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== परिचय ==
 
== परिचय ==
 
ऐतरेय-उपनिषद् के प्रथम खण्ड में आत्मा से चराचर प्रपञ्च-सृष्टि की उत्पत्ति का कथन है। प्रत्यक्ष जगत् के इस रूप में प्रकट होने से पहले कारण अवस्था में एकमात्र परमात्मा ही था। सृष्टि के आदि में उसने यह विचार किया कि 'मैं प्राणियों के कर्मफल भोगार्थ भिन्न-भिन्न लोकों की रचना करूँ' यह विचार कर उसने अम्भः, मरीचि, मरः और आपः- इन लोकों की रचना की। फिर उसने सूक्ष्म महाभूतों में से हिरण्यगर्भरूप पुरुष को निकालकर उसको समस्त अंग-उपांगों से युक्त करके मूर्तिमान् बनाया।
 
ऐतरेय-उपनिषद् के प्रथम खण्ड में आत्मा से चराचर प्रपञ्च-सृष्टि की उत्पत्ति का कथन है। प्रत्यक्ष जगत् के इस रूप में प्रकट होने से पहले कारण अवस्था में एकमात्र परमात्मा ही था। सृष्टि के आदि में उसने यह विचार किया कि 'मैं प्राणियों के कर्मफल भोगार्थ भिन्न-भिन्न लोकों की रचना करूँ' यह विचार कर उसने अम्भः, मरीचि, मरः और आपः- इन लोकों की रचना की। फिर उसने सूक्ष्म महाभूतों में से हिरण्यगर्भरूप पुरुष को निकालकर उसको समस्त अंग-उपांगों से युक्त करके मूर्तिमान् बनाया।
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== ऐतरेय उपनिषद् का शान्ति पाठ ==
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ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता मनो मे वाचि प्रतिष्ठितमाविरावीर्म एधि ॥ वेदस्य म आणीस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीरनेनाधीतेनाहोरात्रान् सन्दधाम्यृतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि ॥ तन्मामवतु तद्वक्तारमवत्ववतु मामवतु वक्तारमवतु वक्तारम्॥ ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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सभी उपनिषद् अध्ययन की दृष्टि से एक दूसरे के पूरक हैं। देवर्षि नारद और सनत्कुमार जी के संवाद के सन्दर्भ में हम लोगों ने देखा कि सम्पूर्ण विद्यायें नामरूप ब्रह्म के रूप में हैं लेकिन उनकी प्रतिष्ठा वाक् अर्थात् वाणी में है।
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== ऐतरेय उपनिषद् के उपदेष्टा ==
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ऐतरेय आरण्यक के प्रवचनकर्ता के रूप में ऐतरेय महिदास का स्मरण किया गया है। ऐतरेय आरण्यक में ही ऐतरेय उपनिषद् भी समाहित है। इसलिये उपदेष्टा के रूप में हमें ऐतरेय महिदास के ही नाम का स्मरण करना चाहिये।
    
== वर्ण्यविषय ==
 
== वर्ण्यविषय ==
 
यह उपनिषद् साक्षात् रूप से ब्रह्मविद्या का वर्णन न करते हुए भी उसके माहात्म्य का विशद विवेचन करने के कारण उपनिषद् - साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान पर है।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/1.SanskritVangmayaKaBrihatItihasVedas/page/482/mode/1up संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास - वेद खण्ड], सन् १९९६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान - लखनऊ, (पृ० ४८३)।</ref>
 
यह उपनिषद् साक्षात् रूप से ब्रह्मविद्या का वर्णन न करते हुए भी उसके माहात्म्य का विशद विवेचन करने के कारण उपनिषद् - साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान पर है।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/1.SanskritVangmayaKaBrihatItihasVedas/page/482/mode/1up संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास - वेद खण्ड], सन् १९९६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान - लखनऊ, (पृ० ४८३)।</ref>
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'''प्रथम अध्याय - प्रथम खण्ड विवेचन -'''
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ब्रह्म के द्वारा विभिन्न लोकों की सृष्टि
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ब्रह्म के द्वारा पुरुष की सृष्टि
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'''द्वितीय खण्ड विवेचन'''
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गो और अश्व शरीर की रचना का विवेचन
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देवताओं का अपने-अपने आयतन में प्रवेश
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'''तृतीय खण्ड विवेचन'''
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मूर्तिरूप में अन्न की उत्पत्ति
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अन्न का पलायन
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अन्न का अपान द्वारा ग्रहण
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उस आदि पुरुष का अपने कर्तृत्व पर विचार
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मोह की निवृत्ति
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'''द्वितीय एवं तृतीय अध्याय की कथावस्तु'''
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पुरुष का प्रथम एवं द्वितीय जन्म
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पुरुष का तृतीय जन्म
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'''तृतीय अध्याय की कथावस्तु'''
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== सारांश ==
    
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
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