. शिष्य''' |
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| | + | '''4. गुरुभाई (सहपाठी)''' |
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| | + | '''5. इनमें कोई भी न हो तो राजा''' |
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| | + | मिताक्षरा और दायभाग के अनुसार जिस क्रम से उत्तराधिकारी होते हैं, वह इस प्रकार हैं - <blockquote>पत्नी दुहितरश्चैव पितरौ भ्रातरस्तथा। तत्सुता गोत्रजा बंधुः शिष्यः सब्रह्मचारिणः॥ (याज्ञवल्क्य स्मृति)</blockquote>मिताक्षरा टीका में माता का स्वत्व पहले और दायभाग ग्रन्थ में पिता का स्वत्व पहले स्वीकार किया गया है। |
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| | ==उत्तराधिकार संबंधि प्रमुख ग्रंथ== | | ==उत्तराधिकार संबंधि प्रमुख ग्रंथ== |