गुरू या ॠषि का अर्थ है जिन जिन लोगों से हम कुछ भी सीखे है या जिन से हमने ज्ञान प्राप्त किया है वे सब । गर्भ में हमारी जीवात्मा प्रवेश करती है तब से लेकर हमारी मृत्यूतक अन्यों से हम कुछ ना कुछ सीखते ही रहते है । इस अर्थ से ये सब, जिनसे हमने कुछ सीखा होगा हमारे गुरू है । इन के हमरे उपर महति उपकार है । मै मनुष्य की वाणी में बात करता हूं तो इन के सिखाने से, मै मनुष्य की तरह दो पप्ररोंपर चल सकत हूं तो इन के सीखाने के कारण । मै अपनी भावनाएं, इच्चाएं, आकांक्षाएं स्पष्ट रूप में व यक्त कर सकता हूं तो इन के सिखाने के कारण । संक्षेप में मैने मेरे माता-पिता, पडोसी, रिश्तेदार, पहचान के या अंजान ऐसे अनगिनत लोगों से अनगिनत उपकार लिये है । इन उपकारों का बोझ मै इसी जन्म में कम नही करता तो अगले जन्म में मेरी अधोगति हो जाती है । इसलिये इन के ॠण से मुझे उतराई होना होगा । ऐसी भावना सदैव मन में रखना और इन के ॠण से उतराई होने के प्रयास करना मेरे लिये आवश्यक कर्म है । इस कर्म की सतत अनुभूति ही गुरूॠण की भावना है । | गुरू या ॠषि का अर्थ है जिन जिन लोगों से हम कुछ भी सीखे है या जिन से हमने ज्ञान प्राप्त किया है वे सब । गर्भ में हमारी जीवात्मा प्रवेश करती है तब से लेकर हमारी मृत्यूतक अन्यों से हम कुछ ना कुछ सीखते ही रहते है । इस अर्थ से ये सब, जिनसे हमने कुछ सीखा होगा हमारे गुरू है । इन के हमरे उपर महति उपकार है । मै मनुष्य की वाणी में बात करता हूं तो इन के सिखाने से, मै मनुष्य की तरह दो पप्ररोंपर चल सकत हूं तो इन के सीखाने के कारण । मै अपनी भावनाएं, इच्चाएं, आकांक्षाएं स्पष्ट रूप में व यक्त कर सकता हूं तो इन के सिखाने के कारण । संक्षेप में मैने मेरे माता-पिता, पडोसी, रिश्तेदार, पहचान के या अंजान ऐसे अनगिनत लोगों से अनगिनत उपकार लिये है । इन उपकारों का बोझ मै इसी जन्म में कम नही करता तो अगले जन्म में मेरी अधोगति हो जाती है । इसलिये इन के ॠण से मुझे उतराई होना होगा । ऐसी भावना सदैव मन में रखना और इन के ॠण से उतराई होने के प्रयास करना मेरे लिये आवश्यक कर्म है । इस कर्म की सतत अनुभूति ही गुरूॠण की भावना है । |