भद्र या शुभ-ज्ञान संपूर्ण विश्व से हमें मिले। हमारा जो ज्ञान है वही सर्वश्रेष्ठ है ऐसा अहंकार भारतीय मनीषियों ने कभी नही पाला। यहाँतक कह डाला की ‘बालादपि सुभाषितं ग्राह्यं’। छोटा बच्चा भी कुछ श्रेष्ठ ज्ञान देता है तो उसे स्वीकार करना चाहिये । बाहर से आनेवाली शीतल और शुध्द हवा के लिये हम अपने घरों की खिडकियाँ खोलते है । ठीक उसी तरह हमने अपने मन की खिडकियाँ भी शुभ ज्ञान की प्राप्ति के लिये खुली रखनी चाहिये । किन्तु कुछ अशुद्ध हवा आने लगे तो हम जैसे खिडकियाँ बंद भी कर लेते है वैसी ही हमारी अभद्र ज्ञान के विषय में भूमिका होनी चाहिये । कोई बात अन्यों के लिए हितकर है इसलिये यह आवश्यक नही की वह हमारे लिये भी उपयुक्त होगी ही । इसलिये उसे अपनी स्थानिकता की दृष्टि से वह कितनी हितकर है, इस की कसौटिपर ही भद्र-अभद्र का निर्णय कर स्वीकार करना होगा । | भद्र या शुभ-ज्ञान संपूर्ण विश्व से हमें मिले। हमारा जो ज्ञान है वही सर्वश्रेष्ठ है ऐसा अहंकार भारतीय मनीषियों ने कभी नही पाला। यहाँतक कह डाला की ‘बालादपि सुभाषितं ग्राह्यं’। छोटा बच्चा भी कुछ श्रेष्ठ ज्ञान देता है तो उसे स्वीकार करना चाहिये । बाहर से आनेवाली शीतल और शुध्द हवा के लिये हम अपने घरों की खिडकियाँ खोलते है । ठीक उसी तरह हमने अपने मन की खिडकियाँ भी शुभ ज्ञान की प्राप्ति के लिये खुली रखनी चाहिये । किन्तु कुछ अशुद्ध हवा आने लगे तो हम जैसे खिडकियाँ बंद भी कर लेते है वैसी ही हमारी अभद्र ज्ञान के विषय में भूमिका होनी चाहिये । कोई बात अन्यों के लिए हितकर है इसलिये यह आवश्यक नही की वह हमारे लिये भी उपयुक्त होगी ही । इसलिये उसे अपनी स्थानिकता की दृष्टि से वह कितनी हितकर है, इस की कसौटिपर ही भद्र-अभद्र का निर्णय कर स्वीकार करना होगा । |