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अपने पूर्वजों ने समाज व्यवस्था की दृष्टि से केवल परिवार व्यवस्था का ही निर्माण किया था ऐसा नहीं। श्रेष्ठ ऐसे ग्रामकुल की रचना भी की थी । महात्मा गांधीजी के अनुयायी धर्मपालजी ने लिखे १८ वीं सदी के भारत के गाँवों की जानकारी से यह पता चलता है की भारतीय गाँव भी पारिवारिक भावना से बंधे हुवे थे । परिवार की ही तरह गाँवों की भी व्यवस्थाएं बनीं हुई थीं । जप्रसे परिवार के लोग एक दूसरे से आत्मीयता के धागे से बंधे होते है उसी प्रकार से गाँव के लोग भी आत्मीयता के धागे से बंधे हुवे थे । इस गाँव में हमारे गाँव की बिटिया ब्याही है । मै यहाँ पानी नहीं पी सकता ऐसा कहनेवाले कुछ लोग तो आज भी हिंदीभाषी गाँवों मे मिल जाते है । परिवार में जप्रसे पप्रसे के लेनदेन से व्यवहार नहीं होते उसी प्रकार गाँव में भी नहीं होते थे । गाँव के प्रत्येक मानव, जीव, जन्तु के निर्वाह की व्यवस्था बिठाई हुई थी। और निर्वाह भी सम्मान के साथ । परिवार का कोई घटक परिवार को छोड अन्यत्र जाता है तो जप्रसे परिवार के सभी लोफगों को दुख होता है । उसी तरह कोई गाँव छोडकर जाता था तो गाँव दुखी होता था । मिन्नतें करता था । उस के कष्ट दूर करने की व्य्वस्थाएं करता था । लेकिन ये बातें अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगों की समझ से परे है । जब उन के आका अंग्रेज इस व्यवस्था को नहीं समझ सके तो उन के चेले क्या समझेंगे ।  
 
अपने पूर्वजों ने समाज व्यवस्था की दृष्टि से केवल परिवार व्यवस्था का ही निर्माण किया था ऐसा नहीं। श्रेष्ठ ऐसे ग्रामकुल की रचना भी की थी । महात्मा गांधीजी के अनुयायी धर्मपालजी ने लिखे १८ वीं सदी के भारत के गाँवों की जानकारी से यह पता चलता है की भारतीय गाँव भी पारिवारिक भावना से बंधे हुवे थे । परिवार की ही तरह गाँवों की भी व्यवस्थाएं बनीं हुई थीं । जप्रसे परिवार के लोग एक दूसरे से आत्मीयता के धागे से बंधे होते है उसी प्रकार से गाँव के लोग भी आत्मीयता के धागे से बंधे हुवे थे । इस गाँव में हमारे गाँव की बिटिया ब्याही है । मै यहाँ पानी नहीं पी सकता ऐसा कहनेवाले कुछ लोग तो आज भी हिंदीभाषी गाँवों मे मिल जाते है । परिवार में जप्रसे पप्रसे के लेनदेन से व्यवहार नहीं होते उसी प्रकार गाँव में भी नहीं होते थे । गाँव के प्रत्येक मानव, जीव, जन्तु के निर्वाह की व्यवस्था बिठाई हुई थी। और निर्वाह भी सम्मान के साथ । परिवार का कोई घटक परिवार को छोड अन्यत्र जाता है तो जप्रसे परिवार के सभी लोफगों को दुख होता है । उसी तरह कोई गाँव छोडकर जाता था तो गाँव दुखी होता था । मिन्नतें करता था । उस के कष्ट दूर करने की व्य्वस्थाएं करता था । लेकिन ये बातें अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगों की समझ से परे है । जब उन के आका अंग्रेज इस व्यवस्था को नहीं समझ सके तो उन के चेले क्या समझेंगे ।  
८.३ वसुधैव कुटुंबकम् : अयं निज: परोवेत्ति गणना लघुचेतसाम् उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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८.३ वसुधैव कुटुंबकम् :
  भावार्थ : यह मेरा यह पराया यह तो संकुचित मन और भावना के लक्षण है । जिन के हृदय बडे होते है, मन विशाल होते है उन के लिये तो सारा विश्व ही एक परिवार होता है । ऐसा विशाल मन और हृदय रखनेवाला मानव समाज बनाने की आकांक्षा और प्रयास हमारे पूर्वजों ने किये । वास्तव में एकत्रित परिवार जिस भावना और व्यवहारों के आधारपर सुव्यवस्थित ढॅग़ से चलता है उसी प्रकार पूरा विश्व भी चल सकता है । यह विश्वास और ऐसा करने की सामर्थ्य हमारे पूर्वजों में थी । यह बात आज भी असंभव नहीं है । वैसी दुर्दमनीय आकांक्षा और तप-सामर्थ्य हमें जगाना होगा ।
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वैश्वीकरण की पाश्चात्य घोषणाएं तो बस एक दिखावा और छलावा मात्र है । जिन समाजों में पति-पत्नि एक छत के नीचे उम्र गुजार नही सकते उन्हे हम भारतीयों को सीखाने का कोई अधिकार नहीं है। वसुधैव कुटुंबकम् कैसे होगा यह हम उन्हें सिखाएंगे ।
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अयं निज: परोवेत्ति गणना लघुचेतसाम् उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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भावार्थ : यह मेरा यह पराया यह तो संकुचित मन और भावना के लक्षण है । जिन के हृदय बडे होते है, मन विशाल होते है उन के लिये तो सारा विश्व ही एक परिवार होता है । ऐसा विशाल मन और हृदय रखनेवाला मानव समाज बनाने की आकांक्षा और प्रयास हमारे पूर्वजों ने किये । वास्तव में एकत्रित परिवार जिस भावना और व्यवहारों के आधारपर सुव्यवस्थित ढॅग़ से चलता है उसी प्रकार पूरा विश्व भी चल सकता है । यह विश्वास और ऐसा करने की सामर्थ्य हमारे पूर्वजों में थी । यह बात आज भी असंभव नहीं है । वैसी दुर्दमनीय आकांक्षा और तप-सामर्थ्य हमें जगाना होगा ।
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वैश्वीकरण की पाश्चात्य घोषणाएं तो बस एक दिखावा और छलावा मात्र है । जिन समाजों में पति-पत्नि एक छत के नीचे उम्र गुजार नही सकते उन्हे हम भारतीयों को सीखाने का कोई अधिकार नहीं है। वसुधैव कुटुंबकम् कैसे होगा यह हम उन्हें सिखाएंगे ।
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९. कृतज्ञता  
 
९. कृतज्ञता  
 
पाश्चात्य समाजों में कृतज्ञता व्यक्त करने की पध्दति भारतीय पध्दति से भिन्न है । किसी से उपकार लेनेपर थँक यू और किसी को अपने कारण तकलीफ होनेपर सॉरी ऐसा तुरंत कहने की पाश्चात्य पध्दति है । इतना संक्षेप में कृतज्ञता या खेद व्यक्त करके विषय पूरा हो जाता है । दूसरे ही क्षण वह जिस बात के लिये थँक यू कहा है या सॉरी कहा है उसे भूल जाता है । दूसरे ही क्षण से उस के लिये वह उपकार का या पश्चात्ताप का विषय नहीं रह जाता ।   
 
पाश्चात्य समाजों में कृतज्ञता व्यक्त करने की पध्दति भारतीय पध्दति से भिन्न है । किसी से उपकार लेनेपर थँक यू और किसी को अपने कारण तकलीफ होनेपर सॉरी ऐसा तुरंत कहने की पाश्चात्य पध्दति है । इतना संक्षेप में कृतज्ञता या खेद व्यक्त करके विषय पूरा हो जाता है । दूसरे ही क्षण वह जिस बात के लिये थँक यू कहा है या सॉरी कहा है उसे भूल जाता है । दूसरे ही क्षण से उस के लिये वह उपकार का या पश्चात्ताप का विषय नहीं रह जाता ।   
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