तीर्थायात्रा मुख्यतः नदियों के किनारों एवं संगम के साथ-साथ थी। तीर्थ, मन व विचारों की पवित्रता से जुडा था एवं पापों के प्रायश्चित एवं निर्वाण के लिये किया जाता था। धर्मशास्त्र के अनुसार प्रायश्चित्त के अनुष्ठान की अनेक प्रयोग विधियाँ हैं, जैसे उपवास, दोषख्यापन, प्राणायाम, जप, तप, होम एवं तीर्थयात्रा आदि। तीर्थगमन को प्रायश्चित्त का मुख्य अंग माना गया है। स्कन्दपुराणमें कहा गया है - <blockquote> | तीर्थायात्रा मुख्यतः नदियों के किनारों एवं संगम के साथ-साथ थी। तीर्थ, मन व विचारों की पवित्रता से जुडा था एवं पापों के प्रायश्चित एवं निर्वाण के लिये किया जाता था। धर्मशास्त्र के अनुसार प्रायश्चित्त के अनुष्ठान की अनेक प्रयोग विधियाँ हैं, जैसे उपवास, दोषख्यापन, प्राणायाम, जप, तप, होम एवं तीर्थयात्रा आदि। तीर्थगमन को प्रायश्चित्त का मुख्य अंग माना गया है। स्कन्दपुराणमें कहा गया है - <blockquote> |