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| == परिचय == | | == परिचय == |
− | वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस आदि की कथाएं संस्कृत साहित्य के ग्रंथों में वर्णित हैं। संस्कृत साहित्य में बाल मनोरंजन कथाओं ‘पंचतंत्र’ , हितोपदेश , बेताल-पच्चीसी , शुक-सप्तति आदि कलात्मक एवं नीतिपरक, शिक्षाप्रद मनोरंजक कहानियों का संग्रह भी प्राप्त होता है। | + | वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस आदि की कथाएं संस्कृत साहित्य के ग्रंथों में वर्णित हैं। संस्कृत साहित्य में बाल मनोरंजन कथाओं ‘पंचतंत्र’ , हितोपदेश , बेताल-पच्चीसी , शुक-सप्तति आदि कलात्मक एवं नीतिपरक, शिक्षाप्रद मनोरंजक कहानियों का संग्रह भी प्राप्त होता है। इन कहानियों से मनोरंजन के साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः इन कहानियों में लोक व्यवहार के पात्र पशु-पक्षियों को बनाया गया है। ये सभी मनुष्यों की तरह बातचीत करते हैं, जो बच्चों के लिए मनमोहक एवं आकर्षण का विषय बनता है। इनमें असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखलाई गई है व नीति एवं मूल्यपरक शिक्षा दी गई है। |
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− | इन कहानियों से मनोरंजन के साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः इन कहानियों में लोक व्यवहार के पात्र पशु-पक्षियों को बनाया गया है। ये सभी मनुष्यों की तरह बातचीत करते हैं, जो बच्चों के लिए मनमोहक एवं आकर्षण का विषय बनता है। इनमें असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखलाई गई है व नीति एवं मूल्यपरक शिक्षा दी गई है। | |
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| == श्री नारायण पण्डित – जीवन परिचय == | | == श्री नारायण पण्डित – जीवन परिचय == |
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| '''मित्रलाभः सुहृदभेदो विग्रहः संधिरेव च। पञ्चतंत्रात् तथाsन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते॥''' | | '''मित्रलाभः सुहृदभेदो विग्रहः संधिरेव च। पञ्चतंत्रात् तथाsन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते॥''' |
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− | हितोपदेश की कथाओं को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है – | + | हितोपदेश की कथाओं को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है – |
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− | 1. मित्रलाभ
| + | # मित्रलाभ |
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− | 2. सुहृद् भेद
| + | # विग्रह |
− | | + | # संधि |
− | 3. विग्रह
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− | 4. संधि
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− | कथा शैली
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| + | == कथा शैली == |
| यह पंचतंत्र पर निर्भर है। लेखक ने पंचतंत्र के अतिरिक्त ‘कामंदकीय नीतिसार’ से बहुत अधिक श्लोकों को चुना है। इसमें चार परिच्छेद हैं, जिनमें 43 कहानियां हैं। संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं – [2] | | यह पंचतंत्र पर निर्भर है। लेखक ने पंचतंत्र के अतिरिक्त ‘कामंदकीय नीतिसार’ से बहुत अधिक श्लोकों को चुना है। इसमें चार परिच्छेद हैं, जिनमें 43 कहानियां हैं। संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं – [2] |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
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| '''मित्रलाभ''' | | '''मित्रलाभ''' |
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− | श्रीनारायण पंडित का मत है कि बुद्धिमान् एवं आपस में मित्रता रखने वाले व्यक्ति साधनविहीन तथा धन रहित होने पर कौए, कछुए, हरिण और चूहे के समान अपने कार्यों को सिद्ध कर लेते हैं – [4] | + | श्रीनारायण पंडित का मत है कि बुद्धिमान् एवं आपस में मित्रता रखने वाले व्यक्ति साधनविहीन तथा धन रहित होने पर कौए, कछुए, हरिण और चूहे के समान अपने कार्यों को सिद्ध कर लेते हैं – [4]<blockquote>असाधना वित्तहीना, बुद्धिमन्तः सुहृत्तमाः। साधयन्त्याशु कार्याणि, काककूर्ममृगाखुवत्॥ </blockquote>उक्त मित्रलाभ को स्पष्ट करने के लिए नारायण पंडित ने नौ शिक्षक कथाओं के द्वारा विभिन्न शिक्षायें प्रदान की हैं – |
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− | असाधना वित्तहीना, बुद्धिमन्तः सुहृत्तमाः। साधयन्त्याशु कार्याणि, काककूर्ममृगाखुवत्॥ | |
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− | उक्त मित्रलाभ को स्पष्ट करने के लिए नारायण पंडित ने नौ शिक्षक कथाओं के द्वारा विभिन्न शिक्षायें प्रदान की हैं – | |
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− | 1. श्रीनारायण पंडित ने कौए, कछुए, हरिण और चूहे की कथा से अच्छे मित्र के लाभ की ओर संकेत किया है।
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− | 2. स्वर्ण कंगनधारी बूढ़े बाघ और लोभी पथिक की कथा से शिक्षा दी है कि लोभ बुरी बला है।
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− | 3. हरिण, कौए और धूर्त सियार की कथा का वर्णन किया है जिसमें स्पष्ट किया है कि व्यक्ति को अपने कृतकार्य का फल अवश्य प्राप्त होता है।
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− | 4. चतुर्थ कथा में नारायण पण्डित ने अन्धे गिद्ध, बिलाव तथा अन्य चिड़ियों की कहानी से बताया है कि बिना पहचान के मित्र नहीं बनाना चाहिए।
| + | # श्रीनारायण पंडित ने कौए, कछुए, हरिण और चूहे की कथा से अच्छे मित्र के लाभ की ओर संकेत किया है। |
− | | + | # स्वर्ण कंगनधारी बूढ़े बाघ और लोभी पथिक की कथा से शिक्षा दी है कि लोभ बुरी बला है। |
− | 5. सन्यासी और धनिक चूहे की कथा से शिक्षा दी है कि बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता है।
| + | # हरिण, कौए और धूर्त सियार की कथा का वर्णन किया है जिसमें स्पष्ट किया है कि व्यक्ति को अपने कृतकार्य का फल अवश्य प्राप्त होता है। |
− | | + | # चतुर्थ कथा में नारायण पण्डित ने अन्धे गिद्ध, बिलाव तथा अन्य चिड़ियों की कहानी से बताया है कि बिना पहचान के मित्र नहीं बनाना चाहिए। |
− | 6. वृद्ध बनियाँ और उसकी युवा पत्नी की कथा से शिक्षा प्रदान की है कि धन की तीन गतियाँ होती हैं- दान, भोग और नाश। जो दान अथवा भोग नहीं करता है, उसका धन नष्ट हो जाता है।
| + | # सन्यासी और धनिक चूहे की कथा से शिक्षा दी है कि बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता है। |
− | | + | # वृद्ध बनियाँ और उसकी युवा पत्नी की कथा से शिक्षा प्रदान की है कि धन की तीन गतियाँ होती हैं- दान, भोग और नाश। जो दान अथवा भोग नहीं करता है, उसका धन नष्ट हो जाता है। |
− | 7. व्याघ्र, हरिण, शूकर और सियार की कथा, छात्रों को सन्देश देती है कि व्यक्ति को तृष्णा का त्याग करना चाहिए।
| + | # व्याघ्र, हरिण, शूकर और सियार की कथा, छात्रों को सन्देश देती है कि व्यक्ति को तृष्णा का त्याग करना चाहिए। |
− | | + | # राजकुमार, सुन्दर युवती तथा उसके पति की कथा से शिक्षा मिलती है कि प्रयत्न करने से कार्य की सिद्धि हो सकती है। |
− | 8. राजकुमार, सुन्दर युवती तथा उसके पति की कथा से शिक्षा मिलती है कि प्रयत्न करने से कार्य की सिद्धि हो सकती है।
| + | # धूर्त गीदड़ और कर्पूरतिलक हाथी की कहानी में यह सन्देश है कि निश्चित को छोड़कर अनिश्चित की प्राप्ति की लालसा से निश्चित प्राप्त वस्तु भी हाथ से निकल जाती है |
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− | 9. धूर्त गीदड़ और कर्पूरतिलक हाथी की कहानी में यह सन्देश है कि निश्चित को छोड़कर अनिश्चित की प्राप्ति की लालसा से निश्चित प्राप्त वस्तु भी हाथ से निकल जाती है
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| '''सुहृदभेद''' | | '''सुहृदभेद''' |
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| श्री नारायण पण्डित ने बताया है कि आपस में प्रगाढ़ मित्रता होने पर भी चुगलखोर और लोभी व्यक्ति उस मित्रता को तुड़वाने का प्रयास करते हैं जैसा कि किसी जंगल में निवास करने वाले चुगलखोर और लोभी सियार ने एक सिंह और बैल में मतभेद उत्पन्न करके उनकी मित्रता को समाप्त करा दिया था। अतः इस अध्याय से लेखक ने दस कथाओं के द्वारा कई प्रमुख शिक्षायें प्रदान की हैं -[5] | | श्री नारायण पण्डित ने बताया है कि आपस में प्रगाढ़ मित्रता होने पर भी चुगलखोर और लोभी व्यक्ति उस मित्रता को तुड़वाने का प्रयास करते हैं जैसा कि किसी जंगल में निवास करने वाले चुगलखोर और लोभी सियार ने एक सिंह और बैल में मतभेद उत्पन्न करके उनकी मित्रता को समाप्त करा दिया था। अतः इस अध्याय से लेखक ने दस कथाओं के द्वारा कई प्रमुख शिक्षायें प्रदान की हैं -[5] |
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− | 1. अनधिकृत चेष्टा करने वाला व्यक्ति अन्त में दुःखी होता है।
| + | # अनधिकृत चेष्टा करने वाला व्यक्ति अन्त में दुःखी होता है। |
− | | + | # जो जिस कार्य को जानता है, वही उस कार्य में सफलता प्राप्त कर सकता है। |
− | 2. जो जिस कार्य को जानता है, वही उस कार्य में सफलता प्राप्त कर सकता है।
| + | # व्यक्ति को अपने कार्य से काम रखना चाहिए, दूसरों के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। |
− | | + | # यह संसार स्वार्थपरक है, अतः सोच-समझकर व्यवहार करना चाहिए। |
− | 3. व्यक्ति को अपने कार्य से काम रखना चाहिए, दूसरों के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
| + | # किसी भी कार्य को करने से पहले उसके कारण को ज्ञात कर लेना चाहिए। इससे कार्य को अच्छी प्रकार से संपादित किया जा सकता है। |
− | | + | # बिना विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, अन्यथा सफलता संदिग्ध रहती है। |
− | 4. यह संसार स्वार्थपरक है, अतः सोच-समझकर व्यवहार करना चाहिए।
| + | # लोभ का फल अंत में बुरा होता है। अतः लोभ नहीं करना चाहिए। |
− | | + | # किसी भी कार्य को युक्तिपूर्वक करना चाहिए, तभी परिणाम सही निकलता है। |
− | 5. किसी भी कार्य को करने से पहले उसके कारण को ज्ञात कर लेना चाहिए। इससे कार्य को अच्छी प्रकार से संपादित किया जा सकता है।
| + | # भैंस आकार में बड़ी होने पर भी सूक्ष्म बुद्धि ही श्रेष्ठ होती है। अतः बुद्धि-विवेक से कार्य करना उत्तम होता है। |
− | | + | # संगठन में ही शक्ति होती है, पृथक-पृथक होने पर मनुष्य का विनाश हो जाता है। |
− | 6. बिना विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, अन्यथा सफलता संदिग्ध रहती है।
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− | 7. लोभ का फल अंत में बुरा होता है। अतः लोभ नहीं करना चाहिए।
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− | 9. भैंस आकार में बड़ी होने पर भी सूक्ष्म बुद्धि ही श्रेष्ठ होती है। अतः बुद्धि-विवेक से कार्य करना उत्तम होता है।
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− | 10. संगठन में ही शक्ति होती है, पृथक-पृथक होने पर मनुष्य का विनाश हो जाता है।
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| '''विग्रह''' | | '''विग्रह''' |
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| प्रस्तुत अध्याय में श्रीनारायण पंडित ने विग्रह संबंध में शिक्षा प्रदान की है कि शत्रु के शिविर में किसी प्रकार प्रवेश करके तथा विश्वासघात के द्वारा कैसे नष्ट किया जा सकता है। इसमें लेखक ने दस कथाओं के माध्यम से विभिन्न शिक्षाऐं प्रदान की हैं –[6] | | प्रस्तुत अध्याय में श्रीनारायण पंडित ने विग्रह संबंध में शिक्षा प्रदान की है कि शत्रु के शिविर में किसी प्रकार प्रवेश करके तथा विश्वासघात के द्वारा कैसे नष्ट किया जा सकता है। इसमें लेखक ने दस कथाओं के माध्यम से विभिन्न शिक्षाऐं प्रदान की हैं –[6] |
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− | 1. घर का भेदी ही लंका को ढहा सकता है, अर्थात अपना व्यक्ति ही विनाश का कारण होता है।
| + | # घर का भेदी ही लंका को ढहा सकता है, अर्थात अपना व्यक्ति ही विनाश का कारण होता है। |
− | | + | # मूर्ख व्यक्ति को उपदेश नहीं देना चाहिए, उससे कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। |
− | 2. मूर्ख व्यक्ति को उपदेश नहीं देना चाहिए, उससे कोई लाभ प्राप्त नहीं होता।
| + | # किसी के कार्य की नकल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसमें अकल की आवश्यकता होती है। |
− | | + | # कभी-कभी बड़े व्यक्ति के नाम से ही छोटे व्यक्ति अपना कार्य सिद्ध कर लेते हैं। |
− | 3. किसी के कार्य की नकल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसमें अकल की आवश्यकता होती है।
| + | # दुष्ट व्यक्ति का साथ कभी नहीं देना चाहिए। |
− | | + | # कभी-कभी कार्य अन्य व्यक्ति करता है तथा फल दूसरे को भोगना पड़ता है, अतः सावधानीपूर्वक कार्य करना चाहिए। |
− | 4. कभी-कभी बड़े व्यक्ति के नाम से ही छोटे व्यक्ति अपना कार्य सिद्ध कर लेते हैं।
| + | # धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का। अर्थात दूसरे दल की अपेक्षा अपने पक्ष का हित सोचना चाहिए। |
− | | + | # हित चाहने और अपना कर्तव्यपालन करने वाला ही अपना होता है। |
− | 5. दुष्ट व्यक्ति का साथ कभी नहीं देना चाहिए।
| + | # बिना सोचे-समझे किसी की नकल नहीं करनी चाहिए, अन्यथा उसका परिणाम बुरा होता है। |
− | | + | # किसी अन्य के किये हुए पुण्य को अथवा परिणाम को चाहने वाला व्यक्ति दुःखी होता है। |
− | 6. कभी-कभी कार्य अन्य व्यक्ति करता है तथा फल दूसरे को भोगना पड़ता है, अतः सावधानीपूर्वक कार्य करना चाहिए।
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− | 7. धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का। अर्थात दूसरे दल की अपेक्षा अपने पक्ष का हित सोचना चाहिए।
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| '''संधि''' | | '''संधि''' |
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| श्रीनारायण पंडित ने संधि नामक अध्याय में तेरह कथाओं के माध्यम से कई प्रमुख शिक्षाएं प्रदान की हैं। संधि का तात्पर्य है कि परस्पर दो राजाओं में अथवा दो व्यक्तियों में मध्यस्थ बनकर दो मेल करा देना। जैसा कि गिद्ध और चकवे ने मध्यस्थ बनकर दो राजाओं में संधि कराई थी। इस अध्याय में वर्णित कथाएं अतीव प्रेरणाप्रद एवं शिक्षात्मक हैं – | | श्रीनारायण पंडित ने संधि नामक अध्याय में तेरह कथाओं के माध्यम से कई प्रमुख शिक्षाएं प्रदान की हैं। संधि का तात्पर्य है कि परस्पर दो राजाओं में अथवा दो व्यक्तियों में मध्यस्थ बनकर दो मेल करा देना। जैसा कि गिद्ध और चकवे ने मध्यस्थ बनकर दो राजाओं में संधि कराई थी। इस अध्याय में वर्णित कथाएं अतीव प्रेरणाप्रद एवं शिक्षात्मक हैं – |
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− | 1. समान बल वाले शत्रु से मित्रता कर लेने में ही हित होता है।
| + | # समान बल वाले शत्रु से मित्रता कर लेने में ही हित होता है। |
− | | + | # मित्रों की सद्-सलाह को मानना चाहिए, क्योंकि उसमें ही हित निहित होता है। |
− | 2. मित्रों की सद्-सलाह को मानना चाहिए, क्योंकि उसमें ही हित निहित होता है।
| + | # बुद्धिमान् व्यक्ति वही होता है, जो आपत्ति आने पर उसका उपाय शीघ्र सोच लेता है। |
− | | + | # व्यक्ति को लोभ नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोभ नाश का कारण होता है। |
− | 3. बुद्धिमान् व्यक्ति वही होता है, जो आपत्ति आने पर उसका उपाय शीघ्र सोच लेता है।
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− | 4. व्यक्ति को लोभ नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोभ नाश का कारण होता है।
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| == सारांश == | | == सारांश == |