Line 20: |
Line 20: |
| | | |
| === औषधि निर्माण सेवन मुहूर्त === | | === औषधि निर्माण सेवन मुहूर्त === |
− | ज्योतिष विज्ञान के बिना औषधियों का निर्माण यथा समय गुण युक्त नहीं किया जा सकता। स्पष्ट है कि ग्रहों के तत्त्व और स्वभाव को ज्ञात कर उन्हीं के अनुसार उसी तत्त्व और स्वभाव वाली औषधि का निर्माण करने से वह विशेष गुणकारी हो जाती है। | + | ज्योतिष विज्ञान के बिना औषधियों का निर्माण यथा समय गुण युक्त नहीं किया जा सकता। स्पष्ट है कि ग्रहों के तत्त्व और स्वभाव को ज्ञात कर उन्हीं के अनुसार उसी तत्त्व और स्वभाव वाली औषधि का निर्माण करने से वह विशेष गुणकारी हो जाती है। जो वैद्य ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान से अपरिचित रहते हैं, वे सुन्दर और पूर्णगुणकारी औषधि का निर्माण नहीं कर सकते अतः इन दोनों ज्योतिष एवं आयुर्वेद का ज्ञान रखना आवश्यक है। औषधि एवं रसायन के निर्माण, औषधि सेवन, शल्यक्रिया(सर्जरी) और चिकित्सा सबंधी कार्यों के लिये ज्योतिषशास्त्र में मुहूर्त का विधान किया गया है। मुहूर्तचिन्तामणिकार कहते हैं-<blockquote>भैषज्यं सल्लघुमृदुचरे मूलभे द्व्यङ्गलग्ने। शुक्रेन्द्विज्ये विदि च दिवसे चापि तेषां रवेश्च। शुद्धे रिष्फद्युनमृतिगृहे सत्तिथौ नो जनेर्भे॥<ref>विन्ध्येश्वरी प्रसाद द्विवेदी, मुहूर्तचिन्तामणि, मणिप्रदीप टीका, सन् २०१८,वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०८८)।</ref></blockquote>उपर्युक्त नक्षत्र, वार, राशि, तिथि, ग्रहशुद्धि एवं ग्रहों का बल ज्ञातकर ऐसे आयुप्रद योगमें औषधक्रिया का सेवन करना उत्तम कहा गया है। दीपिकाकार का मत है कि-जन्मनक्षत्र में कदापि औषधग्रहण करना प्रारंभ नहीं करना चाहिये। |
− | | |
− | औषधि एवं रसायन के निर्माण, औषधि सेवन, शल्यक्रिया(सर्जरी) और चिकित्सा सबंधी कार्यों के लिये ज्योतिषशास्त्र में मुहूर्त का विधान किया गया है। मुहूर्तचिन्तामणिकार कहते हैं-<blockquote>भैषज्यं सल्लघुमृदुचरे मूलभे द्व्यङ्गलग्ने। शुक्रेन्द्विज्ये विदि च दिवसे चापि तेषां रवेश्च। शुद्धे रिष्फद्युनमृतिगृहे सत्तिथौ नो जनेर्भे॥<ref>विन्ध्येश्वरी प्रसाद द्विवेदी, मुहूर्तचिन्तामणि, मणिप्रदीप टीका, सन् २०१८,वाराणसीः चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन (पृ०८८)।</ref></blockquote>उपर्युक्त नक्षत्र, वार, राशि, तिथि, ग्रहशुद्धि एवं ग्रहों का बल ज्ञातकर ऐसे आयुप्रद योगमें औषधक्रिया का सेवन करना उत्तम कहा गया है। दीपिकाकार का मत है कि-जन्मनक्षत्र में कदापि औषधग्रहण करना प्रारंभ नहीं करना चाहिये। | |
| | | |
| ==रोगों का वर्गीकरण== | | ==रोगों का वर्गीकरण== |
Line 244: |
Line 242: |
| | | |
| == विचार-विमर्श॥ Discussion == | | == विचार-विमर्श॥ Discussion == |
− | वैदिकदर्शन में <nowiki>''</nowiki>यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे<nowiki>''</nowiki> का सिद्धान्त प्राचीनकाल से प्रचलित है। यह सिद्धान्त इस तथ्य को बतलाता है कि सौर मण्डलान्तर्गत ज्योतिर्मय पदार्थों की विभिन्न गतिविधियों में जो सिद्धान्त कार्य करते हैं, वही सिद्धान्त प्राणी मात्र के शरीरमें स्थित सौर जगत् की इकाई का संचालन करते हैं। जैसा कि भगवान् श्री कृष्ण जी गीता में कहते हैं-<blockquote>गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा। पुष्णामि चौषधिः सर्वासोमो भूत्वा रसात्मकः॥(श्री०भ०गी० १५/१६)</blockquote>औषधियाँ सोम(चन्द्रमा) की रश्मियों के प्रभावसे रसात्मक होती हैं। यह प्रत्यक्ष अनुभव है कि औषधियों का जो विकास रात्रिमें होता है वैसा दिनमें नहीं होता है। चन्द्रमा हमारा पडोसी ग्रह है। अतः हमारे ऊपर ग्रहों का जो खिंचाव पड रहा है उसमें सर्वाधिक मात्रा चन्द्रमा की ही है। | + | वैदिकदर्शन में <nowiki>''</nowiki>यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे<nowiki>''</nowiki> का सिद्धान्त प्राचीनकाल से प्रचलित है। यह सिद्धान्त इस तथ्य को बतलाता है कि सौर मण्डलान्तर्गत ज्योतिर्मय पदार्थों की विभिन्न गतिविधियों में जो सिद्धान्त कार्य करते हैं, वही सिद्धान्त प्राणी मात्र के शरीरमें स्थित सौर जगत् की इकाई का संचालन करते हैं। जैसा कि भगवान् श्री कृष्ण जी गीता में कहते हैं-<blockquote>गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा। पुष्णामि चौषधिः सर्वासोमो भूत्वा रसात्मकः॥(श्री०भ०गी० १५/१६)</blockquote>औषधियाँ सोम(चन्द्रमा) की रश्मियों के प्रभावसे रसात्मक होती हैं। यह प्रत्यक्ष अनुभव है कि औषधियों का जो विकास रात्रिमें होता है वैसा दिनमें नहीं होता है। चन्द्रमा हमारा पडोसी ग्रह है। अतः हमारे ऊपर ग्रहों का जो खिंचाव पड रहा है उसमें सर्वाधिक मात्रा चन्द्रमा की ही है। ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत आचार्यों ने रोगों के कारण तथा उनके उपचारों का विचारण सम्यक् रूप से किया है। ग्रहों का प्रभाव मनुष्य पर निश्चित रूप से पडता है। ग्रहों के बीच पारस्परिक शत्रु-मित्र भाव रहते हैं और उसके अनुसार वे एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण जातक विभिन्न रोगों से ग्रस्त होता है और अनुकूल प्रभाव से सुख-समृद्धि को प्राप्त करता है। अतः प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिये ज्योतिषशास्त्र में आचार्यों ने विभिन्न प्रकार के उपचारों का उल्लेख किया है। |
| | | |
| * चन्द्रमा का दुष्प्रभाव ही हमारे शरीर की रक्तसंचार प्रणाली को असामान्य बनाता है। | | * चन्द्रमा का दुष्प्रभाव ही हमारे शरीर की रक्तसंचार प्रणाली को असामान्य बनाता है। |