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मांडूक्य उपनिषद में स्वप्नावस्था (तैजस) का विशेष रूप से वर्णन है। इसमें आत्मा की तीन अवस्थाओं - जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति - को समझाया गया है। स्वप्नावस्था को तैजस कहा गया है, क्योंकि इस अवस्था में मन विभिन्न रूपों को ग्रहण करता है और अनुभव करता है - <blockquote>स्वप्नस्थानो अन्तःप्रज्ञः सप्ताङ्ग एकोनविंशतिमुखः तैजसो द्वितीयः पादः। (मांडूक्य उपनिषद, श्लोक 3)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D मांडूक्य उपनिषद] </ref></blockquote>स्वप्नावस्था में आत्मा आंतरिक चेतना के साथ क्रियाशील रहती है। इसमें वह सूक्ष्म रूप से अनुभव करती है। यह अवस्था सात अंगों और उन्नीस मुखों (इंद्रियों) वाली होती है, और इसे तैजस कहा जाता है।
 
मांडूक्य उपनिषद में स्वप्नावस्था (तैजस) का विशेष रूप से वर्णन है। इसमें आत्मा की तीन अवस्थाओं - जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति - को समझाया गया है। स्वप्नावस्था को तैजस कहा गया है, क्योंकि इस अवस्था में मन विभिन्न रूपों को ग्रहण करता है और अनुभव करता है - <blockquote>स्वप्नस्थानो अन्तःप्रज्ञः सप्ताङ्ग एकोनविंशतिमुखः तैजसो द्वितीयः पादः। (मांडूक्य उपनिषद, श्लोक 3)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D मांडूक्य उपनिषद] </ref></blockquote>स्वप्नावस्था में आत्मा आंतरिक चेतना के साथ क्रियाशील रहती है। इसमें वह सूक्ष्म रूप से अनुभव करती है। यह अवस्था सात अंगों और उन्नीस मुखों (इंद्रियों) वाली होती है, और इसे तैजस कहा जाता है।
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'''आधुनिक पाश्चात्य विचारधारा में स्वप्न विश्लेषण'''
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कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों और वैज्ञानिक दृष्टिकोणों के माध्यम से विकसित हुआ है, जिनमें सिगमंड फ्रॉयड और कार्ल जंग के मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों से लेकर न्यूरोसाइंस के आधुनिक दृष्टिकोण तक की व्यापक व्याख्या शामिल है।
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सिगमंड फ्रॉयड का स्वप्न विश्लेषण (The Interpretation of Dreams)
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सिगमंड फ्रॉयड (Sigmund Freud) स्वप्न विश्लेषण के सबसे महत्वपूर्ण विचारकों में से एक माने जाते हैं। उनकी पुस्तक The Interpretation of Dreams (1899) ने आधुनिक स्वप्न विज्ञान की नींव रखी। फ्रॉयड के अनुसार, स्वप्न अवचेतन मन की गतिविधियों का प्रतिबिंब होते हैं। उन्होंने यह तर्क दिया कि स्वप्न व्यक्ति की दबी हुई इच्छाओं, खासकर यौन और आक्रामक प्रवृत्तियों का प्रतीकात्मक रूप में प्रकट होना होता है। फ्रॉयड ने स्वप्न को दो मुख्य घटकों में विभाजित किया -
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स्पष्ट सामग्री (Manifest Content) - वह जो व्यक्ति स्वप्न में देखता है, जैसे घटनाएँ, लोग, और स्थान।
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गुप्त सामग्री (Latent Content) - वह छिपा हुआ अर्थ जो स्वप्न में प्रतीकों के माध्यम से प्रकट होता है। यह गुप्त सामग्री मुख्य रूप से अवचेतन इच्छाओं और चिंताओं का परिणाम होती है।
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फ्रॉयड के अनुसार, स्वप्न विश्लेषण के माध्यम से व्यक्ति अवचेतन मन के दमन और आंतरिक संघर्षों को समझ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वप्न, रक्षात्मक तंत्र के माध्यम से रूपांतरित होते हैं ताकि व्यक्ति की दबी इच्छाएँ और भय सीधे तौर पर प्रकट न हों।
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'''प्रमुख सिद्धांत'''
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स्वप्न इच्छापूर्ति (Wish Fulfillment) का कार्य करते हैं।
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प्रतीकों के माध्यम से छिपी हुई इच्छाओं का प्रदर्शन होता है।
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स्वप्नों के विश्लेषण से मनोवैज्ञानिक समस्याओं की जड़ तक पहुंचा जा सकता है।
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'''कार्ल जंग का स्वप्न और सामूहिक अवचेतन (Collective Unconscious)'''
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कार्ल जंग (Carl Jung) ने फ्रॉयड के सिद्धांतों से कुछ भिन्न दृष्टिकोण अपनाया। फ्रॉयड के विपरीत, जिन्होंने स्वप्नों को व्यक्तिगत इच्छाओं का परिणाम माना, जंग ने स्वप्नों में सामूहिक अवचेतन (Collective Unconscious) की अवधारणा को जोड़ा।
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जंग के अनुसार, स्वप्न केवल व्यक्तिगत अवचेतन को प्रकट नहीं करते, बल्कि यह आर्कटाइप्स (Archetypes) के माध्यम से मानवता के सामूहिक अनुभवों को भी व्यक्त करते हैं। उनके अनुसार, आर्कटाइप्स सार्वभौमिक प्रतीक होते हैं जो पीढ़ियों से मानव सभ्यता में मौजूद हैं।
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जंग का मानना था कि स्वप्न आत्म-प्रकटीकरण और व्यक्तित्व विकास (Individuation) की प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं। स्वप्न व्यक्ति के अवचेतन से संकेत देते हैं, जिससे उसे अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन और समग्रता प्राप्त करने में मदद मिलती है। जंग के सिद्धांतों में स्वप्नों का आध्यात्मिक और दार्शनिक पहलू भी महत्वपूर्ण है, जहां स्वप्न चेतना और अवचेतन के बीच संवाद का माध्यम होते हैं।
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'''प्रमुख सिद्धांत'''
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आर्कटाइप्स - स्वप्नों में सामान्य प्रतीक जो सामूहिक अवचेतन का हिस्सा होते हैं, जैसे कि माँ, नायक, और छाया।
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स्वप्न आत्म-प्रकटीकरण का साधन हैं और व्यक्तित्व के विकास में मदद करते हैं।
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स्वप्न प्रतीकात्मक होते हैं, जिनका विश्लेषण सांस्कृतिक और सार्वभौमिक संदर्भों में किया जा सकता है।
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'''न्यूरोसाइंस और REM स्लीप द्वारा स्वप्न की वैज्ञानिक व्याख्या'''
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आधुनिक न्यूरोसाइंस में, स्वप्नों को मस्तिष्क की जैविक प्रक्रियाओं से जोड़ा गया है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण REM (Rapid Eye Movement) नींद के दौरान मस्तिष्क की गतिविधियों के अध्ययन पर आधारित है। REM नींद वह अवस्था होती है जिसमें मस्तिष्क सबसे सक्रिय होता है, और इस दौरान स्वप्न सबसे अधिक स्पष्ट होते हैं।
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न्यूरोसाइंटिफिक दृष्टिकोण के अनुसार, स्वप्न मस्तिष्क की यादों, अनुभवों, और भावनाओं को समेकित करने की प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं। कई शोधों से पता चला है कि स्वप्न मस्तिष्क के उन हिस्सों में होते हैं जो भावनाओं और स्मृतियों से जुड़े होते हैं, जैसे हिप्पोकैम्पस और एमिगडाला।
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ऐक्टिवेशन-सिंथेसिस थ्योरी (Activation-Synthesis Theory) - हार्वर्ड के शोधकर्ताओं जे. ए. होब्सन और रॉबर्ट मैककली ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि स्वप्न मस्तिष्क की यादृच्छिक न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों का परिणाम होते हैं। जब व्यक्ति REM नींद में होता है, तो मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में होने वाली गतिविधियाँ स्वप्न के रूप में अनुभव की जाती हैं, और मस्तिष्क इन गतिविधियों को अर्थ देने की कोशिश करता है।
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सर्केडियन रिदम और स्वप्न: मस्तिष्क की गतिविधियाँ दिन-रात के चक्रों के अनुसार बदलती हैं, और स्वप्न देखने की प्रवृत्ति REM नींद के साथ जुड़ी होती है, जो सामान्यतः सर्केडियन रिदम के अंतर्गत आती है।
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'''प्रमुख सिद्धांत'''
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REM स्लीप के दौरान स्वप्न सबसे अधिक होते हैं।
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स्वप्न मस्तिष्क की भावनात्मक और स्मृति प्रक्रियाओं का हिस्सा होते हैं।
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ऐक्टिवेशन-सिंथेसिस थ्योरी स्वप्नों को मस्तिष्क की यादृच्छिक गतिविधियों से जोड़ती है।
    
==स्वप्न के भेद॥ Secrets of dreams==
 
==स्वप्न के भेद॥ Secrets of dreams==
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==निष्कर्ष॥ Conclusion==
 
==निष्कर्ष॥ Conclusion==
 
स्वप्न की अवधारणा को भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों में विस्तार से समझाया गया है। स्वप्न का वर्णन वैदिक, औपनिषदिक और दार्शनिक साहित्य के साथ-साथ संहिता काल के आयुर्वेदिक साहित्य में भी अधिक मिलता है। बाद में आयुर्वेदिक और उससे संबंधित ग्रंथों में स्वप्न का वर्णन कम हो गया और बृहत्रयी और [[Laghutrayee (लघुत्रयी)|लघुत्रयी]] के अलावा अन्य ग्रंथों में बहुत कम वर्णन मिलता है। यद्यपि प्राचीन शास्त्रीय साहित्य हजारों वर्ष पूर्व लिखा गया था, लेकिन यदि इसका गहराई से विश्लेषण और व्याख्या की जाए तो आधुनिक विज्ञान की तुलना में भी इसकी व्याख्या वैज्ञानिक ही प्रतीत होती है।<ref>रामस्वरूप शास्त्री, स्वप्नविज्ञानम्, सन् 1959, आदर्श प्रेस, अलीगढ़ (पृo 14)।</ref>
 
स्वप्न की अवधारणा को भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों में विस्तार से समझाया गया है। स्वप्न का वर्णन वैदिक, औपनिषदिक और दार्शनिक साहित्य के साथ-साथ संहिता काल के आयुर्वेदिक साहित्य में भी अधिक मिलता है। बाद में आयुर्वेदिक और उससे संबंधित ग्रंथों में स्वप्न का वर्णन कम हो गया और बृहत्रयी और [[Laghutrayee (लघुत्रयी)|लघुत्रयी]] के अलावा अन्य ग्रंथों में बहुत कम वर्णन मिलता है। यद्यपि प्राचीन शास्त्रीय साहित्य हजारों वर्ष पूर्व लिखा गया था, लेकिन यदि इसका गहराई से विश्लेषण और व्याख्या की जाए तो आधुनिक विज्ञान की तुलना में भी इसकी व्याख्या वैज्ञानिक ही प्रतीत होती है।<ref>रामस्वरूप शास्त्री, स्वप्नविज्ञानम्, सन् 1959, आदर्श प्रेस, अलीगढ़ (पृo 14)।</ref>
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प्राच्य और पाश्चात्य विचारधाराओं में स्वप्नों की व्याख्या काफी भिन्न रही है, जहाँ पाश्चात्य मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस ने स्वप्नों को अवचेतन इच्छाओं और मस्तिष्क की गतिविधियों से जोड़ा है। फ्रॉयड और जंग के सिद्धांतों ने स्वप्नों के प्रतीकात्मक और अवचेतन पक्षों को उजागर किया, जबकि न्यूरोसाइंस ने स्वप्नों को मस्तिष्क की जैविक प्रक्रियाओं के रूप में देखा।
    
==उद्धरण॥ Reference==
 
==उद्धरण॥ Reference==
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
<references />
 
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