Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 34: Line 34:     
== कर्मकाण्ड में पुरोहित का महत्व ==
 
== कर्मकाण्ड में पुरोहित का महत्व ==
जो मनुष्य समाज एवं राष्ट्र का आगे बढकर हित सम्पादन करे, वह पुरोहित है। पुरोहित शब्द का अर्थ होता है - <blockquote>पुरः अग्रे हितं कल्याणं सम्पादयति यः सः पुरोहितः। (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote>पुरातन काल से ही वह भारतीय समाज, संस्कृति और धर्म का पुरोधा रहा है। वह केवल कर्मकाण्ड या धार्मिक क्रियाकलाप का संचालक न होकर पूरे जीवन को गति एवं दिशा देता रहा है। प्राचीन भारत में ऐसे व्यक्ति को पुरोहित कहते थे, जो राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय गौरव, राष्ट्रीय मर्यादा, राष्ट्रीय समृद्धि, उत्कर्ष आदि का चिन्तन एवं व्यवस्थापन करता था। यजुर्वेद में कहा गया है - <blockquote>वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः। (यजु० 9. 23)</blockquote>हे पुरोहितों! इस राष्ट्र में जागृति लाओ और राष्ट्र की रक्षा करो। पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण विद्यमान होते हैं। पुरोहित ही देव तथा पितृकार्य में अग्रणी भूमिका का निर्वाह करता है। पुरोहित किस प्रकार के होना चाहिये? इस संबंध में शास्त्रों में इनके योग्यता का निर्धारण इस प्रकार किया है - <ref>देवनारायण शर्मा, पौरोहित्य कर्मपद्धतिः, सन २०२३, श्रीकाशी विश्वनाथ संस्थान, वाराणसी (पृ० १३)।</ref><blockquote>पुरोहितो हितो वेद स्मृतिज्ञः सत्यवाक् शुचिः। ब्रह्मण्यो विमलाचारः प्रतिकर्त्ताऽपदामृजुः॥ (कविकल्पलता)
+
जो मनुष्य समाज एवं राष्ट्र का आगे बढकर हित सम्पादन करे, वह पुरोहित है। पुरोहित शब्द का अर्थ होता है - <blockquote>पुरः अग्रे हितं कल्याणं सम्पादयति यः सः पुरोहितः। (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote>पुरातन काल से ही वह भारतीय समाज, संस्कृति और धर्म का पुरोधा रहा है। वह केवल कर्मकाण्ड या धार्मिक क्रियाकलाप का संचालक न होकर पूरे जीवन को गति एवं दिशा देता रहा है। सामान्य रूप से कुल पुरोहित, तीर्थ पुरोहित और राजपुरोहित के रूप में स्थित होते थे। प्राचीन भारत में ऐसे व्यक्ति को पुरोहित कहते थे, जो राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय गौरव, राष्ट्रीय मर्यादा, राष्ट्रीय समृद्धि, उत्कर्ष आदि का चिन्तन एवं व्यवस्थापन करता था। यजुर्वेद में कहा गया है - <blockquote>वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः। (यजु० 9. 23)</blockquote>हे पुरोहितों! इस राष्ट्र में जागृति लाओ और राष्ट्र की रक्षा करो। पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण विद्यमान होते हैं। पुरोहित ही देव तथा पितृकार्य में अग्रणी भूमिका का निर्वाह करता है। पुरोहित किस प्रकार के होना चाहिये? इस संबंध में शास्त्रों में इनके योग्यता का निर्धारण इस प्रकार किया है - <ref>देवनारायण शर्मा, पौरोहित्य कर्मपद्धतिः, सन २०२३, श्रीकाशी विश्वनाथ संस्थान, वाराणसी (पृ० १३)।</ref><blockquote>पुरोहितो हितो वेद स्मृतिज्ञः सत्यवाक् शुचिः। ब्रह्मण्यो विमलाचारः प्रतिकर्त्ताऽपदामृजुः॥ (कविकल्पलता)
    
वेद वेदांग तत्त्वज्ञो जपहोम परायणः। त्रय्याञ्च दण्डनीत्यां च कुशलः स्यात् पुरोहितः॥ (अग्नि पुराण)</blockquote>अर्थात पुरोहित को वेद वेदांग तत्त्वज्ञ, सत्यवादी, सदाचारी, ब्रह्मनिष्ठ, पवित्र, विपत्तियों का नाशक, सरल, दण्डनीति में कुशल तथा जपहोम परायण होना चाहिये। पुरोहित के धर्म अथवा कार्य को पौरोहित्य कहा गया है।
 
वेद वेदांग तत्त्वज्ञो जपहोम परायणः। त्रय्याञ्च दण्डनीत्यां च कुशलः स्यात् पुरोहितः॥ (अग्नि पुराण)</blockquote>अर्थात पुरोहित को वेद वेदांग तत्त्वज्ञ, सत्यवादी, सदाचारी, ब्रह्मनिष्ठ, पवित्र, विपत्तियों का नाशक, सरल, दण्डनीति में कुशल तथा जपहोम परायण होना चाहिये। पुरोहित के धर्म अथवा कार्य को पौरोहित्य कहा गया है।
922

edits

Navigation menu