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मंदिर का परिमाण
 
!मंदिर की ऊँचाई
 
!मंदिर की ऊँचाई
 
!जगती की ऊँचाई
 
!जगती की ऊँचाई
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#मूल या आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
 
#मूल या आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
# मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग।
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#मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग।
 
#जंघा - दीवारें (विशेष रूप से गर्भगृह आदि की दीवारें)।
 
#जंघा - दीवारें (विशेष रूप से गर्भगृह आदि की दीवारें)।
 
#कपोत- कार्निस।
 
#कपोत- कार्निस।
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#कलश - शिखर का शीर्षभाग।
 
#कलश - शिखर का शीर्षभाग।
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परंतु ये आठ भी पूर्ण या पर्याप्त नहीं हैं. अधिष्ठान का ऊपरी प्लेटफार्म जगती कहलाता है। मूल मंदिर के शिखर के उपरांत एक अंतराल देकर स्तूपवत् मंडप भी बनते हैं। ये भी क्रमशः घटती ऊँचाई व विस्तार के साथ महामंडप, मंडप, अर्धमंडप कहलाते हैं। द्वार व स्तंभ बहुधा सर्पाकृति आरोह अवरोह लिए बनने लगे, तोरण द्वार के रूप में. शिखर में जुड़ने वाले उपशिखर उरुशृंग कहे जाते हैं। शिखर को विमान भी कहा जाता है। मंदिर के विभिन्न स्थानों पर गवाक्ष भी दिख सकते हैं।
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परंतु ये आठ भी पूर्ण या पर्याप्त नहीं हैं. अधिष्ठान का ऊपरी प्लेटफार्म जगती कहलाता है। मूल मंदिर के शिखर के उपरांत एक अंतराल देकर स्तूपवत् मंडप भी बनते हैं। ये भी क्रमशः घटती ऊँचाई व विस्तार के साथ महामंडप, मंडप, अर्धमंडप कहलाते हैं। द्वार व स्तंभ बहुधा सर्पाकृति आरोह अवरोह लिए बनने लगे, तोरण द्वार के रूप में. शिखर में जुड़ने वाले उपशिखर उरुशृंग कहे जाते हैं। शिखर को विमान भी कहा जाता है। मंदिर के विभिन्न स्थानों पर गवाक्ष भी दिख सकते हैं।<ref>[https://devasthan.rajasthan.gov.in/History_of_Temples.asp मंदिरों का इतिहास], देवस्थान विभाग-राजस्थान।</ref>
    
'''द्राविड़ शैली॥ Dravidian Style'''
 
'''द्राविड़ शैली॥ Dravidian Style'''
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