Line 5: |
Line 5: |
| | | |
| == ब्रह्मसूत्र का स्वरूप == | | == ब्रह्मसूत्र का स्वरूप == |
| + | ब्रह्मसूत्रों की रचना से पहले कुछ आचार्यों ने ब्रह्मसूत्रों जैसा ही प्रयत्न किया था किन्तु उनके ग्रंथ या उनके द्वारा लिखे गए प्रमाण नहीं मिलते। इस प्रयत्न में बादरायण व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदांत दर्शन का ग्रंथ उपलब्ध है। वेदान्त शास्त्र की आधारशिला के तीन प्रस्थान है। उपनिषद का श्रुति प्रस्थान है। भगवद् गीता का स्मृति प्रस्थान है , और ब्रह्मसूत्र का न्याय प्रस्थान है। ब्रह्मात्मैक्य उपनिषदों का लक्ष्य है। |
| | | |
− | == प्रस्थानत्रयी == | + | ==ब्रह्मसूत्र के रचयिता== |
| + | |
| + | ==प्रस्थानत्रयी== |
| भारतीय दर्शन का प्राचीन काल से ही जीवनलक्षी दृष्टिकोण रहा है। मानवजीवन के आध्यात्मिक, तात्त्विक तथा वैचारिक पक्ष में हमारे दार्शनिक ग्रन्थों का बहुमूल्य योगदान रहा है। भारतीय दार्शनिक परंपराओं में तीन तत्त्वों (जीव,जगत् , ईश्वर) के बारे में विस्तृत चिन्तन हुआ है। भारतीय दर्शन की शुरूआत या प्रस्थान तीन महाग्रन्थों से होती है, जिसमें उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और तीसरे महाग्रन्थ में श्रीमद्भगवद्गीता का स्थान है। इन तीनों को प्रस्थानत्रयी या आरंभत्रयी भी कहते हैं। | | भारतीय दर्शन का प्राचीन काल से ही जीवनलक्षी दृष्टिकोण रहा है। मानवजीवन के आध्यात्मिक, तात्त्विक तथा वैचारिक पक्ष में हमारे दार्शनिक ग्रन्थों का बहुमूल्य योगदान रहा है। भारतीय दार्शनिक परंपराओं में तीन तत्त्वों (जीव,जगत् , ईश्वर) के बारे में विस्तृत चिन्तन हुआ है। भारतीय दर्शन की शुरूआत या प्रस्थान तीन महाग्रन्थों से होती है, जिसमें उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और तीसरे महाग्रन्थ में श्रीमद्भगवद्गीता का स्थान है। इन तीनों को प्रस्थानत्रयी या आरंभत्रयी भी कहते हैं। |
| | | |
| प्रस्थान का अर्थ है एक शास्त्र जो सिद्धांतों को स्थापित करता है अथवा जिसके द्वारा ले जाया जाता है, वह प्रस्थान है। और त्रयी मात्रा तीन का बोधक है। तीन शास्त्र – उपनिषद , श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र को प्रस्थानत्रयी के रूप में जाना जाता है। | | प्रस्थान का अर्थ है एक शास्त्र जो सिद्धांतों को स्थापित करता है अथवा जिसके द्वारा ले जाया जाता है, वह प्रस्थान है। और त्रयी मात्रा तीन का बोधक है। तीन शास्त्र – उपनिषद , श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र को प्रस्थानत्रयी के रूप में जाना जाता है। |
| | | |
− | === श्रुति प्रस्थान - उपनिषद् === | + | ===श्रुति प्रस्थान - उपनिषद्=== |
| आद्य शंकराचार्य जी ने सन्यास-आश्रमके दस सम्प्रदाय स्थापित किये प्रत्येक सम्प्रदायका अपना एक विशेष उपनिषद् कहा जाता है, जिसके अध्ययन और विचारसे ब्रह्मज्ञानप्राप्तिकी चेष्टा अनुयायी करते हैं। वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्रमें उपनिषदोंकी मीमांसा की है, ऐसा माना जाता है। इसीसे उपनिषद् और गीताके साथ ब्रह्मसूत्रकी गणना प्रस्थानत्रयीमें होती है, सभी उपनिषदों का पठन तथा मनन कदाचित् सम्भव न हो, इसीलिये सम्प्रदायोंके लिये विशेष विशेष उपनिषदोंकी प्रधानता स्वीकार की गयी है। | | आद्य शंकराचार्य जी ने सन्यास-आश्रमके दस सम्प्रदाय स्थापित किये प्रत्येक सम्प्रदायका अपना एक विशेष उपनिषद् कहा जाता है, जिसके अध्ययन और विचारसे ब्रह्मज्ञानप्राप्तिकी चेष्टा अनुयायी करते हैं। वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्रमें उपनिषदोंकी मीमांसा की है, ऐसा माना जाता है। इसीसे उपनिषद् और गीताके साथ ब्रह्मसूत्रकी गणना प्रस्थानत्रयीमें होती है, सभी उपनिषदों का पठन तथा मनन कदाचित् सम्भव न हो, इसीलिये सम्प्रदायोंके लिये विशेष विशेष उपनिषदोंकी प्रधानता स्वीकार की गयी है। |
| | | |
Line 34: |
Line 37: |
| उपनिषदों की विषय-वस्तु | | उपनिषदों की विषय-वस्तु |
| | | |
− | === न्याय प्रस्थान - ब्रह्म सूत्र === | + | ===न्याय प्रस्थान - ब्रह्म सूत्र=== |
| ब्रह्मसूत्रों की रचना से पहले कुछ आचार्यों ने ब्रह्मसूत्रों जैसा ही प्रयत्न किया था किन्तु उनके ग्रंथ या उनके द्वारा लिखे गए प्रमाण नहीं मिलते। इस प्रयत्न में बादरायण व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदांत दर्शन का ग्रंथ उपलब्ध है। वेदान्त शास्त्र की आधारशिला के तीन प्रस्थान है। उपनिषद का श्रुति प्रस्थान है। भगवद् गीता का स्मृति प्रस्थान है , और ब्रह्मसूत्र का न्याय प्रस्थान है। ब्रह्मात्मैक्य उपनिषदों का लक्ष्य है। | | ब्रह्मसूत्रों की रचना से पहले कुछ आचार्यों ने ब्रह्मसूत्रों जैसा ही प्रयत्न किया था किन्तु उनके ग्रंथ या उनके द्वारा लिखे गए प्रमाण नहीं मिलते। इस प्रयत्न में बादरायण व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदांत दर्शन का ग्रंथ उपलब्ध है। वेदान्त शास्त्र की आधारशिला के तीन प्रस्थान है। उपनिषद का श्रुति प्रस्थान है। भगवद् गीता का स्मृति प्रस्थान है , और ब्रह्मसूत्र का न्याय प्रस्थान है। ब्रह्मात्मैक्य उपनिषदों का लक्ष्य है। |
| | | |
− | === स्मृति प्रस्थान - भगवद्गीता === | + | ===स्मृति प्रस्थान - भगवद्गीता === |
| + | श्रीमद्भगवद्गीता वेदान्त के द्वितीय स्मृति प्रस्थान है। इसमें भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिये उपदेश वर्णित हैं। भगवद्गीता भगवान् के मुख से स्वतः आविर्भूत होने के कारण वेद की तरह ही अपौरुषेय माना जाता है। इसीलिये यह शास्त्र भी ब्रह्मविद्या प्रतिपादक शास्त्र है। ब्रह्म प्राप्ति के लिये निष्काम कर्म, भक्ति ज्ञान तथा ज्ञानकर्म समुच्चय आदि साधनों का निर्देश किया गया है। |
| | | |
− | == ब्रह्मसूत्र विषय विभाग == | + | प्रथम छः अध्यायों में निष्कामकर्मयोग का द्वितीय छः अध्यायों में भगवद्भक्तियोग का तथा तीसरे छः अध्यायों में ज्ञानयोग का रहस्य बतलाया गया है। |
| + | |
| + | ==ब्रह्मसूत्र विषय विभाग== |
| भगवान बादरायण जी ने ज्ञानकाण्डात्मक उपनिषद् भाग के अर्थ-विस्तार के लिए तथा वेद विरुद्ध-मतों के निराकरण के लिए सूत्रात्मक ग्रंथ रचा। इस ग्रंथ के चार अध्याय होते हैं – | | भगवान बादरायण जी ने ज्ञानकाण्डात्मक उपनिषद् भाग के अर्थ-विस्तार के लिए तथा वेद विरुद्ध-मतों के निराकरण के लिए सूत्रात्मक ग्रंथ रचा। इस ग्रंथ के चार अध्याय होते हैं – |
| | | |
Line 46: |
Line 52: |
| #'''तृतीय साधनाध्याय -''' इसमें ब्रह्मस्वरूप तथा ब्रह्म प्राप्ति और ब्रह्म साक्षात्कार की साधनभूत ब्रह्मविद्या के विषय में चर्चा है। इस अध्याय को मोक्ष से संबंधित होने के कारण मोक्षाध्याय भी कहा जाता है। इसके प्रथम पाद में जीव का आवागमन का विचार करके वैराग्य का निरूपण किया गया है, दूसरे पाद में 'तत्त्वमसि' महावाक्य के तम् और तत् पद का विवेचन है , तृतीय पाद में अद्वैत ब्रह्म की उपासना पद्धतियों का वर्णन है। चतुर्थ पाद में ब्रह्म प्राप्तिरूप पुरुषार्थसिद्धि का वर्णन है। | | #'''तृतीय साधनाध्याय -''' इसमें ब्रह्मस्वरूप तथा ब्रह्म प्राप्ति और ब्रह्म साक्षात्कार की साधनभूत ब्रह्मविद्या के विषय में चर्चा है। इस अध्याय को मोक्ष से संबंधित होने के कारण मोक्षाध्याय भी कहा जाता है। इसके प्रथम पाद में जीव का आवागमन का विचार करके वैराग्य का निरूपण किया गया है, दूसरे पाद में 'तत्त्वमसि' महावाक्य के तम् और तत् पद का विवेचन है , तृतीय पाद में अद्वैत ब्रह्म की उपासना पद्धतियों का वर्णन है। चतुर्थ पाद में ब्रह्म प्राप्तिरूप पुरुषार्थसिद्धि का वर्णन है। |
| #'''चतुर्थ फलाध्याय -''' चौथा और अन्तिम अध्याय भी चार पदों में विभक्त है, इसका एक नाम कलाध्याय भी है। इसके प्रथम पाद में श्रवणादि साधन से निर्गुण ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उपासना आदि से सगुण ब्रह्म के साक्षात्कार की चर्चा है। दूसरे पाद में मुमुक्षु जीव की ऊर्ध्वगति का निरूपण है। तीसरे पाद में सगुण ब्रह्म का ज्ञाता मृत्यु के बाद उत्तर के मार्ग पर जाता है, उसका वर्णन है। चतुर्थ पाद में पहले निर्गुण ब्रह्मज्ञान की विदेहमुक्ति बताई गई है और सगुण ब्रह्मज्ञान की ब्रह्मलोक में स्थिति दर्शाई गई है। इसमें विभिन्न विद्याओं के अनुरूप साधक को प्राप्त होनेवाले फल के विषय में चर्चा है। | | #'''चतुर्थ फलाध्याय -''' चौथा और अन्तिम अध्याय भी चार पदों में विभक्त है, इसका एक नाम कलाध्याय भी है। इसके प्रथम पाद में श्रवणादि साधन से निर्गुण ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उपासना आदि से सगुण ब्रह्म के साक्षात्कार की चर्चा है। दूसरे पाद में मुमुक्षु जीव की ऊर्ध्वगति का निरूपण है। तीसरे पाद में सगुण ब्रह्म का ज्ञाता मृत्यु के बाद उत्तर के मार्ग पर जाता है, उसका वर्णन है। चतुर्थ पाद में पहले निर्गुण ब्रह्मज्ञान की विदेहमुक्ति बताई गई है और सगुण ब्रह्मज्ञान की ब्रह्मलोक में स्थिति दर्शाई गई है। इसमें विभिन्न विद्याओं के अनुरूप साधक को प्राप्त होनेवाले फल के विषय में चर्चा है। |
| + | |
| + | ==प्रथम पाँच सूत्र== |
| + | ब्रह्मसूत्रों का मुख्य प्रयोजन उपनिषद् के वाक्यों को सम्ग्रथित करना है। उनके प्रथम पांच सूत्र उनके दर्शन का सार प्रस्तुत करते हैं। ये निम्नलिखित हैं - |
| + | |
| + | #अथातो ब्रह्मजिज्ञासा - अब , इस प्रकार ब्रह्मजिज्ञासा करना है। |
| + | #जन्माद्यस्य यतः - ब्रह्म वह है, जिससे इस जगत् का जन्म होता है, जिसमें इसकी स्थिति होती है तथा जिसमें इसका लय होता है। |
| + | #शास्त्रयोनित्वात् - ब्रह्म का ज्ञान शास्त्र से होता है। |
| + | #तत्तु समन्वयात् - वह ब्रह्मज्ञान शास्त्र के समन्वय से होता है। शास्त्र का समन्वय धर्मज्ञान में नहीं हैं। |
| + | #ईक्षतेनशब्दितम् - ब्रह्म चेतन है। अतः वेदबाह्य प्रमाण अर्थात् प्रत्यक्ष तथा अनुमान से जगत् के आदि कारण की जो मीमांसा की जाती है, वह सत्य नहीं है। |
| + | |
| + | इसमें से प्रथम चार सूत्रों को चतुःसूत्री कहा जाता है। प्रायः इनमें ही पांचवें सूत्र का भी अभिप्राय आ जाता है। इसलिये चतुःसूत्री को ही बादरायण का मुख्य मन्तव्य माना जाता है। |
| + | |
| इस तरह ब्रह्मसूत्र के चार अध्याय और प्रत्येक अध्याय में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में अनेक अधिकरण होते हैं। चार अध्यायों में 555 सूत्र होते हैं। इस ग्रंथ के ही अन्य नाम हैं – उत्तर मीमांसा , शारीरिक सूत्र , वेदान्त सूत्र , ब्रह्म सूत्र इत्यादि। ब्रह्मसूत्र में बादरायण आचार्य द्वारा निर्दिष्ट आचार्यों के नाम निम्नलिखित हैं - | | इस तरह ब्रह्मसूत्र के चार अध्याय और प्रत्येक अध्याय में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में अनेक अधिकरण होते हैं। चार अध्यायों में 555 सूत्र होते हैं। इस ग्रंथ के ही अन्य नाम हैं – उत्तर मीमांसा , शारीरिक सूत्र , वेदान्त सूत्र , ब्रह्म सूत्र इत्यादि। ब्रह्मसूत्र में बादरायण आचार्य द्वारा निर्दिष्ट आचार्यों के नाम निम्नलिखित हैं - |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
Line 53: |
Line 71: |
| !सूत्र | | !सूत्र |
| |- | | |- |
− | | कार्ष्णाजिनि | + | |कार्ष्णाजिनि |
| |चरणादिति चेन्नोपलक्षणाथेति कार्ष्णाजिनिः (ब्र. सू. 31) | | |चरणादिति चेन्नोपलक्षणाथेति कार्ष्णाजिनिः (ब्र. सू. 31) |
| |- | | |- |
Line 66: |
Line 84: |
| |- | | |- |
| |बादरायण | | |बादरायण |
− | | एवमप्युपन्यासात् पूर्वभावादविरोधं बादरायणः (ब्र. सू. 4/4) | + | |एवमप्युपन्यासात् पूर्वभावादविरोधं बादरायणः (ब्र. सू. 4/4) |
| |- | | |- |
| |जैमिनि | | |जैमिनि |
− | |ब्राह्मेण जैमिनिरूपन्यासादिभ्यः (ब्र. सू. 4/4 ) | + | | ब्राह्मेण जैमिनिरूपन्यासादिभ्यः (ब्र. सू. 4/4 ) |
| |- | | |- |
| |आश्मरथ्य | | |आश्मरथ्य |
| |प्रतिज्ञासिद्धेर्लिन्नमाश्मरथ्यः (ब्र. सू. 1/4 ) | | |प्रतिज्ञासिद्धेर्लिन्नमाश्मरथ्यः (ब्र. सू. 1/4 ) |
| |} | | |} |
| + | ये सभी ब्रह्मसूत्रों के रचयिता थे। किन्तु इनके ब्रह्मसूत्र अब अनुपलब्ध हैं। इनमें से काशकृत्स्न का उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में भी मिलता है। |
| | | |
| ==ब्रह्मसूत्र पर भाष्य== | | ==ब्रह्मसूत्र पर भाष्य== |
| इस ग्रंथ को आधारित करके ही शंकराचार्य आदि विविध दार्शनिकों ने स्वयं भाष्य रचे। उस भाष्य के अनुसार ही उनका दर्शन प्रवृत्त हुआ। ब्रह्म सूत्र पर अनेक आचार्यों द्वारा भाष्य लिखे गए हैं। वेदान्त में प्रसिद्ध दश मत होते हैं – <ref>पद्मभूषण आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय , संस्कृत-वांग्मय का बृहद इतिहास , दशम-खण्ड वेदांत, सन् 1999, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० 2)।</ref> | | इस ग्रंथ को आधारित करके ही शंकराचार्य आदि विविध दार्शनिकों ने स्वयं भाष्य रचे। उस भाष्य के अनुसार ही उनका दर्शन प्रवृत्त हुआ। ब्रह्म सूत्र पर अनेक आचार्यों द्वारा भाष्य लिखे गए हैं। वेदान्त में प्रसिद्ध दश मत होते हैं – <ref>पद्मभूषण आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय , संस्कृत-वांग्मय का बृहद इतिहास , दशम-खण्ड वेदांत, सन् 1999, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० 2)।</ref> |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
− | |संप्रदाय का नाम
| + | !संप्रदाय का नाम |
− | |प्रवर्तक
| + | !प्रवर्तक |
− | |काल (ईस्वी)
| + | ! काल (ईस्वी) |
− | |भाष्य का नाम
| + | !भाष्य का नाम |
| |- | | |- |
| |निर्विशेषाद्वैत | | |निर्विशेषाद्वैत |
Line 99: |
Line 118: |
| |- | | |- |
| |द्वैत | | |द्वैत |
− | |माध्वाचार्य-आनंदतीर्थ | + | | माध्वाचार्य-आनंदतीर्थ |
− | | 1288 | + | |1288 |
| |पूर्णप्रज्ञ भाष्य | | |पूर्णप्रज्ञ भाष्य |
| |- | | |- |
Line 130: |
Line 149: |
| |अचिंत्य भेदाभेद | | |अचिंत्य भेदाभेद |
| |बलदेव | | |बलदेव |
− | | 1725 | + | |1725 |
| |गोविंद भाष्य | | |गोविंद भाष्य |
| |} | | |} |
− | '''ब्रह्मसूत्रों में प्रस्तुत संक्षिप्त विषय'''
| |
| | | |
− | ब्रह्मसूत्र में जीव विषयक मत | + | == ब्रह्मसूत्रों में प्रस्तुत संक्षिप्त विषय == |
| + | '''ब्रह्मसूत्र में जीव विषयक मत''' |
| + | |
| + | वेदांत के कुछ प्रतिपादित विषय देखे जाएँ तो ब्रह्म विषयक मत में शंकराचार्य के अनुसार जीव और ब्रह्म दो नहीं हैं। अतः उनके मत का अद्वैतवाद हैं। रामानुजाचार्य अद्वैत को स्वीकार करते हुए भी कहते हैं कि एक ही ब्रह्म में जीव तथा अचेतन प्रकृति भी विशेषण रूप से है। अनेक विशेषण-विशिष्ट एक ब्रह्म को मानने के कारण इस मत का नाम विशिष्टाद्वैत पडा है। |
| | | |
− | ब्रह्मसूत्र में जगत विषयक मत | + | मध्वाचार्य जीव और ब्रह्म को दो मानते हैं, अतः इस मत को द्वैतवाद कहा जाता है। |
| + | |
| + | निम्बार्काचार्य - जीव और ब्रह्म इसी दृष्टि से दो हैं, किसी दृष्टि से दो नहीं हैं इस मत को द्वैताद्वैत कहते हैं। |
| + | |
| + | वल्लभाचार्य - ब्रह्म का एक शुभ स्वरूप है वह तत्व से शुद्धतत्व है अतः उनके मत का नाम शुद्धाद्वैत पडा है। |
| + | |
| + | इस प्रकार जीव और ब्रह्म के भेद, अभेद, और भेदाभेद संबंध भिन्न-भिन्न प्रकार से स्थापित करने वाले अनेक मत हैं। |
| + | |
| + | सर्व प्रसिद्ध शंकराचार्य का अद्वैत और रामानुज का विशिष्टाद्वैत मत है। |
| + | |
| + | '''ब्रह्मसूत्र में जगत विषयक मत''' |
| + | |
| + | वेदान्तो नाम उपनिषत् प्रमाणम् |
| | | |
| ब्रह्म सूत्र के रचनाकार श्री बादरायण व्यास जी माने जाते हैं। ब्रह्मसूत्र बादरायण (शांकर भाष्य) चतुः सूत्री श्रीभाष्य वेदान्त दर्शन - | | ब्रह्म सूत्र के रचनाकार श्री बादरायण व्यास जी माने जाते हैं। ब्रह्मसूत्र बादरायण (शांकर भाष्य) चतुः सूत्री श्रीभाष्य वेदान्त दर्शन - |
| | | |
− | *श्रुति प्रस्थान , स्मृति प्रस्थान , न्यायप्रस्थान या सूत्र प्रस्थान | + | *श्रुति प्रस्थान , स्मृति प्रस्थान , न्यायप्रस्थान या सूत्र प्रस्थान। |
| | | |
− | *सत्ता त्रैविध्य – प्रातिभासिक सत्ता , व्यावहारिक सत्ता , पारमार्थिक सत्ता | + | *सत्ता त्रैविध्य – प्रातिभासिक सत्ता , व्यावहारिक सत्ता , पारमार्थिक सत्ता। |
| | | |
− | *ब्रह्म के लक्षण – तटस्थलक्षण, स्वरूप लक्षण , माया | + | *ब्रह्म के लक्षण – तटस्थलक्षण, स्वरूप लक्षण , माया। |
| | | |
| '''बादरायण''' | | '''बादरायण''' |
| | | |
− | '''शंकराचर्य व्यक्तित्व कृतित्व''' | + | '''शंकराचर्य व्यक्तित्व कृतित्व'''<blockquote>अष्टवर्षे चतुर्वेदी द्वादशे सर्वशास्त्रवित्। षोडशे कृतवान्भाष्यं द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्॥</blockquote>आचार्य की प्रमुख रचनायें – |
| | | |
− | अष्टवर्षे चतुर्वेदी द्वादशे सर्वशास्त्रवित्। षोडशे कृतवान्भाष्यं द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्॥
| + | आचार्यशंकर की प्रमुख रचनाओं में ब्रह्मसूत्रभाष्य, उपनिषद्भाष्य, गीताभाष्य, विष्णुसहस्रनामभाष्य, सनत्सुजातीयभाष्य , विवेकचूडामणि , हस्तामलकभाष्य , प्रबोध सुधाकर , उपदेश सहस्री , सौन्दर्य लहरी, पंचीकरण , प्रपञ्चसार , आत्मबोध , अपरोक्षानुभूति , वाक्य वृत्ति , दशश्लोकी , सर्ववेदान्तसारसंग्रह , आनंदलहरी आदि अनेक ग्रंथ हैं जिनकी आचार्य शंकर ने रचना की। |
− | | |
− | आचार्य की प्रमुख रचनायें –
| |
| | | |
− | आचार्यशंकर की प्रमुख रचनाओं में ब्रह्मसूत्रभाष्य, उपनिषद्भाष्य, गीताभाष्य, विष्णुसहस्रनामभाष्य, सनत्सुजातीयभाष्य , विवेकचूडामणि , हस्तामलकभाष्य , प्रबोध सुधाकर , उपदेश सहस्री , सौन्दर्य लहरी, पंचीकरण , प्रपञ्चसार , आत्मबोध , अपरोक्षानुभूति , वाक्य वृत्ति , दशश्लोकी , सर्ववेदान्तसारसंग्रह , आनंदलहरी आदि अनेक ग्रंथ हैं जिनकी आचार्य शंकर ने रचना की।
| + | ==ब्रह्मसूत्र का महत्व== |
| | | |
| ==वेदान्तदर्शन== | | ==वेदान्तदर्शन== |