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एकात्मता की भावना और उस के आधारपर उसे बुध्दि का उपयोग करने के स्वातंत्र्य का आदर भारतीय समाज ने मान्य किया है । स्वामी विवेकानंदजी के शिकागो सर्वधर्मपरिषद में हुवे संक्षिप्त और फिर भी विश्वविजयी भाषण में यही कहा गया है । उन्हों ने बचपन से जो श्लोक वह कहते आये थे वही उध्दृत किया था । वह था -
 
एकात्मता की भावना और उस के आधारपर उसे बुध्दि का उपयोग करने के स्वातंत्र्य का आदर भारतीय समाज ने मान्य किया है । स्वामी विवेकानंदजी के शिकागो सर्वधर्मपरिषद में हुवे संक्षिप्त और फिर भी विश्वविजयी भाषण में यही कहा गया है । उन्हों ने बचपन से जो श्लोक वह कहते आये थे वही उध्दृत किया था । वह था -
 
रूचीनाम् वैचित्र्यात् ॠजुकुटिल नाना पथजुषां ।  नृणामेको गम्या: त्वमसि पयसामर्णव इव ॥
 
रूचीनाम् वैचित्र्यात् ॠजुकुटिल नाना पथजुषां ।  नृणामेको गम्या: त्वमसि पयसामर्णव इव ॥
  भावार्थ : समाज में प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा ने बुध्दि का वरदान दिया हुवा है । प्रत्येक की बुध्दि भिन्न होती ही है । किसी की बुध्दि में ॠजुता होगी किसी की बुध्दि में कुटिलता होगी । ऐसी विविधता से सत्य की ओर देखने से हर व्यक्ति की सत्य की समझ अलग अलग होगी । हर व्यक्ति का सत्य की ओर आगे बढने का मार्ग भी भिन्न होगा । कोई सीधे मार्ग से तो कोई टेढेमेढे मार्ग से लेकिन सत्य की ओर ही बढ रहा है । ऐसी हमारी केवल मान्यता नही है वरन् ऐसी हमारी श्रध्दा है ।  
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आकाशात् पतितंतोयं यथा गच्छति सागरं । सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रतिगच्छति ।
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भावार्थ : समाज में प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा ने बुध्दि का वरदान दिया हुवा है । प्रत्येक की बुध्दि भिन्न होती ही है । किसी की बुध्दि में ॠजुता होगी किसी की बुध्दि में कुटिलता होगी । ऐसी विविधता से सत्य की ओर देखने से हर व्यक्ति की सत्य की समझ अलग अलग होगी । हर व्यक्ति का सत्य की ओर आगे बढने का मार्ग भी भिन्न होगा । कोई सीधे मार्ग से तो कोई टेढेमेढे मार्ग से लेकिन सत्य की ओर ही बढ रहा है । ऐसी हमारी केवल मान्यता नही है वरन् ऐसी हमारी श्रध्दा है ।  
जिस प्रकार बारिश का पानी धरतीपर गिरता है । लेकिन भिन्न भिन्न मार्गों से वह समुद्र की ओर ही जाता है उसी प्रकार से शुध्द भावना से आप किसी भी दैवी शक्ति को नमस्कार करें वह परमात्मा को प्राप्त होगा।
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आकाशात् पतितंतोयं यथा गच्छति सागरं ।
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सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रतिगच्छति ।
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जिस प्रकार बारिश का पानी धरतीपर गिरता है । लेकिन भिन्न भिन्न मार्गों से वह समुद्र की ओर ही जाता है उसी प्रकार से शुध्द भावना से आप किसी भी दैवी शक्ति को नमस्कार करें वह परमात्मा को प्राप्त होगा।
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   “विविधता या अनेकता में एकता” यह भारत की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि ऊपर से कितनी भी विविधता दिखाई दे सभी अस्तित्वों का मूल परमात्मा है इस एकमात्र सत्य को जानना। इसलिए भाषा, प्रांत, वेष, जाति, वर्ण आदि कितने भी भेद हममें हैं। भेद होना यह प्राकृतिक ही है। इसी तरह से सभी अस्तित्वों में परमात्मा (का अंश याने जीवात्मा) होने से सभी अस्तित्वों में एकात्मता की अनुभूति होने का ही अर्थ “विविधता या अनेकता में एकता” है। यही भारतीय या हिन्दू संस्कृति का आधारभूत सिद्धांत है। यही हिन्दू धर्म का मर्म है।
 
   “विविधता या अनेकता में एकता” यह भारत की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि ऊपर से कितनी भी विविधता दिखाई दे सभी अस्तित्वों का मूल परमात्मा है इस एकमात्र सत्य को जानना। इसलिए भाषा, प्रांत, वेष, जाति, वर्ण आदि कितने भी भेद हममें हैं। भेद होना यह प्राकृतिक ही है। इसी तरह से सभी अस्तित्वों में परमात्मा (का अंश याने जीवात्मा) होने से सभी अस्तित्वों में एकात्मता की अनुभूति होने का ही अर्थ “विविधता या अनेकता में एकता” है। यही भारतीय या हिन्दू संस्कृति का आधारभूत सिद्धांत है। यही हिन्दू धर्म का मर्म है।
  
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