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| ==पौरोहित्य एवं कर्मकाण्ड== | | ==पौरोहित्य एवं कर्मकाण्ड== |
| + | वैदिक वचन के अनुसार श्रौत एवं स्मार्त आदि क्रियाओं से संबंधित अनुष्ठान ज्ञान को पौरोहित्य कहते हैं - <blockquote>वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः। (शत० ब्रा०)</blockquote> |
| + | जो यजमान के हित का साधन करता है, उसको पुरोहित कहते हैं अथवा मण्डल या जनपद के हित का साधक पुरोहित है तथा जिस कर्म से यह यह कार्य सम्पादित किया जाता है उसे पौरोहित्य कहते हैं। पौरोहित्य को ही कर्मकाण्ड के द्वारा व्यवहार किया जाता है। पौरोहित्य अर्थात कर्मकाण्ड कार्यसम्पादन से मानव शरीर सुसंस्कृत एवं परिमार्जित होता है। |
| कर्मकाण्ड का मूलतः सम्बन्ध मानव के सभी प्रकार के कर्मों से है, जिनमें धार्मिक क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं। स्थूल रूप से धार्मिक क्रियाओं को ही कर्मकाण्ड कहते हैं, जिससे पौरोहित्य का तादात्म्य सम्बन्ध है। वेदों में मंत्रों की संख्या एक लक्ष अर्थात एक लाख है - <blockquote>लक्षं तु वेदाश्चत्वारः लक्षं भारतमेव च। (चरणव्यूह ५/१)</blockquote>वेदों के एक लक्ष मन्त्रों में कर्मकाण्ड के ८० हजार मन्त्र, उपासनाकाण्ड के १६ हजार मन्त्र और ज्ञानकाण्ड के ४ हजार मन्त्र हैं। इनमें सबसे अधिक मन्त्र कर्मकाण्ड में हैं। वेदों में कर्मकाण्ड के जितने मन्त्र हैं, उतने अन्य किसी विषय के नहीं हैं। कर्मकाण्ड के मूलभूत शास्त्रीय वचनों एवं प्रक्रिया अनुशीलन के आधार पर कर्मकाण्ड (पौरोहित्य) के बहुत भेद हैं। उन शास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर मूल पाँच प्रकार के देखे जाते हैं, जो कि इस प्रकार हैं - <ref>डॉ० विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी, [https://archive.org/details/BharatiyaKarmaKandaSvarupadhyayanamDr.VindhyesvariPrasadaTripathi भारतीय कर्मकाण्डस्वरूपाध्ययनम्] , सन 1980, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० 37)।</ref> | | कर्मकाण्ड का मूलतः सम्बन्ध मानव के सभी प्रकार के कर्मों से है, जिनमें धार्मिक क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं। स्थूल रूप से धार्मिक क्रियाओं को ही कर्मकाण्ड कहते हैं, जिससे पौरोहित्य का तादात्म्य सम्बन्ध है। वेदों में मंत्रों की संख्या एक लक्ष अर्थात एक लाख है - <blockquote>लक्षं तु वेदाश्चत्वारः लक्षं भारतमेव च। (चरणव्यूह ५/१)</blockquote>वेदों के एक लक्ष मन्त्रों में कर्मकाण्ड के ८० हजार मन्त्र, उपासनाकाण्ड के १६ हजार मन्त्र और ज्ञानकाण्ड के ४ हजार मन्त्र हैं। इनमें सबसे अधिक मन्त्र कर्मकाण्ड में हैं। वेदों में कर्मकाण्ड के जितने मन्त्र हैं, उतने अन्य किसी विषय के नहीं हैं। कर्मकाण्ड के मूलभूत शास्त्रीय वचनों एवं प्रक्रिया अनुशीलन के आधार पर कर्मकाण्ड (पौरोहित्य) के बहुत भेद हैं। उन शास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर मूल पाँच प्रकार के देखे जाते हैं, जो कि इस प्रकार हैं - <ref>डॉ० विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी, [https://archive.org/details/BharatiyaKarmaKandaSvarupadhyayanamDr.VindhyesvariPrasadaTripathi भारतीय कर्मकाण्डस्वरूपाध्ययनम्] , सन 1980, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० 37)।</ref> |
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| मानवीय अन्तःकरण में सत्प्रवृत्तियों, सद्भावनाओं, सुसंस्कारों के जागरण, आरोपण, विकास व्यवस्था आदि से लेकर चैतन्य के वर्चस्व बोध कराने के क्रम में कर्मकाण्डों की उपयोगिता है।<ref>पं० श्रीराम शर्मा आचार्य, [https://www.geocities.ws/brijesh/bookspdf/karmakand-bhaskar-new.pdf कर्मकाण्ड-भास्कर], सन 2010, श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट, हरिद्वार (पृ० १७)।</ref> | | मानवीय अन्तःकरण में सत्प्रवृत्तियों, सद्भावनाओं, सुसंस्कारों के जागरण, आरोपण, विकास व्यवस्था आदि से लेकर चैतन्य के वर्चस्व बोध कराने के क्रम में कर्मकाण्डों की उपयोगिता है।<ref>पं० श्रीराम शर्मा आचार्य, [https://www.geocities.ws/brijesh/bookspdf/karmakand-bhaskar-new.pdf कर्मकाण्ड-भास्कर], सन 2010, श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट, हरिद्वार (पृ० १७)।</ref> |
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− | == मीमांसाशास्त्र एवं कर्मकाण्ड == | + | == कर्मकाण्ड में पुरोहित का महत्व == |
| + | जो मनुष्य समाज एवं राष्ट्र का आगे बढकर हित सम्पादन करे, वह पुरोहित है। पुरोहित शब्द का अर्थ होता है - <blockquote>पुरः अग्रे हितं कल्याणं सम्पादयति यः सः पुरोहितः। (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote>पुरातन काल से ही वह भारतीय समाज, संस्कृति और धर्म का पुरोधा रहा है। वह केवल कर्मकाण्ड या धार्मिक क्रियाकलाप का संचालक न होकर पूरे जीवन को गति एवं दिशा देता रहा है। प्राचीन भारत में ऐसे व्यक्ति को पुरोहित कहते थे, जो राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय गौरव, राष्ट्रीय मर्यादा, राष्ट्रीय समृद्धि, उत्कर्ष आदि का चिन्तन एवं व्यवस्थापन करता था। यजुर्वेद में कहा गया है - <blockquote>वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः। (यजु० 9. 23)</blockquote>हे पुरोहितों! इस राष्ट्र में जागृति लाओ और राष्ट्र की रक्षा करो। पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण विद्यमान होते हैं। पुरोहित ही देव तथा पितृकार्य में अग्रणी भूमिका का निर्वाह करता है। पुरोहित किस प्रकार के होना चाहिये? इस संबंध में शास्त्रों में इनके योग्यता का निर्धारण इस प्रकार किया है - <ref>देवनारायण शर्मा, पौरोहित्य कर्मपद्धतिः, सन २०२३, श्रीकाशी विश्वनाथ संस्थान, वाराणसी (पृ० १३)।</ref><blockquote>पुरोहितो हितो वेद स्मृतिज्ञः सत्यवाक् शुचिः। ब्रह्मण्यो विमलाचारः प्रतिकर्त्ताऽपदामृजुः॥ (कविकल्पलता) |
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| + | वेद वेदांग तत्त्वज्ञो जपहोम परायणः। त्रय्याञ्च दण्डनीत्यां च कुशलः स्यात् पुरोहितः॥ (अग्नि पुराण)</blockquote>अर्थात पुरोहित को वेद वेदांग तत्त्वज्ञ, सत्यवादी, सदाचारी, ब्रह्मनिष्ठ, पवित्र, विपत्तियों का नाशक, सरल, दण्डनीति में कुशल तथा जपहोम परायण होना चाहिये। पुरोहित के धर्म अथवा कार्य को पौरोहित्य कहा गया है। |
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| + | ==मीमांसाशास्त्र एवं कर्मकाण्ड== |
| मीमांसाशास्त्र में तीनोंकाण्डों को इस प्रकार व्यवहार किया है - | | मीमांसाशास्त्र में तीनोंकाण्डों को इस प्रकार व्यवहार किया है - |
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| कर्मकाण्ड कनिष्ठ अधिकारी के लिये है। उपासना एवं कर्म मध्यम के लिए। कर्म, उपासना और ज्ञान तीनों उत्तम के लिए हैं। पूर्वमीमांसाशास्त्र कर्मकाण्ड का प्रतिपादन है। इसका नाम पूर्वमीमांसा इस लिये पडा कि कर्मकाण्ड मनुष्य का प्रथम धर्म है, ज्ञानकाण्ड का अधिकार उसके उपरांत आता है। पूर्व आचरणीय कर्मकाण्ड से सम्बन्धित होने के कारण इसे पूर्वमीमांसा कहते हैं। ज्ञानकाण्ड-विषयक मीमांसा का दूसरा पक्ष उत्तरमीमांसा अथवा वेदान्त कहलाता है। | | कर्मकाण्ड कनिष्ठ अधिकारी के लिये है। उपासना एवं कर्म मध्यम के लिए। कर्म, उपासना और ज्ञान तीनों उत्तम के लिए हैं। पूर्वमीमांसाशास्त्र कर्मकाण्ड का प्रतिपादन है। इसका नाम पूर्वमीमांसा इस लिये पडा कि कर्मकाण्ड मनुष्य का प्रथम धर्म है, ज्ञानकाण्ड का अधिकार उसके उपरांत आता है। पूर्व आचरणीय कर्मकाण्ड से सम्बन्धित होने के कारण इसे पूर्वमीमांसा कहते हैं। ज्ञानकाण्ड-विषयक मीमांसा का दूसरा पक्ष उत्तरमीमांसा अथवा वेदान्त कहलाता है। |
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− | ==कर्मकाण्ड के विविध आयाम== | + | == कर्मकाण्ड के विविध आयाम== |
− | कर्मकाण्ड विस्तृत रूप में व्याप्त है। इसके अन्तर्गत हम दैनिक जीवन में जो भी कृत्य करते हैं अर्थात सभी नित्यकर्म कर्मकाण्ड के अन्तर्गत आते हैं - | + | प्राचीन काल से आज पर्यन्त यज्ञानुष्ठानादि कार्य पुरोहित से ही सम्पादित किये जाते रहे हैं। कर्मकाण्ड विस्तृत रूप में व्याप्त है। इसके अन्तर्गत हम दैनिक जीवन में जो भी कृत्य करते हैं अर्थात सभी नित्यकर्म कर्मकाण्ड के अन्तर्गत आते हैं - |
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− | * त्रिकाल संध्या | + | *यज्ञ-अनुष्ठान |
| + | *पूजा-पाठ, अग्निहोत्रादि |
| *तर्पण एवं श्राद्ध | | *तर्पण एवं श्राद्ध |
| *देव पूजन | | *देव पूजन |
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| *दानशीलता | | *दानशीलता |
| *व्रत, पर्व एवं उत्सव | | *व्रत, पर्व एवं उत्सव |
− | *सोलह संस्कारों का परिपालन | + | *सोलह संस्कारों का परिपालन आदि धार्मिक कर्मकाण्ड |
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− | भारतीय संस्कृति में व्रत, त्यौहार, उत्सव आदि विशेष महत्व रखते हैं। सनातन धर्म में ही सबसे अधिक त्यौहार मनाये जाते हैं, भारतीय ऋषि-मुनियों ने त्यौहारों के रूप में जीवन को सरस और सुन्दर बनाने की योजनाएँ रखी हैं। | + | भारतीय संस्कृति में व्रत, त्यौहार, उत्सव आदि कर्मकाण्ड (पौरोहित्य) विशेष महत्व रखते हैं। सनातन धर्म में ही सबसे अधिक त्यौहार मनाये जाते हैं, भारतीय ऋषि-मुनियों ने त्यौहारों के रूप में जीवन को सरस और सुन्दर बनाने की योजनाएँ रखी हैं। अर्थात ऊपर कहे गये कृत्य करना या कराना कर्मकाण्ड (पौरोहित्य कर्म) कहलाता है। |
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| ==कर्मकाण्ड का महत्व== | | ==कर्मकाण्ड का महत्व== |