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| | == स्नान विधि॥ Snana Vidhi == | | == स्नान विधि॥ Snana Vidhi == |
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| − | == स्नान के प्रकार॥ Types of Bathing == | + | == स्नान का वर्गीकरण॥ Types of Bathing == |
| | स्नान इस कर्म के कई प्रकार होते हैं। यह तो '''मुख्य'''(जल के साथ) या '''गौण''' ये दो प्रकार हैं, और पुनः ये दोनों प्रकार कई भागों में विभक्त हुये हैं जैसे- नित्य, नैमित्तिक, काम्य, क्रियांग, मलापकर्षण(अभ्यंग स्नान), एवं क्रिया स्नान ये नैमित्तिक स्नान के छः प्रकार किये गये हैं। | | स्नान इस कर्म के कई प्रकार होते हैं। यह तो '''मुख्य'''(जल के साथ) या '''गौण''' ये दो प्रकार हैं, और पुनः ये दोनों प्रकार कई भागों में विभक्त हुये हैं जैसे- नित्य, नैमित्तिक, काम्य, क्रियांग, मलापकर्षण(अभ्यंग स्नान), एवं क्रिया स्नान ये नैमित्तिक स्नान के छः प्रकार किये गये हैं। |
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| | # '''मानस स्नान-''' भगवान विष्णु आदि देवताओं का स्मरण मात्र मानस स्नान कहलाता है। | | # '''मानस स्नान-''' भगवान विष्णु आदि देवताओं का स्मरण मात्र मानस स्नान कहलाता है। |
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| − | === आश्रम-व्यवस्था एवं स्नान === | + | === आश्रम-व्यवस्था एवं स्नान॥ Ashrama Vyavastha Evam Snana === |
| | मनु स्मृति में आश्रम व्यवस्था के अनुसार स्नान का भी उल्लेख प्राप्त होता है- | | मनु स्मृति में आश्रम व्यवस्था के अनुसार स्नान का भी उल्लेख प्राप्त होता है- |
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| | किसी भी आश्रम में स्थित रोगी के लिये स्नान के गौण आदि स्नान विधान का पालन करना चाहिये। | | किसी भी आश्रम में स्थित रोगी के लिये स्नान के गौण आदि स्नान विधान का पालन करना चाहिये। |
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| − | == स्नान की आवश्यकता॥ == | + | == स्नान की आवश्यकता॥ Snana ki Avashyakata == |
| | स्नान ताजे जलसे ही करे, गरम जलसे नहीं। यदि गरम जलसे स्नानकी आदत हो तो भी श्राद्धके दिन, अपने जन्म-दिन, संक्रान्ति, ग्रहण आदि पर्वों, किसी अपवित्रसे स्पर्श होनेपर तथा मृतकके सम्बन्धमें किया जानेवाला स्नान गरम जलसे न करे। चिकित्सा विज्ञान भी गरम जलसे स्नानको त्वचा एवं रक्तके लिये उचित नहीं मानता। तेलमालिश स्नानसे पूर्व ही करनी चाहिये; स्नानोपरान्त नहीं। स्नान करनेसे पूर्व हाथ-पैर-मुँह धोना चाहिये तथा इसके पश्चात् कटि (कमर) धोना चाहिये। बिना वस्त्रके (निर्वस्त्र-अवस्थामें) स्नान न करें। स्नान करते समय पालथी लगाकर बैठे या खड़े होकर स्नान करे, प्रौष्ठपाद (पाँव मोड़कर उकडू) बैठकर नहीं-<blockquote>स्नानं दानं जपं होमं भोजनं देवतार्चनं । प्रौढ़पादो न कुर्वीत स्वाध्यायं पितृतर्पणम्॥</blockquote>स्नान घबड़ाहट या जल्दबाजीमें नहीं करना चाहिये। भोजनके बाद और रुग्णावस्था तथा अधिक रातमें स्नान नहीं करना चाहिये।<blockquote>न स्नानमाचरेत् भुक्त्वा नातुरो न महानिशि॥</blockquote>यह बात आयुर्वेद एवं वर्तमान चिकित्सासे सम्मत है। स्नानके पश्चात् शरीरको तुरंत नहीं पोंछना चाहिये, कुछ क्षण रुककर पोंछे; क्योंकि इस समय शरीर (एवं बालों)-से गिरा हुआ जल अतृप्त आत्माओंको तृप्ति देनेवाला होता है। स्नानोपरान्त शरीरको पोंछने एवं पहननेके लिये शुद्ध एवं धुले हुए वस्त्रका ही प्रयोग करें। शरीरपर जो वस्त्र पहना हुआ है, उसीको निचोड़कर फिर उसीसे शरीरको पोंछनेका शास्त्रोंमें पूर्णतः निषेध है। पुन: जलसे धोकर शरीर पोंछ सकते हैं। तीर्थ-स्नानके बारेमें विशेष-किसी भी (गंगायमुना आदि नदी हो अथवा कुण्ड-सरोवर-आदि जलाशय) तीर्थपर स्नान अथवा दूसरी कोई भी क्रिया तीर्थकी भावनासे ही करें। अपने मनोरंजन, खेलकूद या पर्यटनकी भावनासे नहीं। वैसे जल-क्रीडा आदि घरपर भी नहीं करनी चाहिये। इससे जल-देवताका अपमान होता है। | | स्नान ताजे जलसे ही करे, गरम जलसे नहीं। यदि गरम जलसे स्नानकी आदत हो तो भी श्राद्धके दिन, अपने जन्म-दिन, संक्रान्ति, ग्रहण आदि पर्वों, किसी अपवित्रसे स्पर्श होनेपर तथा मृतकके सम्बन्धमें किया जानेवाला स्नान गरम जलसे न करे। चिकित्सा विज्ञान भी गरम जलसे स्नानको त्वचा एवं रक्तके लिये उचित नहीं मानता। तेलमालिश स्नानसे पूर्व ही करनी चाहिये; स्नानोपरान्त नहीं। स्नान करनेसे पूर्व हाथ-पैर-मुँह धोना चाहिये तथा इसके पश्चात् कटि (कमर) धोना चाहिये। बिना वस्त्रके (निर्वस्त्र-अवस्थामें) स्नान न करें। स्नान करते समय पालथी लगाकर बैठे या खड़े होकर स्नान करे, प्रौष्ठपाद (पाँव मोड़कर उकडू) बैठकर नहीं-<blockquote>स्नानं दानं जपं होमं भोजनं देवतार्चनं । प्रौढ़पादो न कुर्वीत स्वाध्यायं पितृतर्पणम्॥</blockquote>स्नान घबड़ाहट या जल्दबाजीमें नहीं करना चाहिये। भोजनके बाद और रुग्णावस्था तथा अधिक रातमें स्नान नहीं करना चाहिये।<blockquote>न स्नानमाचरेत् भुक्त्वा नातुरो न महानिशि॥</blockquote>यह बात आयुर्वेद एवं वर्तमान चिकित्सासे सम्मत है। स्नानके पश्चात् शरीरको तुरंत नहीं पोंछना चाहिये, कुछ क्षण रुककर पोंछे; क्योंकि इस समय शरीर (एवं बालों)-से गिरा हुआ जल अतृप्त आत्माओंको तृप्ति देनेवाला होता है। स्नानोपरान्त शरीरको पोंछने एवं पहननेके लिये शुद्ध एवं धुले हुए वस्त्रका ही प्रयोग करें। शरीरपर जो वस्त्र पहना हुआ है, उसीको निचोड़कर फिर उसीसे शरीरको पोंछनेका शास्त्रोंमें पूर्णतः निषेध है। पुन: जलसे धोकर शरीर पोंछ सकते हैं। तीर्थ-स्नानके बारेमें विशेष-किसी भी (गंगायमुना आदि नदी हो अथवा कुण्ड-सरोवर-आदि जलाशय) तीर्थपर स्नान अथवा दूसरी कोई भी क्रिया तीर्थकी भावनासे ही करें। अपने मनोरंजन, खेलकूद या पर्यटनकी भावनासे नहीं। वैसे जल-क्रीडा आदि घरपर भी नहीं करनी चाहिये। इससे जल-देवताका अपमान होता है। |
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| | किसी तीर्थ, देवनदी आदिपर स्नान करनेसे पूर्व भी एक बार घरमें स्नान करना ज्यादा उचित है; क्योंकि पहला स्नान नित्यका स्नान तथा दूसरा स्नान ही तीर्थ-स्नान होगा-<blockquote>न नक्तं स्नायात्।</blockquote>ग्रहण आदिको छोड़कर किसी भी नदी आदिके सुनसान घाटपर अथवा मध्य रात्रिमें स्नान न करें। तीर्थ-स्नानके पश्चात् शरीरको पोंछना नहीं चाहिये, अपितु वैसे ही सूखने देना चाहिये। पुनः-स्नान-क्षौर (हजामत बनवानेपर), मालिश, विषय-भोग आदि क्रियाओंके पश्चात्, दुःस्वप्न अथवा भयंकर संकट-निवृत्तिके पश्चात् एवं अस्पृश्य (रजस्वलाकुत्ता आदि) से स्पर्शके पश्चात् स्नान किये हुए व्यक्तिको भी स्नान करना चाहिये। पुत्र-जन्मोत्सव आदि कई अवसरोंपर सचैल (वस्त्र-सहित) स्नानकी विधि है। | | किसी तीर्थ, देवनदी आदिपर स्नान करनेसे पूर्व भी एक बार घरमें स्नान करना ज्यादा उचित है; क्योंकि पहला स्नान नित्यका स्नान तथा दूसरा स्नान ही तीर्थ-स्नान होगा-<blockquote>न नक्तं स्नायात्।</blockquote>ग्रहण आदिको छोड़कर किसी भी नदी आदिके सुनसान घाटपर अथवा मध्य रात्रिमें स्नान न करें। तीर्थ-स्नानके पश्चात् शरीरको पोंछना नहीं चाहिये, अपितु वैसे ही सूखने देना चाहिये। पुनः-स्नान-क्षौर (हजामत बनवानेपर), मालिश, विषय-भोग आदि क्रियाओंके पश्चात्, दुःस्वप्न अथवा भयंकर संकट-निवृत्तिके पश्चात् एवं अस्पृश्य (रजस्वलाकुत्ता आदि) से स्पर्शके पश्चात् स्नान किये हुए व्यक्तिको भी स्नान करना चाहिये। पुत्र-जन्मोत्सव आदि कई अवसरोंपर सचैल (वस्त्र-सहित) स्नानकी विधि है। |
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| − | == स्नान का महत्व॥ == | + | == स्नान का महत्व॥ importance of Bathing == |
| | स्नान करनेमें सर्वप्रथम ध्यान देनेकी बात है कि स्नानसे शरीरको शुद्ध करना है, अतः स्नान भी शुद्ध जल एवं शुद्ध पात्रमें रखे जलसे ही करना चाहिये।<blockquote>शुद्धोदकेन स्नात्वा नित्यकर्म समारभेत्॥</blockquote>आदि शास्त्रीय वाक्य स्पष्ट ही हैं। गंगादि पुण्यतोया नदियोंमें स्नान करना उत्तम माना गया है, तडागका मध्यम तथा घरका स्नान निम्न कोटिका है। सुधार लें अथवा समाजका सहयोग लें। अन्यथा स्वर्गरूपी गृह परागमन शिविर बनकर रह जायगा। पुरुष तो वृक्षके नीचे रहकर भी जी लेगा, पर स्त्रीका सुरक्षित आश्रय हमेशाके लिये नष्ट हो जायगा। इससे गृहणी गर्हित होगी, सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जायगा। अत: मर्यादामें रहकर गृहस्थाश्रम व्यवस्थाको आँच न आने दें। नारी ही इसकी मूलभित्ति और आधारशिला है।<blockquote>उत्तमं तु नदीस्नानं तडागं मध्यम तथा। कनिष्ठं कूपस्नानं भाण्डस्नानं वृथा वृथा ॥</blockquote>स्नानसे पूर्व संकल्प तथा किसी नदी आदिपर स्नानके समय स्नानांग-तर्पण करनेका भी विधान है।<blockquote>स्नानाङ्गतर्पणं विद्वान् कदाचिन्नैव हापयेत्।</blockquote>जल सृष्टिका प्रथम तत्त्व है और जलमें सभी देवताओंका भी निवास है-<blockquote>अपां मध्ये स्थिता देवा सर्वमप्सु प्रतिष्ठितम।</blockquote> | | स्नान करनेमें सर्वप्रथम ध्यान देनेकी बात है कि स्नानसे शरीरको शुद्ध करना है, अतः स्नान भी शुद्ध जल एवं शुद्ध पात्रमें रखे जलसे ही करना चाहिये।<blockquote>शुद्धोदकेन स्नात्वा नित्यकर्म समारभेत्॥</blockquote>आदि शास्त्रीय वाक्य स्पष्ट ही हैं। गंगादि पुण्यतोया नदियोंमें स्नान करना उत्तम माना गया है, तडागका मध्यम तथा घरका स्नान निम्न कोटिका है। सुधार लें अथवा समाजका सहयोग लें। अन्यथा स्वर्गरूपी गृह परागमन शिविर बनकर रह जायगा। पुरुष तो वृक्षके नीचे रहकर भी जी लेगा, पर स्त्रीका सुरक्षित आश्रय हमेशाके लिये नष्ट हो जायगा। इससे गृहणी गर्हित होगी, सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जायगा। अत: मर्यादामें रहकर गृहस्थाश्रम व्यवस्थाको आँच न आने दें। नारी ही इसकी मूलभित्ति और आधारशिला है।<blockquote>उत्तमं तु नदीस्नानं तडागं मध्यम तथा। कनिष्ठं कूपस्नानं भाण्डस्नानं वृथा वृथा ॥</blockquote>स्नानसे पूर्व संकल्प तथा किसी नदी आदिपर स्नानके समय स्नानांग-तर्पण करनेका भी विधान है।<blockquote>स्नानाङ्गतर्पणं विद्वान् कदाचिन्नैव हापयेत्।</blockquote>जल सृष्टिका प्रथम तत्त्व है और जलमें सभी देवताओंका भी निवास है-<blockquote>अपां मध्ये स्थिता देवा सर्वमप्सु प्रतिष्ठितम।</blockquote> |
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| | यत्तु सातपवर्षेण स्नानं तद् दिव्यमुच्यते । अवगाहो वारुणं स्यात् मानसं ह्यात्मचिन्तनम् ॥ (आचारमयूख, पृ० ४७-४८, प्रयोगपारिजात)</blockquote>मन्त्रस्नान, भौमस्नान, अग्निस्नान, वायव्यस्नान, दिव्यस्नान, वारुणस्नान और मानसिक स्नान-ये सात प्रकारके स्नान हैं। 'आपो हि ष्ठा०' इत्यादि मन्त्रोंसे मार्जन करना मन्त्रस्नान, समस्त शरीरमें मिट्टी लगाना भौमस्नान, भस्म लगाना अग्निस्नान, गायके खुरकी धूलि लगाना वायव्यस्नान, सूर्यकिरणमें वर्षाके जलसे स्नान करना दिव्यस्नान, जलमें डुबकी लगाकर स्नान करना वारुणस्नान, आत्मचिन्तन करना मानसिक स्नान कहा गया है। | | यत्तु सातपवर्षेण स्नानं तद् दिव्यमुच्यते । अवगाहो वारुणं स्यात् मानसं ह्यात्मचिन्तनम् ॥ (आचारमयूख, पृ० ४७-४८, प्रयोगपारिजात)</blockquote>मन्त्रस्नान, भौमस्नान, अग्निस्नान, वायव्यस्नान, दिव्यस्नान, वारुणस्नान और मानसिक स्नान-ये सात प्रकारके स्नान हैं। 'आपो हि ष्ठा०' इत्यादि मन्त्रोंसे मार्जन करना मन्त्रस्नान, समस्त शरीरमें मिट्टी लगाना भौमस्नान, भस्म लगाना अग्निस्नान, गायके खुरकी धूलि लगाना वायव्यस्नान, सूर्यकिरणमें वर्षाके जलसे स्नान करना दिव्यस्नान, जलमें डुबकी लगाकर स्नान करना वारुणस्नान, आत्मचिन्तन करना मानसिक स्नान कहा गया है। |
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| − | ==== अशक्तोंके लिये स्नान ==== | + | ==== अशक्तों के लिये स्नान॥ Ashakto ke Liye Snana ==== |
| | <blockquote>अशिरस्कं भवेत् स्नानं स्नानाशक्तौ तु कर्मिणाम्। आईण वाससा वापि मार्जनं दैहिकं विदुः॥</blockquote>स्नानमें असमर्थ होनेपर सिरके नीचेसे ही स्नान करना चाहिये अथवा गीले वस्त्रसे शरीरको पोंछ लेना भी एक प्रकारका स्नान कहा गया है। | | <blockquote>अशिरस्कं भवेत् स्नानं स्नानाशक्तौ तु कर्मिणाम्। आईण वाससा वापि मार्जनं दैहिकं विदुः॥</blockquote>स्नानमें असमर्थ होनेपर सिरके नीचेसे ही स्नान करना चाहिये अथवा गीले वस्त्रसे शरीरको पोंछ लेना भी एक प्रकारका स्नान कहा गया है। |
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| | स्नानकी विधि-उषा की लालीसे पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है। इससे प्राजापत्यका फल प्राप्त होता है। तेल लगाकर तथा देहको मल-मलकर नदीमें नहाना मना है। अतः नदीसे बाहर तटपर ही देहहाथ मलकर नहा ले, तब नदीमें गोता लगाये। शास्त्रोंने इसे मलापकर्षण स्नान कहा है। यह अमन्त्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ्य और शुचिता दोनोंके लिये आवश्यक है। देहमें मल रह जानेसे शुचितामें कमी आ जाती है और रोमछिद्रोंके न खुलनेसे स्वास्थ्य में भी अवरोध हो जाता है। इसलिये मोटे कपड़ेसे प्रत्येक अङ्गको खूब रगड़-रगड़कर तटपर नहा लेना चाहिये। निवीती होकर बेसन आदिसे यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें। | | स्नानकी विधि-उषा की लालीसे पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है। इससे प्राजापत्यका फल प्राप्त होता है। तेल लगाकर तथा देहको मल-मलकर नदीमें नहाना मना है। अतः नदीसे बाहर तटपर ही देहहाथ मलकर नहा ले, तब नदीमें गोता लगाये। शास्त्रोंने इसे मलापकर्षण स्नान कहा है। यह अमन्त्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ्य और शुचिता दोनोंके लिये आवश्यक है। देहमें मल रह जानेसे शुचितामें कमी आ जाती है और रोमछिद्रोंके न खुलनेसे स्वास्थ्य में भी अवरोध हो जाता है। इसलिये मोटे कपड़ेसे प्रत्येक अङ्गको खूब रगड़-रगड़कर तटपर नहा लेना चाहिये। निवीती होकर बेसन आदिसे यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें। |
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| − | ==== विशेष स्नान ==== | + | ==== विशेष स्नान॥ Vishesh Snana ==== |
| | <blockquote>सन्ध्याकालेऽर्चनाकाले संक्रान्तौ ग्रहणे तथा । वमने मद्यमांसास्थिचर्मस्पर्शेऽङ्गनारतौ ॥ १०७ ॥ | | <blockquote>सन्ध्याकालेऽर्चनाकाले संक्रान्तौ ग्रहणे तथा । वमने मद्यमांसास्थिचर्मस्पर्शेऽङ्गनारतौ ॥ १०७ ॥ |
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