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== परिचय ==
== परिचय ==
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<blockquote>स्नानमूलाः क्रियाः सर्वाः श्रुतिस्मृत्युदिता नृणाम्। तस्मात् स्नानं निषेवेत श्रीपुष्ट्यारोग्यवर्धनम्॥</blockquote>श्री पुष्टि एवं आरोग्यकी वृद्धि चाहनेवाले मनुष्यको स्नान सदैव करना चाहिये। इसीलिये शास्त्रों में स्नान का विधान किया गया है। <blockquote>नित्यं स्नात्वा शुचिः कुर्याद्देवर्षिपितृतर्पणम्।(मनु)</blockquote>अर्थात्-प्रतिदिन प्रात स्नान करके पवित्र होकर सन्ध्यावन्दन तथा देवपितृ तर्पणादि नित्य कर्म करें। सनातन धर्म के सभी धार्मिक तथा सामाजिक कृत्यों में स्नान एक अनिवार्य और आवश्यक कृत्य है। संध्या वन्दनादि साधारण दैनिक कृत्यों से लेकर बड़े से बडे अश्वमेध यज्ञ पर्यन्त सभी कर्मों का प्रारम्भ स्नान से ही होता है। यही क्यों, एक भारतीय के जीवन का प्रारम्भ भी स्नान से ही होता है और पर्यवसान भी स्नान में ही।<blockquote>गुणा दश स्नानकृतो हि पुंसो रूपं च तेजश्च बलं च शौचम्। (विश्वा०स्मृ० १।८६)</blockquote>स्नानसे मात्र शुद्धि ही नहीं, अपितु रूप, तेज, शौर्य आदिकी भी वृद्धि होती है।
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स्नान प्राचीन काल से ही भारतीय जीवन शैली का अभिन्न अंग रहा है। यह केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं है, इसके धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक अंश भी हैं। शास्त्रों में स्नान को शारीरिक और मानसिक शुद्धता के लिये आवश्यक माना है। दैनिक जीवन के स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के लिए यह अनिवार्य प्रक्रिया है। समस्त क्रियाओं का मूल स्नान है - <blockquote>स्नानमूलाः क्रियाः सर्वाः श्रुतिस्मृत्युदिता नृणाम्। तस्मात् स्नानं निषेवेत श्रीपुष्ट्यारोग्यवर्धनम्॥</blockquote>श्री पुष्टि एवं आरोग्यकी वृद्धि चाहनेवाले मनुष्यको स्नान सदैव करना चाहिये। इसीलिये शास्त्रों में स्नान का विधान किया गया है। <blockquote>नित्यं स्नात्वा शुचिः कुर्याद्देवर्षिपितृतर्पणम्।(मनु)</blockquote>अर्थात्-प्रतिदिन प्रात स्नान करके पवित्र होकर सन्ध्यावन्दन तथा देवपितृ तर्पणादि नित्य कर्म करें। सनातन धर्म के सभी धार्मिक तथा सामाजिक कृत्यों में स्नान एक अनिवार्य और आवश्यक कृत्य है। संध्या वन्दनादि साधारण दैनिक कृत्यों से लेकर बड़े से बडे अश्वमेध यज्ञ पर्यन्त सभी कर्मों का प्रारम्भ स्नान से ही होता है। यही क्यों, एक भारतीय के जीवन का प्रारम्भ भी स्नान से ही होता है और पर्यवसान भी स्नान में ही।<blockquote>गुणा दश स्नानकृतो हि पुंसो रूपं च तेजश्च बलं च शौचम्। (विश्वा०स्मृ० १।८६)</blockquote>स्नानसे मात्र शुद्धि ही नहीं, अपितु रूप, तेज, शौर्य आदिकी भी वृद्धि होती है।
उपर्युक्त श्लोकसे स्पष्ट है कि स्नान हमारे लिये न केवल आध्यात्मिकताकी दृष्टिसे ही आवश्यक है, अपितु यह शरीरकी बहुत बड़ी आवश्यकता भी है। नवजात बालक हो अथवा वृद्ध व्यक्ति विना स्नानके रोगोंका संक्रमण ही बढ़ेगा। अतः स्नान हमारी शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकता है; जिसे लगभग सभी व्यक्ति करते भी हैं, किंतु इसके बारेमें कुछ शास्त्रीय नियम भी हैं, जिन्हें अधिकांश व्यक्ति (बिना जानकारीके कारण) उपेक्षित कर देते हैं।
उपर्युक्त श्लोकसे स्पष्ट है कि स्नान हमारे लिये न केवल आध्यात्मिकताकी दृष्टिसे ही आवश्यक है, अपितु यह शरीरकी बहुत बड़ी आवश्यकता भी है। नवजात बालक हो अथवा वृद्ध व्यक्ति विना स्नानके रोगोंका संक्रमण ही बढ़ेगा। अतः स्नान हमारी शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकता है; जिसे लगभग सभी व्यक्ति करते भी हैं, किंतु इसके बारेमें कुछ शास्त्रीय नियम भी हैं, जिन्हें अधिकांश व्यक्ति (बिना जानकारीके कारण) उपेक्षित कर देते हैं।
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स्नानकी विधि-उषा की लालीसे पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है। इससे प्राजापत्यका फल प्राप्त होता है। तेल लगाकर तथा देहको मल-मलकर नदीमें नहाना मना है। अतः नदीसे बाहर तटपर ही देहहाथ मलकर नहा ले, तब नदीमें गोता लगाये। शास्त्रोंने इसे मलापकर्षण स्नान कहा है। यह अमन्त्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ्य और शुचिता दोनोंके लिये आवश्यक है। देहमें मल रह जानेसे शुचितामें कमी आ जाती है और रोमछिद्रोंके न खुलनेसे स्वास्थ्य में भी अवरोध हो जाता है। इसलिये मोटे कपड़ेसे प्रत्येक अङ्गको खूब रगड़-रगड़कर तटपर नहा लेना चाहिये। निवीती होकर बेसन आदिसे यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें।
स्नानकी विधि-उषा की लालीसे पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है। इससे प्राजापत्यका फल प्राप्त होता है। तेल लगाकर तथा देहको मल-मलकर नदीमें नहाना मना है। अतः नदीसे बाहर तटपर ही देहहाथ मलकर नहा ले, तब नदीमें गोता लगाये। शास्त्रोंने इसे मलापकर्षण स्नान कहा है। यह अमन्त्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ्य और शुचिता दोनोंके लिये आवश्यक है। देहमें मल रह जानेसे शुचितामें कमी आ जाती है और रोमछिद्रोंके न खुलनेसे स्वास्थ्य में भी अवरोध हो जाता है। इसलिये मोटे कपड़ेसे प्रत्येक अङ्गको खूब रगड़-रगड़कर तटपर नहा लेना चाहिये। निवीती होकर बेसन आदिसे यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें।
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==== स्नान निषेध ====
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==== स्नान के अंग ====
==== विशेष स्नान ====
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श्री पुष्टि एवं आरोग्यकी वृद्धि चाहनेवाले मनुष्यको स्नान सदैव करना चाहिये। इसीलिये शास्त्रों में स्नान का विधान किया गया है।
श्री पुष्टि एवं आरोग्यकी वृद्धि चाहनेवाले मनुष्यको स्नान सदैव करना चाहिये। इसीलिये शास्त्रों में स्नान का विधान किया गया है।
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== स्नान का वैज्ञानिक महत्व ==
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प्रातः कालीन स्नान को स्वास्थ्य और अध्यात्म के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह शरीर को ऊर्जावान और मन को शान्त बनाता है। ऋतु अनुरूप शीत एवं उष्ण जल से स्नान कि परम्परा प्राचीन काल से सनातन धर्ममें विद्यमान है -
== उद्धरण ==
== उद्धरण ==
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<references />
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