Changes

Jump to navigation Jump to search
Added Reference template
Line 1: Line 1: −
{{cleanup reorganize Dharmawiki Page}}
  −
   
प्रस्तावना  
 
प्रस्तावना  
 
व्यक्ति अपने आप स्वयंपूर्ण या स्वावलंबी नहीं बन सकता| उसे अन्यों की मदद लेनी ही पड़ती है| अभारतीय समाजों की मान्यता के अनुसार व्यक्ति व्यक्ति अपने अपने स्वार्थ को प्राप्त करने के लिए साथ में आकर एक करार करते हैं| इसे ‘सोशल कोंट्राक्ट थियरी’ कहते हैं| इसलिए प्रत्येक सामाजिक परस्पर संबंधों का आधार कोंट्राक्ट होता है| राजा प्रजा का सम्बन्ध किंग्ज चार्टर होता है| यहांतक पुरुष और स्त्री का कि विवाह भी एक करार होता है|  
 
व्यक्ति अपने आप स्वयंपूर्ण या स्वावलंबी नहीं बन सकता| उसे अन्यों की मदद लेनी ही पड़ती है| अभारतीय समाजों की मान्यता के अनुसार व्यक्ति व्यक्ति अपने अपने स्वार्थ को प्राप्त करने के लिए साथ में आकर एक करार करते हैं| इसे ‘सोशल कोंट्राक्ट थियरी’ कहते हैं| इसलिए प्रत्येक सामाजिक परस्पर संबंधों का आधार कोंट्राक्ट होता है| राजा प्रजा का सम्बन्ध किंग्ज चार्टर होता है| यहांतक पुरुष और स्त्री का कि विवाह भी एक करार होता है|  
Line 95: Line 93:  
आहार के लिये मनुष्य को वनस्पति का उपयोग आवश्यक है। लेकिन ऐसा करते समय वनस्पति का दुरूपयोग या बिना कारण के नाश नहीं हो यह देखना आवश्यक है। अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय भी इस बात को ध्यान में रखना होगा। मानव का शरीर मांसाहार के लिये नहीं बना है। वनस्पति आहार की अनुपस्थिति में जब मांसाहार अनिवार्य होगा तब ही करना। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना। लेकिन इच्छाओं की पूर्ति के समय संयम रखना। यथासंभव प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इच्छा पूर्ति के लिये नहीं करना। अनिवार्य हो तो न्यूनतम उपयोग करना। यही सृष्टिगत धर्म है। महात्मा गांधी ने कहा था ' प्रकृति में मानव की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये कुछ कमी नहीं है। लेकिन मानव की अमर्याद इच्छाओं (लोभ) कि पूर्ति के लिये पर्याप्त नहीं है।
 
आहार के लिये मनुष्य को वनस्पति का उपयोग आवश्यक है। लेकिन ऐसा करते समय वनस्पति का दुरूपयोग या बिना कारण के नाश नहीं हो यह देखना आवश्यक है। अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय भी इस बात को ध्यान में रखना होगा। मानव का शरीर मांसाहार के लिये नहीं बना है। वनस्पति आहार की अनुपस्थिति में जब मांसाहार अनिवार्य होगा तब ही करना। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना। लेकिन इच्छाओं की पूर्ति के समय संयम रखना। यथासंभव प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इच्छा पूर्ति के लिये नहीं करना। अनिवार्य हो तो न्यूनतम उपयोग करना। यही सृष्टिगत धर्म है। महात्मा गांधी ने कहा था ' प्रकृति में मानव की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये कुछ कमी नहीं है। लेकिन मानव की अमर्याद इच्छाओं (लोभ) कि पूर्ति के लिये पर्याप्त नहीं है।
   −
वाचनीय साहित्य
+
==References==
 +
 
 +
<references />अन्य स्रोत:
 +
 
 
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
 
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
890

edits

Navigation menu