Changes

Jump to navigation Jump to search
नया पृष्ठ निर्माण (मुख्य उपनिषद् क्रम में - प्रश्न उपनिषद्)
प्रश्न उपनिषद् अथर्ववेदीय ब्राह्मणभागके अन्तर्गत है। इसका भाष्य आरम्भ करते हुए भगवान् भाष्यकार लिखते हैं - अथर्ववेदके मन्त्रभागमें कही हुई (मुण्डक) उपनिषद्के अर्थका ही विस्तारसे अनुवाद करनेवाली यह ब्राह्मणोपनिषद् आरम्भ की जाती है। इस उपनिषद्के छः खण्ड हैं, जो छः प्रश्न कहे जाते हैं। ग्रन्थके आरम्भमें सुकेशा आदि छः ऋषिकुमार मुनिवर पिप्प्लादके आश्रम आकर उनसे कुछ पूछना चाहते हैं।

== परिचय ==
ब्रह्मविद्या के ज्ञान के लिए छः ऋषि महर्षि पिप्पलाद के पास आते हैं। उन्होंने अध्यात्म-विषयक छः प्रश्न पूछे। महर्षि ने बहुत सुन्दरता से सबके प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। छः प्रश्न ये हैं - <ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/vedicsahityaevamsanskritidr.kapildevdwivedi/page/n195/mode/1up वैदिक साहित्य एवं संस्कृति], सन् २०००, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी (पृ० १७७)।</ref>

# प्रजा (सृष्टि) की उत्पत्ति कहाँ से होती है।
# प्रजा के धारक और प्रकाशक कौन से देवता हैं और उनमें कौन श्रेष्ठ है।
# प्राण की उत्पत्ति, उसका शरीर में आना और निकलना कैसे होता है।
# स्वप्न, स्वप्न-दर्शन, जागना आदि क्रियायें कैसे होती हैं। कौन सोता-जागता है।
# ओम् के ध्यान का क्या फल है।
# षोडश कला वाला पुरुष कौन है, कहाँ रहता है।

इस उपनिषद् में प्राण और रयि (अग्नि और सोम, धनात्मक और ऋणात्मक शक्ति) से सृष्टि की उत्पत्ति बताई है। प्राणशक्ति संसार का आधार है। सूर्य में प्राणशक्ति है, वही सारे संसार को प्राणशक्ति (जीवनी शक्ति) देता है। तपस्या, ब्रह्मचर्य, श्रद्धा और विद्या से ही आत्मतत्त्व का ज्ञान होता है।

== प्रश्न उपनिषद् - वर्ण्य विषय ==

== सारांश ==

== उद्धरण ==
731

edits

Navigation menu