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| | ===विभाजन काल<ref>शोधकर्ता- रवि दत्त, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/134116 वेदों और धर्मशास्त्रों के विशेष सन्दर्भ में दायभाग एक समीक्षात्मक अध्ययन], सन १९९९, शोध केन्द्र- पंजाब यूनिवर्सिटी (पृ० २१)।</ref>=== | | ===विभाजन काल<ref>शोधकर्ता- रवि दत्त, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/134116 वेदों और धर्मशास्त्रों के विशेष सन्दर्भ में दायभाग एक समीक्षात्मक अध्ययन], सन १९९९, शोध केन्द्र- पंजाब यूनिवर्सिटी (पृ० २१)।</ref>=== |
| | + | शंख स्मृति का एक उद्धरण व्यवहार प्रकाश में आया है, जिसके अनुसार पिता के जीवित रहते यदि वह आचरणहीन एवं असाध्य रूप से रूग्ण है तो सम्पत्ति का विभाजन हो सकता है। इस तरह सम्पत्ति के विभाजन की चार स्थितियाँ दिखाई देती हैं :- |
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| | + | # पिता के जीवनकाल में उसकी इच्छा से विभाजन। |
| | + | #पिता की इच्छा के विपरीत यदि वह सन्तानोत्पत्ति के योग्य न हो। |
| | + | #वृद्ध एवं आचरणहीन पिता के होने पर |
| | + | #पिता की मृत्यु के उपरान्त |
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| | + | इस सम्बन्ध में काणे महोदय ने निष्कर्ष निकाला है कि जब याज्ञवल्क्य एवं अन्य स्मृतिकारों ने पैतृक सम्पत्ति पर पुत्र का जन्म से ही अधिकार मान लिया तो कोई भी व्यक्ति जो जन्म से स्वत्वाधिकार रखता है विभाजन की माँग कर सकता है और अपने भाग को किसी समय अलग करा सकता है। सामान्यतः वयस्क होने पर ही सम्पत्ति का विभाजन होता था।<ref name=":1">शोधकर्ता- रवि प्रताप सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/299584/10/10-chapter-7.pdf याज्ञवल्क्य स्मृति में न्याय-व्यवस्था], सन २००४,शोधकेन्द्र- इतिहास विभाग - महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (पृ० ९७)।</ref> संपत्ति मुख्यतया दो प्रकार की होती थी - |
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| | + | # चल सम्पत्ति - द्रव्य, पशु, अन्न आदि। |
| | + | # अचल सम्पत्ति - भूमि, मकान आदि |
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| | + | मिताक्षरा के अनुसार कोई भी व्यक्ति अन्य सहभागियों की अनुमति के बिना अविभाजित भाग का न तो दान कर सकता है, न विक्रय कर सकता है और न ही उसे बन्धक रख सकता है। याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार यदि मृत भाइयों की पत्नियाँ गर्भवती हों, तो पुत्रोत्पत्ति तक विभाजन स्थगित रखना चाहिए। पुत्र के जन्म के बाद उसे उसके पिता की सस्वर्जित सम्पत्ति में अधिकार प्राप्त हो जाता है।<ref name=":1" /> |
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| | ===विभाज्य संपत्ति=== | | ===विभाज्य संपत्ति=== |
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| | मिताक्षरा टीका के अनुसार संयुक्त सम्पत्ति के दायादों का क्रम इस प्रकार है- पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र- पत्नी-पुत्री-दौहित्र-माता-पिता-भाई-भतीजे-भतीजे का पुत्र-गोत्रज-समानोदक-बन्धु-गुरु-शिष्य-सहपाठी एवं राजा। | | मिताक्षरा टीका के अनुसार संयुक्त सम्पत्ति के दायादों का क्रम इस प्रकार है- पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र- पत्नी-पुत्री-दौहित्र-माता-पिता-भाई-भतीजे-भतीजे का पुत्र-गोत्रज-समानोदक-बन्धु-गुरु-शिष्य-सहपाठी एवं राजा। |
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| − | ====उत्तराधिकारी क्रम====
| + | '''उत्तराधिकारी क्रम''' |
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| | मिताक्षरा और दायभाग के अनुसार जिस क्रम से उत्तराधिकारी होते हैं, वह इस प्रकार हैं - | | मिताक्षरा और दायभाग के अनुसार जिस क्रम से उत्तराधिकारी होते हैं, वह इस प्रकार हैं - |
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