Line 3: |
Line 3: |
| == परिचय == | | == परिचय == |
| भारतीय दर्शन एक विशाल सागर के समान है। जिसके विविध क्षेत्र विविध प्रकार के आयामों को प्रगट करते हैं। उपनिषद् , ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता को वेदांत की प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। क्योंकि ये वेदांत के सर्वमान्य प्रमुख ग्रंथ हैं। इनमें भी उपनिषद् मूल प्रस्थान है , और शेष दो उन पर आधारित माने जाते हैं। ब्रह्मसूत्र ऐसा ही एक वेदांत की प्रस्थानत्रयी का अंग है। ब्रह्मसूत्र को ज्ञानमीमांसा भी कहा जाता है। क्योंकि इसका मुख्य प्रतिपादित विषय ज्ञान है। | | भारतीय दर्शन एक विशाल सागर के समान है। जिसके विविध क्षेत्र विविध प्रकार के आयामों को प्रगट करते हैं। उपनिषद् , ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता को वेदांत की प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। क्योंकि ये वेदांत के सर्वमान्य प्रमुख ग्रंथ हैं। इनमें भी उपनिषद् मूल प्रस्थान है , और शेष दो उन पर आधारित माने जाते हैं। ब्रह्मसूत्र ऐसा ही एक वेदांत की प्रस्थानत्रयी का अंग है। ब्रह्मसूत्र को ज्ञानमीमांसा भी कहा जाता है। क्योंकि इसका मुख्य प्रतिपादित विषय ज्ञान है। |
| + | |
| + | == ब्रह्मसूत्र का स्वरूप == |
| | | |
| == प्रस्थानत्रयी == | | == प्रस्थानत्रयी == |
Line 9: |
Line 11: |
| प्रस्थान का अर्थ है एक शास्त्र जो सिद्धांतों को स्थापित करता है अथवा जिसके द्वारा ले जाया जाता है, वह प्रस्थान है। और त्रयी मात्रा तीन का बोधक है। तीन शास्त्र – उपनिषद , श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र को प्रस्थानत्रयी के रूप में जाना जाता है। | | प्रस्थान का अर्थ है एक शास्त्र जो सिद्धांतों को स्थापित करता है अथवा जिसके द्वारा ले जाया जाता है, वह प्रस्थान है। और त्रयी मात्रा तीन का बोधक है। तीन शास्त्र – उपनिषद , श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र को प्रस्थानत्रयी के रूप में जाना जाता है। |
| | | |
− | === उपनिषद् === | + | === श्रुति प्रस्थान - उपनिषद् === |
| आद्य शंकराचार्य जी ने सन्यास-आश्रमके दस सम्प्रदाय स्थापित किये प्रत्येक सम्प्रदायका अपना एक विशेष उपनिषद् कहा जाता है, जिसके अध्ययन और विचारसे ब्रह्मज्ञानप्राप्तिकी चेष्टा अनुयायी करते हैं। वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्रमें उपनिषदोंकी मीमांसा की है, ऐसा माना जाता है। इसीसे उपनिषद् और गीताके साथ ब्रह्मसूत्रकी गणना प्रस्थानत्रयीमें होती है, सभी उपनिषदों का पठन तथा मनन कदाचित् सम्भव न हो, इसीलिये सम्प्रदायोंके लिये विशेष विशेष उपनिषदोंकी प्रधानता स्वीकार की गयी है। | | आद्य शंकराचार्य जी ने सन्यास-आश्रमके दस सम्प्रदाय स्थापित किये प्रत्येक सम्प्रदायका अपना एक विशेष उपनिषद् कहा जाता है, जिसके अध्ययन और विचारसे ब्रह्मज्ञानप्राप्तिकी चेष्टा अनुयायी करते हैं। वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्रमें उपनिषदोंकी मीमांसा की है, ऐसा माना जाता है। इसीसे उपनिषद् और गीताके साथ ब्रह्मसूत्रकी गणना प्रस्थानत्रयीमें होती है, सभी उपनिषदों का पठन तथा मनन कदाचित् सम्भव न हो, इसीलिये सम्प्रदायोंके लिये विशेष विशेष उपनिषदोंकी प्रधानता स्वीकार की गयी है। |
| | | |
Line 32: |
Line 34: |
| उपनिषदों की विषय-वस्तु | | उपनिषदों की विषय-वस्तु |
| | | |
− | === ब्रह्म सूत्र का स्वरूप === | + | === न्याय प्रस्थान - ब्रह्म सूत्र === |
| ब्रह्मसूत्रों की रचना से पहले कुछ आचार्यों ने ब्रह्मसूत्रों जैसा ही प्रयत्न किया था किन्तु उनके ग्रंथ या उनके द्वारा लिखे गए प्रमाण नहीं मिलते। इस प्रयत्न में बादरायण व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदांत दर्शन का ग्रंथ उपलब्ध है। वेदान्त शास्त्र की आधारशिला के तीन प्रस्थान है। उपनिषद का श्रुति प्रस्थान है। भगवद् गीता का स्मृति प्रस्थान है , और ब्रह्मसूत्र का न्याय प्रस्थान है। ब्रह्मात्मैक्य उपनिषदों का लक्ष्य है। | | ब्रह्मसूत्रों की रचना से पहले कुछ आचार्यों ने ब्रह्मसूत्रों जैसा ही प्रयत्न किया था किन्तु उनके ग्रंथ या उनके द्वारा लिखे गए प्रमाण नहीं मिलते। इस प्रयत्न में बादरायण व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदांत दर्शन का ग्रंथ उपलब्ध है। वेदान्त शास्त्र की आधारशिला के तीन प्रस्थान है। उपनिषद का श्रुति प्रस्थान है। भगवद् गीता का स्मृति प्रस्थान है , और ब्रह्मसूत्र का न्याय प्रस्थान है। ब्रह्मात्मैक्य उपनिषदों का लक्ष्य है। |
| + | |
| + | === स्मृति प्रस्थान - भगवद्गीता === |
| | | |
| == ब्रह्मसूत्र विषय विभाग == | | == ब्रह्मसूत्र विषय विभाग == |
Line 42: |
Line 46: |
| #'''तृतीय साधनाध्याय -''' इसमें ब्रह्मस्वरूप तथा ब्रह्म प्राप्ति और ब्रह्म साक्षात्कार की साधनभूत ब्रह्मविद्या के विषय में चर्चा है। इस अध्याय को मोक्ष से संबंधित होने के कारण मोक्षाध्याय भी कहा जाता है। इसके प्रथम पाद में जीव का आवागमन का विचार करके वैराग्य का निरूपण किया गया है, दूसरे पाद में 'तत्त्वमसि' महावाक्य के तम् और तत् पद का विवेचन है , तृतीय पाद में अद्वैत ब्रह्म की उपासना पद्धतियों का वर्णन है। चतुर्थ पाद में ब्रह्म प्राप्तिरूप पुरुषार्थसिद्धि का वर्णन है। | | #'''तृतीय साधनाध्याय -''' इसमें ब्रह्मस्वरूप तथा ब्रह्म प्राप्ति और ब्रह्म साक्षात्कार की साधनभूत ब्रह्मविद्या के विषय में चर्चा है। इस अध्याय को मोक्ष से संबंधित होने के कारण मोक्षाध्याय भी कहा जाता है। इसके प्रथम पाद में जीव का आवागमन का विचार करके वैराग्य का निरूपण किया गया है, दूसरे पाद में 'तत्त्वमसि' महावाक्य के तम् और तत् पद का विवेचन है , तृतीय पाद में अद्वैत ब्रह्म की उपासना पद्धतियों का वर्णन है। चतुर्थ पाद में ब्रह्म प्राप्तिरूप पुरुषार्थसिद्धि का वर्णन है। |
| #'''चतुर्थ फलाध्याय -''' चौथा और अन्तिम अध्याय भी चार पदों में विभक्त है, इसका एक नाम कलाध्याय भी है। इसके प्रथम पाद में श्रवणादि साधन से निर्गुण ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उपासना आदि से सगुण ब्रह्म के साक्षात्कार की चर्चा है। दूसरे पाद में मुमुक्षु जीव की ऊर्ध्वगति का निरूपण है। तीसरे पाद में सगुण ब्रह्म का ज्ञाता मृत्यु के बाद उत्तर के मार्ग पर जाता है, उसका वर्णन है। चतुर्थ पाद में पहले निर्गुण ब्रह्मज्ञान की विदेहमुक्ति बताई गई है और सगुण ब्रह्मज्ञान की ब्रह्मलोक में स्थिति दर्शाई गई है। इसमें विभिन्न विद्याओं के अनुरूप साधक को प्राप्त होनेवाले फल के विषय में चर्चा है। | | #'''चतुर्थ फलाध्याय -''' चौथा और अन्तिम अध्याय भी चार पदों में विभक्त है, इसका एक नाम कलाध्याय भी है। इसके प्रथम पाद में श्रवणादि साधन से निर्गुण ब्रह्म का साक्षात्कार एवं उपासना आदि से सगुण ब्रह्म के साक्षात्कार की चर्चा है। दूसरे पाद में मुमुक्षु जीव की ऊर्ध्वगति का निरूपण है। तीसरे पाद में सगुण ब्रह्म का ज्ञाता मृत्यु के बाद उत्तर के मार्ग पर जाता है, उसका वर्णन है। चतुर्थ पाद में पहले निर्गुण ब्रह्मज्ञान की विदेहमुक्ति बताई गई है और सगुण ब्रह्मज्ञान की ब्रह्मलोक में स्थिति दर्शाई गई है। इसमें विभिन्न विद्याओं के अनुरूप साधक को प्राप्त होनेवाले फल के विषय में चर्चा है। |
− | इस तरह ब्रह्मसूत्र के चार अध्याय और प्रत्येक अध्याय में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में अनेक अधिकरण होते हैं। चार अध्यायों में 555 सूत्र होते हैं। इस ग्रंथ के ही अन्य नाम हैं – उत्तर मीमांसा , शारीरिक सूत्र , वेदान्त सूत्र , ब्रह्म सूत्र इत्यादि। | + | इस तरह ब्रह्मसूत्र के चार अध्याय और प्रत्येक अध्याय में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में अनेक अधिकरण होते हैं। चार अध्यायों में 555 सूत्र होते हैं। इस ग्रंथ के ही अन्य नाम हैं – उत्तर मीमांसा , शारीरिक सूत्र , वेदान्त सूत्र , ब्रह्म सूत्र इत्यादि। ब्रह्मसूत्र में बादरायण आचार्य द्वारा निर्दिष्ट आचार्यों के नाम निम्नलिखित हैं - |
| + | {| class="wikitable" |
| + | |+ |
| + | ब्रह्मसूत्र में आचार्य |
| + | !आचार्यों के नाम |
| + | !सूत्र |
| + | |- |
| + | | कार्ष्णाजिनि |
| + | |चरणादिति चेन्नोपलक्षणाथेति कार्ष्णाजिनिः (ब्र. सू. 31) |
| + | |- |
| + | |काशकृत्स्नाचार्य |
| + | |अवस्थितेरिति काशकृत्सन (ब्र. सू. 1/4) |
| + | |- |
| + | |औडुलोमि |
| + | |चितितन्मात्रेण तदात्मकत्वादित्यौडुलौमिः (ब्र. सू. 4/4) |
| + | |- |
| + | |बादरि |
| + | |सुकृतदुष्कृते एवेति बादरिः (ब्र. सू. 3/1) |
| + | |- |
| + | |बादरायण |
| + | | एवमप्युपन्यासात् पूर्वभावादविरोधं बादरायणः (ब्र. सू. 4/4) |
| + | |- |
| + | |जैमिनि |
| + | |ब्राह्मेण जैमिनिरूपन्यासादिभ्यः (ब्र. सू. 4/4 ) |
| + | |- |
| + | |आश्मरथ्य |
| + | |प्रतिज्ञासिद्धेर्लिन्नमाश्मरथ्यः (ब्र. सू. 1/4 ) |
| + | |} |
| | | |
− | == ब्रह्मसूत्र पर भाष्य == | + | ==ब्रह्मसूत्र पर भाष्य== |
| इस ग्रंथ को आधारित करके ही शंकराचार्य आदि विविध दार्शनिकों ने स्वयं भाष्य रचे। उस भाष्य के अनुसार ही उनका दर्शन प्रवृत्त हुआ। ब्रह्म सूत्र पर अनेक आचार्यों द्वारा भाष्य लिखे गए हैं। वेदान्त में प्रसिद्ध दश मत होते हैं – <ref>पद्मभूषण आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय , संस्कृत-वांग्मय का बृहद इतिहास , दशम-खण्ड वेदांत, सन् 1999, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० 2)।</ref> | | इस ग्रंथ को आधारित करके ही शंकराचार्य आदि विविध दार्शनिकों ने स्वयं भाष्य रचे। उस भाष्य के अनुसार ही उनका दर्शन प्रवृत्त हुआ। ब्रह्म सूत्र पर अनेक आचार्यों द्वारा भाष्य लिखे गए हैं। वेदान्त में प्रसिद्ध दश मत होते हैं – <ref>पद्मभूषण आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय , संस्कृत-वांग्मय का बृहद इतिहास , दशम-खण्ड वेदांत, सन् 1999, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० 2)।</ref> |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
Line 69: |
Line 100: |
| |द्वैत | | |द्वैत |
| |माध्वाचार्य-आनंदतीर्थ | | |माध्वाचार्य-आनंदतीर्थ |
− | |1288 | + | | 1288 |
| |पूर्णप्रज्ञ भाष्य | | |पूर्णप्रज्ञ भाष्य |
| |- | | |- |
Line 99: |
Line 130: |
| |अचिंत्य भेदाभेद | | |अचिंत्य भेदाभेद |
| |बलदेव | | |बलदेव |
− | |1725 | + | | 1725 |
| |गोविंद भाष्य | | |गोविंद भाष्य |
| |} | | |} |
Line 139: |
Line 170: |
| अद्वैतवेदान्त दर्शन के प्रवर्तकों में गौडपाद और शंकरचार्य प्रमुख हैं। अद्वैत दर्शन का विशाल साहित्य मौलिक दृष्टि से अत्यंत श्लाघनीय है। अद्वैत वेदान्त के प्रमुख प्रतिपाद्य विषयों में ब्रह्म , माया , जीव , अध्यास , मुक्ति आदि प्रमुख है। | | अद्वैतवेदान्त दर्शन के प्रवर्तकों में गौडपाद और शंकरचार्य प्रमुख हैं। अद्वैत दर्शन का विशाल साहित्य मौलिक दृष्टि से अत्यंत श्लाघनीय है। अद्वैत वेदान्त के प्रमुख प्रतिपाद्य विषयों में ब्रह्म , माया , जीव , अध्यास , मुक्ति आदि प्रमुख है। |
| | | |
− | == निष्कर्ष == | + | ==सारांश== |
| + | महर्षि बादरायण ने ब्रह्मसूत्र की रचना की। शारीरिक अथवा जीवात्मा का जो स्वरूप उपनिषदों में सुना गया है वही नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त स्वभाव वाले ब्रह्म को प्रस्थान में उपनिषद् वाक्य विषयीकृत करके विचार करते हैं। |
| + | |
| + | उसमें चार अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं। वहाँ पर परम अधिकरण का लक्षण कहकर सूत्र का लक्षण भी कहा गया है। |
| + | |
| + | ब्रह्मसूत्र प्रथम अध्याय के प्रथम पाद में प्रसिद्ध विषय चतुःसूत्री है। उसमें चार सूत्रों की चर्चा की गई है। जन्माद्यधिकरण के भाष्य में ब्रह्म के दो लक्षण भी व्याख्यात हैं। शास्त्रयोनित्वात् इत्यादि सूत्र द्वारा ब्रह्म का शास्त्रप्रमाणकत्व भी स्थापित है। |
| | | |
| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |