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निरुक्त निर्वचनप्रधान शास्त्र है, जिसमें महर्षि यास्क ने बहुत से वैदिक मन्त्रों की व्याख्या नवीन शैली में प्रस्तुत की है। निरुक्त में निघण्टु के कहे गये वैदिक शब्दों की व्याख्या की गयी है, इसे निघण्टु का भाष्य भी कहते हैं। वेदों से निकाल एकत्र संग्रहीत किये गये वैदिक कठिन पदों के संग्रह का नाम ही निघण्टु रखा गया, तथा परवर्ती आचार्यों द्वारा निघण्टु पदों की जो व्याख्या की गयी, उसी व्याख्यान-ग्रन्थ को निरुक्त के नाम से अभिहित किया गया, अनेक आचार्यों ने निघण्टु ग्रन्थ पर अपनी-अपनी व्याख्यायें की, परंतु वर्तमान में जो निरुक्त प्राप्त होता है, वह यास्क कृत निरुक्त माना जाता है।
 
निरुक्त निर्वचनप्रधान शास्त्र है, जिसमें महर्षि यास्क ने बहुत से वैदिक मन्त्रों की व्याख्या नवीन शैली में प्रस्तुत की है। निरुक्त में निघण्टु के कहे गये वैदिक शब्दों की व्याख्या की गयी है, इसे निघण्टु का भाष्य भी कहते हैं। वेदों से निकाल एकत्र संग्रहीत किये गये वैदिक कठिन पदों के संग्रह का नाम ही निघण्टु रखा गया, तथा परवर्ती आचार्यों द्वारा निघण्टु पदों की जो व्याख्या की गयी, उसी व्याख्यान-ग्रन्थ को निरुक्त के नाम से अभिहित किया गया, अनेक आचार्यों ने निघण्टु ग्रन्थ पर अपनी-अपनी व्याख्यायें की, परंतु वर्तमान में जो निरुक्त प्राप्त होता है, वह यास्क कृत निरुक्त माना जाता है।
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==निरुक्तकार==
 
==निरुक्तकार==
महर्षि यास्कने अपने निरुक्तमें चौदह निरुक्तकारोंके मत का उल्लेख किया है। निरुक्तके टीकाकार दुर्गाचार्यजी ने भी चौदह निरुक्तकारों की चर्चा अपनी वृत्तिमें की है-<blockquote>निरुक्तं चतुर्दश प्रभेदम्। (दुर्गवृत्ति 1-13)</blockquote>यास्क के निरुक्त में वर्णित कुछ प्रमुख निरुक्तकारों के नाम तथा मत जो कि इस प्रकार निर्दिष्ट किए गए हैं। इनके नाम अक्षरक्रम से इस प्रकार हैं - <ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.345816/page/n434/mode/1up?view=theater वैदिक साहित्य और संस्कृति], सन् 1958, शारदा मंदिर काशी (</ref>
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महर्षि यास्कने अपने निरुक्तमें चौदह निरुक्तकारोंके मत का उल्लेख किया है। निरुक्तके टीकाकार दुर्गाचार्यजी ने भी चौदह निरुक्तकारों की चर्चा अपनी वृत्तिमें की है-<blockquote>निरुक्तं चतुर्दश प्रभेदम्। (दुर्गवृत्ति 1-13)</blockquote>यास्क के निरुक्त में वर्णित कुछ प्रमुख निरुक्तकारों के नाम तथा मत जो कि इस प्रकार निर्दिष्ट किए गए हैं। इनके नाम अक्षरक्रम से इस प्रकार हैं - <ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.345816/page/n434/mode/1up?view=theater वैदिक साहित्य और संस्कृति], सन् 1958, शारदा मंदिर काशी (</ref> {{columns-list|colwidth=10em|style=width: 600px; font-style: Normal;|
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*'''आग्रायण'''
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#'''आग्रायण'''
*'''औपमन्यव'''
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#'''औपमन्यव'''
*'''औदुम्बरायण'''
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#'''औदुम्बरायण'''
*'''और्णवाम'''
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#'''और्णवाम'''
*'''कात्थक्य'''
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#'''कात्थक्य'''
*'''क्रौष्टुकि'''
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#'''क्रौष्टुकि'''
*'''गार्ग्य'''
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#'''गार्ग्य'''
*'''गालव'''
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#'''गालव'''
*'''तैटीकि'''
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#'''तैटीकि'''
*'''वार्ष्यायणि'''
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#'''वार्ष्यायणि'''
*'''शाकपूणिः'''
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#'''शाकपूणिः'''
*'''स्थौलाष्ठीवि'''
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#'''स्थौलाष्ठीवि'''
*'''चर्मशिरा'''
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#'''चर्मशिरा'''
*'''शतवलाक्ष'''
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#'''शतवलाक्ष'''}}इस प्रकार से पन्द्रह निरुक्तकारों का वर्णन प्राप्त होता है।<ref>डॉ० रामाशीष पाण्डेय, [https://www.jainfoundation.in/JAINLIBRARY/books/vyutpatti_vigyan_aur_aacharya_yask_023115_hr6.pdf व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क], सन् १९९९, प्रबोध संस्कृत प्रकाशन, हरमू, रांची(बिहार), (पृ०५४)।</ref>
 
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इस प्रकार से पन्द्रह निरुक्तकारों का वर्णन प्राप्त होता है।<ref>डॉ० रामाशीष पाण्डेय, [https://www.jainfoundation.in/JAINLIBRARY/books/vyutpatti_vigyan_aur_aacharya_yask_023115_hr6.pdf व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क], सन् १९९९, प्रबोध संस्कृत प्रकाशन, हरमू, रांची(बिहार), (पृ०५४)।</ref>  
      
==सारांश==
 
==सारांश==
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