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परमात्मा की अनादि और दिव्य वाणी वेद ही है। वेद से ही सभी प्रकार के ज्ञान और विज्ञान का उद्गम हुआ है। वेद चार हैं – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद, अथर्ववेद। इन चार वेदों के चार उपवेद हैं। [[Rigveda (ऋग्वेदः)|ऋग्वेद]] का उपवेद [[Ayurveda (आयुर्वेदः)|आयुर्वेद]], [[Yajurveda (यजुर्वेदः)|यजुर्वेद]] का [[Dhanurveda (धनुर्वेद)|धनुर्वेद]], [[Samaveda (सामवेदः)|सामवेद]] का [[Gandharvaveda (गान्धर्ववेद)|गांधर्ववेद]] , [[Atharvaveda (अथर्ववेदः)|अथर्ववेद]] का उपवेद स्थापत्यवेद है और स्थापत्यवेद ही वास्तुशास्त्र का उद्गम स्थल है। यद्यपि चारों ही वेदों में [[Vastu Shastra (वास्तु शास्त्र)|वास्तुशास्त्र]] से संबंधित उल्लेख प्राप्त होते हैं तथापि इसका मूल उद्गम स्थापत्यवेद को ही माना जाता है क्योंकि स्थापत्यवेद साक्षात् अथर्ववेद का ही उपवेद है। अतः वास्तुशास्त्र का मूल संबंध अथर्ववेद से है।  
 
परमात्मा की अनादि और दिव्य वाणी वेद ही है। वेद से ही सभी प्रकार के ज्ञान और विज्ञान का उद्गम हुआ है। वेद चार हैं – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद, अथर्ववेद। इन चार वेदों के चार उपवेद हैं। [[Rigveda (ऋग्वेदः)|ऋग्वेद]] का उपवेद [[Ayurveda (आयुर्वेदः)|आयुर्वेद]], [[Yajurveda (यजुर्वेदः)|यजुर्वेद]] का [[Dhanurveda (धनुर्वेद)|धनुर्वेद]], [[Samaveda (सामवेदः)|सामवेद]] का [[Gandharvaveda (गान्धर्ववेद)|गांधर्ववेद]] , [[Atharvaveda (अथर्ववेदः)|अथर्ववेद]] का उपवेद स्थापत्यवेद है और स्थापत्यवेद ही वास्तुशास्त्र का उद्गम स्थल है। यद्यपि चारों ही वेदों में [[Vastu Shastra (वास्तु शास्त्र)|वास्तुशास्त्र]] से संबंधित उल्लेख प्राप्त होते हैं तथापि इसका मूल उद्गम स्थापत्यवेद को ही माना जाता है क्योंकि स्थापत्यवेद साक्षात् अथर्ववेद का ही उपवेद है। अतः वास्तुशास्त्र का मूल संबंध अथर्ववेद से है।  
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==स्थापत्यवेद का महत्व ==
 
==स्थापत्यवेद का महत्व ==
स्थापत्यवेद में हमें भवन निर्माण संबंधी नियमों का वर्णन मिलता है जिसे हम वास्तुशास्त्र के नाम से जानते हैं। वास्तुशिल्प का अधिष्ठाता स्थपति न केवल एक कुशल और निष्ठावान् शिल्पी किन्तु अनिवार्यतः शास्त्रज्ञ भी होते थे।<ref>कृष्णदत्त वाजपेयी, [https://ignca.gov.in/Asi_data/52258.pdf भारतीय वास्तुकला का इतिहास], सन् १९७२, हिन्दी समिति, लखनऊ (पृ०८)।</ref>
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स्थापत्यवेद में हमें भवन निर्माण संबंधी नियमों का वर्णन मिलता है जिसे हम वास्तुशास्त्र के नाम से जानते हैं। वास्तुशिल्प का अधिष्ठाता स्थपति न केवल एक कुशल और निष्ठावान् शिल्पी किन्तु अनिवार्यतः शास्त्रज्ञ भी होते थे।<ref>कृष्णदत्त वाजपेयी, [https://ignca.gov.in/Asi_data/52258.pdf भारतीय वास्तुकला का इतिहास], सन् १९७२, हिन्दी समिति, लखनऊ (पृ०८)।</ref><blockquote>उपमितां प्रतिमितामथो परिमितामुत। शालाया विश्ववाराया नद्धानि वि चृतामसि ॥१॥
 
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उपमितां प्रतिमितामथो परिमितामुत। शालाया विश्ववाराया नद्धानि वि चृतामसि ॥१॥
      
यत्ते नद्धं विश्ववारे पाशो ग्रन्थिश्च यः कृतः। बृहस्पतिरिवाहं बलं वाचा वि स्रंसयामि तत्॥२॥
 
यत्ते नद्धं विश्ववारे पाशो ग्रन्थिश्च यः कृतः। बृहस्पतिरिवाहं बलं वाचा वि स्रंसयामि तत्॥२॥
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अग्निमन्तश्छादयसि पुरुषान् पशुभिः सह। विजावति प्रजावति वि ते पाशांश्चृतामसि ॥१४॥
 
अग्निमन्तश्छादयसि पुरुषान् पशुभिः सह। विजावति प्रजावति वि ते पाशांश्चृतामसि ॥१४॥
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अन्तरा द्यां च पृथिवीं च यद्व्यचस्तेन शालां प्रति गृह्णामि त इमाम्। यदन्तरिक्षं रजसो विमानं तत्कृण्वेऽहमुदरं शेवधिभ्यः ।
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अन्तरा द्यां च पृथिवीं च यद्व्यचस्तेन शालां प्रति गृह्णामि त इमाम्। यदन्तरिक्षं रजसो विमानं तत्कृण्वेऽहमुदरं शेवधिभ्यः । तेन शालां प्रति गृह्णामि तस्मै ॥१५॥
 
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तेन शालां प्रति गृह्णामि तस्मै ॥१५॥
      
ऊर्जस्वती पयस्वती पृथिव्यां निमिता मिता। विश्वान्नं बिभ्रती शाले मा हिंसीः प्रतिगृह्णतः ॥१६॥
 
ऊर्जस्वती पयस्वती पृथिव्यां निमिता मिता। विश्वान्नं बिभ्रती शाले मा हिंसीः प्रतिगृह्णतः ॥१६॥
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ऊर्ध्वाया दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥३०॥
 
ऊर्ध्वाया दिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥३०॥
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दिशोदिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥३१॥ {८}<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%83/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%82_%E0%A5%AF/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D_%E0%A5%A6%E0%A5%A9 अथर्ववेद]</ref>
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दिशोदिशः शालाया नमो महिम्ने स्वाहा देवेभ्यः स्वाह्येभ्यः ॥३१॥ {८}<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%83/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%82_%E0%A5%AF/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D_%E0%A5%A6%E0%A5%A9 अथर्ववेद]</ref></blockquote>अथर्ववेद ने इस बात पर बल दिया है कि मकान नक्शे के अनुसार बनाया जाय। विशेषज्ञों के द्वारा नक्शा बनवाया जाय और नक्शे में निर्दिष्ट लंबाई, चौडाई, ऊँचाई आदि का पूरा ध्यान रखा जाय। अथर्ववेद का कथन है कि भवन उपमित (नक्शे के अनुसार) हो। यह प्रतिमित हो अर्थात् इसका नापतोल सर्वथा ठीक हो। यह परिमित हो अर्थात् इसके खंभे, द्वार, खिडकियाँ आदि यथास्थान लगाये गए हों। इसके जोड सुदृढ हों। यह विश्ववार हो अर्थात् सर्वसुविधायुक्त हो।
 
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अथर्ववेद ने इस बात पर बल दिया है कि मकान नक्शे के अनुसार बनाया जाय। विशेषज्ञों के द्वारा नक्शा बनवाया जाय और नक्शे में निर्दिष्ट लंबाई, चौडाई, ऊँचाई आदि का पूरा ध्यान रखा जाय। अथर्ववेद का कथन है कि भवन उपमित (नक्शे के अनुसार) हो। यह प्रतिमित हो अर्थात् इसका नापतोल सर्वथा ठीक हो। यह परिमित हो अर्थात् इसके खंभे, द्वार, खिडकियाँ आदि यथास्थान लगाये गए हों। इसके जोड सुदृढ हों। यह विश्ववार हो अर्थात् सर्वसुविधायुक्त हो।
      
* चौंसठ कलाओं (विद्याओं) के अन्तर्गत वास्तुविद्या (स्थापत्य कला) भी सम्मिलित थी।  
 
* चौंसठ कलाओं (विद्याओं) के अन्तर्गत वास्तुविद्या (स्थापत्य कला) भी सम्मिलित थी।  
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