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यास्कानुसार काल वह शक्ति है जो सबको गति देती है। संसार में गति अथवा कर्म का मूलाधार काल ही है क्योंकि कोई भी गति या कर्म किसी काल में ही किया जाता है, चाहे वह सूक्ष्म हो या व्यापक हो। वस्तुतः ज्योतिषशास्त्र काल विधायक शास्त्र है, इसका मुख्य आधार ही कालगणना है। जन्मकुण्डली निर्माण से लेकर मुहूर्त शोधन व समष्टि गत शुभाशुभ का विचार तक इसी काल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं स्थूल दोनों रूपों द्वारा होता है अर्थात् सर्वत्र काल गणना ही आधार है।
 
यास्कानुसार काल वह शक्ति है जो सबको गति देती है। संसार में गति अथवा कर्म का मूलाधार काल ही है क्योंकि कोई भी गति या कर्म किसी काल में ही किया जाता है, चाहे वह सूक्ष्म हो या व्यापक हो। वस्तुतः ज्योतिषशास्त्र काल विधायक शास्त्र है, इसका मुख्य आधार ही कालगणना है। जन्मकुण्डली निर्माण से लेकर मुहूर्त शोधन व समष्टि गत शुभाशुभ का विचार तक इसी काल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं स्थूल दोनों रूपों द्वारा होता है अर्थात् सर्वत्र काल गणना ही आधार है।
 
===परिचय===
 
===परिचय===
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सामान्यतया काल को हम प्राणियों के प्राणों को हरने वाले यमराज के नाम से जानते हैं। इस आधार पर हम कह सहते हैं कि काल का एक रूप तो साक्षात् काल (यम ) है और दूसरा रूप काल का गणनात्मक (जिसकी गणना की जाए) है। यहां पर हम गणनात्मक काल लो भी मुख्यतः दो रूपों में बांट सकते हैं, जैसे- स्थूल और सूक्ष्म काल।
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=== स्थूल काल ===
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स्थूल काल का ही दूसरा नाम मूर्तकाल भी है। यह काल की गणना करने में सबसे छोटी इकाई भी है, यही प्राणादिकाल भी है। प्राण का ही दूसरा नाम असु है। जैसे १ प्राण = स्वस्थ व्यक्ति के श्वांस लेने व छोडने का समय= दीर्घ अक्षर उच्चारण काल = १० विपल = ४ सेकेण्ड । इसी प्रकार ६ प्राण की एक विनाडी (पल), ६० विनाडी (पल) की। नाडी, ६० नाडी (घटी) का एक नाक्षत्र अहोरात्र कहा गया है। ३० अहोरात्र का एक मास होता है। दो सूर्योदयों के मध्य का काल सावन दिन कहलाता है। संक्षिप्त रूप से कह सकते हैं जैसे-
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10 दीर्घाक्षर उच्चारण काल - 1 प्राण = 10 विपल
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06  प्राण = (10 x 6) = 60 विपल = 1 पल
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60 पल = 01 नाड़ी (घटी)
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60 नाड़ी = 1 अहोरात्र (नाक्षत्र)
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30 अहोरात्र = 1 मास
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यह काल मान स्थूल काल गणना के हैं।
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=== सूक्ष्मकाल (अमूर्तकाल) ===
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वस्तुतः अमूर्तकाल की सबसे छोटी इकाई त्रुटि है। दूसरे शब्दों में कहें तो हम कह सकते हैं कि एक सुई से कमल पत्र को छेदने में जितना समय लगता है वह त्रुटि है। इसीलिये कहा भी है -<blockquote>सूच्या भिन्ने पद्मपत्रे त्रुटिरित्यभिधीयते।</blockquote>इसके अलावा भी अमूर्तकाल में रेणु - लव - लीक्षक भी आते हैं, जिन्हैं हम निम्नप्रकार से समझ सकते हैं-
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1 त्रुटि = 1/ 3240000 सेकेंड
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60 त्रुटि = 1/ 54000 सेकेण्ड
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60 रेणु = 1 लव = 1/900 सेकेण्ड
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60 लव = 1 लीक्षक = 1/15 सेकेण्ड
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60 लीक्षक व 1 प्राण = 10 दीर्घ अक्षर के उच्चारण का काल
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कालः कल्यतेगतिकर्मणः। ( नि० २, २५)
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स हि कालः सर्वाण्येव भूतानि कालयति क्षयं नयतीत्यर्थः।
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प्राणादिः कथितो मूर्तस्त्रुट्याद्योऽमूर्तसंज्ञकः। षड्भिः प्राणैर्विनाडी स्यात् तत्षष्ठ्या नाडिका स्मृता॥
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नाडीषष्ठ्या तु नाक्षत्रमहोरात्रं प्रकीर्तितम् । तत् त्रिंशता भवेन्मासः सावनोऽर्कोदयस्तथा॥(सूर्य सिद्धान्त, मध्यमाधिकार-११-१२)
    
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