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प्रस्तावना  
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== प्रस्तावना ==
व्यक्ति अपने आप स्वयंपूर्ण या स्वावलंबी नहीं बन सकता| उसे अन्यों की मदद लेनी ही पड़ती है| अभारतीय समाजों की मान्यता के अनुसार व्यक्ति व्यक्ति अपने अपने स्वार्थ को प्राप्त करने के लिए साथ में आकर एक करार करते हैं| इसे ‘सोशल कोंट्राक्ट थियरी’ कहते हैं| इसलिए प्रत्येक सामाजिक परस्पर संबंधों का आधार कोंट्राक्ट होता है| राजा प्रजा का सम्बन्ध किंग्ज चार्टर होता है| यहांतक पुरुष और स्त्री का कि विवाह भी एक करार होता है|
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व्यक्ति अपने आप स्वयंपूर्ण या स्वावलंबी नहीं बन सकता उसे अन्यों की मदद लेनी ही पड़ती है अभारतीय समाजों की मान्यता के अनुसार व्यक्ति अपने स्वार्थ को प्राप्त करने के लिए साथ में आकर एक करार करते हैं इसे ‘सोशल कोंट्राक्ट थियरी’ कहते हैं इसलिए प्रत्येक सामाजिक परस्पर संबंधों का आधार कोंट्राक्ट होता है राजा प्रजा का सम्बन्ध किंग्ज चार्टर होता है यहांतक पुरुष और स्त्री का विवाह भी एक करार होता है।
भारतीय सामाजिक विचार इससे भिन्न है| केवल अपने स्वार्थ का विचार न कर ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का विचार करने का है|
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समाज से संबंधित महत्वपूर्ण भारतीय बिन्दु  
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भारतीय सामाजिक विचार इससे भिन्न है केवल अपने स्वार्थ का विचार न कर ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का विचार करने का है
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== समाज से संबंधित महत्वपूर्ण भारतीय बिन्दु ==
 
समाज के लिये चार बातें महत्वपूर्ण होतीं हैं। सुरक्षित भूभाग, समाज सातत्य (संतान उत्पत्ति के द्वारा), समान जीवनदृष्टि (संस्कृति) और स्वतंत्रता। इन चार में स्वतंत्रता के बगैर कोई भी समाज ठीक नहीं रह सकता। जीवनदृष्टि समाज की वैचारिक पहचान होती है।
 
समाज के लिये चार बातें महत्वपूर्ण होतीं हैं। सुरक्षित भूभाग, समाज सातत्य (संतान उत्पत्ति के द्वारा), समान जीवनदृष्टि (संस्कृति) और स्वतंत्रता। इन चार में स्वतंत्रता के बगैर कोई भी समाज ठीक नहीं रह सकता। जीवनदृष्टि समाज की वैचारिक पहचान होती है।
एक आलू की बोरी में आलू बंधे होते हैं| जबतक बाहरी बोरी खुलती या फटती नहीं आलू बोरी के अन्दर रहते हैं| जैसे ही बोरी का अवरोध हट जाता है आलू बिखर जाते हैं| ऐसे बिखरनेवाले आलू और बोरीजैसा व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध नहीं होता| यह स्थिर होता है| लेकिन अनार को तोडनेपर भी अनार के दाने बिखरते नहीं हैं| तो क्या समाज और व्यक्ति संबंध अनार और उसके दानोंजैसा है?
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समाज कुछ बातों में अनार जैसा होता है| जिस प्रकार अनार उसके अन्दर विद्यमान दानों के विकास के साथ विकास पाता है| हर दाने का विकास उसके पड़ोसी और अन्य सभी दानों के परिप्रेक्ष में ही होता है| उसी तरह से सामाजिक वातावरण ऐसा होना चाहिए जिससे किसी भी व्यक्ति के स्वाभाविक विकास में बाधा न हो| इसी प्रकार अनार की विशेषता यह होती है कि इसके दानों की विकसित होने की सीमा अनार के बाहरी आवरण की संभाव्य वृद्धितक की ही होती है| लेकिन अनार और अनार के दानों में जीवात्मा नहीं होता| इसलिए समाज अनार से अधिक कुछ भी है|
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तो क्या समाज एक दौड़ की स्पर्धाजैसा होता है| सभी का लक्ष्य एक ही होता है| एक ही दिशा में सभी लोग चलते हैं| लेकिन स्पर्धा में लक्ष्य एक ही होनेपर भी वह प्रत्येक का व्यक्तिगत लक्ष्य होता है| अन्य लोग उसे प्राप्त नहीं कर सकें ऐसी इच्छा प्रत्येक की होती है| और ऐसा ही प्रयास प्रत्येक का होता है| इसलिए समाज दौड़ की स्पर्धाजैसा भी नहीं है|
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शब्दकल्पद्रुम मे दी हुई समाज की व्याख्या के अनुसार एक जैसा ही शरीर जिन्हें प्राप्त हुआ है, लेकिन कोई समान लक्ष्य लेकर जो जी नहीं रहे होते ऐसे समुदाय को ‘समज’ कहते हैं और एक जैसा ही शरीर जिन्हें प्राप्त हुआ है किंतु साथ ही में जो एक समान लक्ष्य को लेकर विचारपूर्वक उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील हैं वह समुदाय समाज कहलाता है। इसीलिये मेले में एकत्रित मानव समुदाय को भीड कहते हैं। भीड में उपस्थित लोग अलग अलग उद्देष्य लेकर मेले में आते हैं। इसलिये भीड को समाज नहीं कहते। समाज भावना का सबसे अच्छा उदाहरण पंढरपुर की वारीजैसा होता है| इसमें सब का लक्ष्य एक होता है| और सबके सहभाग और सहयोग से इस लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है|
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१.  मानव अकेला अपने आप जन्म नहीं लेता। वह माँ के साथ बँधकर ही, नाल से जुडकर ही जन्म लेता है। उसे एक अलग मानव तो नाल काटकर ही बनाया जाता है। इस प्रकार से मानव का समष्टि से संबंध तो गर्भ से ही शुरू होता है। नाल काटी जाने तक तो वह माता का ही एक हिस्सा होता है। इसलिये मानव का समाज पर अवलंबन तो गर्भावस्था से ही शुरू होता है।
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जन्म से पशूवत् मानव को रक्षण, पोषण तथा संस्कार और शिक्षा देकर उसे समाज में रहने और अपना दायित्व निभाने योग्य बनाना समाज का काम होता है। आगे समर्थ और सक्षम बनकर समाज के ऋण को चुकाना व्यक्ति का दायित्व होता है। इस दायित्व को निभाना उस व्यक्ति को अपने आगामी जीवन के लिये और समाज के लिये भी सदैव हितकारी होता है।
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२.  मानव जन्म के समय तो इतना अक्षम होता है कि वह अन्य लोगों की मदद के बगैर जी नहीं सकता। उसका पूरा विकास ही लोगों की यानी समाज की मदद लेकर ही होता रहता है। समाज का यह ऋण होता है। देवऋण, पितरऋण, गुरूऋण, समाजऋण और भूतऋण ऐसे मोटेमोटे प्रमुख रूप से पाँच ऋण लेता हुवा ही जीवन में मानव आगे बढता है। इन ऋणों से उॠण होने के प्रयास यदि वह नहीं करता है तो इन ऋणों का बोझ, इन उपकारों का बोझ बढता ही जाता है। जिस प्रकार से ऋण नहीं चुकाने से गृहस्थ की साख घटती जाती है उसी तरह जो अपने ऋण उसी जन्म में नहीं चुका पाता वह अधम गति को प्राप्त होता है। यानी घटिया स्तर का मानव जन्म या ऋणों का बोझ जब अत्यधिक हो जाता है तब पशू योनियों में जन्म प्राप्त करता है। कृतज्ञता या ऋण का बोझ और अधम गति को जाना केवल मनुष्य को इसलिये लागू है कि उसे परमात्मा ने श्रेष्ठ स्मृति की शक्ति दी हुई है। ऋण सिध्दांत की अधिक जानकारी के लिये भारतीय जीवन दृष्टी अध्याय ७/८ देखें|
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३.  यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे के न्याय से समाज भी एक जीवंत ईकाई है। यह भी सुखी होता है, समृध्द होता है, सुसंस्कृत होता है। समाज को भी मन होता है। पंचकोश होते हैं। अपने जीने का एक तरीका होता है। श्रेष्ठ जीवन जीने की जीवनदृष्टि होती है। भारतीय जीवनदृष्टि और व्यवहार सूत्र या जीवनशैली के सूत्र जानने के लिये कृपया अध्याय ७/८ देखें|
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४.  समाज जीवन का लक्ष्य ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ से भिन्न नहीं हो सकता। इसलिये व्यक्तियों में जो अच्छी बुरी वृत्तियाँ होतीं हैं उन्हें ध्यान में रखकर समाज में व्यवस्थाएँ निर्माण करनी होती हैं। व्यवस्थाओं का प्रवर्तन चार प्रकार से होता है। सज्जन लोगों के लिये तो शिक्षा का माध्यम पर्याप्त होता है। इसे हमारे पूर्वज विनयाधान कहते थे। जो नासमझ लोग होते हैं कुछ अल्पबुध्दि होते हैं और अपनी नासमझी या अल्पबुध्दि को जानते हैं, उन के लिये अधिकारी व्यक्ति के आदेश के माध्यम से काम चल जाता है। कुछ लोग क्षणिक आवेग में व्यवस्था भंग कर देते हैं या अपराध कर देते हैं। ऐसे लोगों के लिये पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त की व्यवस्था होती है। लेकिन जो नासमझ होकर भी अपने को समझदार मानते हैं ऐसे मूर्ख लोग और जो मूलत: दुष्ट बुध्दि होते हैं ऐसे लोगों के लिये दण्डविधान की व्यवस्था होती है।
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५.  अपनी जीवनदृष्टि के अनुसार जीने के लिये तथा लोगों के योगक्षेम के लिये समाज अपनी कुछ व्यवस्थाएँ, संस्थाएँ और प्रक्रियाएँ विकसित करता है। यह व्यवस्थाएँ मोटे तौरपर तीन उद्देष्यों के लिये होती हैं। रक्षण, पोषण और शिक्षण। प्राचीन काल से चला आ रहा भारतीय व्यवस्थाओं का ढाँचा कैसा होगा इसका एक मोटा मोटा स्वरूप अध्याय २६ में देखें|
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६.  मानव समाज में परमात्मा निर्मित चार वर्ण होते हैं| अब इन वर्णों का लाभ व्यक्ति और समाज दोनों को मिले इस लिये हमारे पूर्वजों ने जो व्यवस्था की थी उसका विचार करेंगे। वेद सत्य ज्ञान के ग्रंथ हैं। वेदों के अनुसार जो विभिन्न वर्णों की योग्यता है उसी के लिये व्यवस्था बनाना उचित होगा। इस के चरण निम्न हैं।
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- प्रत्येक जन्मे हुए बालक को परखकर उसका वर्ण जानना। यह काम माता पिता अपने कुल पुरोहित के मार्गदर्शन में   करें यह परंपरा थी।
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- वर्ण को जानकर बालक जिस वर्ण का है उस वर्ण के संस्कार उसे मिले ऐसी योजना बनाना। सामान्यत: आजकल के माता-पिता अपघात से बच्चों को जन्म देते हैं। किंतु बालक को यदि विचारपूर्वक, योजनापूर्वक तथा विशेष प्रयासों से जन्म दिया जाये तो पैदा होनेवाले बच्चे अपने पिता के वर्ण के ही होते हैं। इस तरह पिता का वर्ण आगे चलता है। समाज में वर्ण संतुलन बना रहता है। पिता जब अपने वर्ण के अनुसार कर्म करता है तब उसके घर का वातावरण स्वाभाविक रूप से बच्चों को योग्य वर्ण संस्कारोंसे संस्कारित करता है।
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- ‘वर्णानुरूप शिक्षा’ का काम श्रेष्ठ आचार्यों के आश्रमों में या गुरुकुलों में देने की व्यवस्था करना उचित होता है। केवल माता पिता ने कहा है इसपर निर्भर नहीं रहकर आचार्य बच्चे को अच्छी तरह परखकर उसके वर्णको समझते हैं। तब उस वर्ण के तीव्र संस्कार और शास्त्रीय शिक्षा की व्यवस्था आचार्य उनके लिये करते हैं।
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- जन्मजात वर्ण, वर्ण संस्कार और वर्ण शिक्षा की प्राप्ति के बाद वर्ण प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। सामान्यत: अच्छे गुरुकुलों में यह प्रशिक्षण गुरुकुलों में ही संपन्न ओ जाता है। इसलिये जब बालक गुरुकुल की शिक्षा सम्पन्न कर समाज में आता है तब वह एक जिम्मेदार और कर्तृत्ववान समाजघटक के रूप में अपना व्यक्तिगत और सामाजिक दायित्व सहज ही निभाने में सफल होता है।
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- हर बालक शीघ्रातिशीघ्र स्वतंत्र बनना चाहता है। वह अपने से बडों के व्यवहार का निरीक्षण करता रहता है। बडों को मिल रही स्वतंत्रता का खुद भी भोग करना चाहता है। इसलिये उसका स्वभाव बडों के अनुकरण का होता है। बच्चे के साथ अधिक से अधिक समय तक रहनेवाले व्यक्तियों में से अधिक से अधिक स्वतंत्र व्यक्ति का वह अनुकरण के लिये चयन करता है। इसीलिये गुरूकुल व्यवस्था शिक्षा की सभी प्रणालियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसमें बच्चा गुरूगृहवासी होता है। अत्यंत श्रेष्ठ आचरणवाले, क्षमतावान गुरू के साथ २४ घंटे और कई वर्ष तक रहता है। गुरू सिखाता है वह तो बच्चा सीखता ही है लेकिन उससे भी अधिक गुरू जो व्यवहार करता है उससे वह अधिक सीखता है। घरों में अपवाद से ही कोई माता-पिता गुरू जैसे श्रेष्ठ आचरण और क्षमतावाले होते हैं। इसलिये भी गुरूकुल शिक्षा का कोई सानी नहीं है।
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७.  समाज के सुखी बनने के लिये भी निम्न चार बातें जैसे व्यक्ति के लिये आवश्यक है उसी प्रकार इन चार बातों का समष्टीगत होना समाज के लिये भी आवश्यक है। ये बातें जितनी मात्रा में समष्टीगत होंगी उसी मात्रा में समाज सुखी और व्यक्ति भी सुखी बनेगा। - सुसाध्य आजीविका - स्वतंत्रता - शांति - पौरुष
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इन चार में पहले तीन का सीधा संबंध और चौथे का अपरोक्ष संबंध समाज से होता है। यहाँ पौरुष से तात्पर्य औरों के हित में काम करने से है| समष्टी के सुख के कामों में हाथ बटाने से है| व्यक्तिगत और समाजगत सुख के लिये ये सब आवश्यक हैं। स्वतंत्रता भी निम्न चार प्रकारकी होती है।
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- स्वाभाविक - शासनिक - आर्थिक
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स्वाभाविक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति के किसी भी स्वाभाविक काम के, जो अन्यों के लिए अहितकारी नहीं है, उसके करने में किसी भी प्रकारसे कोई अवरोध न हो| ऐसा ही अर्थ अन्य स्वतंत्रताओं का है|
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८.  समाज एक शृंखलाजैसा होता है। समाज के घटक व्यक्ति इसकी एक कडी होती है। समाज की शक्ति उस शृंखला की सबसे दुर्बल कडी की शक्ति जितनी ही होती है। इसलिये समाज का कोई भी व्यक्ति दुर्बल न रहे, आवश्यकताओं से वंचित न रहे, समाधानी रहे इस का दायित्व समाज का होता है।
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९.  देशिक शास्त्र के अनुसार समाज में विभूति संयम और संतुलन होना भी अनिवार्य है। विभूति का अर्थ है विशेष बातें। या विशेष अधिकार। इन अधिकारों के साथ उसका यथोचित मूल्य जोडने से विभूति संयम और संतुलन बना रहता है। विभूति संयम और संतुलन की एक तालिका से यह विषय अधिक स्पष्ट होगा।
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वर्ण कर्म विभूति मूल्य
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ब्राह्मण इंद्रियों का दमन करना, धर्मपालन के लिये कष्ट सहना सर्वोच्च दारिद्रय
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बाहर-भीतर से शुध्द रहना, अन्यों को अपराध क्षमा करना सम्मान विषय-त्याग
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मन, शरीर को पवित्र रखना, वेद, शास्त्रों का अध्ययन करना
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वेद, शास्त्रों का अध्यापन करना,
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समाज की स्वाभाविक स्वतंत्रता की रक्षा करना
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क्षत्रिय शूरवीरता, तेज, धैर्य, चातुर्य, युध्द में पीठ नहीं दिखाना ऐश्वर्य प्राण की बाजी
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दान देना, स्वमि-भाव (आश्रयदाता) में रहना सत्ता सुख चैन त्याग
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वेद, शास्त्र और शस्त्रों का अध्ययन/अभ्यास करना
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समाज की शासनिक स्वतंत्रता की रक्षा करना
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वैश्य खेती, गोपालन, सत्य व्यवहार से व्यापार, उत्पादन, उपभोग     समाज-ममत्व
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उचित वितरण, पूरे समाज का भरण पोषण विलास निरपेक्षता
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वेद और शास्त्रों का अध्ययन करना, दान देना,
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समाज की आर्थिक स्वतंत्रता की रक्षा करना
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शूद्र कला, कारीगरी, मनोरंजन, परिचर्यात्मक काम निश्चिन्तता निरीहता, परिचर्या
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समाज की आवकाशिक स्वतंत्रता की रक्षा करना सहिष्णुता
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विभूति संयम के लिये लोगों की या समाज की मानसिकता बनाए बगैर संतुलन संभव नहीं होता। यह मानसिकता बनाना अत्यंत कठिन काम है। ब्राह्मण वर्ण को दरिद्रता और विषय त्याग के बदले में सर्वोच्च सम्मान, क्षत्रिय को सदैव लोगों के रक्षण में रत रहकर मृत्यू की छाया में रहने के बदले में ऐश्वर्य और सत्ता, वैश्य को समूचे समाज का माता की तरह पोषण करने की जिम्मेदारी के बदले में विलास और उपभोग और शूद्र को अन्य सभी वर्णों के लोगों की सेवा के बदले में आजीविका की निश्चिन्तता प्राप्त होती है।  
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एक आलू की बोरी में आलू बंधे होते हैं । जब तक बाहरी बोरी खुलती या फटती नहीं आलू बोरी के अन्दर रहते हैं । जैसे ही बोरी का अवरोध हट जाता है आलू बिखर जाते हैं । ऐसे बिखरने वाले आलू और बोरी जैसा व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध नहीं होता । यह स्थिर होता है । लेकिन अनार को तोडने पर भी अनार के दाने बिखरते नहीं हैं । तो क्या समाज और व्यक्ति संबंध अनार और उसके दानोंजैसा है?
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समाज कुछ बातों में अनार जैसा होता है । जिस प्रकार अनार उसके अन्दर विद्यमान दानों के विकास के साथ विकास पाता है । हर दाने का विकास उसके पड़ोसी और अन्य सभी दानों के परिप्रेक्ष में ही होता है । उसी तरह से सामाजिक वातावरण ऐसा होना चाहिए जिससे किसी भी व्यक्ति के स्वाभाविक विकास में बाधा न हो । इसी प्रकार अनार की विशेषता यह होती है कि इसके दानों की विकसित होने की सीमा अनार के बाहरी आवरण की संभाव्य वृद्धि तक की ही होती है । लेकिन अनार और अनार के दानों में जीवात्मा नहीं होता । इसलिए समाज अनार से अधिक कुछ भी है ।
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तो क्या समाज एक दौड़ की स्पर्धा जैसा होता है । सभी का लक्ष्य एक ही होता है । एक ही दिशा में सभी लोग चलते हैं । लेकिन स्पर्धा में लक्ष्य एक ही होनेपर भी वह प्रत्येक का व्यक्तिगत लक्ष्य होता है । अन्य लोग उसे प्राप्त नहीं कर सकें ऐसी इच्छा प्रत्येक की होती है । और ऐसा ही प्रयास प्रत्येक का होता है । इसलिए समाज दौड़ की स्पर्धा जैसा भी नहीं है ।
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शब्दकल्पद्रुम मे दी हुई समाज की व्याख्या के अनुसार एक जैसा ही शरीर जिन्हें प्राप्त हुआ है, लेकिन कोई समान लक्ष्य लेकर जो जी नहीं रहे होते ऐसे समुदाय को ‘समज’ कहते हैं और एक जैसा ही शरीर जिन्हें प्राप्त हुआ है किंतु साथ ही में जो एक समान लक्ष्य को लेकर विचारपूर्वक उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील हैं वह समुदाय समाज कहलाता है। इसीलिये मेले में एकत्रित मानव समुदाय को भीड कहते हैं। भीड में उपस्थित लोग अलग अलग उद्देश्य लेकर मेले में आते हैं। इसलिये भीड को समाज नहीं कहते। समाज भावना का सबसे अच्छा उदाहरण पंढरपुर की वारी जैसा होता है । इसमें सब का लक्ष्य एक होता है । और सबके सहभाग और सहयोग से इस लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है । कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
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# मानव अकेला अपने आप जन्म नहीं लेता। वह माँ के साथ बँधकर ही, नाल से जुडकर ही जन्म लेता है। उसे एक अलग मानव तो नाल काटकर ही बनाया जाता है। इस प्रकार से मानव का समष्टि से संबंध तो गर्भ से ही शुरू होता है। नाल काटी जाने तक तो वह माता का ही एक हिस्सा होता है। इसलिये मानव का समाज पर अवलंबन तो गर्भावस्था से ही शुरू होता है। जन्म से पशूवत् मानव को रक्षण, पोषण तथा संस्कार और शिक्षा देकर उसे समाज में रहने और अपना दायित्व निभाने योग्य बनाना समाज का काम होता है। आगे समर्थ और सक्षम बनकर समाज के ऋण को चुकाना व्यक्ति का दायित्व होता है। इस दायित्व को निभाना उस व्यक्ति को अपने आगामी जीवन के लिये और समाज के लिये भी सदैव हितकारी होता है।
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# मानव जन्म के समय तो इतना अक्षम होता है कि वह अन्य लोगों की मदद के बगैर जी नहीं सकता। उसका पूरा विकास ही लोगों की यानी समाज की मदद लेकर ही होता रहता है। समाज का यह ऋण होता है। देवऋण, पितरऋण, गुरूऋण, समाजऋण और भूतऋण ऐसे मोटे मोटे प्रमुख रूप से पाँच ऋण लेता हुवा ही जीवन में मानव आगे बढता है। इन ऋणों से उॠण होने के प्रयास यदि वह नहीं करता है तो इन ऋणों का बोझ, इन उपकारों का बोझ बढता ही जाता है। जिस प्रकार से ऋण नहीं चुकाने से गृहस्थ की साख घटती जाती है उसी तरह जो अपने ऋण उसी जन्म में नहीं चुका पाता वह अधम गति को प्राप्त होता है। यानी घटिया स्तर का मानव जन्म या ऋणों का बोझ जब अत्यधिक हो जाता है तब पशू योनियों में जन्म प्राप्त करता है। कृतज्ञता या ऋण का बोझ और अधम गति को जाना केवल मनुष्य को इसलिये लागू है कि उसे परमात्मा ने श्रेष्ठ स्मृति की शक्ति दी हुई है। ऋण सिध्दांत की अधिक जानकारी के लिये इस [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|लेख]] और इस [[Personality (व्यक्तित्व)|लेख]] को देखें ।
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# यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे के न्याय से समाज भी एक जीवंत ईकाई है। यह भी सुखी होता है, समृध्द होता है, सुसंस्कृत होता है। समाज को भी मन होता है। पंचकोश होते हैं। अपने जीने का एक तरीका होता है। श्रेष्ठ जीवन जीने की जीवनदृष्टि होती है। भारतीय जीवनदृष्टि और व्यवहार सूत्र या जीवनशैली के सूत्र जानने के लिये इस [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|लेख]] और इस [[Personality (व्यक्तित्व)|लेख]] को देखें ।
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# समाज जीवन का लक्ष्य ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ से भिन्न नहीं हो सकता। इसलिये व्यक्तियों में जो अच्छी बुरी वृत्तियाँ होतीं हैं उन्हें ध्यान में रखकर समाज में व्यवस्थाएँ निर्माण करनी होती हैं। व्यवस्थाओं का प्रवर्तन चार प्रकार से होता है। सज्जन लोगों के लिये तो शिक्षा का माध्यम पर्याप्त होता है। इसे हमारे पूर्वज विनयाधान कहते थे। जो नासमझ लोग होते हैं कुछ अल्पबुध्दि होते हैं और अपनी नासमझी या अल्पबुध्दि को जानते हैं, उन के लिये अधिकारी व्यक्ति के आदेश के माध्यम से काम चल जाता है। कुछ लोग क्षणिक आवेग में व्यवस्था भंग कर देते हैं या अपराध कर देते हैं। ऐसे लोगों के लिये पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त की व्यवस्था होती है। लेकिन जो नासमझ होकर भी अपने को समझदार मानते हैं ऐसे मूर्ख लोग और जो मूलत: दुष्ट बुध्दि होते हैं ऐसे लोगों के लिये दण्डविधान की व्यवस्था होती है।
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# अपनी जीवनदृष्टि के अनुसार जीने के लिये तथा लोगों के योगक्षेम के लिये समाज अपनी कुछ व्यवस्थाएँ, संस्थाएँ और प्रक्रियाएँ विकसित करता है। यह व्यवस्थाएँ मोटे तौरपर तीन उद्देष्यों के लिये होती हैं। रक्षण, पोषण और शिक्षण।
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# मानव समाज में परमात्मा निर्मित चार वर्ण होते हैं । अब इन वर्णों का लाभ व्यक्ति और समाज दोनों को मिले इस लिये हमारे पूर्वजों ने जो व्यवस्था की थी उसका विचार करेंगे। वेद सत्य ज्ञान के ग्रंथ हैं। वेदों के अनुसार जो विभिन्न वर्णों की योग्यता है उसी के लिये व्यवस्था बनाना उचित होगा। इस के चरण निम्न हैं:
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#* प्रत्येक जन्मे हुए बालक को परखकर उसका वर्ण जानना। यह काम माता पिता अपने कुल पुरोहित के मार्गदर्शन में करें यह परंपरा थी
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#* वर्ण को जानकर बालक जिस वर्ण का है उस वर्ण के संस्कार उसे मिले ऐसी योजना बनाना। सामान्यत: आजकल के माता-पिता अपघात से बच्चों को जन्म देते हैं। किंतु बालक को यदि विचारपूर्वक, योजनापूर्वक तथा विशेष प्रयासों से जन्म दिया जाये तो पैदा होनेवाले बच्चे अपने पिता के वर्ण के ही होते हैं। इस तरह पिता का वर्ण आगे चलता है। समाज में वर्ण संतुलन बना रहता है। पिता जब अपने वर्ण के अनुसार कर्म करता है तब उसके घर का वातावरण स्वाभाविक रूप से बच्चों को योग्य वर्ण संस्कारोंसे संस्कारित करता है।
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#* ‘वर्णानुरूप शिक्षा’ का काम श्रेष्ठ आचार्यों के आश्रमों में या गुरुकुलों में देने की व्यवस्था करना उचित होता है। केवल माता पिता ने कहा है इसपर निर्भर नहीं रहकर आचार्य बच्चे को अच्छी तरह परखकर उसके वर्ण को समझते हैं। तब उस वर्ण के तीव्र संस्कार और शास्त्रीय शिक्षा की व्यवस्था आचार्य उनके लिये करते हैं।
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#* जन्मजात वर्ण, वर्ण संस्कार और वर्ण शिक्षा की प्राप्ति के बाद वर्ण प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। सामान्यत: अच्छे गुरुकुलों में यह प्रशिक्षण गुरुकुलों में ही संपन्न हो जाता है। इसलिये जब बालक गुरुकुल की शिक्षा सम्पन्न कर समाज में आता है तब वह एक जिम्मेदार और कर्तृत्ववान समाजघटक के रूप में अपना व्यक्तिगत और सामाजिक दायित्व सहज ही निभाने में सफल होता है।
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#* हर बालक शीघ्रातिशीघ्र स्वतंत्र बनना चाहता है। वह अपने से बडों के व्यवहार का निरीक्षण करता रहता है। बडों को मिल रही स्वतंत्रता का खुद भी भोग करना चाहता है। इसलिये उसका स्वभाव बडों के अनुकरण का होता है। बच्चे के साथ अधिक से अधिक समय तक रहनेवाले व्यक्तियों में से अधिक से अधिक स्वतंत्र व्यक्ति का वह अनुकरण के लिये चयन करता है। इसीलिये गुरूकुल व्यवस्था शिक्षा की सभी प्रणालियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसमें बच्चा गुरूगृहवासी होता है। अत्यंत श्रेष्ठ आचरणवाले, क्षमतावान गुरू के साथ २४ घंटे और कई वर्ष तक रहता है। गुरू सिखाता है वह तो बच्चा सीखता ही है लेकिन उससे भी अधिक गुरू जो व्यवहार करता है उससे वह अधिक सीखता है। घरों में अपवाद से ही कोई माता-पिता गुरू जैसे श्रेष्ठ आचरण और क्षमतावाले होते हैं। इसलिये भी गुरूकुल शिक्षा का कोई सानी नहीं है।
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# समाज के सुखी बनने के लिये भी निम्न चार बातें जैसे व्यक्ति के लिये आवश्यक है उसी प्रकार इन चार बातों का समष्टीगत होना समाज के लिये भी आवश्यक है। ये बातें जितनी मात्रा में समष्टीगत होंगी उसी मात्रा में समाज सुखी और व्यक्ति भी सुखी बनेगा। यह हैं:
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#* सुसाध्य आजीविका
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#* स्वतंत्रता
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#* शांति
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#* पौरुष
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# इन चार में पहले तीन का सीधा संबंध और चौथे का अपरोक्ष संबंध समाज से होता है। यहाँ पौरुष से तात्पर्य औरों के हित में काम करने से है । समष्टी के सुख के कामों में हाथ बटाने से है । व्यक्तिगत और समाजगत सुख के लिये ये सब आवश्यक हैं। स्वतंत्रता भी निम्न प्रकारकी होती है:
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#* शासनिक
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#* आर्थिक
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#* स्वाभाविक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति के किसी भी स्वाभाविक काम के, जो अन्यों के लिए अहितकारी नहीं है, उसके करने में किसी भी प्रकारसे कोई अवरोध न हो । ऐसा ही अर्थ अन्य स्वतंत्रताओं का है।
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# समाज एक शृंखला जैसा होता है। समाज के घटक व्यक्ति इसकी एक कडी होती है। समाज की शक्ति उस शृंखला की सबसे दुर्बल कडी की शक्ति जितनी ही होती है। इसलिये समाज का कोई भी व्यक्ति दुर्बल न रहे, आवश्यकताओं से वंचित न रहे, समाधानी रहे इस का दायित्व समाज का होता है।
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# देशिक शास्त्र के अनुसार समाज में विभूति संयम और संतुलन होना भी अनिवार्य है। विभूति का अर्थ है विशेष बातें। या विशेष अधिकार। इन अधिकारों के साथ उसका यथोचित मूल्य जोडने से विभूति संयम और संतुलन बना रहता है। विभूति संयम और संतुलन की एक तालिका से यह विषय अधिक स्पष्ट होगा।
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{| class="wikitable"
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!वर्ण
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!कर्म
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!विभूति
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!मूल्य
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|ब्राह्मण
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|इंद्रियों का दमन करना,
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धर्मपालन के लिये कष्ट सहना,
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बाहर-भीतर से शुध्द रहना,
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अन्यों को अपराध क्षमा करना,
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मन, शरीर को पवित्र रखना,
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 +
वेद, शास्त्रों का अध्ययन करना,
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वेद, शास्त्रों का अध्यापन करना
 +
 
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समाज की स्वाभाविक स्वतंत्रता की रक्षा करना
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|सर्वोच्च,
 +
सम्मान
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|दारिद्रय
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विषय-त्याग
 +
|-
 +
|क्षत्रिय
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|शूरवीरता, तेज, धैर्य, चातुर्य,
 +
युध्द में पीठ नहीं दिखाना, दान देना,
 +
 
 +
स्वामी-भाव (आश्रयदाता) में रहना
 +
 
 +
वेद, शास्त्र और शस्त्रों का अध्ययन/अभ्यास करना,
 +
 
 +
समाज की शासनिक स्वतंत्रता की रक्षा करना
 +
|ऐश्वर्य,
 +
सत्ता
 +
|प्राण की बाजी,
 +
सुख चैन त्याग
 +
|-
 +
|वैश्य
 +
|खेती, गोपालन, सत्य व्यवहार से व्यापार, उत्पादन,
 +
उपभोग, समाज-ममत्व, उचित वितरण,
 +
 
 +
पूरे समाज का भरण पोषण, वेद और शास्त्रों का अध्ययन करना,
 +
 
 +
दान देना, समाज की आर्थिक स्वतंत्रता की रक्षा करना
 +
|विलास
 +
|निरपेक्षता
 +
|-
 +
|शूद्र
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|कला, कारीगरी, मनोरंजन, परिचर्यात्मक काम,
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समाज की आवकाशिक स्वतंत्रता की रक्षा करना
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|निश्चिन्तता
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|निरीहता,
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परिचर्या (सेवा),
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सहिष्णुता
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|}
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विभूति संयम के लिये लोगों की या समाज की मानसिकता बनाए बगैर संतुलन संभव नहीं होता। यह मानसिकता बनाना अत्यंत कठिन काम है। ब्राह्मण वर्ण को दरिद्रता और विषय त्याग के बदले में सर्वोच्च सम्मान, क्षत्रिय को सदैव लोगों के रक्षण में रत रहकर मृत्यू की छाया में रहने के बदले में ऐश्वर्य और सत्ता, वैश्य को समूचे समाज का माता की तरह पोषण करने की जिम्मेदारी के बदले में विलास और उपभोग और शूद्र को अन्य सभी वर्णों के लोगों की सेवा के बदले में आजीविका की निश्चिन्तता प्राप्त होती है।  
 
जब समाज में सभी विभूतियाँ एक को ही या कुछ लोगों को ही प्राप्त हों और अन्य लोग विभूतियों से वंचित रह जाएँ तो कोई समाज सुख चैन से नहीं रह सकता। इसीलिये विभूति संयम (व्यक्ति की ओर से) और विभूति संतुलन (समाज की ओर से) की समाज में प्रतिष्ठापना समाज स्वास्थ्य के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण बात है।
 
जब समाज में सभी विभूतियाँ एक को ही या कुछ लोगों को ही प्राप्त हों और अन्य लोग विभूतियों से वंचित रह जाएँ तो कोई समाज सुख चैन से नहीं रह सकता। इसीलिये विभूति संयम (व्यक्ति की ओर से) और विभूति संतुलन (समाज की ओर से) की समाज में प्रतिष्ठापना समाज स्वास्थ्य के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण बात है।
 
समाज का वर्णगत वर्गीकरण और उन के अनुसार विभूतियों की प्राप्ति उन्हें होने से समाज में संतुलन बना रहता है। अर्थ का अभाव और प्रभाव दोनों नहीं रहते। शासन भी विकेंद्रित रहने से बिगडने की संभावनाएँ कम हो जातीं हैं।
 
समाज का वर्णगत वर्गीकरण और उन के अनुसार विभूतियों की प्राप्ति उन्हें होने से समाज में संतुलन बना रहता है। अर्थ का अभाव और प्रभाव दोनों नहीं रहते। शासन भी विकेंद्रित रहने से बिगडने की संभावनाएँ कम हो जातीं हैं।
१०. समाज में विशेष प्रतिभावान लोग तो अपवाद से ही होते हैं। धर्म क्या है इसे समझना उसके अनुसार आचरण करना, लोगों को अपनी बातों (शिक्षा) से और आचरण से समझाना और शिक्षा या शासन के माध्यम से समाज धर्माचरण करे यह सुनिश्चित करना, यह काम इन प्रतिभावान लोगों का होना चाहिये। इस दृष्टि से उन्हें संस्कारित, शिक्षित और प्रशिक्षित करना चाहिये। साथ ही में शेष समाज आज्ञाकारी बनें यह भी उतना ही आवश्यक है। आज्ञाकारी बनाने के काम का बडा हिस्सा भारत में परिवारों में होता था। उस का शास्त्रीय समर्थन गुरुकुलों (विद्याकेंद्रों)की शिक्षा में होता था। और लोकशिक्षा के माध्यम से उस मानसिकता को बनाए रखने के लिये प्रयास होते थे। वर्त्तमान में यह संस्कार परिवारों में अभाव से ही होते हैं| वर्त्तमान विपरीत शिक्षा और डेमोक्रेसी कतंत्र तो समाज की आज्ञाकारिता को नष्ट करने का काम ही करते हैं|
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१०. समाज में विशेष प्रतिभावान लोग तो अपवाद से ही होते हैं। धर्म क्या है इसे समझना उसके अनुसार आचरण करना, लोगों को अपनी बातों (शिक्षा) से और आचरण से समझाना और शिक्षा या शासन के माध्यम से समाज धर्माचरण करे यह सुनिश्चित करना, यह काम इन प्रतिभावान लोगों का होना चाहिये। इस दृष्टि से उन्हें संस्कारित, शिक्षित और प्रशिक्षित करना चाहिये। साथ ही में शेष समाज आज्ञाकारी बनें यह भी उतना ही आवश्यक है। आज्ञाकारी बनाने के काम का बडा हिस्सा भारत में परिवारों में होता था। उस का शास्त्रीय समर्थन गुरुकुलों (विद्याकेंद्रों)की शिक्षा में होता था। और लोकशिक्षा के माध्यम से उस मानसिकता को बनाए रखने के लिये प्रयास होते थे। वर्त्तमान में यह संस्कार परिवारों में अभाव से ही होते हैं वर्त्तमान विपरीत शिक्षा और डेमोक्रेसी कतंत्र तो समाज की आज्ञाकारिता को नष्ट करने का काम ही करते हैं
 
११. समाज की मानव से अपेक्षायँ निम्न होतीं हैं।
 
११. समाज की मानव से अपेक्षायँ निम्न होतीं हैं।
 
-  व्यवस्थाओं का अनुपालन - सामजिक आवश्यकताओं/हित की दृष्टि से सार्थक/उत्पादक योगदान
 
-  व्यवस्थाओं का अनुपालन - सामजिक आवश्यकताओं/हित की दृष्टि से सार्थक/उत्पादक योगदान
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इसी के साथ हर व्यक्ति की क्षमताओं और योग्यताओं का उस व्यक्ति के हित के साथ साथ ही समाज के हित में उपयोग होना चाहिये। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति के विकास की उच्चतम संभावनाओं के विकास के अवसर उसे समाज में प्राप्त होने चाहिये। ऐसा जब होता है तो समाज एक परिवार बनता है। साथ ही में सामाजिक न्याय की भी प्रतिष्ठापना हो जाती है।
 
इसी के साथ हर व्यक्ति की क्षमताओं और योग्यताओं का उस व्यक्ति के हित के साथ साथ ही समाज के हित में उपयोग होना चाहिये। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति के विकास की उच्चतम संभावनाओं के विकास के अवसर उसे समाज में प्राप्त होने चाहिये। ऐसा जब होता है तो समाज एक परिवार बनता है। साथ ही में सामाजिक न्याय की भी प्रतिष्ठापना हो जाती है।
 
२३. सृष्टि में सभी विषय और व्यवस्थाएँ एक दूसरे से अंगांगी भाव से जुडी हुई हैं। अंग विषय में कोई भी बात अंगी के विरोधी या विपरीत नहीं होगी। परामात्मा ने सृष्टि का निर्माण किया इस कारण प्रकृति के नियमों को खोजकर प्राकृतिक शास्त्रों की प्रस्तुति की गई है। जैसे प्राणिशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि। मानव ने भी अपनी प्रतिभा से अपने हित की दृष्टि से कुछ शास्त्रों का निर्माण किया है। इन्हें सांस्कृतिक शास्त्र कहा जाता है। जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र, राज्यशास्त्र आदि। इन सभी शास्त्रों के उपयोग के लिये जो व्यवस्थाएँ बनतीं हैं उन्हें अगांगी संबंध समझकर बनाने से व्यक्तिगत समष्टिगत और सृष्टि जीवन अच्छा चलता है। इन की एक मोटी मोटी रूपरेखा अध्याय २७ विषयों का अंगांगी संबंध में दी है।
 
२३. सृष्टि में सभी विषय और व्यवस्थाएँ एक दूसरे से अंगांगी भाव से जुडी हुई हैं। अंग विषय में कोई भी बात अंगी के विरोधी या विपरीत नहीं होगी। परामात्मा ने सृष्टि का निर्माण किया इस कारण प्रकृति के नियमों को खोजकर प्राकृतिक शास्त्रों की प्रस्तुति की गई है। जैसे प्राणिशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि। मानव ने भी अपनी प्रतिभा से अपने हित की दृष्टि से कुछ शास्त्रों का निर्माण किया है। इन्हें सांस्कृतिक शास्त्र कहा जाता है। जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र, राज्यशास्त्र आदि। इन सभी शास्त्रों के उपयोग के लिये जो व्यवस्थाएँ बनतीं हैं उन्हें अगांगी संबंध समझकर बनाने से व्यक्तिगत समष्टिगत और सृष्टि जीवन अच्छा चलता है। इन की एक मोटी मोटी रूपरेखा अध्याय २७ विषयों का अंगांगी संबंध में दी है।
२४. समाज में उत्पादन की प्रभूतता हो। इस प्रभूतता का संदर्भ समाज की आवश्यकताओं से रहे। इच्छाओं से नहीं। उत्पादन भी 'सर्वे भवन्तु सुखिन: के विपरीत नहीं हो। यानी जिस वस्तू के उत्पादन और उपयोग से किसी का भी अहित होता हो ऐसा उत्पादन नहीं करना चाहिये। जब शंका हो तब सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये जीनेवाले ज्ञानी लोगों से मार्गदर्शन लेना|
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२४. समाज में उत्पादन की प्रभूतता हो। इस प्रभूतता का संदर्भ समाज की आवश्यकताओं से रहे। इच्छाओं से नहीं। उत्पादन भी 'सर्वे भवन्तु सुखिन: के विपरीत नहीं हो। यानी जिस वस्तू के उत्पादन और उपयोग से किसी का भी अहित होता हो ऐसा उत्पादन नहीं करना चाहिये। जब शंका हो तब सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिये जीनेवाले ज्ञानी लोगों से मार्गदर्शन लेना
२५. नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी का अंतर भी एक चिरंतन विषय है| इस के लिए मार्गदर्शक तत्त्व है – चिरंतन तत्त्वों की युगानुकूल प्रस्तुति करना| जैसे – वस्त्र पहनने के दो कारण हैं| पहला है विषम वातावरण से शरीर की रक्षा करना| दूसरा है लज्जा रक्षण| यहाँ लज्जा रक्षण का अर्थ ठीक से समझना होगा| जिन वस्त्रों के पहनने से देखनेवाला कामुक या उद्दीपित नहीं हो जाए ऐसे वस्त्र पहनना| जबतक इन दोनों बातों की आश्वस्ति होती है तबतक वस्त्रों के सभी नवाचार स्वीकार्य हैं|
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२५. नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी का अंतर भी एक चिरंतन विषय है इस के लिए मार्गदर्शक तत्त्व है – चिरंतन तत्त्वों की युगानुकूल प्रस्तुति करना जैसे – वस्त्र पहनने के दो कारण हैं पहला है विषम वातावरण से शरीर की रक्षा करना दूसरा है लज्जा रक्षण यहाँ लज्जा रक्षण का अर्थ ठीक से समझना होगा जिन वस्त्रों के पहनने से देखनेवाला कामुक या उद्दीपित नहीं हो जाए ऐसे वस्त्र पहनना जबतक इन दोनों बातों की आश्वस्ति होती है तबतक वस्त्रों के सभी नवाचार स्वीकार्य हैं
भारतीय सोच के अनुसार धर्म के कुछ तत्त्व जैसे रक्षण, पोषण, शिक्षण, सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अक्रोध आदि चिरंतन हैं। युगानुकूल सोच और व्यवहार का अर्थ है काल के साथ जो मानवीय क्षमताओं का क्षरण हुआ है, प्रकृति में जो परिवर्तन होते रहते हैं आदि जैसी बातों के साथ अनुकूलन|
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भारतीय सोच के अनुसार धर्म के कुछ तत्त्व जैसे रक्षण, पोषण, शिक्षण, सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अक्रोध आदि चिरंतन हैं। युगानुकूल सोच और व्यवहार का अर्थ है काल के साथ जो मानवीय क्षमताओं का क्षरण हुआ है, प्रकृति में जो परिवर्तन होते रहते हैं आदि जैसी बातों के साथ अनुकूलन
 
यही तत्व विदेशी सोच, व्यवहार और वस्तुओं के संबंध में उचित होती है। केवल किसी सोच, व्यवहार या वस्तु के उपयोग का प्रारंभ कहीं विदेश में हुआ है इसलिये उसको त्यागना ठीक नहीं है। वह यदि ‘सर्वे भवन्तु’ से सुसंगत है तो उसे देशानुकूल बनाकर उसका उपयोग करना चाहिये। जैसे भारत का बहुत बडा हिस्सा उष्ण जलवायू का है। यूरोप के देशों का वातावरण ठण्डा होने से वे टाय पहनते हैं। कमीज को टाय कॉलर भी होती है। भारत के ऊष्ण प्रदेशों में टाय लगाने की आवश्यकता नहीं होती। इसलिये बिना टाय कॉलर की कमीज इन प्रदेशों में योग्य है। इससे कुछ कपडे का दुरूपयोग और दर्जी के परिश्रम बचेंगे। खडी कॉलर यह विदेशी टाय कॉलर का देशानुकूल स्वरूप है।
 
यही तत्व विदेशी सोच, व्यवहार और वस्तुओं के संबंध में उचित होती है। केवल किसी सोच, व्यवहार या वस्तु के उपयोग का प्रारंभ कहीं विदेश में हुआ है इसलिये उसको त्यागना ठीक नहीं है। वह यदि ‘सर्वे भवन्तु’ से सुसंगत है तो उसे देशानुकूल बनाकर उसका उपयोग करना चाहिये। जैसे भारत का बहुत बडा हिस्सा उष्ण जलवायू का है। यूरोप के देशों का वातावरण ठण्डा होने से वे टाय पहनते हैं। कमीज को टाय कॉलर भी होती है। भारत के ऊष्ण प्रदेशों में टाय लगाने की आवश्यकता नहीं होती। इसलिये बिना टाय कॉलर की कमीज इन प्रदेशों में योग्य है। इससे कुछ कपडे का दुरूपयोग और दर्जी के परिश्रम बचेंगे। खडी कॉलर यह विदेशी टाय कॉलर का देशानुकूल स्वरूप है।
 
२६. हर समाज की अपनी कोई भाषा होती है। इस भाषा का विकास उस समाज के विकास के साथ ही होता है। इसलिये यह भाषा समाज की विचार, परंपराओं, मान्यताओं आदि को सही सही अभिव्यक्त करने की क्षमता रखती है। अन्य समाज की भाषा में सरल और सहज अभिव्यक्ति संभव नहीं होती। समाज की भाषा बिगडने से या नष्ट होने से विचार, परंपराओं, मान्यताओं आदि में परिवर्तन हो जाते हैं। फिर वह समाज पूर्व का समाज नहीं रह जाता।.
 
२६. हर समाज की अपनी कोई भाषा होती है। इस भाषा का विकास उस समाज के विकास के साथ ही होता है। इसलिये यह भाषा समाज की विचार, परंपराओं, मान्यताओं आदि को सही सही अभिव्यक्त करने की क्षमता रखती है। अन्य समाज की भाषा में सरल और सहज अभिव्यक्ति संभव नहीं होती। समाज की भाषा बिगडने से या नष्ट होने से विचार, परंपराओं, मान्यताओं आदि में परिवर्तन हो जाते हैं। फिर वह समाज पूर्व का समाज नहीं रह जाता।.
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२८. जब सामाजिक संबंधों का आधार ‘अपने अधिकार’' होता है तब समाज में संघर्ष, अशांति, तनाव अनिवार्य हो जाते हैं। किंतु जब समाज में परस्पर संबंध ‘अपने कर्तव्यों की पूर्ति’ पर आधारित होते हैं तब समाज का जीवन सुखी और शांततामय होता है।
 
२८. जब सामाजिक संबंधों का आधार ‘अपने अधिकार’' होता है तब समाज में संघर्ष, अशांति, तनाव अनिवार्य हो जाते हैं। किंतु जब समाज में परस्पर संबंध ‘अपने कर्तव्यों की पूर्ति’ पर आधारित होते हैं तब समाज का जीवन सुखी और शांततामय होता है।
 
२९. वर्तमान कानून के अनुसार किसी व्यक्ति का यदि ७ वर्षतक पता ठिकाना नहीं होता है तो उसे मरा हुआ माना जाता है। भारतीय मान्यता के अनुसार त्रेता युग में यह मान्यता १४ वर्ष की थी। इसीलिये कैकेयी ने राम को १४ वर्ष के वनवास में भेजा था। द्वापर में यही काल १३ वर्ष का था। इसीलिये पांडवों को १२ वर्ष के वनवास और १ वर्ष के अज्ञातवास में भेजा गया था। कलि युग में यह अवधि १२ वर्ष की होती है। इसके पीछे विचार यह है कि इतने वर्षों में लोग उसे भूल जाएँगे। वह व्यक्ति भी इस अवधि में पूर्णत: भिन्न जीवन जीने के कारण बदल जाएगा। इसीलिये जाति परिवर्तन के लिये १२ वर्षतक दूसरी जाति का जीवन जीने के उपरांत ही किसी व्यक्ति को दूसरी जाति में शामिल किया जाता था।
 
२९. वर्तमान कानून के अनुसार किसी व्यक्ति का यदि ७ वर्षतक पता ठिकाना नहीं होता है तो उसे मरा हुआ माना जाता है। भारतीय मान्यता के अनुसार त्रेता युग में यह मान्यता १४ वर्ष की थी। इसीलिये कैकेयी ने राम को १४ वर्ष के वनवास में भेजा था। द्वापर में यही काल १३ वर्ष का था। इसीलिये पांडवों को १२ वर्ष के वनवास और १ वर्ष के अज्ञातवास में भेजा गया था। कलि युग में यह अवधि १२ वर्ष की होती है। इसके पीछे विचार यह है कि इतने वर्षों में लोग उसे भूल जाएँगे। वह व्यक्ति भी इस अवधि में पूर्णत: भिन्न जीवन जीने के कारण बदल जाएगा। इसीलिये जाति परिवर्तन के लिये १२ वर्षतक दूसरी जाति का जीवन जीने के उपरांत ही किसी व्यक्ति को दूसरी जाति में शामिल किया जाता था।
३०. हर जीव का अपना स्वभाव होता है| इस स्वभाव के अनुसार व्यवहार करना उसका धर्म होता है| श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है –
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३०. हर जीव का अपना स्वभाव होता है इस स्वभाव के अनुसार व्यवहार करना उसका धर्म होता है श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है –
स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: |   (३-३५)
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स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:   (३-३५)
धर्म का तात्पर्य ही प्रकृति के नियमों से है| प्रकृति के नियमों का पालन करने से अपना जीवन सुखमय होता है| किन्तु कभी कभी अपना सुख अन्यों के सुख का विरोधी बन सकता है| इसे ध्यान में रखकर जब स्वभाव के अनुसार ही लेकिन अधिक अच्छे तरीके से व्यवहार होता है तो संस्कृति का उदय होता है| संस्कृति का अर्थ है सम्यक कृति| सम्यक का अर्थ है अपने स्वभाव के अनुसार ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिए की हुई कृति|
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धर्म का तात्पर्य ही प्रकृति के नियमों से है प्रकृति के नियमों का पालन करने से अपना जीवन सुखमय होता है किन्तु कभी कभी अपना सुख अन्यों के सुख का विरोधी बन सकता है इसे ध्यान में रखकर जब स्वभाव के अनुसार ही लेकिन अधिक अच्छे तरीके से व्यवहार होता है तो संस्कृति का उदय होता है संस्कृति का अर्थ है सम्यक कृति सम्यक का अर्थ है अपने स्वभाव के अनुसार ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: के लिए की हुई कृति
३१. समाज में चिरकाल से सुर और असुर वृत्तियों का विभाजन रहा है| सुर उन्हें कहते हैं जिनके सभी प्रकार के परस्पर संबंधों का आधार आत्मीयता होता है| प्रेम, सहानुभूति, श्रद्धा आदि होता है| असुर प्रवृत्ति उसे कहते हैं जिनके परस्पर संबंधों का आधार स्वार्थ होता है| इसका अधिक विस्तार से वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १६ में किया गया है| आत्मीयता के परस्पर संबंधों को ही व्यवहार की भाषा में ‘कुटुंब भावना’ कहते हैं|
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३१. समाज में चिरकाल से सुर और असुर वृत्तियों का विभाजन रहा है सुर उन्हें कहते हैं जिनके सभी प्रकार के परस्पर संबंधों का आधार आत्मीयता होता है प्रेम, सहानुभूति, श्रद्धा आदि होता है असुर प्रवृत्ति उसे कहते हैं जिनके परस्पर संबंधों का आधार स्वार्थ होता है इसका अधिक विस्तार से वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १६ में किया गया है आत्मीयता के परस्पर संबंधों को ही व्यवहार की भाषा में ‘कुटुंब भावना’ कहते हैं
३२. मनुष्य एक बुद्धिशील जीव है| जीवन की अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए तथा सुख को निरंतर बनाए रखने के लिए समाज अपने लिए कुछ संगठन निर्माण करता है| इन संगठनों और व्यवस्थाओं की श्रेष्ठता के कारण भारतीय समाज चिरंजीवी बना है| श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए समाज अपने को संगठित करता है| संगठन का अर्थ है समाज के प्रत्येक घटक की शक्तियां, मर्यादाएं, स्वभाव आदि को ध्यानमें रखकर समाज में कुछ रचना निर्माण करना| संगठन बनाने के साथ ही अपनी रक्षण, पोषण और शिक्षण की कुछ व्यवस्थाएं भी बनाता है|
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३२. मनुष्य एक बुद्धिशील जीव है जीवन की अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए तथा सुख को निरंतर बनाए रखने के लिए समाज अपने लिए कुछ संगठन निर्माण करता है इन संगठनों और व्यवस्थाओं की श्रेष्ठता के कारण भारतीय समाज चिरंजीवी बना है श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए समाज अपने को संगठित करता है संगठन का अर्थ है समाज के प्रत्येक घटक की शक्तियां, मर्यादाएं, स्वभाव आदि को ध्यानमें रखकर समाज में कुछ रचना निर्माण करना संगठन बनाने के साथ ही अपनी रक्षण, पोषण और शिक्षण की कुछ व्यवस्थाएं भी बनाता है
३३. हर बच्चा जन्म लेते समय अपने विकास की सम्भावनाओं के साथ ही जन्म लेता है| इन सम्भावनाओं के उच्चतम स्तरतक विकास होने से वह बच्चा (मनुष्य) लाभान्वित होता है और साथ ही में समाज को भी लाभ होता है| इसलिए प्रत्येक बालक के विकास की जिम्मेदारी समाज की है| इस विकास के साथ ही समाज की व्यवस्थाओं और संगठनों को ठीक से चलाने के लिए भी प्रत्येक बालक को श्रेष्ठ शिक्षण, संस्कार और प्रशिक्षण मिलना आवश्यक है| समाज के लिए हितकारी स्वतंत्रता, सदाचार, सादगी, स्वावलंबन, सत्यनिष्ठा, सहजता, स्वदेशी आदि  गुणों का विकास सामाजिक हित की ही बातें हैं|
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३३. हर बच्चा जन्म लेते समय अपने विकास की सम्भावनाओं के साथ ही जन्म लेता है इन सम्भावनाओं के उच्चतम स्तरतक विकास होने से वह बच्चा (मनुष्य) लाभान्वित होता है और साथ ही में समाज को भी लाभ होता है इसलिए प्रत्येक बालक के विकास की जिम्मेदारी समाज की है इस विकास के साथ ही समाज की व्यवस्थाओं और संगठनों को ठीक से चलाने के लिए भी प्रत्येक बालक को श्रेष्ठ शिक्षण, संस्कार और प्रशिक्षण मिलना आवश्यक है समाज के लिए हितकारी स्वतंत्रता, सदाचार, सादगी, स्वावलंबन, सत्यनिष्ठा, सहजता, स्वदेशी आदि  गुणों का विकास सामाजिक हित की ही बातें हैं
 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   सामाजिक स्तरपर लक्ष्य
 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   सामाजिक स्तरपर लक्ष्य
 
जिस प्रकार व्यक्ति के स्तरपर मानव का लक्ष्य मोक्ष होता है। मुक्ति होता है। उसी प्रकार मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य भी मोक्ष ही होगा। मुक्ति ही होगा। इस सामाजिक लक्ष्य का व्यावहारिक स्वरूप ‘स्वतंत्रता’ है। स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने की सामर्थ्य। सामर्थ्य प्राप्ति के लिये परिश्रम करने की सामान्यत: लोगों की तैयारी नहीं होती। लेकिन ऐसे किसी प्रयास के बगैर ही यदि जादू से वे समर्थ बन जाएँ तो प्रत्येक को ‘अनिर्बाध स्वतंत्रता’ की चाहत होती है। स्वैराचार और स्वतंत्रता में अंतर होता है। स्वैराचार की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन समाज में जहाँ अन्यों के सुख के साथ संघर्ष खडा होता है तब स्वतंत्रता की सीमा आ जाती है। धर्म ही स्वैराचार को सीमामें बाँधकर उसे स्वतंत्रता बना देता है।
 
जिस प्रकार व्यक्ति के स्तरपर मानव का लक्ष्य मोक्ष होता है। मुक्ति होता है। उसी प्रकार मानव जीवन का सामाजिक स्तर का लक्ष्य भी मोक्ष ही होगा। मुक्ति ही होगा। इस सामाजिक लक्ष्य का व्यावहारिक स्वरूप ‘स्वतंत्रता’ है। स्वतंत्रता का अर्थ है अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने की सामर्थ्य। सामर्थ्य प्राप्ति के लिये परिश्रम करने की सामान्यत: लोगों की तैयारी नहीं होती। लेकिन ऐसे किसी प्रयास के बगैर ही यदि जादू से वे समर्थ बन जाएँ तो प्रत्येक को ‘अनिर्बाध स्वतंत्रता’ की चाहत होती है। स्वैराचार और स्वतंत्रता में अंतर होता है। स्वैराचार की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन समाज में जहाँ अन्यों के सुख के साथ संघर्ष खडा होता है तब स्वतंत्रता की सीमा आ जाती है। धर्म ही स्वैराचार को सीमामें बाँधकर उसे स्वतंत्रता बना देता है।
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